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सिखों के इतिहास लेखन की कथा तो इस से भी अधिक गहरे षडयंत्र की कथा है। मॅकलिफ नाम का एक अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकारी बनकर पंजाब में आया था। उस ने सिख पंथ का स्वीकार किया। मॅकलिफ सिंग बन गया। जीते हुए समाज का और वह भी गोरी चमडी वाला अंग्रेज सिख बन जाता है, यह बात सिखों के लिये अत्यंत आनंद देनेवाली और अत्यंत गौरवपूर्ण थी । इस के परिणामस्वरूप मॅकलिफसिंग सिखों का सिरमौर बन गया । पूरा सिख समाज मॅकलिफसिंग जिसे पूर्व कहे उसे पूर्व कहने लग गया ।<blockquote>सकल जगत में खालसा पंथ गाजे ।</blockquote><blockquote>जगे धर्म हिंन्दू सकल भंड भाजे ॥</blockquote>सिक्खों के दसवें गुरू गोविद सिंह जी ने खालसा (सिख) पंथ की स्थापना ही हिन्दू धर्म की रक्षा के लिये की थी यह बात उन के उपर्युक्त दोहे से स्पष्ट है। किन्तु सिखों (केशधारी हिन्दू) में और हिन्दुओं में फूट डालने के लिये मॅकलिफसिंग ने सिखों का झूठा इतिहास लिख डाला। १९९० के दशक में पंजाब में चले खलिस्तान की अलगाववादी मांग के बीज मॅकलिफसिंग के लिखे सिखों के इतिहास में ही है। कंपनी की नौकरी का कार्यकाल समाप्त होते ही मॅकलिफसिंग दाढी-मूंछें मुंडवाकर फिर ईसाई बनकर इंग्लैंड चला गया।  किन्तु हमारी गुलामी की मानसिकता इतनी गहरी है कि अब भी हम अंग्रेजों के षडयंत्र को समझ नहीं रहे । मॅकलिफसिंग का लिखा सिखों का इतिहास आज भी सिखों का प्रामाणिक संदर्भ इतिहास माना जाता है। इस इतिहास से भिन्न कुछ लिखने पर हमारी तथाकथित इतिहासज्ञों की फौज लिखा हुआ सत्य है या नहीं इस को जाँचे बगैर ही उस के विरोध में खडी हो जाती है।
 
