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शिक्षा के उद्देश्य से इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देश्य भिन्न नहीं हो सकता।
 
शिक्षा के उद्देश्य से इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन का उद्देश्य भिन्न नहीं हो सकता।
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इसलिये इतिहास की भारतीय व्याख्या कही गई<blockquote>धर्मार्थकाममोक्षाणाम् उपदेश समन्वितम् ।</blockquote><blockquote>पुरावृत्तं कथारूपं इतिहासं प्रचक्षते ॥</blockquote><blockquote>भावार्थ : अर्थ और काम को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने के लिये जो प्रत्यक्ष में हो गये है ऐसे प्रसंगों के आधारपर रोचक रंजक अर्थात् कथा के रूप में की गई प्रस्तुति ही इतिहास है।</blockquote>इस का अर्थ है कि इतिहास की प्रस्तुति समाज को चराचर के साथ एकात्मता की भावना और व्यवहार की दृष्टि से अग्रेसर करने के लिये ही करनी होगी। जिस इतिहास की प्रस्तुति से समाज के घटक के साथ एकात्मता की भावना को हानि होती हो, चराचर के साथ आत्मीयता को ठेस पहुंचती हो ऐसे इतिहास की प्रस्तुति वर्जित होगी। यह है अत्यंत संक्षेप में भारतीय इतिहास दृष्टि ।
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इसलिये इतिहास की भारतीय व्याख्या कही गई{{Citation needed}} <blockquote>धर्मार्थकाममोक्षाणाम् उपदेश समन्वितम् ।</blockquote><blockquote>पुरावृत्तं कथारूपं इतिहासं प्रचक्षते ॥</blockquote><blockquote>भावार्थ : अर्थ और काम को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने के लिये जो प्रत्यक्ष में हो गये है ऐसे प्रसंगों के आधारपर रोचक रंजक अर्थात् कथा के रूप में की गई प्रस्तुति ही इतिहास है।</blockquote>इस का अर्थ है कि इतिहास की प्रस्तुति समाज को चराचर के साथ एकात्मता की भावना और व्यवहार की दृष्टि से अग्रेसर करने के लिये ही करनी होगी। जिस इतिहास की प्रस्तुति से समाज के घटक के साथ एकात्मता की भावना को हानि होती हो, चराचर के साथ आत्मीयता को ठेस पहुंचती हो ऐसे इतिहास की प्रस्तुति वर्जित होगी। यह है अत्यंत संक्षेप में भारतीय इतिहास दृष्टि ।
    
भारतीय विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। शिक्षा का उद्देश्य भी इसीलिये ' सा विद्या या विमुक्तये' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है। इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है। किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुणसंपदायुक्त संतान की इच्छा करना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और  उद्योग से धन कमाना, चतुराई से लोगों के मन नहीं जीतना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और  व्यवहार से लोगों के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुए मोक्ष की ओर बढना।  
 
भारतीय विचारों के अनुसार मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है। शिक्षा का उद्देश्य भी इसीलिये ' सा विद्या या विमुक्तये' अर्थात् मोक्ष ही है ऐसा कहा गया है। इच्छाओं को और इच्छापूर्ति के प्रयासों को धर्मानुकूल रखते हुए मोक्ष की ओर बढने की प्रक्रिया का इस हेतु विकास किया गया। पुत्रेषणा (संतानप्राप्ति), वित्तेषणा (धनप्राप्ति) और लोकेषणा (समाज में प्रतिष्ठा) यह तीन इच्छाएं तो सभी को होती ही है। किन्तु श्रेष्ठ दैवी गुणसंपदायुक्त संतान की इच्छा करना, उस हेतु अपना जीवन ढालना, मन को संयम में रखना, प्रामाणिक व्यवहार और  उद्योग से धन कमाना, चतुराई से लोगों के मन नहीं जीतना, अपने सच्चे सर्वहितकारी स्वभाव और  व्यवहार से लोगों के मन जीतने का अर्थ है धर्मानुकूल अर्थ और काम रखते हुए मोक्ष की ओर बढना।  
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