Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "[[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]" to "[[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_वि...
Line 11: Line 11:  
चराचर सृष्टि में व्याप्त एकात्मता को समझना है और जीवन को यदि समग्रता में समझना है तो भूगोल की केवल जानकारी नहीं, भूगोल का ज्ञान भी आवश्यक है।   
 
चराचर सृष्टि में व्याप्त एकात्मता को समझना है और जीवन को यदि समग्रता में समझना है तो भूगोल की केवल जानकारी नहीं, भूगोल का ज्ञान भी आवश्यक है।   
   −
वैसे तो गणित का सम्बन्ध जीवन के हर विषय से है। [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] की विभिन्न शाखाओं का तो गणित आधार ही है। वर्तमान में तो प्रत्येक विषय का गणितीय नमूना बनाने की एक विचित्र पद्धति बन गयी है। फिर गणित का विषय खगोल भूगोल के साथ लेने का औचित्य क्या है? वास्तव में गणित की महत्वपूर्ण संकल्पनाओं और प्रक्रियाओं का विकास, खगोल भूगोल के क्षेत्र में हुए अध्ययन के कारण हुआ होगा ऐसा हम कह सकते हैं। गणित की शून्य की संकल्पना, अनंत की संकल्पना, सृष्टि के निर्माण और लय की प्रक्रिया को समझने के लिए १० पर १४२ शून्यवाली ‘असंख्येय’ संख्या तक का मापन, आदि काल के मापन के लिए किये प्रयासों में या विभिन्न ग्रहों में जो अन्तर हैं उन अंतरों के मापन के लिए शायद आवश्यक थे। खगोल शास्त्र के अध्ययन में ग्रहों के मध्य के अंतर, ग्रहों की गति का मापन आदि अनेकों पहलू ऐसे हैं जिनका काम गणित के बगैर चल नहीं सकता। भूमिति गणित का ही एक अंग है। इस के गोल, लंबगोल आदि विभिन्न आकार भी खगोल के अध्ययन के लिये आवश्यक होते हैं। विभिन्न ग्रहों के मध्य के अन्तर को नापने के लिए त्रिकोण, चतुर्भुज आदि के भिन्न भिन्न आकार और उन की रेखाओं की लम्बाईयों के अनुपात इन प्राक्रियाओं को सरल बनाते हैं। गणित की कलन (इंटीग्रल केलकुलस) और अवकलन (डीफ्रंशियल केलकुलस) जैसी प्रगत प्रक्रियाएं भी खगोल शास्त्र के गेंदाकृति भूमिति (स्फेरिकल ज्योमेट्री) के अध्ययन के लिए अनिवार्य होतीं हैं। वेदों के छ: उपांग हैं। शिक्षा, कल्प, निरुक्त, छंद, व्याकरण और ज्योतिष। ज्योतिष और कुछ नहीं ग्रह गणित ही है। ग्रहों की आकाश में स्थिति और उनके पृथ्वी पर, मानव जिस भौगोलिक क्षेत्र में है, उस पर परिणाम करने की क्षमताओं के आधार पर यज्ञों के लिए याने शुभ कार्यों के लिए सुमुहूर्त देखने के लिए ज्योतिष विद्या का उपयोग किया जाता है। इस के लिए ग्रहों की अचूक स्थिति, उसका अचूक प्रभाव समझने के लिए ग्रहों का पृथ्वी अन्तर जानना और उनकी प्रभाव डालने की शक्ति को आँकना यह गणित से ही संभव हो पाता है। गणित के विषय में अधिक जानकारी के लिए [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-गणित|यह लेख]] भी देखें।  
+
वैसे तो गणित का सम्बन्ध जीवन के हर विषय से है। [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] की विभिन्न शाखाओं का तो गणित आधार ही है। वर्तमान में तो प्रत्येक विषय का गणितीय नमूना बनाने की एक विचित्र पद्धति बन गयी है। फिर गणित का विषय खगोल भूगोल के साथ लेने का औचित्य क्या है? वास्तव में गणित की महत्वपूर्ण संकल्पनाओं और प्रक्रियाओं का विकास, खगोल भूगोल के क्षेत्र में हुए अध्ययन के कारण हुआ होगा ऐसा हम कह सकते हैं। गणित की शून्य की संकल्पना, अनंत की संकल्पना, सृष्टि के निर्माण और लय की प्रक्रिया को समझने के लिए १० पर १४२ शून्यवाली ‘असंख्येय’ संख्या तक का मापन, आदि काल के मापन के लिए किये प्रयासों में या विभिन्न ग्रहों में जो अन्तर हैं उन अंतरों के मापन के लिए शायद आवश्यक थे। खगोल शास्त्र के अध्ययन में ग्रहों के मध्य के अंतर, ग्रहों की गति का मापन आदि अनेकों पहलू ऐसे हैं जिनका काम गणित के बगैर चल नहीं सकता। भूमिति गणित का ही एक अंग है। इस के गोल, लंबगोल आदि विभिन्न आकार भी खगोल के अध्ययन के लिये आवश्यक होते हैं। विभिन्न ग्रहों के मध्य के अन्तर को नापने के लिए त्रिकोण, चतुर्भुज आदि के भिन्न भिन्न आकार और उन की रेखाओं की लम्बाईयों के अनुपात इन प्राक्रियाओं को सरल बनाते हैं। गणित की कलन (इंटीग्रल केलकुलस) और अवकलन (डीफ्रंशियल केलकुलस) जैसी प्रगत प्रक्रियाएं भी खगोल शास्त्र के गेंदाकृति भूमिति (स्फेरिकल ज्योमेट्री) के अध्ययन के लिए अनिवार्य होतीं हैं। वेदों के छ: उपांग हैं। शिक्षा, कल्प, निरुक्त, छंद, व्याकरण और ज्योतिष। ज्योतिष और कुछ नहीं ग्रह गणित ही है। ग्रहों की आकाश में स्थिति और उनके पृथ्वी पर, मानव जिस भौगोलिक क्षेत्र में है, उस पर परिणाम करने की क्षमताओं के आधार पर यज्ञों के लिए याने शुभ कार्यों के लिए सुमुहूर्त देखने के लिए ज्योतिष विद्या का उपयोग किया जाता है। इस के लिए ग्रहों की अचूक स्थिति, उसका अचूक प्रभाव समझने के लिए ग्रहों का पृथ्वी अन्तर जानना और उनकी प्रभाव डालने की शक्ति को आँकना यह गणित से ही संभव हो पाता है। गणित के विषय में अधिक जानकारी के लिए [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-गणित|यह लेख]] भी देखें।  
    