सिखों के इतिहास लेखन की कथा तो इस से भी अधिक गहरे षडयंत्र की कथा है। मॅकलिफ नाम का एक अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकारी बनकर पंजाब में आया था। उस ने सिख पंथ का स्वीकार किया। मॅकलिफ सिंग बन गया। जीते हुए समाज का और वह भी गोरी चमडी वाला अंग्रेज सिख बन जाता है, यह बात सिखों के लिये अत्यंत आनंद देनेवाली और अत्यंत गौरवपूर्ण थी । इस के परिणामस्वरूप मॅकलिफसिंग सिखों का सिरमौर बन गया । पूरा सिख समाज मॅकलिफसिंग जिसे पूर्व कहे उसे पूर्व कहने लग गया ।<blockquote>सकल जगत में खालसा पंथ गाजे ।</blockquote><blockquote>जगे धर्म हिंन्दू सकल भंड भाजे ॥</blockquote>सिक्खों के दसवें गुरू गोविद सिंह जी ने खालसा (सिख) पंथ की स्थापना ही हिन्दू धर्म की रक्षा के लिये की थी यह बात उन के उपर्युक्त दोहे से स्पष्ट है। किन्तु सिखों (केशधारी हिन्दू) में और हिन्दुओं में फूट डालने के लिये मॅकलिफसिंग ने सिखों का झूठा इतिहास लिख डाला। १९९० के दशक में पंजाब में चले खलिस्तान की अलगाववादी मांग के बीज मॅकलिफसिंग के लिखे सिखों के इतिहास में ही है। कंपनी की नौकरी का कार्यकाल समाप्त होते ही मॅकलिफसिंग दाढी-मूंछें मुंडवाकर फिर ईसाई बनकर इंग्लैंड चला गया।  किन्तु हमारी गुलामी की मानसिकता इतनी गहरी है कि अब भी हम अंग्रेजों के षडयंत्र को समझ नहीं रहे । मॅकलिफसिंग का लिखा सिखों का इतिहास आज भी सिखों का प्रामाणिक संदर्भ इतिहास माना जाता है। इस इतिहास से भिन्न कुछ लिखने पर हमारी तथाकथित इतिहासज्ञों की फौज लिखा हुआ सत्य है या नहीं इस को जाँचे बगैर ही उस के विरोध में खडी हो जाती है।
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स्वाधीनता के बाद इस में परिवर्तन होगा ऐसी आशा थी। किन्तु जवाहरलाल नेहरूजी का नेतृत्व हमें मिला। वह योरपीय सोच से अत्यधिक प्रभावित थे। धार्मिकता के संबंध में उन की समझ बहुत कम और गलत थी। इसीलिये भारत के राष्ट्रपुरूष शिवाजी को उन्होंने 'राह भटका देशभक्त (मिसगायडेड पॅट्रियट)' कहा। गांधीजी की धार्मिकता के नेहरूजी कट्टर विरोधी थे। काँग्रेस में घुसे कम्युनिस्टों के कारनामों को वह समझ नहीं सकते थे। इतिहास लेखन की जिम्मेदारी स्वाधीन भारत में नेहरूजी ने जिन्हें सौंपी वे सब छद्म किन्तु कट्टर कम्युनिस्ट थे। कम्युनिस्टों का इतिहास भारत के साथ गद्दारी का ही रहा है। उन्हें देश के सत्य इतिहास के लेखन में और धार्मिक (धार्मिक) आदर्शों की पुनर्प्रतिष्ठा में कोई रस नहीं था, न आज है। इस कम्युनिस्ट गुट ने जितना भी इतिहास लेखन में योगदान दिया है, उस के कारण हमारे बच्चों की इतिहास पढने में रुचि खतम हो गई है। पूरा इतिहास हिन्दू समाज के बच्चों के मन में हीनताबोध निर्माण करनेवाला लिखा गया है। इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन की इन की दृष्टि तो जेम्स् स्टुअर्ट मिल की ही रही है।
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स्वाधीनता के बाद इस में परिवर्तन होगा ऐसी आशा थी। किन्तु जवाहरलाल नेहरूजी का नेतृत्व हमें मिला। वह योरपीय सोच से अत्यधिक प्रभावित थे। धार्मिकता के संबंध में उन की समझ बहुत कम और गलत थी। इसीलिये भारत के राष्ट्रपुरूष शिवाजी को उन्होंने 'राह भटका देशभक्त (मिसगायडेड पॅट्रियट)' कहा। गांधीजी की धार्मिकता के नेहरूजी कट्टर विरोधी थे। काँग्रेस में घुसे कम्युनिस्टों के कारनामों को वह समझ नहीं सकते थे। इतिहास लेखन की जिम्मेदारी स्वाधीन भारत में नेहरूजी ने जिन्हें सौंपी वे सब छद्म किन्तु कट्टर कम्युनिस्ट थे। कम्युनिस्टों का इतिहास भारत के साथ गद्दारी का ही रहा है। उन्हें देश के सत्य इतिहास के लेखन में और धार्मिक (धार्मिक) आदर्शों की पुनर्प्रतिष्ठा में कोई रस नहीं था, न आज है। इस कम्युनिस्ट गुट ने जितना भी इतिहास लेखन में योगदान दिया है, उस के कारण हमारे बच्चोंं की इतिहास पढने में रुचि खतम हो गई है। पूरा इतिहास हिन्दू समाज के बच्चोंं के मन में हीनताबोध निर्माण करनेवाला लिखा गया है। इतिहास लेखन, अध्ययन और अध्यापन की इन की दृष्टि तो जेम्स् स्टुअर्ट मिल की ही रही है।
    
जबतक शेर अपना इतिहास खुद नहीं लिखेंगे, शिकारी की भूमिका से ही इतिहास लिखे जाएंगे। यही हमारे इतिहास के बारे में हो रहा है। भारत का स्वर्णयुग, गुप्त काल जिस का वर्णन चीनी प्रवासियों ने कर रखा है, उसे अंग्रेज भी नकार नहीं सके थे। किन्तु हमारे इतिहास विभाग ने एक चक्रक (सर्क्युलर) निकालकर आदेश दिया कि 'गुप्त काल को स्वर्णयुग कहकर उस का गौरव नहीं करें'। तथाकथित इतिहासज्ञों (छद्म कम्युनिस्टों) ने इंडियन काउन्सिल फॉर हिस्टॉरिकल रिसर्च इस सर्वोच्च संस्था पर लगभग ५० वर्षों तक कब्जा जमाए रखा था। १९९८ में इन्हे बर्खास्त किया गया।
 
