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=== भाषण ===
 
=== भाषण ===
 
# छात्र जैसा सुनते हैं वैसा ही बोलते हैं। इसलिए छात्रों को शुद्ध बोलना सिखाने के लिए शिक्षक को हमेशा शुद्ध उच्चारण के साथ ही बोलना चाहिए। छात्रों के घरों में भिन्न भिन्न बोलियों का प्रयोग होता है, जैसे अवधी, भोजपुरी, बिहारी, उत्तरांचली इत्यादि। इन बोलियों एवं शुद्ध भाषा में अंतर होता है। इसलिए घर की ऐसी बोली में पले छात्रों को शुद्ध भाषा बोलना कठिन लगता है। यदि शिक्षक घर में ऐसी ही बोली बोलते हों तो उन्हें भी शुद्ध बोलना कठिन लगता है। कभी कभी शुद्ध बोलने में वे अस्वाभाविक भी बन जाते हैं। परंतु यदि छात्रों को घर एवं विद्यालय दो में से कहीं भी या एक जगह भी शुद्ध भाषा सुनने को न मिले तो वे शुद्ध भाषा बोलना सीख ही नहीं सकेंगे। इसलिए शिक्षकों को स्वयं तो शुद्ध भाषा बोलना सीखना ही चाहिए। इसका अन्य कोई विकल्प ही नहीं है। शुद्ध भाषा सुनते सुनते ही छात्र भी उसी तरह बोलना सीख ही जाएँगे।
 
# छात्र जैसा सुनते हैं वैसा ही बोलते हैं। इसलिए छात्रों को शुद्ध बोलना सिखाने के लिए शिक्षक को हमेशा शुद्ध उच्चारण के साथ ही बोलना चाहिए। छात्रों के घरों में भिन्न भिन्न बोलियों का प्रयोग होता है, जैसे अवधी, भोजपुरी, बिहारी, उत्तरांचली इत्यादि। इन बोलियों एवं शुद्ध भाषा में अंतर होता है। इसलिए घर की ऐसी बोली में पले छात्रों को शुद्ध भाषा बोलना कठिन लगता है। यदि शिक्षक घर में ऐसी ही बोली बोलते हों तो उन्हें भी शुद्ध बोलना कठिन लगता है। कभी कभी शुद्ध बोलने में वे अस्वाभाविक भी बन जाते हैं। परंतु यदि छात्रों को घर एवं विद्यालय दो में से कहीं भी या एक जगह भी शुद्ध भाषा सुनने को न मिले तो वे शुद्ध भाषा बोलना सीख ही नहीं सकेंगे। इसलिए शिक्षकों को स्वयं तो शुद्ध भाषा बोलना सीखना ही चाहिए। इसका अन्य कोई विकल्प ही नहीं है। शुद्ध भाषा सुनते सुनते ही छात्र भी उसी तरह बोलना सीख ही जाएँगे।
# छात्र आमतौर पर यदि शुद्ध भाषा के वातावरण में रहेगे तो उनपर विशेष ध्यान देकर एक अक्षर से शुरू करके उच्चारण शुद्ध एवं स्पष्ट करते रहना चाहिए। इसके लिए शिक्षक को एक एक अक्षर जोर जोर से बोलकर छात्रों से सामूहिक एवं व्यक्तिगत तौर पर बुलवाना चाहिए। बोलते समय उन्हें उच्चारण में जो जो कठिनाई पड़ती है उस पर ध्यान देकर उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। यह सब प्रयास अन्य किसी तरह से नहीं, केवल सुनकर ही हो सकता है। संपूर्ण भाषण की मूल ईकाई अक्षर है। अक्षर से ही शब्द बनता है। शब्द से वाक्य एवं वाक्य से सम्पूर्ण भाषण। इसलिए सर्वप्रथम अक्षर के उच्चारण पर सबसे अधिक ध्या देना चाहिए। अक्षरों के उच्चारण का प्रतिदिन अभ्यास होना चाहिए।  
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# छात्र आमतौर पर यदि शुद्ध भाषा के वातावरण में रहेगे तो उनपर विशेष ध्यान देकर एक अक्षर से आरम्भ करके उच्चारण शुद्ध एवं स्पष्ट करते रहना चाहिए। इसके लिए शिक्षक को एक एक अक्षर जोर जोर से बोलकर छात्रों से सामूहिक एवं व्यक्तिगत तौर पर बुलवाना चाहिए। बोलते समय उन्हें उच्चारण में जो जो कठिनाई पड़ती है उस पर ध्यान देकर उसे सुधारने का प्रयास करना चाहिए। यह सब प्रयास अन्य किसी तरह से नहीं, केवल सुनकर ही हो सकता है। संपूर्ण भाषण की मूल ईकाई अक्षर है। अक्षर से ही शब्द बनता है। शब्द से वाक्य एवं वाक्य से सम्पूर्ण भाषण। इसलिए सर्वप्रथम अक्षर के उच्चारण पर सबसे अधिक ध्या देना चाहिए। अक्षरों के उच्चारण का प्रतिदिन अभ्यास होना चाहिए।  
 
