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=== अपने देश का परिचय प्राप्त करना ===
 
=== अपने देश का परिचय प्राप्त करना ===
आजकल ऐसा बहुत देखने को मिलता है कि भारत के लोगों को ही भारत का पूरा परिचय नहीं होता है। यह मात्र भौगोलिक या प्राकृतिक परिचय की बात नहीं है। भारत का इतिहास, ज्ञानविज्ञान के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ, भारत का सामर्थ्य, भारत की समृद्धि, भारत की विशेषता-इन सबकी सही, सुयोग्य एवं पर्याप्त सूचना भारत के प्रत्येक नागरिक को होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त धार्मिक होने के नाते चाहे जितनी प्रगति की हो परंतु हम एक तरह की हीनताग्रंथि से पीड़ित रहते हैं। छात्रों के मन में ऐसा हीनताबोध न जगे एवं यदि हो तो यह दूर हो जाए अतः भारत के बारे में सही जानकारी देना एवं छात्रों के मन में गौरव जगाना आवश्यक है।
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आजकल ऐसा बहुत देखने को मिलता है कि भारत के लोगोंं को ही भारत का पूरा परिचय नहीं होता है। यह मात्र भौगोलिक या प्राकृतिक परिचय की बात नहीं है। भारत का इतिहास, ज्ञानविज्ञान के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ, भारत का सामर्थ्य, भारत की समृद्धि, भारत की विशेषता-इन सबकी सही, सुयोग्य एवं पर्याप्त सूचना भारत के प्रत्येक नागरिक को होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त धार्मिक होने के नाते चाहे जितनी प्रगति की हो परंतु हम एक तरह की हीनताग्रंथि से पीड़ित रहते हैं। छात्रों के मन में ऐसा हीनताबोध न जगे एवं यदि हो तो यह दूर हो जाए अतः भारत के बारे में सही जानकारी देना एवं छात्रों के मन में गौरव जगाना आवश्यक है।
    
=== पर्यावरण की सुरक्षा करना ===
 
=== पर्यावरण की सुरक्षा करना ===
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समाजव्यवस्था की मूल ईकाई परिवार है। आज समग्र विश्व मनोवैज्ञानिक समस्याओं एवं उसके कारण निर्मित हिंसा, बलात्कार आदि से त्रस्त हो गया है। उसके उपाय के रूप में धार्मिक समाजव्यवस्था की ओर आशाभरी निगाहों से विश्व देख रहा है। हमें भी अपनी परिवार व्यवस्था का मूल्य जानना चाहिए एवं उसकी संभाल करना चाहिए। इस दृष्टि से तीन बातें अहम हैं:
 
समाजव्यवस्था की मूल ईकाई परिवार है। आज समग्र विश्व मनोवैज्ञानिक समस्याओं एवं उसके कारण निर्मित हिंसा, बलात्कार आदि से त्रस्त हो गया है। उसके उपाय के रूप में धार्मिक समाजव्यवस्था की ओर आशाभरी निगाहों से विश्व देख रहा है। हमें भी अपनी परिवार व्यवस्था का मूल्य जानना चाहिए एवं उसकी संभाल करना चाहिए। इस दृष्टि से तीन बातें अहम हैं:
 
# परिवार भावना : परिवार भावना अर्थात् आत्मीयता। आत्मीयता अर्थात्अ पनापन। जहां अपनापन होता है वहीं प्रेम होता है, समर्पण होता है। एकदूसरे के सुखदुःख में लोग सहभागी बनते हैं। एकदूसरे की सहायता करते हैं। ऐसी परिवार भावना का विकास छात्रों में बचपन से ही करना चाहिए।
 