जबतक शेर अपना इतिहास खुद नहीं लिखेंगे, शिकारी की भूमिका से ही इतिहास लिखे जाएंगे। यही हमारे इतिहास के बारे में हो रहा है। भारत का स्वर्णयुग, गुप्त काल जिस का वर्णन चीनी प्रवासियों ने कर रखा है, उसे अंग्रेज भी नकार नहीं सके थे। किन्तु हमारे इतिहास विभाग ने एक चक्रक (सर्क्युलर) निकालकर आदेश दिया कि 'गुप्त काल को स्वर्णयुग कहकर उस का गौरव नहीं करें'। तथाकथित इतिहासज्ञों (छद्म कम्युनिस्टों) ने इंडियन काउन्सिल फॉर हिस्टॉरिकल रिसर्च इस सर्वोच्च संस्था पर लगभग ५० वर्षों तक कब्जा जमाए रखा था। १९९८ में इन्हे बर्खास्त किया गया।
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अरूण शौरी की पुस्तक 'एमिनंट हिस्टॉरियन्स् - देयर टेक्नॉलॉजी, देयर लाईन ऍंड देयर फ्रॉड्स्' में सबूतों के साथ इरफान हबीब, रोमिला थापर, जगदीशचन्द्र आदि ४०-५० तथाकथित इतिहासज्ञों के कारनामों की जानकारी मिलती है। इन तथाकथित इतिहासकारों ने सरकारी तिजोरी को लाखों रुपयों का चूना कैसे लगाया इस के ऑंकडे भी इस पुस्तक में दिये है। इस तरह स्वाधीनता से पहले अंग्रेजी और स्वाधीनता के उपरांत कम्युनिस्ट ऐसी पाश्चात्य भूमिकाओं से ही हमारे इतिहास की प्रस्तुति हुई है।
 
अरूण शौरी की पुस्तक 'एमिनंट हिस्टॉरियन्स् - देयर टेक्नॉलॉजी, देयर लाईन ऍंड देयर फ्रॉड्स्' में सबूतों के साथ इरफान हबीब, रोमिला थापर, जगदीशचन्द्र आदि ४०-५० तथाकथित इतिहासज्ञों के कारनामों की जानकारी मिलती है। इन तथाकथित इतिहासकारों ने सरकारी तिजोरी को लाखों रुपयों का चूना कैसे लगाया इस के ऑंकडे भी इस पुस्तक में दिये है। इस तरह स्वाधीनता से पहले अंग्रेजी और स्वाधीनता के उपरांत कम्युनिस्ट ऐसी पाश्चात्य भूमिकाओं से ही हमारे इतिहास की प्रस्तुति हुई है।
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हम अपने बच्चों को कैसा बनाना चाहते है यह हमें सोचना होगा । और इस सोच के अनुसार इतिहास का पुनर्लेखन हमें करना होगा । इस का अर्थ यह नहीं की हम झूठा इतिहास लिखें। इतिहास के विषय में धार्मिक (धार्मिक) मान्यता है, 'ना मूलम् लिख्यते किंचित्'। इसलिये जो वास्तव में घटित हुआ है उस की धार्मिक (धार्मिक) दृष्टिकोण से मीमांसा करते हुए हमें अपना इतिहास फिर से लिखना होगा।  
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हम अपने बच्चोंं को कैसा बनाना चाहते है यह हमें सोचना होगा । और इस सोच के अनुसार इतिहास का पुनर्लेखन हमें करना होगा । इस का अर्थ यह नहीं की हम झूठा इतिहास लिखें। इतिहास के विषय में धार्मिक (धार्मिक) मान्यता है, 'ना मूलम् लिख्यते किंचित्'। इसलिये जो वास्तव में घटित हुआ है उस की धार्मिक (धार्मिक) दृष्टिकोण से मीमांसा करते हुए हमें अपना इतिहास फिर से लिखना होगा।  
    
== इतिहास दृष्टि और जीवन दृष्टि ==
 
== इतिहास दृष्टि और जीवन दृष्टि ==
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* निचैर्गच्छ्त्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण का मथित अर्थ है प्रकृति की तरह ही इतिहास भी चक्रिय पद्दति से घटता रहता  है। उत्पत्ति, स्थिति और लय का चक्र चलता रहता है। हर युग में चतुर्युग हुआ करते है। कलियुग में भी जो श्रेष्ठ समय होगा उसे कलियुग का सत्ययुग कहा जाएगा। समाज के उत्थान और पतन में किस घटना चक्र से प्रेरणा या सबक मिलता है वह महत्वपूर्ण है । वह घटना किस समय चक्र की है यह नहीं। इतिहास यह कथारूप में पढाने का विषय है।
 