# वर्गों के मुख्य दो प्रकार हैं; एक स्वर एवं दूसरा व्यंजन। प्रथम व्यंजन एवं उसके बाद स्वर का उच्चार सीखाना चाहिए।
 
# वर्गों के मुख्य दो प्रकार हैं; एक स्वर एवं दूसरा व्यंजन। प्रथम व्यंजन एवं उसके बाद स्वर का उच्चार सीखाना चाहिए।
 
# कुछ व्यंजन कठिन होते हैं। उदाहरण के तौर पर ङ, ञ, ण, ज्ञ (इनमें 'ज्ञ' संयुक्ताक्षर है फिर भी इसे वर्णमाला में स्वतंत्र स्थान मिला है।) इन सभी व्यंजनों का उच्चारण 'अंग, इयं, अंण, ग्य' किया जाता है परंतु यह उच्चारण सही नहीं हैं। इसलिए इन अक्षरों के उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
 
# कुछ व्यंजन कठिन होते हैं। उदाहरण के तौर पर ङ, ञ, ण, ज्ञ (इनमें 'ज्ञ' संयुक्ताक्षर है फिर भी इसे वर्णमाला में स्वतंत्र स्थान मिला है।) इन सभी व्यंजनों का उच्चारण 'अंग, इयं, अंण, ग्य' किया जाता है परंतु यह उच्चारण सही नहीं हैं। इसलिए इन अक्षरों के उच्चारण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
 
# 'ज' एवं 'झ' में एवं 'स', 'श', 'ष' उच्चारण में भी अंतर है यह भी जल्दी ध्यान में नहीं आता है। कभी कभी तो 'ग' एवं 'घ' का अंतर भी ध्यान में नहीं आता है। इसलिए इन अक्षरों पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। इसी तरह 'फ' का उच्चारण अंग्रेजी के 'F' के समान किया जाता है। उसे भी सुधारना चाहिए। स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व एवं दीर्घ का भेद नहीं करना ही मुख्य दोष है। यह दोष इतना व्यापक है कि अब तो कुछ लोग भाषा से इस भेद को ही दूर कर देने की हिमयात करने लगे हैं। परंतु हमारी लापरवाही की वजह से भाषा में बदल लाने के बजाए हमें ही शुद्ध बोलने की शुरुआत करनी चाहिए। विसर्ग का उच्चारण भी विशेष रूप से सिखाना चाहिए।
 