अब धार्मिक  खगोल / भूगोल / गणित दृष्टि के कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं का हम विचार करेंगे। भूगोल यह हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं, जिस के बिना हमारी एक भी आवश्यकता पूर्ण नहीं हो सकती उसकी जानकारी का विषय है। इस के साथ ही ज्योतिष विद्या के लिए भी मनुष्य की भौगोलिक स्थिति जानने के लिए भी पृथ्वी के भूगोल को जानना आवश्यक है।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय ४०, लेखक - दिलीप केलकर</ref>  
 
अब धार्मिक  खगोल / भूगोल / गणित दृष्टि के कुछ महत्वपूर्ण पहलूओं का हम विचार करेंगे। भूगोल यह हम जिस पृथ्वी पर रहते हैं, जिस के बिना हमारी एक भी आवश्यकता पूर्ण नहीं हो सकती उसकी जानकारी का विषय है। इस के साथ ही ज्योतिष विद्या के लिए भी मनुष्य की भौगोलिक स्थिति जानने के लिए भी पृथ्वी के भूगोल को जानना आवश्यक है।<ref>जीवन का धार्मिक प्रतिमान-खंड २, अध्याय ४०, लेखक - दिलीप केलकर</ref>  
Line 23: Line 23:     
== योगी वैज्ञानिक ==
 