* निचैर्गच्छ्त्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण का मथित अर्थ है प्रकृति की तरह ही इतिहास भी चक्रिय पद्दति से घटता रहता  है। उत्पत्ति, स्थिति और लय का चक्र चलता रहता है। हर युग में चतुर्युग हुआ करते है। कलियुग में भी जो श्रेष्ठ समय होगा उसे कलियुग का सत्ययुग कहा जाएगा। समाज के उत्थान और पतन में किस घटना चक्र से प्रेरणा या सबक मिलता है वह महत्वपूर्ण है । वह घटना किस समय चक्र की है यह नहीं। इतिहास यह कथारूप में पढाने का विषय है।
 
* घरों के लिए अच्छे माता-पिता, समाज के लिये अच्छे समाजघटक, देश के लिये देशभक्त और विश्व के लिये अच्छे मानव बनाने की दृष्टि से इतिहास की प्रस्तुति और अध्यापन करना होगा।
 
* घरों के लिए अच्छे माता-पिता, समाज के लिये अच्छे समाजघटक, देश के लिये देशभक्त और विश्व के लिये अच्छे मानव बनाने की दृष्टि से इतिहास की प्रस्तुति और अध्यापन करना होगा।
* शिशू और बाल अवस्थाएं संस्कारक्षम आयु की होती है। शिक्षा शास्त्र के अनुसार छोटी आयु में पूरी तरह से रोचक, रंजक कथाओं के माध्यम से इतिहास पढाना चाहिये। शिशू अवस्था तक तो लोरियाँ बालगीतों का उपयोग करना चाहिये। बाल आयु के बच्चों के लिये शौर्य की, विजय की, त्याग की, तपस्या की कथाएँं ही बतानी चाहिये। बढती आयु के साथ आगे धीरेधीरे गंभीर कथाएँं बतानी चाहिये।
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* शिशू और बाल अवस्थाएं संस्कारक्षम आयु की होती है। शिक्षा शास्त्र के अनुसार छोटी आयु में पूरी तरह से रोचक, रंजक कथाओं के माध्यम से इतिहास पढाना चाहिये। शिशू अवस्था तक तो लोरियाँ बालगीतों का उपयोग करना चाहिये। बाल आयु के बच्चोंं के लिये शौर्य की, विजय की, त्याग की, तपस्या की कथाएँं ही बतानी चाहिये। बढती आयु के साथ आगे धीरेधीरे गंभीर कथाएँं बतानी चाहिये।
 
* अविचार का उदात्तीकरण करनेवाली कथाएँं कच्ची आयु में नहीं बतानी चाहिये। जैसे पृथ्वीराज चौहानद्वारा गौरी को बारबार क्षमा करने की कथा। या छत्रपति शिवाजी के सरसेनापति प्रतापराव गुर्जर द्वारा अविचार से अपने सात सरदारों के साथ किया अविचारी बलिदान। आदि
 
* अविचार का उदात्तीकरण करनेवाली कथाएँं कच्ची आयु में नहीं बतानी चाहिये। जैसे पृथ्वीराज चौहानद्वारा गौरी को बारबार क्षमा करने की कथा। या छत्रपति शिवाजी के सरसेनापति प्रतापराव गुर्जर द्वारा अविचार से अपने सात सरदारों के साथ किया अविचारी बलिदान। आदि
 
* पाश्चात्य समाज जीवनपर शासन का बहुत गहरा प्रभाव होता है। इसलिये वर्तमान में हमें इतिहास पढाया जाता है वह भारत का राजकीय इतिहास होता है। भूगोल पढाया जाता है वह भारत का राजकीय भूगोल होता है। अर्थशास्त्र पढाया जाता है वह राजकीय अर्थशास्त्र (पोलिटिकल ईकॉनॉमी) होता है। धार्मिक (धार्मिक) इतिहास लेखन में समाज जीवन के सब ही पहलुओं के इतिहास का समावेश होगा। राजकीय, कला, संस्कार, साहित्य, सामाजिक शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि सभी का समावेश हमारे इतिहास में होगा। धार्मिक (धार्मिक) जीवन में धर्म सर्वोपरि होता है। अतः धर्माचरण सिखानेवाला इतिहास हो।
 
* पाश्चात्य समाज जीवनपर शासन का बहुत गहरा प्रभाव होता है। इसलिये वर्तमान में हमें इतिहास पढाया जाता है वह भारत का राजकीय इतिहास होता है। भूगोल पढाया जाता है वह भारत का राजकीय भूगोल होता है। अर्थशास्त्र पढाया जाता है वह राजकीय अर्थशास्त्र (पोलिटिकल ईकॉनॉमी) होता है। धार्मिक (धार्मिक) इतिहास लेखन में समाज जीवन के सब ही पहलुओं के इतिहास का समावेश होगा। राजकीय, कला, संस्कार, साहित्य, सामाजिक शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि सभी का समावेश हमारे इतिहास में होगा। धार्मिक (धार्मिक) जीवन में धर्म सर्वोपरि होता है। अतः धर्माचरण सिखानेवाला इतिहास हो।
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* ना मूलम् लिख्यते किंचित यही हमारे इतिहास लेखन का आधार रहना चाहिये।
 
