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==== १. प्लास्टिक और प्लास्टिकवाद को नकारना ====
 
==== १. प्लास्टिक और प्लास्टिकवाद को नकारना ====
पश्चिम प्लास्टिक का जन्मदाता है। प्लास्टिक का अर्थ है अप्राकृतिक । उसका व्यावहारिक अर्थ है नकली। दोनों शब्दों का अर्थसाम्य भी है और अर्थ का भेद भी है। इसे समझने से पश्चिम का मानस कैसे काम करता है यह समझ में आयेगा। सामान्य रूप से आभूषण सोने, चाँदी, हीरे, मोती, रत्नों आदि के पहने जाते हैं। इनके पीछे स्वास्थ्य और सौन्दर्य के प्रेरक तत्त्व होते हैं। दो में भी स्वास्थ्य प्रथम कारण है जिसे मनुष्य की रसिकता ने सौन्दर्यदृष्टि प्रदान की है। जब मूल स्वास्थ्य दृष्टि का विस्मरण होता है और केवल सौन्दर्यदृष्टि रहती है तब मनुष्य सोने के स्थान पर पीतल के, चाँदी के स्थान पर एल्यूमिनियम के, हीरे के स्थान पर काँच के आभूषण पहनता है। स्वास्थ्यदृष्टि का शास्त्र उसे ज्ञात नहीं है फिर भी ये आभूषण नकली हैं इतना तो बोध उसे रहता ही है। प्लास्टिक इस अर्थ में नकली है।
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पश्चिम प्लास्टिक का जन्मदाता है। प्लास्टिक का अर्थ है अप्राकृतिक । उसका व्यावहारिक अर्थ है नकली। दोनों शब्दों का अर्थसाम्य भी है और अर्थ का भेद भी है। इसे समझने से पश्चिम का मानस कैसे काम करता है यह समझ में आयेगा। सामान्य रूप से आभूषण सोने, चाँदी, हीरे, मोती, रत्नों आदि के पहने जाते हैं। इनके पीछे स्वास्थ्य और सौन्दर्य के प्रेरक तत्त्व होते हैं। दो में भी स्वास्थ्य प्रथम कारण है जिसे मनुष्य की रसिकता ने सौन्दर्यदृष्टि प्रदान की है। जब मूल स्वास्थ्य दृष्टि का विस्मरण होता है और केवल सौन्दर्यदृष्टि रहती है तब मनुष्य सोने के स्थान पर पीतल के, चाँदी के स्थान पर एल्यूमिनियम के, हीरे के स्थान पर काँच के आभूषण पहनता है। स्वास्थ्यदृष्टि का शास्त्र उसे ज्ञात नहीं है तथापि ये आभूषण नकली हैं इतना तो बोध उसे रहता ही है। प्लास्टिक इस अर्थ में नकली है।
    
प्रकृति का स्वभाव है नित्य रूपान्तरणशीलता का । भौतिक विज्ञान का नियम है कि पदार्थ का रूपान्तरण होता ही है। रूपान्तरण की एक प्रक्रिया विघटन की भी है। इसका उत्तम उदाहरण मृतदेह है । जब शरीर मृत हो जाता है तो वह सडता है, गलता है, सूखता है, बिखरता है और उसके सारे संघात का विघटन होकर पृथक्करण होकर सृष्टि में स्थित उनके मूल पदार्थों के साथ मिल जाता है । मृतदेह के किसी भी पद्धति से किये जाने वाले अन्तिम संस्कार विघटन की प्रक्रिया को गति देने के लिये होते हैं । ये न भी किये जायें तो भी विघटन तो होता ही है । इस विघटन से प्रकृति का सन्तुलन बना रहता है। परन्तु प्लास्टिक ऐसा अद्भुत पदार्थ है कि उसका विघटन नहीं होता । प्लास्टिक बनने की प्रक्रिया में एक ऐसा क्षण आता है जब उसके घटक द्रव्यों का अपने मूल द्रव्यों के साथ समरस होने का गुण समाप्त हो जाता है। प्रकृति के तीन महान गुण विघटन, स्वजाति के साथ समरसता और समायोजन प्लास्टिक में नहीं हैं । इस रूपमें प्लास्टिक अप्राकृतिक है।
 
