− | सृष्टि निर्माण से पूर्व अकेले परमात्मा का ही अस्तित्व था। जो अनादि है, अनंत है, सर्वशक्तिमान है, सगुण साकार भी है और निर्गुण निराकार भी है। वह अनंत चैतन्यमय है। अकेलेपन से वह उकता गया। उसे इच्छा हुई कि:<blockquote>'एकाकी न रमते । सोऽकामयत्। एकोऽहं बहुस्याम:।{{Citation needed}}'</blockquote><blockquote>अकेले मन नहीं रमता। इसलिये अनेक हो जाऊँ। </blockquote>परमात्मा ने तप किया। वह अनेक हो गया। विविध रूपों में प्रकट हो गया। अपने में से ही सारी सृष्टि का निर्माण किया। इस लिये कण कण, चर अचर सब परमात्मा के ही रूप हैं। मिट्टी, जल, जंगल, जमीन, जानवर, जन, ग्रह, तारे और ब्रह्मांड आदि सभी परमात्मा के ही व्यक्त रूप हैं। सारी सृष्टि यह उस परमात्म तत्व का या आत्मतत्व का ही विस्तार मात्र है। इसलिये चराचर में परस्पर आत्मीयता का संबंध है। इस आत्मीयता की भावना को ही सामान्य शब्दावलि में ‘परिवार भावना’ कहा जाता है। जब किसी की आत्मीयता का या परिवार भावना का दायरा चराचर सृष्टि के सभी अस्तित्वों तक बढता है तब वह परमात्मस्वरूप हो जाता है। इसी को संत तुकाराम ‘उरलो उपकारापुरता’ (अब जीना तो बस केवल परोपकार के लिये ही रह गया है) कहते हैं। इसी को भारतीय मान्यताएँ मोक्ष कहतीं हैं। | + | सृष्टि निर्माण से पूर्व अकेले परमात्मा का ही अस्तित्व था। जो अनादि है, अनंत है, सर्वशक्तिमान है, सगुण साकार भी है और निर्गुण निराकार भी है। वह अनंत चैतन्यमय है। अकेलेपन से वह उकता गया। उसे इच्छा हुई कि:<blockquote>'एकाकी न रमते । सोऽकामयत्। एकोऽहं बहुस्याम:।{{Citation needed}}'</blockquote><blockquote>भावार्थ: अकेले मन नहीं रमता। इसलिये अनेक हो जाऊँ। </blockquote>परमात्मा ने तप किया। वह अनेक हो गया। विविध रूपों में प्रकट हो गया। अपने में से ही सारी सृष्टि का निर्माण किया। इस लिये कण कण, चर अचर सब परमात्मा के ही रूप हैं। मिट्टी, जल, जंगल, जमीन, जानवर, जन, ग्रह, तारे और ब्रह्मांड आदि सभी परमात्मा के ही व्यक्त रूप हैं। सारी सृष्टि यह उस परमात्म तत्व का या आत्मतत्व का ही विस्तार मात्र है। इसलिये चराचर में परस्पर आत्मीयता का संबंध है। इस आत्मीयता की भावना को ही सामान्य शब्दावलि में ‘परिवार भावना’ कहा जाता है। जब किसी की आत्मीयता का या परिवार भावना का दायरा चराचर सृष्टि के सभी अस्तित्वों तक बढता है तब वह परमात्मस्वरूप हो जाता है। इसी को संत तुकाराम ‘उरलो उपकारापुरता’ (अब जीना तो बस केवल परोपकार के लिये ही रह गया है) कहते हैं। इसी को भारतीय मान्यताएँ मोक्ष कहतीं हैं। |
| अंडज, स्वेदज, योनिज, उद्भिज आदि चार प्रकार के जीव जी सकें इस लिये परमात्मा ने अपने में से ही सर्वप्रथम जड जगत का निर्माण किया। | | अंडज, स्वेदज, योनिज, उद्भिज आदि चार प्रकार के जीव जी सकें इस लिये परमात्मा ने अपने में से ही सर्वप्रथम जड जगत का निर्माण किया। |