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# 'ज' एवं 'झ' में एवं 'स', 'श', 'ष' उच्चारण में भी अंतर है यह भी जल्दी ध्यान में नहीं आता है। कभी कभी तो 'ग' एवं 'घ' का अंतर भी ध्यान में नहीं आता है। इसलिए इन अक्षरों पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। इसी तरह 'फ' का उच्चारण अंग्रेजी के 'F' के समान किया जाता है। उसे भी सुधारना चाहिए। स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व एवं दीर्घ का भेद नहीं करना ही मुख्य दोष है। यह दोष इतना व्यापक है कि अब तो कुछ लोग भाषा से इस भेद को ही दूर कर देने की हिमयात करने लगे हैं। परंतु हमारी लापरवाही की वजह से भाषा में बदल लाने के बजाए हमें ही शुद्ध बोलने की शुरुआत करनी चाहिए। विसर्ग का उच्चारण भी विशेष रूप से सिखाना चाहिए।
 
# 'ज' एवं 'झ' में एवं 'स', 'श', 'ष' उच्चारण में भी अंतर है यह भी जल्दी ध्यान में नहीं आता है। कभी कभी तो 'ग' एवं 'घ' का अंतर भी ध्यान में नहीं आता है। इसलिए इन अक्षरों पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। इसी तरह 'फ' का उच्चारण अंग्रेजी के 'F' के समान किया जाता है। उसे भी सुधारना चाहिए। स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व एवं दीर्घ का भेद नहीं करना ही मुख्य दोष है। यह दोष इतना व्यापक है कि अब तो कुछ लोग भाषा से इस भेद को ही दूर कर देने की हिमयात करने लगे हैं। परंतु हमारी लापरवाही की वजह से भाषा में बदल लाने के बजाए हमें ही शुद्ध बोलने की शुरुआत करनी चाहिए। विसर्ग का उच्चारण भी विशेष रूप से सिखाना चाहिए।
 
# अक्षरों के उच्चारण के बाद शब्द बोलना सिखाना चाहिए। दो अक्षर के शब्द से शुरू करके क्रमशः तीन, चार, पाँच अक्षर के शब्द बोलना सिखाना चाहिए। शब्द बोलते समय एक से अधिक अक्षर एक के बाद एक के क्रम में बोलना होता है। इसमें उच्चारणतंत्र (जिह्वा एवं दांत) को बहुत व्यायाम मिलता है।
 
# अक्षरों के उच्चारण के बाद शब्द बोलना सिखाना चाहिए। दो अक्षर के शब्द से शुरू करके क्रमशः तीन, चार, पाँच अक्षर के शब्द बोलना सिखाना चाहिए। शब्द बोलते समय एक से अधिक अक्षर एक के बाद एक के क्रम में बोलना होता है। इसमें उच्चारणतंत्र (जिह्वा एवं दांत) को बहुत व्यायाम मिलता है।
# शब्दों के बाद वाक्य की बारी आती है। वाक्य बोलते समय ही आरोह अवरोह एवं विरामचिह्नों का उच्चारण भी करवाया जाता है। उदाहरण के तौर पर प्रश्नवाचक वाक्य हो तो वाक्य में आरोह एवं सामान्य वाक्य हो (वाक्य के अंत में पूर्णविराम आता हो) तो अवरोह आना चाहिए। विरामचिह्नों की पहचान या आरोह अवरोह क्या है यह समझाने की जरूरत नहीं है। केवल बोलना आए यही अपेक्षा है।
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# शब्दों के बाद वाक्य की बारी आती है। वाक्य बोलते समय ही आरोह अवरोह एवं विरामचिह्नों का उच्चारण भी करवाया जाता है। उदाहरण के तौर पर प्रश्नवाचक वाक्य हो तो वाक्य में आरोह एवं सामान्य वाक्य हो (वाक्य के अंत में पूर्णविराम आता हो) तो अवरोह आना चाहिए। विरामचिह्नों की पहचान या आरोह अवरोह क्या है यह समझाने की आवश्यकता नहीं है। केवल बोलना आए यही अपेक्षा है।
 
# इन सबके बाद संयुक्ताक्षरों की बारी आती है। एक एक अक्षर के समान ही एक एक संयुक्ताक्षर बोलना सिखाना चाहिए। इसके लिए शिक्षकों को भिन्न भिन्न संयुक्ताक्षरों की सूची बनाकर वह संयुक्ताक्षर जिसमें आते हैं ऐसे शब्द बनाने चाहिए एवं ऐसे शब्दों से युक्त वाक्यों का सस्वर पाठ करवाकर अभ्यास करवाना चाहिए।
 
# इन सबके बाद संयुक्ताक्षरों की बारी आती है। एक एक अक्षर के समान ही एक एक संयुक्ताक्षर बोलना सिखाना चाहिए। इसके लिए शिक्षकों को भिन्न भिन्न संयुक्ताक्षरों की सूची बनाकर वह संयुक्ताक्षर जिसमें आते हैं ऐसे शब्द बनाने चाहिए एवं ऐसे शब्दों से युक्त वाक्यों का सस्वर पाठ करवाकर अभ्यास करवाना चाहिए।
 
# यह सब करते समय आम बातचीत, बोलना, सुनना गाना आदि तो चलता ही रहेगा। धीरे धीरे आम बातचीत में भी शुद्धता के साथ अभ्यास होता रहे यह यहाँ अपेक्षित है। शुद्ध उच्चारण अलग से हो एवं आम बातचीत अलग तरह से हो, ऐसा नहीं होने देना चाहिए। परिचय, चित्रवर्णन, घटनानिरूपण, कथाकथन, वाक्यपठन, स्तोत्रपाठ इत्यादि बोलने (कथन) के अच्छ माध्यम हैं।
 
# यह सब करते समय आम बातचीत, बोलना, सुनना गाना आदि तो चलता ही रहेगा। धीरे धीरे आम बातचीत में भी शुद्धता के साथ अभ्यास होता रहे यह यहाँ अपेक्षित है। शुद्ध उच्चारण अलग से हो एवं आम बातचीत अलग तरह से हो, ऐसा नहीं होने देना चाहिए। परिचय, चित्रवर्णन, घटनानिरूपण, कथाकथन, वाक्यपठन, स्तोत्रपाठ इत्यादि बोलने (कथन) के अच्छ माध्यम हैं।

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