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घर चलाने के लिये अर्थ चाहिए। घर चलाने में जिस प्रकार सबको माता के अनुकूल बनना चाहिए उस प्रकार अर्थ के मामले में सबको पिता के अनुकूल होना चाहिए । आजकल इस विषय में बहुत कोलाहल हो रहा है। घर चलाने को तो दायित्व माना जाता है और सब उससे दूर रहने का प्रयास करते हैं । परन्तु अर्थार्जन को अधिकार माना जाता है और सब वह करना चाहते हैं। इस कारण से लड़कियों को भी कमाना चाहिए ऐसा कहा जाता है । कमाने को ही करियर कहा जाता है । कमाएंगे सब और घर कोई नहीं देखेगा, ऐसा होने लगा है। परन्तु अर्थार्जन के सम्बन्ध में अलग पद्धति से विचार करना चाहिए । जिस प्रकार घर सब मिलकर चलाते हैं उस प्रकार अर्थार्जन भी सब मिलकर कर सकते हैं। परन्तु इस अर्थार्जन की ही समस्या हो गई है । सबको अर्थार्जन अपने अपने अधिकार की बात लगती है । अपनी स्वतंत्र आय होनी चाहिए ऐसा लगता है। इसलिए सब अर्थार्जन करना चाहते हैं । घर के कामों से किसीको आय नहीं होती है इसलिए वह कोई करना नहीं चाहता है ।
 
घर चलाने के लिये अर्थ चाहिए। घर चलाने में जिस प्रकार सबको माता के अनुकूल बनना चाहिए उस प्रकार अर्थ के मामले में सबको पिता के अनुकूल होना चाहिए । आजकल इस विषय में बहुत कोलाहल हो रहा है। घर चलाने को तो दायित्व माना जाता है और सब उससे दूर रहने का प्रयास करते हैं । परन्तु अर्थार्जन को अधिकार माना जाता है और सब वह करना चाहते हैं। इस कारण से लड़कियों को भी कमाना चाहिए ऐसा कहा जाता है । कमाने को ही करियर कहा जाता है । कमाएंगे सब और घर कोई नहीं देखेगा, ऐसा होने लगा है। परन्तु अर्थार्जन के सम्बन्ध में अलग पद्धति से विचार करना चाहिए । जिस प्रकार घर सब मिलकर चलाते हैं उस प्रकार अर्थार्जन भी सब मिलकर कर सकते हैं। परन्तु इस अर्थार्जन की ही समस्या हो गई है । सबको अर्थार्जन अपने अपने अधिकार की बात लगती है । अपनी स्वतंत्र आय होनी चाहिए ऐसा लगता है। इसलिए सब अर्थार्जन करना चाहते हैं । घर के कामों से किसीको आय नहीं होती है इसलिए वह कोई करना नहीं चाहता है ।
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वास्तव में होना यह चाहिए कि घर के सभी सदस्यों की आय घर की ही होनी चाहिए । जिस प्रकार खाना सबका साथ में बनता है, वाहन और घर सबका होता है, भले ही वह किसी एक के नाम पर हो, सबका  
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वास्तव में होना यह चाहिए कि घर के सभी सदस्यों की आय घर की ही होनी चाहिए । जिस प्रकार खाना सबका साथ में बनता है, वाहन और घर सबका होता है, भले ही वह किसी एक के नाम पर हो, सबका अर्थार्जन सबका होना चाहिए । दो पीढ़ियों पूर्व ऐसी ही पद्धति थी । 
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सबका होना चाहिए । दो पीढ़ियों पूर्व ऐसी ही पद्धति थी
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अब आज सबको मिलकर इस बात का विचार करना पड़ेगा । यदि हो सकता है तो पूरे घर का मिलकर एक ही व्यवसाय होना चाहिए । आज के सन्दर्भ में यह अटपटा तो लगता है परन्तु यह घर को एक रखने के लिये सबसे बड़ा व्यावहारिक उपाय है। घर अलग-अलग स्वतंत्र व्यक्तियों का नहीं बनता है, सब एक होते हैं तभी बनता है और उसे एक रखने के लिये एक व्यवसाय होना आवश्यक है। व्यवसाय के पूर्व में बताए हैं वे नियम तो हैं ही परन्तु सबका मिलकर एक व्यवसाय होना बहुत लाभकारी होता है। इस आयु में संतानों को अपने पिता से व्यवसाय सीखना है ताकि जब वे गृहस्थाश्रम में प्रवेश करें तब घर के अर्थार्जन का दायित्व अपने ऊपर ले सकें और मातापिता को वानप्रस्थ का अवसर मिल सके । इस प्रकार घर में पीढ़ीगत परंपरा निभाई जा सकेगी यदि अधथर्जिन घर का मामला बनेगा तो केवल उसी उद्देश्य से बहुत बड़ा शुल्क देकर पढ़ाई करने के लिये नहीं जाना पड़ेगा। जो मातापिता नौकरी करते हैं उनके बच्चों के लिये कुछ मात्रा में कठिनाई हो सकती है परन्तु आज से यदि यह विचार मन में रखा तो दो पीढ़ियों में इसकी व्यवस्था हो सकेगी ।  
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अब आज सबको मिलकर इस बात का विचार करना
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== समाजधर्म ==
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घर का मिलकर सामाजिक दायित्व होता है। सार्वजनिक कामों में सहभागी होना भी सीखना होता है । दान करना, समाजसेवा करना, बड़े-बड़े सामाजिक उत्सवों के आयोजनों में सहभागी बनना, विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक संगठन चलते हैं उनमें सहभागी होना भी घर में मिलने वाली शिक्षा है । घर में देशभक्ति कृतिशील रूप में हो यह इस आयु का चिंतनात्मक पाठ्यक्रम हो सकता है । देशदुनिया में घटने वाली घटनाओं की चर्चा भोजन के समय या बाद में होने वाले अनौपचारिक वार्तालाप में होनी चाहिए ।
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पड़ेगा ।
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संक्षेप में घर एक इकाई है इसकी भावनात्मक और व्यावहारिक शिक्षा घर में मिलती है । एक से अधिक स्वतंत्र व्यक्ति एक साथ घर में रहते हैं ऐसा स्वरूप न होकर सब मिलकर एक इकाई के रूप में रहते हैं इसकी अनुभूति करवाना इस आयु के बच्चों के मातापिता को करना है । क्षमताओं के विषय में नई पीढ़ी हमसे सवाई हो ऐसी कामना कर शिक्षा की उचित व्यवस्था करना मातापिता का कर्तव्य है । इतना करने से माता और पिता अपनी संतानों के गुरु का पद पा सकते हैं ।
 
