Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 38: Line 38:  
=== अभारतीय जीवनदृष्टि के वर्तनसूत्र ===
 
=== अभारतीय जीवनदृष्टि के वर्तनसूत्र ===
 
# बलवान को ही जीने का अधिकार है। ( सर्व्हायव्हल ऑफ द फिटेस्ट )। दुर्बल बलवान जैसा और जितना चाहेगा, वैसा और उतना ही जियेगा। 'स्वार्थ' भावना से ही इस वर्तनसूत्र का जन्म हुआ है। दुर्बल किसी को तकलीफ नहीं दे सकता। इस लिये स्वार्थ की होड में दुर्बल को कोई स्थान नहीं है। बलवान को जितना चाहिये और जैसा चाहिए उतना ही दुर्बल जिएगा। इस सूत्र से और दो सूत्र तैयार होते है।
 
# बलवान को ही जीने का अधिकार है। ( सर्व्हायव्हल ऑफ द फिटेस्ट )। दुर्बल बलवान जैसा और जितना चाहेगा, वैसा और उतना ही जियेगा। 'स्वार्थ' भावना से ही इस वर्तनसूत्र का जन्म हुआ है। दुर्बल किसी को तकलीफ नहीं दे सकता। इस लिये स्वार्थ की होड में दुर्बल को कोई स्थान नहीं है। बलवान को जितना चाहिये और जैसा चाहिए उतना ही दुर्बल जिएगा। इस सूत्र से और दो सूत्र तैयार होते है।
  १.१  दुर्बल का शोषण (एक्स्प्लॉयटेशन ऑफ द वीक)। स्त्री, प्रकृति या पर्यावरण, अन्य पुरूष, अन्य समाज,  अन्य देश, सारी दुनिया इन से मैं यदि बलवान हूं तो इन का शोषण करना मेरा अधिकार है।
+
१.१  दुर्बल का शोषण (एक्स्प्लॉयटेशन ऑफ द वीक)। स्त्री, प्रकृति या पर्यावरण, अन्य पुरूष, अन्य समाज,  अन्य देश, सारी दुनिया इन से मैं यदि बलवान हूं तो इन का शोषण करना मेरा अधिकार है।
  १.२  अमर्याद व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनलिमिटेड इंडिविज्युअल लिबर्टि)। बलवान अपना स्वार्थ साध सके इस लिये अमर्याद व्यक्तिगत स्वतन्त्रता आवश्यक है।
+
१.२  अमर्याद व्यक्तिगत स्वतंत्रता (अनलिमिटेड इंडिविज्युअल लिबर्टि)। बलवान अपना स्वार्थ साध सके इस लिये अमर्याद व्यक्तिगत स्वतन्त्रता आवश्यक है।
 
२. जीवन एक लडाई है (फाईट फॉर सर्व्हायव्हल)। अन्य लोगों से लडे बिना मैं जी नहीं सकता। मुझे यदि जीना है तो मुझे बलवान बनना पडेगा। बलवान लोगों से लडने के लिये मुझे और बलवान बनना पडेगा। बलवान बनने के लिए गलाकाट स्पर्धा आवश्यक है।  
 
२. जीवन एक लडाई है (फाईट फॉर सर्व्हायव्हल)। अन्य लोगों से लडे बिना मैं जी नहीं सकता। मुझे यदि जीना है तो मुझे बलवान बनना पडेगा। बलवान लोगों से लडने के लिये मुझे और बलवान बनना पडेगा। बलवान बनने के लिए गलाकाट स्पर्धा आवश्यक है।  
 
३. अधिकारों के लिये संघर्ष (फाईट फॉर राईट्स्)। मैं जब तक लडूंगा नहीं मेरे अधिकारों की रक्षा नहीं होगी। मेरे अधिकारों की रक्षा मैंने ही करनी होगी। अन्य कोई नहीं करेगा।
 
३. अधिकारों के लिये संघर्ष (फाईट फॉर राईट्स्)। मैं जब तक लडूंगा नहीं मेरे अधिकारों की रक्षा नहीं होगी। मेरे अधिकारों की रक्षा मैंने ही करनी होगी। अन्य कोई नहीं करेगा।
 
४. भौतिकवादी विचार (मटेरियलिस्टिक थिंकिंग)* सृष्टि अचेतन पदार्थ से बनीं है। मनुष्य भी अन्य प्राकृतिक संसाधनों की ही तरह से एक संसाधन है। इसी लिये ' मानव संसाधन मंत्रालय ' की प्रथा शुरू हुई है। मनुष्य केवल मात्र रासायनिक प्रक्रियाओं का पुलिंदा है, यह इसका तात्त्विक आधार है। सारी सृष्टि जड से बनीं है। चेतना तो उस जड का ही एक रूप है। इस लिये मानव व्यवहार में भी अचेतन पदार्थों के मापदंड लगाना।  
 
