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१०, यदि हम कहीं भारतीय वेश पहनकर जाते हैं तो अलग दिखाई देते हैं । लोग हमें या तो पिछड़ा मानते हैं या किसी विशेष संस्था का कार्यकर्ता । अपने ही देश में हम अपना वेश पहनकर पराये से लगने लगे हैं ।
 
१०, यदि हम कहीं भारतीय वेश पहनकर जाते हैं तो अलग दिखाई देते हैं । लोग हमें या तो पिछड़ा मानते हैं या किसी विशेष संस्था का कार्यकर्ता । अपने ही देश में हम अपना वेश पहनकर पराये से लगने लगे हैं ।
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११, शिक्षित लोग तो ग्रामीण वेश पहनते ही नहीं हैं।
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११, शिक्षित लोग तो ग्रामीण वेश पहनते ही नहीं हैं। ग्रामीण होने का अर्थ ही पिछड़ा होना हो गया है जबकि देश की सच्ची समृद्धि तो ग्रामों के कारण से है। गाँव जीवन के लिए मूल रूप से आवश्यक सामग्री के उत्पादन केंद्र हैं ।
 
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ग्रामीण होने का अर्थ ही पिछड़ा होना हो गया है जबकि देश की सच्ची समृद्धि तो ग्रामों के कारण से है। गाँव जीवन के लिए मूल रूप से आवश्यक सामग्री के उत्पादन केंद्र हैं ।
      
१२. विद्यालय में पढ़ने के लिए जाना है तो गणवेश पहनना होता है, परन्तु गणवेश भारतीय आकारप्रकार का नहीं होता है । कोई चरवाहे का, कोई कृषक का, कोई पुजारी का पुत्र अपनी जाती का वेश पहनकर महाविद्यालय में या कार्यालय में पढ़ने या काम करने के लिए जाने की कल्पना भी नहीं कर सकता । बिना कानून के ही यह बात सब स्वीकार कर लेते हैं ।
 
१२. विद्यालय में पढ़ने के लिए जाना है तो गणवेश पहनना होता है, परन्तु गणवेश भारतीय आकारप्रकार का नहीं होता है । कोई चरवाहे का, कोई कृषक का, कोई पुजारी का पुत्र अपनी जाती का वेश पहनकर महाविद्यालय में या कार्यालय में पढ़ने या काम करने के लिए जाने की कल्पना भी नहीं कर सकता । बिना कानून के ही यह बात सब स्वीकार कर लेते हैं ।
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२१. इस प्रकार की व्यवस्था में घर इतने भीड़ वाले हो जाते हैं कि मुक्तता से चलना फिरना भी नहीं होता है । घर छोटे पड़ने लगते हैं । अनेक प्रकार के काम करने में और व्यवस्था बिठाने में कठिनाई होती है ।
 
२१. इस प्रकार की व्यवस्था में घर इतने भीड़ वाले हो जाते हैं कि मुक्तता से चलना फिरना भी नहीं होता है । घर छोटे पड़ने लगते हैं । अनेक प्रकार के काम करने में और व्यवस्था बिठाने में कठिनाई होती है ।
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२२. शरीरविज्ञान के अनुसार पालथी लगाकर बैठना आरोग्य के लिए अच्छा होता है । अनेक मानसिक और बौद्धिक कार्य नीचे बैठकर ही किए जा सकते हैं । ध्यान करना, प्राणायाम करना, 3कार का उच्चारण करना, मंत्रपाठ करना, उपदेश करना, पढ़ाना, गाना, खाना, उपदेश सुनना, भाषण करना नीचे बैठकर आराम से स्थिरतापूर्वक करने के काम हैं । नीचे बैठकर ही वे अच्छे होते हैं । खड़े होकर करने से उनकी गुणवत्ता और परिणामकारकता कम हो जाती है । यह सब हम भूल गए हैं और कोई कहता है तो जल्दी मानने को मन नहीं करता । बुद्धि से समझ लिया तो भी मन नहीं मानता ।
 