प्रकृति का स्वभाव है नित्य रूपान्तरणशीलता का । भौतिक विज्ञान का नियम है कि पदार्थ का रूपान्तरण होता ही है। रूपान्तरण की एक प्रक्रिया विघटन की भी है। इसका उत्तम उदाहरण मृतदेह है । जब शरीर मृत हो जाता है तो वह सडता है, गलता है, सूखता है, बिखरता है और उसके सारे संघात का विघटन होकर पृथक्करण होकर सृष्टि में स्थित उनके मूल पदार्थों के साथ मिल जाता है । मृतदेह के किसी भी पद्धति से किये जाने वाले अन्तिम संस्कार विघटन की प्रक्रिया को गति देने के लिये होते हैं । ये न भी किये जायें तो भी विघटन तो होता ही है । इस विघटन से प्रकृति का सन्तुलन बना रहता है। परन्तु प्लास्टिक ऐसा अद्भुत पदार्थ है कि उसका विघटन नहीं होता । प्लास्टिक बनने की प्रक्रिया में एक ऐसा क्षण आता है जब उसके घटक द्रव्यों का अपने मूल द्रव्यों के साथ समरस होने का गुण समाप्त हो जाता है। प्रकृति के तीन महान गुण विघटन, स्वजाति के साथ समरसता और समायोजन प्लास्टिक में नहीं हैं । इस रूपमें प्लास्टिक अप्राकृतिक है।
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# वेदों का शान्तिपाठ समस्त प्रकृति की शान्ति की कामना करता है। मनुष्य यज्ञ करता है और सारी सृष्टि के देवताओं को उनका हिस्सा देता है । अर्थात् वह केवल स्तुति नहीं तो पुष्टि भी करता है, सन्तर्पण भी करता है। पंचमहाभूतों को देवता मानता है इसलिये पवित्र मानता है और उनकी पवित्रता का भंग करना पाप समझता है।  
 
# वेदों का शान्तिपाठ समस्त प्रकृति की शान्ति की कामना करता है। मनुष्य यज्ञ करता है और सारी सृष्टि के देवताओं को उनका हिस्सा देता है । अर्थात् वह केवल स्तुति नहीं तो पुष्टि भी करता है, सन्तर्पण भी करता है। पंचमहाभूतों को देवता मानता है इसलिये पवित्र मानता है और उनकी पवित्रता का भंग करना पाप समझता है।  
 
# इस दर्शन और भावना को कृति में उतारता है। अग्नि में अपवित्र पदार्थ जलाता नहीं है, पानी को गंदा करता नहीं है, पैर रखने के लिये भूमि की क्षमा माँगता है, अपने स्वार्थ के लिये वृक्षों को काटता नहीं है, कर्कश आवाज का निषेध करता है। दुरुपयोग कर किसी भी पदार्थ की अवमानना करता नहीं है। सजीव निर्जीव हर पदार्थ के साथ आत्मीयता का व्यवहार करता है।  
 
# इस दर्शन और भावना को कृति में उतारता है। अग्नि में अपवित्र पदार्थ जलाता नहीं है, पानी को गंदा करता नहीं है, पैर रखने के लिये भूमि की क्षमा माँगता है, अपने स्वार्थ के लिये वृक्षों को काटता नहीं है, कर्कश आवाज का निषेध करता है। दुरुपयोग कर किसी भी पदार्थ की अवमानना करता नहीं है। सजीव निर्जीव हर पदार्थ के साथ आत्मीयता का व्यवहार करता है।  
# भारत जानता है कि पंचमहाभूतों का प्रदूषण रोकना तो फिर भी सरल है, तीन गुणों को प्रदूषणमुक्त रखना बहुत कठिन काम है। इसलिये भारत ने इनके लिये अधिक गम्भीरतापूर्वक प्रयास किये हैं।  
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# भारत जानता है कि पंचमहाभूतों का प्रदूषण रोकना तो तथापि सरल है, तीन गुणों को प्रदूषणमुक्त रखना बहुत कठिन काम है। इसलिये भारत ने इनके लिये अधिक गम्भीरतापूर्वक प्रयास किये हैं।  
 
# व्यक्तित्व विकास की हर साधना के साथ सद्गुण और सदाचार को जोड़ा है, संयम और सेवा को अपनाने का आग्रह किया है । रजोगुण को कम करने हेतु मन को शान्त करने के हजार उपाय बताये हैं।  
 
# व्यक्तित्व विकास की हर साधना के साथ सद्गुण और सदाचार को जोड़ा है, संयम और सेवा को अपनाने का आग्रह किया है । रजोगुण को कम करने हेतु मन को शान्त करने के हजार उपाय बताये हैं।  
 
