Changes

Jump to navigation Jump to search
सुधार जारि
Line 80: Line 80:  
== सारांश ==
 
== सारांश ==
 
दिक्साधन की अनेक विधियों का अध्ययन करके यह पाया है कि मानव व्यवहार हेतु दिशाओं का ज्ञान होना परमावश्यक है। प्राचीन काल से ही दिशाओं के साधन व उनके स्वरूप को समझने के लिए इनका सटीक ज्ञान प्रमुखतः सूर्य के माध्यम से ही किया जाता रहा है। जहां एक तरफ शंकुच्छाया के माध्यम से दिशाओं का प्रतिपादन एकदम वैज्ञानिक है। वहीं वर्तमान काल के वैज्ञानिक युग में दिशाओं के परिज्ञान हेतु मात्र दिक्सूचक यन्त्र का प्रयोग किया जाता है। जो कभी-कभी पूर्णतया शुद्ध परिणाम नहीं देते हैं। अतः हम निष्कर्ष के रूप में कह सकते हैं कि दिक्ज्ञान के लिये हमारी शास्त्रीय प्राचीन विधियां अधिक उपयुक्त एवं तर्कसंगत हैं।
 
दिक्साधन की अनेक विधियों का अध्ययन करके यह पाया है कि मानव व्यवहार हेतु दिशाओं का ज्ञान होना परमावश्यक है। प्राचीन काल से ही दिशाओं के साधन व उनके स्वरूप को समझने के लिए इनका सटीक ज्ञान प्रमुखतः सूर्य के माध्यम से ही किया जाता रहा है। जहां एक तरफ शंकुच्छाया के माध्यम से दिशाओं का प्रतिपादन एकदम वैज्ञानिक है। वहीं वर्तमान काल के वैज्ञानिक युग में दिशाओं के परिज्ञान हेतु मात्र दिक्सूचक यन्त्र का प्रयोग किया जाता है। जो कभी-कभी पूर्णतया शुद्ध परिणाम नहीं देते हैं। अतः हम निष्कर्ष के रूप में कह सकते हैं कि दिक्ज्ञान के लिये हमारी शास्त्रीय प्राचीन विधियां अधिक उपयुक्त एवं तर्कसंगत हैं।
 +
 +
== देश ==
 +
देश अथवा स्थान के बिना हम दिक् और काल का ज्ञान ही नहीं कर सकते हैं। अर्थात् दिक् और काल का आधार देश ही है। देश के भेद से काल में भी भेद उत्पन्न हो जाता है। अतः भारतीय ज्योतिष परम्परा में त्रिप्रश्न अर्थात् दिक् , देश और काल तीनों का समग्र चिन्तन किया जाता है जिस में देश का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि देश से ही निर्माण प्रक्रिया का शुभारम्भ होता है।
 +
 +
== परिचय ==
 +
देश का सम्बन्ध क्षेत्र विशेष अथवा स्थान विशेष से है जिसमें वास्तुनिर्माण किया जाना है। काल का सम्बन्ध समय से है। ज्योतिष के क्षेत्र में दिक् साधन के उपरान्त देशके शुभाशुभत्व का विचार किया जाता है। अतः शास्त्रानुसार देश और काल की शुद्धता के आधार पर वास्तु का विधान होना चाहिये। ज्योतिष और वास्तु के ग्रन्थों में दिक् , देश, काल पर विस्तार से वर्णन मिलता है। क्षेत्र अथवा देश का निर्धारण अक्षांश व देशान्तर के आधार पर होता है। प्रकृति, जनपद एवं जलवायु को दृष्टि में रखकर देश-भूमि चयन किया जाता है।<ref>योगेंद्र कुमार शर्मा, [http://egyankosh.ac.in//handle/123456789/80827 देश की अवधारणा एवं भेद], सन् २०२१, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली (पृ०२७७)।</ref>
    
== देश का विचार ==
 
== देश का विचार ==
746

edits

Navigation menu