| ऐसा करने के लिये श्रद्धा, विश्वास, आचार, ज्ञान आदि में सामर्थ्य प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकता रहेगी। कहने की आवश्यकता नहीं कि धर्म सिखाने वाली शिक्षा से ही ऐसा सामर्थ्य प्राप्त होगा। | | ऐसा करने के लिये श्रद्धा, विश्वास, आचार, ज्ञान आदि में सामर्थ्य प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकता रहेगी। कहने की आवश्यकता नहीं कि धर्म सिखाने वाली शिक्षा से ही ऐसा सामर्थ्य प्राप्त होगा। |
− | श्री भगवान अपनी गीता में विभूतियोग में कहते हैं कि समासो में मैं द्वन्द्व हूँ। समास का अर्थ यहाँ 'जुडे हुए तत्त्व' है। अनेक रचनायें, अनेक पदार्थ, अनेक व्यक्ति परस्पर विविध सम्बन्धों से जुडते हैं। अनेक बार यह सम्बन्ध अंगांगी होता है। उदाहरण के लिये फूल और पंखुडियाँ, वृक्ष और डाली, शरीर और हाथ, हाथ और ऊँगली आदि का परस्पर सम्बन्ध अंग और अंगी का है जिसमें एक मुख्य है और दूसरा गौण है, मुख्य का हिस्सा है । कभी तो दो पद विभिन्न कारकों से जुडते हैं । उदाहरण के लिये पुत्रधर्म, शिक्षकधर्म, प्रजापालन आदि, जिसमें एक पद विशेषण और दूसरा विशेष्य, एक साधन और दूसरा कारक होता है। | + | श्री भगवान अपनी गीता में विभूतियोग में कहते हैं कि समासो में मैं द्वन्द्व हूँ। समास का अर्थ यहाँ 'जुड़े हुए तत्त्व' है। अनेक रचनायें, अनेक पदार्थ, अनेक व्यक्ति परस्पर विविध सम्बन्धों से जुडते हैं। अनेक बार यह सम्बन्ध अंगांगी होता है। उदाहरण के लिये फूल और पंखुडियाँ, वृक्ष और डाली, शरीर और हाथ, हाथ और ऊँगली आदि का परस्पर सम्बन्ध अंग और अंगी का है जिसमें एक मुख्य है और दूसरा गौण है, मुख्य का हिस्सा है । कभी तो दो पद विभिन्न कारकों से जुडते हैं । उदाहरण के लिये पुत्रधर्म, शिक्षकधर्म, प्रजापालन आदि, जिसमें एक पद विशेषण और दूसरा विशेष्य, एक साधन और दूसरा कारक होता है। |
| परन्त इन्द्र समास विशेष है। इसमें दोनों पद समान हैं, लेशमात्र कमअधिक नहीं । इसमें एक के होने से दूसरा है, एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं, दूसरे की सार्थकता नहीं। इसमें दोनों दूसरे के पूरक हैं। दोनों दूसरे के बिना अपूर्ण हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि दोनों मिलकर पूर्ण होते हैं और एक होते हैं। द्वन्द्व मिटकर एक होने की प्रक्रिया और अवस्था का यह संकेत है। | | परन्त इन्द्र समास विशेष है। इसमें दोनों पद समान हैं, लेशमात्र कमअधिक नहीं । इसमें एक के होने से दूसरा है, एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं, दूसरे की सार्थकता नहीं। इसमें दोनों दूसरे के पूरक हैं। दोनों दूसरे के बिना अपूर्ण हैं। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि दोनों मिलकर पूर्ण होते हैं और एक होते हैं। द्वन्द्व मिटकर एक होने की प्रक्रिया और अवस्था का यह संकेत है। |