# परिवार भावना : परिवार भावना अर्थात् आत्मीयता। आत्मीयता अर्थात्अ पनापन। जहां अपनापन होता है वहीं प्रेम होता है, समर्पण होता है। एकदूसरे के सुखदुःख में लोग सहभागी बनते हैं। एकदूसरे की सहायता करते हैं। ऐसी परिवार भावना का विकास छात्रों में बचपन से ही करना चाहिए।
# परिवार की व्यवस्था : परिवार यदि साथ में रहता है तो साथ मिलकर ही उन्हें सब काम करने होते हैं। ऐसे कार्यों को परिवार के सभी लोगों को मिलजुलकर करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर भोजन बनाना, घर की स्वच्छता करना, बीमार की परवरिश करना, अतिथिसेवा करना इत्यादि । घर के ऐसे सभी काम घर के सभी सदस्यों को आना चाहिए, एवं आवश्यकता पड़ने पर उन्हें करने के लिए तैयार भी रहना चाहिए। हमें यह भी ख्याल रखना आवश्यक है कि प्रत्येक बालिका को बड़ी होकर पत्नी, गृहिणी एवं माता बनना है। प्रत्येक बालक को बड़ा होकर पति, गृहस्थ एवं पिता बनना है। दोनों को मिलकर घर चलाना, अपने सामाजिक दायित्व को निभाना एवं नई पीढ़ी को भी तैयार करना होता है। इस दृष्टि से वर्तमान समय में परिवार व्यवस्था का अपनी आयु के अनुरूप क्रियात्मक अनुभव प्राप्त होना आवश्यक है।
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# परिवार की व्यवस्था : परिवार यदि साथ में रहता है तो साथ मिलकर ही उन्हें सब काम करने होते हैं। ऐसे कार्यों को परिवार के सभी लोगोंं को मिलजुलकर करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर भोजन बनाना, घर की स्वच्छता करना, बीमार की परवरिश करना, अतिथिसेवा करना इत्यादि । घर के ऐसे सभी काम घर के सभी सदस्यों को आना चाहिए, एवं आवश्यकता पड़ने पर उन्हें करने के लिए तैयार भी रहना चाहिए। हमें यह भी ख्याल रखना आवश्यक है कि प्रत्येक बालिका को बड़ी होकर पत्नी, गृहिणी एवं माता बनना है। प्रत्येक बालक को बड़ा होकर पति, गृहस्थ एवं पिता बनना है। दोनों को मिलकर घर चलाना, अपने सामाजिक दायित्व को निभाना एवं नई पीढ़ी को भी तैयार करना होता है। इस दृष्टि से वर्तमान समय में परिवार व्यवस्था का अपनी आयु के अनुरूप क्रियात्मक अनुभव प्राप्त होना आवश्यक है।
# परिवार की परंपरा एवं परिचय : हम कई लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि हमारे घर में तो ऐसा होता है। या ऐसा नहीं होता। यह वंशपरंपरा से हमारे परिवारों में विरासत के रूप में उतरता है। कुछ रिवाज, कुछ पद्धतियाँ, कुछ कौशल (रोग, रंग, रूप, ढाँचा इत्यादि भी) वंशानुगत होते हैं। इनमें से अच्छी बातों को सीख लेना चाहिए, उन्हें और अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। बुरी बातों को छोड़ देना वर्तमान पीढ़ी को करना चाहिए। इसके अतिरिक्त पारिवारिक संबंध भी जानने का विषय है। अतः इन बातों का भी पाठ्यक्रम में समावेश होना चाहिए। यह सब जानना, समझा, मानना एवं करना ही परिवार की सेवा है।  
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# परिवार की परंपरा एवं परिचय : हम कई लोगोंं को कहते हुए सुनते हैं कि हमारे घर में तो ऐसा होता है। या ऐसा नहीं होता। यह वंशपरंपरा से हमारे परिवारों में विरासत के रूप में उतरता है। कुछ रिवाज, कुछ पद्धतियाँ, कुछ कौशल (रोग, रंग, रूप, ढाँचा इत्यादि भी) वंशानुगत होते हैं। इनमें से अच्छी बातों को सीख लेना चाहिए, उन्हें और अच्छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। बुरी बातों को छोड़ देना वर्तमान पीढ़ी को करना चाहिए। इसके अतिरिक्त पारिवारिक संबंध भी जानने का विषय है। अतः इन बातों का भी पाठ्यक्रम में समावेश होना चाहिए। यह सब जानना, समझा, मानना एवं करना ही परिवार की सेवा है।  
    
=== वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को आत्मसात करना ===
 
=== वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना को आत्मसात करना ===

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