== योगी वैज्ञानिक ==
भारत में वैज्ञानिक बनने के लिए योग की साधना एक महत्वपूर्ण साधन हुआ करती थी। प्रत्याहार के अभ्यास से मन एकाग्र और बुद्धि कुशाग्र बनती थी। एकाग्रता के कारण इन्द्रियों से परे कुछ देखने समझने की क्षमता योग साधना से प्राप्त होती थी। हमारे सभी खगोल शास्त्रज्ञ योगी रहे हैं। उन्होंने जिस ज्ञान को उजागर किया है वह बड़ी बड़ी दूरबीनों के माध्यम से नहीं किया था। अपनी साधना के उच्च स्तर के आधार पर किया था। [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] पर [[Dharmik Science and Technology (धार्मिक [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] एवं तन्त्रज्ञान दृष्टि)|यह लेख]] एवं [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-[[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]|यह लेख]] भी देखें।   
+
भारत में वैज्ञानिक बनने के लिए योग की साधना एक महत्वपूर्ण साधन हुआ करती थी। प्रत्याहार के अभ्यास से मन एकाग्र और बुद्धि कुशाग्र बनती थी। एकाग्रता के कारण इन्द्रियों से परे कुछ देखने समझने की क्षमता योग साधना से प्राप्त होती थी। हमारे सभी खगोल शास्त्रज्ञ योगी रहे हैं। उन्होंने जिस ज्ञान को उजागर किया है वह बड़ी बड़ी दूरबीनों के माध्यम से नहीं किया था। अपनी साधना के उच्च स्तर के आधार पर किया था। [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] पर [[Dharmik Science and Technology (धार्मिक [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] एवं तन्त्रज्ञान दृष्टि)|यह लेख]] एवं [[शिक्षा पाठ्यक्रम एवं निर्देशिका-[[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]]|यह लेख]] भी देखें।   
    
== अभ्युदय के लिए भूगोल ==
 
== अभ्युदय के लिए भूगोल ==
Line 42: Line 42:  
सृष्टि निर्माण की मान्यता खगोलीय ज्ञान के आधार पर ही पुष्ट होती है। खगोल की चक्रीयता, यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे की अनुभूति खगोल के ज्ञान से ही अच्छी तरह से हो सकती है। चराचर में व्याप्त आत्मतत्व को अनुमान प्रमाण के आधार पर जानने के लिए भी खगोल भूगोल का ज्ञान आवश्यक है। सृष्टि निर्माण की जो भी वैज्ञानिक मान्यताएँ हैं वे सभी मान्यताएँ खगोल के ज्ञान की ही उपज हैं। जड़़वादी सृष्टि निर्माण की अधार्मिक (अधार्मिक) खगोलीय दृष्टि ने ही विश्व को जड़़वादी, व्यक्तिवादी और इहवादी बनाकर विनाश की कगार पर लाकर खडा किया है। एकात्मवादी, अध्यात्मवादी, समग्रता की धार्मिक  दृष्टि भी खगोलीय सृष्टि निर्माण के ज्ञान के आधार से ही पुष्ट हुई है। इस खगोलीय ज्ञान के कारण ही जीवन की स्थल और काल के सन्दर्भ में अखण्डता की अनुभूति हो पाती है। डेव्हिड बोह्म की खोज से हजारों वर्ष पूर्व से धार्मिक  मनीषी यह जानते थे कि सारी सृष्टि बहुत निकटता से परस्पर सम्बद्ध है। धूल का एक कण हिलने का प्रभाव और परिणाम सारी सृष्टि पर होता है (द होल युनिव्हर्स इज व्हेरी क्लोजली इंटरकनेक्टेड – डेव्हिड बोह्म की प्रतिष्ठापना)। खगोल के ज्ञान से ही जीवन की चक्रियता समझ में आती है। उत्पत्ति, स्थिति और लय की सही समझ मन में बनती है। सृष्टि की प्राकृतिक व्यवस्थाओं के नियमों के आधार पर ही कर्म सिद्धांत, ऋण सिद्धांत जैसे धार्मिक  जीवनदृष्टि के तर्क आधारित और मनुष्य को सन्मार्गगामी बनाने के लिए अत्यंत उपयुक्त व्यवहार सूत्र उभरकर आते हैं।  
 