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यदि हो सकता है तो पूरे घर का मिलकर एक ही
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व्यवसाय होना चाहिए । आज के सन्दर्भ में यह अटपटा तो
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लगता है परन्तु यह घर को एक रखने के लिये सबसे बड़ा
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व्यावहारिक उपाय है । घर अलग-अलग स्वतंत्र व्यक्तियों
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का नहीं बनता है, सब एक होते हैं तभी बनता है और उसे
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एक रखने के लिये एक व्यवसाय होना आवश्यक है ।
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व्यवसाय के पूर्व में बताए हैं वे नियम तो हैं ही परन्तु
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सबका मिलकर एक व्यवसाय होना बहुत लाभकारी होता
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इस आयु में संतानों को अपने पिता से व्यवसाय
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सीखना है ताकि जब वे गृहस्थाश्रम में प्रवेश करें तब घर के
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अर्थार्जन का दायित्व अपने ऊपर ले सकें और मातापिता
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को वानप्रस्थ का अवसर मिल सके । इस प्रकार घर में
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पर्व ५ : कुटुम्बशिक्षा एवं लोकशिक्षा
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उद्देश्य से बहुत बड़ा शुल्क देकर पढ़ाई करने के लिये नहीं
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जाना पड़ेगा । जो मातापिता नौकरी करते हैं उनके बच्चों के
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लिये कुछ मात्रा में कठिनाई हो सकती है परन्तु आज से
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यदि यह विचार मन में रखा तो दो पीढ़ियों में इसकी
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समाजधर्म
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घर का मिलकर सामाजिक दायित्व होता है ।
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सार्वजनिक कामों में सहभागी होना भी सीखना होता है ।
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दान करना, समाजसेवा करना, बड़े-बड़े सामाजिक उत्सवों
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के आयोजनों में सहभागी बनना, विभिन्न प्रकार के
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सांस्कृतिक संगठन चलते हैं उनमें सहभागी होना भी घर में
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मिलने वाली शिक्षा है ।
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घर में देशभक्ति कृतिशील रूप में हो यह इस आयु
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का चिंतनात्मक पाठ्यक्रम हो सकता
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है । देशदुनिया में घटने वाली घटनाओं की चर्चा भोजन के
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समय या बाद में होने वाले अनौपचारिक वार्तालाप में होनी
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संक्षेप में घर एक इकाई है इसकी भावनात्मक और
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व्यावहारिक शिक्षा घर में मिलती है । एक से अधिक
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स्वतंत्र व्यक्ति एक साथ घर में रहते हैं ऐसा स्वरूप न होकर
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क्षमताओं के विषय में नई पीढ़ी हमसे सवाई हो ऐसी
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कामना कर शिक्षा की उचित व्यवस्था करना मातापिता का
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कर्तव्य है ।
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इतना करने से माता और पिता अपनी संतानों के गुरु
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का पद पा सकते हैं ।
      
==References==
 
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