४. भौतिकवादी विचार (मटेरियलिस्टिक थिंकिंग)* सृष्टि अचेतन पदार्थ से बनीं है। मनुष्य भी अन्य प्राकृतिक संसाधनों की ही तरह से एक संसाधन है। इसी लिये ' मानव संसाधन मंत्रालय ' की प्रथा शुरू हुई है। मनुष्य केवल मात्र रासायनिक प्रक्रियाओं का पुलिंदा है, यह इसका तात्त्विक आधार है। सारी सृष्टि जड से बनीं है। चेतना तो उस जड का ही एक रूप है। इस लिये मानव व्यवहार में भी अचेतन पदार्थों के मापदंड लगाना।  
 
भौतिकवादिता का और एक पहलू टुकडों में विचार (पीसमील एप्रोच) करना भी है। पाश्चात्य देशों ने जब से विज्ञान को टुकडों में बाँटा है विश्व में विज्ञान विश्व नाशक बन गया है। शुध्द विज्ञान (प्युअर सायन्सेस्) और उपयोजित विज्ञान (अप्लाईड साईंसेस्) इस प्रकार दो भिन्न टुकडों का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है। मैं जिस शुध्द विज्ञान के ज्ञान का विकास कर रहा हूं, उस का कोई विनाश के लिये उपयोग करता है तो भले करे। मेरा नाम होगा, प्रतिष्ठा होगी, पैसा मिलेगा तो मैं यह शुध्द विज्ञान किसी को भी बेच दूंगा। कोई इस का उपयोग विनाश के लिये करता है तो मैं उस के लिये जिम्मेदार नहीं हूं। शायद वैज्ञानिकों की इस गैरजिम्मेदार मानसिकता को लेकर ही आईन्स्टाईन ने कहा था ' यदि कोई पूरी मानव जाति को नष्ट करने का लक्ष्य रखता है तो भी बौद्धिक आधारों पर उस की इस दृष्टि का खण्डन नहीं किया जा सकता '। यांत्रिकतावादी विचार। (मेकॅनिस्टिक थिंकिंग)। यांत्रिक (मेकेनिस्टिक) दृष्टि भी इसी का हिस्सा है। जिस प्रकार पुर्जों का काम और गुण लक्षण समझने से एक यंत्र का काम समझा जा सकता है, उसी प्रकार से छोटे छोटे टुकडों में विषय को बाँटकर अध्ययन करने से उस विषय को समझा जा सकता है। इस पर व्यंग्य से ऐसा भी कहा जा सकता है कि ' टु नो मोर एँड मोर अबाऊट स्मॉलर एँड स्मॉलर थिंग्ज् टिल यू नो एव्हरीथिंग अबाऊट नथिंग ’।  
 
भौतिकवादिता का और एक पहलू टुकडों में विचार (पीसमील एप्रोच) करना भी है। पाश्चात्य देशों ने जब से विज्ञान को टुकडों में बाँटा है विश्व में विज्ञान विश्व नाशक बन गया है। शुध्द विज्ञान (प्युअर सायन्सेस्) और उपयोजित विज्ञान (अप्लाईड साईंसेस्) इस प्रकार दो भिन्न टुकडों का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है। मैं जिस शुध्द विज्ञान के ज्ञान का विकास कर रहा हूं, उस का कोई विनाश के लिये उपयोग करता है तो भले करे। मेरा नाम होगा, प्रतिष्ठा होगी, पैसा मिलेगा तो मैं यह शुध्द विज्ञान किसी को भी बेच दूंगा। कोई इस का उपयोग विनाश के लिये करता है तो मैं उस के लिये जिम्मेदार नहीं हूं। शायद वैज्ञानिकों की इस गैरजिम्मेदार मानसिकता को लेकर ही आईन्स्टाईन ने कहा था ' यदि कोई पूरी मानव जाति को नष्ट करने का लक्ष्य रखता है तो भी बौद्धिक आधारों पर उस की इस दृष्टि का खण्डन नहीं किया जा सकता '। यांत्रिकतावादी विचार। (मेकॅनिस्टिक थिंकिंग)। यांत्रिक (मेकेनिस्टिक) दृष्टि भी इसी का हिस्सा है। जिस प्रकार पुर्जों का काम और गुण लक्षण समझने से एक यंत्र का काम समझा जा सकता है, उसी प्रकार से छोटे छोटे टुकडों में विषय को बाँटकर अध्ययन करने से उस विषय को समझा जा सकता है। इस पर व्यंग्य से ऐसा भी कहा जा सकता है कि ' टु नो मोर एँड मोर अबाऊट स्मॉलर एँड स्मॉलर थिंग्ज् टिल यू नो एव्हरीथिंग अबाऊट नथिंग ’।  
 +
 
५. इहवादिता। (धिस इज द ओन्ली लाईफ)। मानव जन्म एक बार ही मिलता है। इस के न आगे कोई जन्म है न पीछे कोई था, ऐसी मानसिकता। इस लिये उपभोगवाद का समर्थन।
 