* ना मूलम् लिख्यते किंचित यही हमारे इतिहास लेखन का आधार रहना चाहिये।
 
* इतिहास केवल राजाओं का नहीं होता। इतिहास जीवन का होता है। जीवन के हर पहलू का होता है। जीवन के प्रत्येक पहलू के इतिहास के अध्ययन अध्यापन और लेखन से मनुष्य मोक्षगामी बने ऐसी इतिहास की प्रस्तुति होनी चाहिए।
 
* इतिहास केवल राजाओं का नहीं होता। इतिहास जीवन का होता है। जीवन के हर पहलू का होता है। जीवन के प्रत्येक पहलू के इतिहास के अध्ययन अध्यापन और लेखन से मनुष्य मोक्षगामी बने ऐसी इतिहास की प्रस्तुति होनी चाहिए।
* अरुण-तरूण अवस्था के बच्चों को इतिहास पढाने के लिये लोककथा, लोकनाटय, स्फूर्तिगीत, समूहगीत, ग्रंथ, ललित कथाएँं, शौर्यगीत आदि माध्यमों का भी उपयोग किया जा सकता है।
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* अरुण-तरूण अवस्था के बच्चोंं को इतिहास पढाने के लिये लोककथा, लोकनाटय, स्फूर्तिगीत, समूहगीत, ग्रंथ, ललित कथाएँं, शौर्यगीत आदि माध्यमों का भी उपयोग किया जा सकता है।
* गौरवशाली घटनाओं से प्रेरणा का इतिहास तो सभी आयु के बच्चों के लिए आवश्यक है। लेकिन पराभव का दीनता का इतिहास छोटी आयु में नहीं पढ़ाना चाहिए। जब बच्चा थोड़ा समझदार बन जाए तब ही उसे पराभव का, घराभेदियों का इतिहास भी सिखाना चाहिए। किसी भी प्रस्तुति से बच्चे में हीनता बोध नहीं होना चाहिए।
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* गौरवशाली घटनाओं से प्रेरणा का इतिहास तो सभी आयु के बच्चोंं के लिए आवश्यक है। लेकिन पराभव का दीनता का इतिहास छोटी आयु में नहीं पढ़ाना चाहिए। जब बच्चा थोड़ा समझदार बन जाए तब ही उसे पराभव का, घराभेदियों का इतिहास भी सिखाना चाहिए। किसी भी प्रस्तुति से बच्चे में हीनता बोध नहीं होना चाहिए।
 
* पाश्चात्य समाजजीवनपर शासन का बहुत गहरा प्रभाव होता है। इसलिये वर्तमान में हमें इतिहास पढाया जाता है वह भारत का राजकीय इतिहास होता है। भूगोल पढाया जाता है वह भारत का राजकीय भूगोल होता है। अर्थशास्त्र पढाया जाता है वह राजकीय अर्थशास्त्र (पोलिटिकल ईकॉनॉमी) होता है। धार्मिक (धार्मिक) इतिहास लेखन में समाज जीवन के सब ही पहलुओं के इतिहास का समावेश होगा। राजकीय, कला, संस्कार, साहित्य, सामाजिक शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि सभी का समावेश हमारे इतिहास में होगा। धार्मिक (धार्मिक) जीवन में धर्म सर्वोपरि होता है। अतः धर्माचरण सिखानेवाला इतिहास हो।
 
* पाश्चात्य समाजजीवनपर शासन का बहुत गहरा प्रभाव होता है। इसलिये वर्तमान में हमें इतिहास पढाया जाता है वह भारत का राजकीय इतिहास होता है। भूगोल पढाया जाता है वह भारत का राजकीय भूगोल होता है। अर्थशास्त्र पढाया जाता है वह राजकीय अर्थशास्त्र (पोलिटिकल ईकॉनॉमी) होता है। धार्मिक (धार्मिक) इतिहास लेखन में समाज जीवन के सब ही पहलुओं के इतिहास का समावेश होगा। राजकीय, कला, संस्कार, साहित्य, सामाजिक शास्त्र, भौतिक शास्त्र आदि सभी का समावेश हमारे इतिहास में होगा। धार्मिक (धार्मिक) जीवन में धर्म सर्वोपरि होता है। अतः धर्माचरण सिखानेवाला इतिहास हो।
  

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