२२. शरीरविज्ञान के अनुसार पालथी लगाकर बैठना आरोग्य के लिए अच्छा होता है । अनेक मानसिक और बौद्धिक कार्य नीचे बैठकर ही किए जा सकते हैं । ध्यान करना, प्राणायाम करना, 3कार का उच्चारण करना, मंत्रपाठ करना, उपदेश करना, पढ़ाना, गाना, खाना, उपदेश सुनना, भाषण करना नीचे बैठकर आराम से स्थिरतापूर्वक करने के काम हैं । नीचे बैठकर ही वे अच्छे होते हैं । खड़े होकर करने से उनकी गुणवत्ता और परिणामकारकता कम हो जाती है । यह सब हम भूल गए हैं और कोई कहता है तो जल्दी मानने को मन नहीं करता । बुद्धि से समझ लिया तो भी मन नहीं मानता ।
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३१. अंग्रेजी भाषा आती हो या नहीं मातृभाषा में बात करते समय भी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करने में लोग गौरव का अनुभव करते हैं । मातृभाषा में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग तो गौरव का विषय है परन्तु अंग्रेजी में मातृभाषा का प्रयोग भाषा को अशुद्ध करना है ।
 
३१. अंग्रेजी भाषा आती हो या नहीं मातृभाषा में बात करते समय भी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करने में लोग गौरव का अनुभव करते हैं । मातृभाषा में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग तो गौरव का विषय है परन्तु अंग्रेजी में मातृभाषा का प्रयोग भाषा को अशुद्ध करना है ।
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३२. अंग्रेजी भाषा का यह दुष्प्रभाव इतना अधिक बढ़ गया है कि भारतीय भाषाओं के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है । एक ओर तो मातृभाषा का आग्रह बढ़ाना और दूसरी ओर अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ाना ऐसी दोहरी नीति से हम न इधर के रहते हैं न उधर के । न
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३२. अंग्रेजी भाषा का यह दुष्प्रभाव इतना अधिक बढ़ गया है कि भारतीय भाषाओं के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है । एक ओर तो मातृभाषा का आग्रह बढ़ाना और दूसरी ओर अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ाना ऐसी दोहरी नीति से हम न इधर के रहते हैं न उधर के । न अंग्रेजी आती है न मातृभाषा । भाषा अच्छी न आने से बौद्धिक और भावात्मक कितनी हानि होती है इसका भान भी नहीं होता ।
 
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अंग्रेजी आती है न मातृभाषा । भाषा अच्छी न आने से बौद्धिक और भावात्मक कितनी हानि होती है इसका भान भी नहीं होता ।
      
३३. हमारे आहारविहार पर अंग्रेजी का प्रभाव इतना अधिक है कि इसका क्या करें यह भी समझ में नहीं आता । उदाहरण के लिए हमारे विवाहसमारोहों में जो भोजन पद्धति है उसमें पराकोटी की असंस्कारिता का प्रदर्शन होता है । इतने अधिक भोजन पदार्थ, खड़े होकर भोजन, प्रारम्भ में गरम पेय और अन्त में आइसक्रीम की पद्धति सीधा अंग्रेजी पद्धति का अनुकरण है । वैभव का इतना खर्चीला और असुन्दर प्रदर्शन विवाह को मंगल और शुभ प्रसंग नहीं रहने देता है ।
 
३३. हमारे आहारविहार पर अंग्रेजी का प्रभाव इतना अधिक है कि इसका क्या करें यह भी समझ में नहीं आता । उदाहरण के लिए हमारे विवाहसमारोहों में जो भोजन पद्धति है उसमें पराकोटी की असंस्कारिता का प्रदर्शन होता है । इतने अधिक भोजन पदार्थ, खड़े होकर भोजन, प्रारम्भ में गरम पेय और अन्त में आइसक्रीम की पद्धति सीधा अंग्रेजी पद्धति का अनुकरण है । वैभव का इतना खर्चीला और असुन्दर प्रदर्शन विवाह को मंगल और शुभ प्रसंग नहीं रहने देता है ।
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