५. इहवादिता। (धिस इज द ओन्ली लाईफ)। मानव जन्म एक बार ही मिलता है। इस के न आगे कोई जन्म है न पीछे कोई था, ऐसी मानसिकता। इस लिये उपभोगवाद का समर्थन।
पूरे यूरोप के सभी देशों का इतिहास साक्षी है की उनका व्यवहार इन्हीं वर्तनसूत्रों के अनुरूप होता रह है। १८ वीं और १९ वीं सदी में दुनिया के लगभग सभी देशों पर यूरोप के किसी देश का आधिपत्य था। इन में इंग्लैण्ड, फ्रांस, पुर्तगाल, इटली आदि जो भी विभिन्न देश शासक थे उन में अपवाद के लिये भी एक भी समाज ऐसा नहीं है जिसने अपने औपनिवेशिक देशों की जनता पर अनन्वित अत्याचार नहीं किये, जनता के कत्ले आम नहीं किये, अपने उपनिवेशों को लूटकर नंगा नहीं कर दिया। अमरिका में ' रेड इंडियन ' आज केवल प्रदर्शनी की वस्तु बन गये है। ऑस्ट्रेलिया की तो मूल जनता का १०० प्रतिशत कत्ले आम किया गया। भारत में अंग्रेजों ने किये अत्याचार हम जानते है। भारत की सन १७५७ से १९४७ तक अंग्रेजों ने की हुई लूट को हम जानते है। भारत की जनसंख्या बहुत अधिक और भारत का प्रतिकार अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक होने से अंग्रेज भारत में कत्ले आम कम ही कर सके।
+
 
इन वर्तनसूत्रों के अनुसार पश्चिमी व्यवहार अब नहीं होता ऐसा भी नहीं है। केवल तरीके बदल गये है। जो वर्तन पाश्चात्य देश दूसरे महायुध्द से पहले कर रहे थे वही काम वे अब भी कर रहे है। विश्व कोष, आंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन आदि के माध्यम से दुर्बल देशों की लूट का ही प्रयास यह देश करते दिखाई दे रहे है।  
+
पूरे यूरोप के सभी देशों का इतिहास साक्षी है की उनका व्यवहार इन्हीं वर्तनसूत्रों के अनुरूप होता रह है। १८ वीं और १९ वीं सदी में दुनिया के लगभग सभी देशों पर यूरोप के किसी देश का आधिपत्य था। इन में इंग्लैण्ड, फ्रांस, पुर्तगाल, इटली आदि जो भी विभिन्न देश शासक थे उन में अपवाद के लिये भी एक भी समाज ऐसा नहीं है जिसने अपने औपनिवेशिक देशों की जनता पर अनन्वित अत्याचार नहीं किये, जनता के कत्ले आम नहीं किये, अपने उपनिवेशों को लूटकर नंगा नहीं कर दिया। अमरिका में ' रेड इंडियन ' आज केवल प्रदर्शनी की वस्तु बन गये है। ऑस्ट्रेलिया की तो मूल जनता का १०० प्रतिशत कत्ले आम किया गया। भारत में अंग्रेजों ने किये अत्याचार हम जानते है। भारत की सन १७५७ से १९४७ तक अंग्रेजों ने की हुई लूट को हम जानते है। भारत की जनसंख्या बहुत अधिक और भारत का प्रतिकार अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक होने से अंग्रेज भारत में कत्ले आम कम ही कर सके।
इसलिये पश्चिमी जीवनदृष्टि से पिण्ड छुडा कर अन्य किसी श्रेष्ठ जीवनदृष्टि का स्वीकार करना यह वैश्विक आवश्यकता है। यह जीवनदृष्टि भारतीय ही होगी। इसे व्यवहार में लाने का माध्यम/साधन शिक्षा है।
+
 
 +
इन वर्तनसूत्रों के अनुसार पश्चिमी व्यवहार अब नहीं होता ऐसा भी नहीं है। केवल तरीके बदल गये है। जो वर्तन पाश्चात्य देश दूसरे महायुध्द से पहले कर रहे थे वही काम वे अब भी कर रहे है। विश्व कोष, आंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व व्यापार संगठन आदि के माध्यम से दुर्बल देशों की लूट का ही प्रयास यह देश करते दिखाई दे रहे है।  
 +
इसलिये पश्चिमी जीवनदृष्टि से पिण्ड छुडा कर अन्य किसी श्रेष्ठ जीवनदृष्टि का स्वीकार करना यह वैश्विक आवश्यकता है। यह जीवनदृष्टि भारतीय ही होगी। इसे व्यवहार में लाने का माध्यम/साधन शिक्षा है।
    
== पाठयक्रम निर्माण प्रक्रिया ==
 
== पाठयक्रम निर्माण प्रक्रिया ==
890

edits

Navigation menu