सृष्टि निर्माण की मान्यता खगोलीय ज्ञान के आधार पर ही पुष्ट होती है। खगोल की चक्रीयता, यत् पिंडे तत् ब्रह्मांडे की अनुभूति खगोल के ज्ञान से ही अच्छी तरह से हो सकती है। चराचर में व्याप्त आत्मतत्व को अनुमान प्रमाण के आधार पर जानने के लिए भी खगोल भूगोल का ज्ञान आवश्यक है। सृष्टि निर्माण की जो भी वैज्ञानिक मान्यताएँ हैं वे सभी मान्यताएँ खगोल के ज्ञान की ही उपज हैं। जड़़वादी सृष्टि निर्माण की अधार्मिक (अधार्मिक) खगोलीय दृष्टि ने ही विश्व को जड़़वादी, व्यक्तिवादी और इहवादी बनाकर विनाश की कगार पर लाकर खडा किया है। एकात्मवादी, अध्यात्मवादी, समग्रता की धार्मिक  दृष्टि भी खगोलीय सृष्टि निर्माण के ज्ञान के आधार से ही पुष्ट हुई है। इस खगोलीय ज्ञान के कारण ही जीवन की स्थल और काल के सन्दर्भ में अखण्डता की अनुभूति हो पाती है। डेव्हिड बोह्म की खोज से हजारों वर्ष पूर्व से धार्मिक  मनीषी यह जानते थे कि सारी सृष्टि बहुत निकटता से परस्पर सम्बद्ध है। धूल का एक कण हिलने का प्रभाव और परिणाम सारी सृष्टि पर होता है (द होल युनिव्हर्स इज व्हेरी क्लोजली इंटरकनेक्टेड – डेव्हिड बोह्म की प्रतिष्ठापना)। खगोल के ज्ञान से ही जीवन की चक्रियता समझ में आती है। उत्पत्ति, स्थिति और लय की सही समझ मन में बनती है। सृष्टि की प्राकृतिक व्यवस्थाओं के नियमों के आधार पर ही कर्म सिद्धांत, ऋण सिद्धांत जैसे धार्मिक  जीवनदृष्टि के तर्क आधारित और मनुष्य को सन्मार्गगामी बनाने के लिए अत्यंत उपयुक्त व्यवहार सूत्र उभरकर आते हैं।  
   −
भूगोल के गहराई से अध्ययन में कई प्रश्न उभरते हैं। वटवृक्ष के छोटे से बीज में पूरा वटवृक्ष होता है। एक छोटे से फल में बीजरूप में सैंकड़ों वृक्ष होते हैं। मनुष्य अपनी विभिन्न क्षमताओं के विकास के उपरांत भी ऐसा कुछ नहीं कर पाता। क्यों? गुलाब का रंग गुलाबी क्यों है और किसने बनाया। गुलाब में महक किसने निर्माण की। करने वाला कौन है? मौसम की विविधता किसने निर्माण की? यह पर्यावरण के सन्तुलन  की व्यवस्था किसने और क्यों निर्माण की है? कैसे निर्माण की? वर्तमान [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान] इनकी जानकारी तो देता है। क्या का उत्तर तो देता है, लेकिन क्यों, किसने, कैसे आदि प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाता। इनके उत्तर केवल अध्यात्म शास्त्र ही देता है। भूगोल का अध्ययन अध्यात्म शास्त्र का महत्व ही अधोरेखित करता है।  
+
भूगोल के गहराई से अध्ययन में कई प्रश्न उभरते हैं। वटवृक्ष के छोटे से बीज में पूरा वटवृक्ष होता है। एक छोटे से फल में बीजरूप में सैंकड़ों वृक्ष होते हैं। मनुष्य अपनी विभिन्न क्षमताओं के विकास के उपरांत भी ऐसा कुछ नहीं कर पाता। क्यों? गुलाब का रंग गुलाबी क्यों है और किसने बनाया। गुलाब में महक किसने निर्माण की। करने वाला कौन है? मौसम की विविधता किसने निर्माण की? यह पर्यावरण के सन्तुलन  की व्यवस्था किसने और क्यों निर्माण की है? कैसे निर्माण की? वर्तमान [[Dharmik_Science_and_Technology_(धार्मिक_विज्ञान_एवं_तन्त्रज्ञान_दृष्टि)|विज्ञान]] इनकी जानकारी तो देता है। क्या का उत्तर तो देता है, लेकिन क्यों, किसने, कैसे आदि प्रश्नों के उत्तर नहीं दे पाता। इनके उत्तर केवल अध्यात्म शास्त्र ही देता है। भूगोल का अध्ययन अध्यात्म शास्त्र का महत्व ही अधोरेखित करता है।  
    
== संकल्प ==
 
== संकल्प ==

Navigation menu