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मानव को जन्म से ही कुछ विशेष शक्तियां मिलीं हैं। इन शक्तियों को प्राप्त करने की, इनके विकास के लिए बुद्धि भी मिली है। इस कारण मानव पृथ्वी का सबसे बलवान प्राणी है। इस का मानव को अहंकार हो जाता है। खगोल के अध्ययन से यह अहंकार दूर हो जाता है। उसे ध्यान में आता है कि ब्रह्माण्ड इतना विशाल है कि उसकी विशालता की वह कल्पना भी नहीं कर सकता। ढेर सारी वैज्ञानिक उपलब्धियों के उपरांत भी मानव सृष्टि के छोर का अनुमान नहीं लगा पा रहा। इससे उसका अहंकार दूर हो जाता है।
मानव को जन्म से ही कुछ विशेष शक्तियां मिलीं हैं। इन शक्तियों को प्राप्त करने की, इनके विकास के लिए बुद्धि भी मिली है। इस कारण मानव पृथ्वी का सबसे बलवान प्राणी है। इस का मानव को अहंकार हो जाता है। खगोल के अध्ययन से यह अहंकार दूर हो जाता है। उसे ध्यान में आता है कि ब्रह्माण्ड इतना विशाल है कि उसकी विशालता की वह कल्पना भी नहीं कर सकता। ढेर सारी वैज्ञानिक उपलब्धियों के उपरांत भी मानव सृष्टि के छोर का अनुमान नहीं लगा पा रहा। इससे उसका अहंकार दूर हो जाता है।
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सृष्टि के सन्तुलन की प्राकृतिक व्यवस्था है। इस सन्तुलन को बिगाड़ने की क्षमता केवल मानव जाति के पास है। लेकिन मानव जब इस सन्तुलन को बिगाड़ता है प्रकृति मानव को हानि पहुंचाकर इस सन्तुलन को ठीक रखने का सन्देश देती है। अपने अहंकार के कारण या कर्मसिद्धांत के विषय में अज्ञान के कारण मानव जब फिर भी नहीं समझता तब यह हानि बढ़ती जाती है।
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सृष्टि के सन्तुलन की प्राकृतिक व्यवस्था है। इस सन्तुलन को बिगाड़ने की क्षमता केवल मानव जाति के पास है। लेकिन मानव जब इस सन्तुलन को बिगाड़ता है प्रकृति मानव को हानि पहुंचाकर इस सन्तुलन को ठीक रखने का सन्देश देती है। अपने अहंकार के कारण या कर्मसिद्धांत के विषय में अज्ञान के कारण मानव जब तथापि नहीं समझता तब यह हानि बढ़ती जाती है।
हमारी काल गणना की मान्यता किसी मर्त्य मानव से जुडी नहीं है। वह ब्रह्माण्ड के निर्माण से जुडी है। यह काल के प्रारम्भ से जुडी है। ब्रह्माण्ड के निर्माण के क्षण से ही काल का प्रारम्भ होता है। ब्रह्माण्ड के लय के साथ काल का भी लय हो जाता है।
हमारी काल गणना की मान्यता किसी मर्त्य मानव से जुडी नहीं है। वह ब्रह्माण्ड के निर्माण से जुडी है। यह काल के प्रारम्भ से जुडी है। ब्रह्माण्ड के निर्माण के क्षण से ही काल का प्रारम्भ होता है। ब्रह्माण्ड के लय के साथ काल का भी लय हो जाता है।