# मन वश में हुआ तो बुद्धि की विपरीतता का उपाय हो ही जाता है। अहंकार की विनाशकता को जानकर भारत ने सर्व प्रकार से स्पर्धा को निष्कासित किया है । विनयशीलता, परिचर्या, शुश्रुषा, सेवा को महत्त्वपूर्ण गुण माना है। इन गुणों के बिना अनेक श्रेष्ठ बातें मिलेंगी नहीं ऐसा बन्धन निर्माण किया है।  
 
# मन वश में हुआ तो बुद्धि की विपरीतता का उपाय हो ही जाता है। अहंकार की विनाशकता को जानकर भारत ने सर्व प्रकार से स्पर्धा को निष्कासित किया है । विनयशीलता, परिचर्या, शुश्रुषा, सेवा को महत्त्वपूर्ण गुण माना है। इन गुणों के बिना अनेक श्रेष्ठ बातें मिलेंगी नहीं ऐसा बन्धन निर्माण किया है।  
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ऐसा करने के लिये श्रद्धा, विश्वास, आचार, ज्ञान आदि में सामर्थ्य प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकता रहेगी। कहने की आवश्यकता नहीं कि धर्म सिखाने वाली शिक्षा से ही ऐसा सामर्थ्य प्राप्त होगा।
 
ऐसा करने के लिये श्रद्धा, विश्वास, आचार, ज्ञान आदि में सामर्थ्य प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकता रहेगी। कहने की आवश्यकता नहीं कि धर्म सिखाने वाली शिक्षा से ही ऐसा सामर्थ्य प्राप्त होगा।
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श्री भगवान अपनी गीता में विभूतियोग में कहते हैं कि समासो में मैं द्वन्द्व हूँ। समास का अर्थ यहाँ 'जुडे हुए तत्त्व' है। अनेक रचनायें, अनेक पदार्थ, अनेक व्यक्ति परस्पर विविध सम्बन्धों से जुडते हैं। अनेक बार यह सम्बन्ध अंगांगी होता है। उदाहरण के लिये फूल और पंखुडियाँ, वृक्ष और डाली, शरीर और हाथ, हाथ और ऊँगली आदि का परस्पर सम्बन्ध अंग और अंगी का है जिसमें एक मुख्य है और दूसरा गौण है, मुख्य का हिस्सा है । कभी तो दो पद विभिन्न कारकों से जुडते हैं । उदाहरण के लिये पुत्रधर्म, शिक्षकधर्म, प्रजापालन आदि, जिसमें एक पद विशेषण और दूसरा विशेष्य, एक साधन और दूसरा कारक होता है।
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श्री भगवान अपनी गीता में विभूतियोग में कहते हैं कि समासो में मैं द्वन्द्व हूँ। समास का अर्थ यहाँ 'जुड़े हुए तत्त्व' है। अनेक रचनायें, अनेक पदार्थ, अनेक व्यक्ति परस्पर विविध सम्बन्धों से जुडते हैं। अनेक बार यह सम्बन्ध अंगांगी होता है। उदाहरण के लिये फूल और पंखुडियाँ, वृक्ष और डाली, शरीर और हाथ, हाथ और ऊँगली आदि का परस्पर सम्बन्ध अंग और अंगी का है जिसमें एक मुख्य है और दूसरा गौण है, मुख्य का हिस्सा है । कभी तो दो पद विभिन्न कारकों से जुडते हैं । उदाहरण के लिये पुत्रधर्म, शिक्षकधर्म, प्रजापालन आदि, जिसमें एक पद विशेषण और दूसरा विशेष्य, एक साधन और दूसरा कारक होता है।
    
परन्त इन्द्र समास विशेष है। इसमें दोनों पद समान हैं, लेशमात्र कमअधिक नहीं । इसमें एक के होने से दूसरा है, एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं, दूसरे की सार्थकता नहीं। इसमें दोनों दूसरे के पूरक हैं। दोनों दूसरे के बिना अपूर्ण हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि दोनों मिलकर पूर्ण होते हैं और एक होते हैं। द्वन्द्व मिटकर एक होने की प्रक्रिया और अवस्था का यह संकेत है।
 
परन्त इन्द्र समास विशेष है। इसमें दोनों पद समान हैं, लेशमात्र कमअधिक नहीं । इसमें एक के होने से दूसरा है, एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं, दूसरे की सार्थकता नहीं। इसमें दोनों दूसरे के पूरक हैं। दोनों दूसरे के बिना अपूर्ण हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि दोनों मिलकर पूर्ण होते हैं और एक होते हैं। द्वन्द्व मिटकर एक होने की प्रक्रिया और अवस्था का यह संकेत है।

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