# 'ज' एवं 'झ' में एवं 'स', 'श', 'ष' उच्चारण में भी अंतर है यह भी जल्दी ध्यान में नहीं आता है। कभी कभी तो 'ग' एवं 'घ' का अंतर भी ध्यान में नहीं आता है। इसलिए इन अक्षरों पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। इसी तरह 'फ' का उच्चारण अंग्रेजी के 'F' के समान किया जाता है। उसे भी सुधारना चाहिए। स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व एवं दीर्घ का भेद नहीं करना ही मुख्य दोष है। यह दोष इतना व्यापक है कि अब तो कुछ लोग भाषा से इस भेद को ही दूर कर देने की हिमयात करने लगे हैं। परंतु हमारी लापरवाही की वजह से भाषा में बदल लाने के बजाए हमें ही शुद्ध बोलने की शुरुआत करनी चाहिए। विसर्ग का उच्चारण भी विशेष रूप से सिखाना चाहिए।
# अक्षरों के उच्चारण के बाद शब्द बोलना सिखाना चाहिए। दो अक्षर के शब्द से शुरू करके क्रमशः तीन, चार, पाँच अक्षर के शब्द बोलना सिखाना चाहिए। शब्द बोलते समय एक से अधिक अक्षर एक के बाद एक के क्रम में बोलना होता है। इसमें उच्चारणतंत्र (जिह्वा एवं दांत) को बहुत व्यायाम मिलता है।
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# अक्षरों के उच्चारण के बाद शब्द बोलना सिखाना चाहिए। दो अक्षर के शब्द से आरम्भ करके क्रमशः तीन, चार, पाँच अक्षर के शब्द बोलना सिखाना चाहिए। शब्द बोलते समय एक से अधिक अक्षर एक के बाद एक के क्रम में बोलना होता है। इसमें उच्चारणतंत्र (जिह्वा एवं दांत) को बहुत व्यायाम मिलता है।
 
# शब्दों के बाद वाक्य की बारी आती है। वाक्य बोलते समय ही आरोह अवरोह एवं विरामचिह्नों का उच्चारण भी करवाया जाता है। उदाहरण के तौर पर प्रश्नवाचक वाक्य हो तो वाक्य में आरोह एवं सामान्य वाक्य हो (वाक्य के अंत में पूर्णविराम आता हो) तो अवरोह आना चाहिए। विरामचिह्नों की पहचान या आरोह अवरोह क्या है यह समझाने की आवश्यकता नहीं है। केवल बोलना आए यही अपेक्षा है।
 
# शब्दों के बाद वाक्य की बारी आती है। वाक्य बोलते समय ही आरोह अवरोह एवं विरामचिह्नों का उच्चारण भी करवाया जाता है। उदाहरण के तौर पर प्रश्नवाचक वाक्य हो तो वाक्य में आरोह एवं सामान्य वाक्य हो (वाक्य के अंत में पूर्णविराम आता हो) तो अवरोह आना चाहिए। विरामचिह्नों की पहचान या आरोह अवरोह क्या है यह समझाने की आवश्यकता नहीं है। केवल बोलना आए यही अपेक्षा है।
 
# इन सबके बाद संयुक्ताक्षरों की बारी आती है। एक एक अक्षर के समान ही एक एक संयुक्ताक्षर बोलना सिखाना चाहिए। इसके लिए शिक्षकों को भिन्न भिन्न संयुक्ताक्षरों की सूची बनाकर वह संयुक्ताक्षर जिसमें आते हैं ऐसे शब्द बनाने चाहिए एवं ऐसे शब्दों से युक्त वाक्यों का सस्वर पाठ करवाकर अभ्यास करवाना चाहिए।
 
# इन सबके बाद संयुक्ताक्षरों की बारी आती है। एक एक अक्षर के समान ही एक एक संयुक्ताक्षर बोलना सिखाना चाहिए। इसके लिए शिक्षकों को भिन्न भिन्न संयुक्ताक्षरों की सूची बनाकर वह संयुक्ताक्षर जिसमें आते हैं ऐसे शब्द बनाने चाहिए एवं ऐसे शब्दों से युक्त वाक्यों का सस्वर पाठ करवाकर अभ्यास करवाना चाहिए।
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# अब एक एक अक्षर का वाचन स्वतंत्र रूप से करवाएँ। इससे पूर्व एक एक अक्षर का सस्वर पठन एवं सभी अक्षरों से युक्त अर्थपूर्ण वाचन का प्रचुर मात्रा में अभ्यास हो चुका है। इससे एक एक अक्षर एवं संयुक्ताक्षर की पहचान करके पढ़ना आसान बनाया जा सकता है।
 
# अब एक एक अक्षर का वाचन स्वतंत्र रूप से करवाएँ। इससे पूर्व एक एक अक्षर का सस्वर पठन एवं सभी अक्षरों से युक्त अर्थपूर्ण वाचन का प्रचुर मात्रा में अभ्यास हो चुका है। इससे एक एक अक्षर एवं संयुक्ताक्षर की पहचान करके पढ़ना आसान बनाया जा सकता है।
 
# एक एक अक्षर पढ़ना आ जाने के बाद अक्षरों का उपयोग करेक शब्द बनाने का अभ्यास करवाना चाहिए। इसके लिए भाषा के अनेक प्रकार के खेल बनाए गये हैं।
 
# एक एक अक्षर पढ़ना आ जाने के बाद अक्षरों का उपयोग करेक शब्द बनाने का अभ्यास करवाना चाहिए। इसके लिए भाषा के अनेक प्रकार के खेल बनाए गये हैं।
# इसके पश्चात् धाराप्रवाह वाचन की शुरूआत होती है। संपूर्ण वाचन के लिए प्रथम अनुवाचन का प्रयोग करना चाहिए। अनुवाचन अर्थात् प्रतम शिक्षक सस्वर वाचन करें इसके बाद छात्र शिक्षक को सुनकर एवं पुस्तक में देखकर सस्वर पढ़े। ऐसा करने से बोलना एवं देखकर पढ़ना-दोनों क्रियाएँ एकसाथ होंगी एवं भाषा के ध्वनिस्वरूप एवं वर्णस्वरूप के बीच सामंजस्य स्थापित होगा।
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# इसके पश्चात् धाराप्रवाह वाचन की आरम्भआत होती है। संपूर्ण वाचन के लिए प्रथम अनुवाचन का प्रयोग करना चाहिए। अनुवाचन अर्थात् प्रतम शिक्षक सस्वर वाचन करें इसके बाद छात्र शिक्षक को सुनकर एवं पुस्तक में देखकर सस्वर पढ़े। ऐसा करने से बोलना एवं देखकर पढ़ना-दोनों क्रियाएँ एकसाथ होंगी एवं भाषा के ध्वनिस्वरूप एवं वर्णस्वरूप के बीच सामंजस्य स्थापित होगा।
 
# अब छात्रों से स्वतंत्र वाचन करवाएँ। स्वतंत्र वाचन अर्थात् पुस्तक का स्वयं किया गया वाचन। इस प्रकार वाचन के अभ्यास के दौरान ही पुस्तक के अतिरिक्त फलक, अखबार, पत्रिकाएँ इत्यादि सबकुछ पढ़ने का अभ्यास होते रहना चाहिए। प्रारंभ में सस्वर (जोर से) पढ़ने के बाद मंद स्वर में वाचन एवं अंत में मन में ही वाचन हो यही वाचन का क्रम है। यह वाचन सिखाना अर्थात् धाराप्रवाह वाचन ही सिखाना अपेक्षित है।
 
# अब छात्रों से स्वतंत्र वाचन करवाएँ। स्वतंत्र वाचन अर्थात् पुस्तक का स्वयं किया गया वाचन। इस प्रकार वाचन के अभ्यास के दौरान ही पुस्तक के अतिरिक्त फलक, अखबार, पत्रिकाएँ इत्यादि सबकुछ पढ़ने का अभ्यास होते रहना चाहिए। प्रारंभ में सस्वर (जोर से) पढ़ने के बाद मंद स्वर में वाचन एवं अंत में मन में ही वाचन हो यही वाचन का क्रम है। यह वाचन सिखाना अर्थात् धाराप्रवाह वाचन ही सिखाना अपेक्षित है।
  

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