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६. “विश्व के १०० टॉप विश्वविद्यालयों - संस्थानों में भारत का कोई भी संस्थान नहीं' यह समाचार पर्याप्त प्रचार और बुद्धिजीवी वर्ग की चिन्ता का विषय बनता है । शैक्षिक गुणवत्ता अभिवृद्धि से कोई परहेज नहीं, परन्तु प्रश्न यह है कि यह “टॉप' की सूची तैयार करने वाली संस्था का मानक, उसकी स्वयं की शैक्षिक समझ का प्रकार क्या और कैसा है? प्रत्येक देश की शैक्षिक आवश्यकतायें उसकी. अपनी सामाजिक-राजनैतिक-वित्तीय-औद्योगिक तथा पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर निर्धारित होती हैं । UNESCO की प्रख्यात डेलर्स रिपोर्ट कहती है - Education of every nation should be committed to progress, rooted in its culture. ऐसे में शिक्षा के अन्तर्राष्ट्रीय मानक अर्थात्‌ सब देशों के लिए समान मापदण्ड, कहाँ तक उपयुक्त माने जा सकते हैं? कहीं हम मछली की क्षमता का आकलन उसके पेड़ पर चढ़ने की योग्यता के आधार पर करने का प्रयास तो नहीं कर रहे?
 
६. “विश्व के १०० टॉप विश्वविद्यालयों - संस्थानों में भारत का कोई भी संस्थान नहीं' यह समाचार पर्याप्त प्रचार और बुद्धिजीवी वर्ग की चिन्ता का विषय बनता है । शैक्षिक गुणवत्ता अभिवृद्धि से कोई परहेज नहीं, परन्तु प्रश्न यह है कि यह “टॉप' की सूची तैयार करने वाली संस्था का मानक, उसकी स्वयं की शैक्षिक समझ का प्रकार क्या और कैसा है? प्रत्येक देश की शैक्षिक आवश्यकतायें उसकी. अपनी सामाजिक-राजनैतिक-वित्तीय-औद्योगिक तथा पर्यावरणीय परिस्थितियों के आधार पर निर्धारित होती हैं । UNESCO की प्रख्यात डेलर्स रिपोर्ट कहती है - Education of every nation should be committed to progress, rooted in its culture. ऐसे में शिक्षा के अन्तर्राष्ट्रीय मानक अर्थात्‌ सब देशों के लिए समान मापदण्ड, कहाँ तक उपयुक्त माने जा सकते हैं? कहीं हम मछली की क्षमता का आकलन उसके पेड़ पर चढ़ने की योग्यता के आधार पर करने का प्रयास तो नहीं कर रहे?
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७. सरकारें मध्याह्म भोजन, बस्ते, साइकिल, लैपटॉप बाँट कर शिक्षा में बाजारवाद को बढ़ावा दे रहीं हैं । इसी धनराशि का उपयोग यदि विद्यालयों की स्थितियाँ - व्यवस्थायें सुधारने, शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने, श्यामपट्ट जैसी मूलभूल सुविधायें उपलब्ध कराने में किया जाता तो शायद शिक्षा का उद्धार अधिक किया जा सकता था ।
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७. सरकारें मध्याह्म भोजन, बस्ते, साइकिल, लैपटॉप बाँट कर शिक्षा में बाजारवाद को बढ़ावा दे रहीं हैं । इसी धनराशि का उपयोग यदि विद्यालयों की स्थितियाँ - व्यवस्थायें सुधारने, शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने, श्यामपट्ट जैसी मूलभूल सुविधायें उपलब्ध कराने में किया जाता तो संभवतः शिक्षा का उद्धार अधिक किया जा सकता था ।
    
८. पिछली दो-तीन दृशाब्दी से शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ता Privatisation (निजीकरण) धीरे-धीरे Corporatisation की ओर बढ़ा है । लगभग सभी बड़े-छोटे औद्योगिक घराने आज इस दौड़ में शामिल हैं । शुरुआत तकनीकी संस्थाओं से हुई थी, जो कि इस दृष्टि से प्रशंसनीय प्रयास कहा जा सकता था कि वे अपने उद्योग समूहों के लिए ही सही, किन्तु गुणवत्तायुक्त शिक्षा के माध्यम से मेधावी विद्यार्थियों को आगे बढ़ने में सहायता कर रहे हैं । बिड़ला समूह का. पिलानी (राजस्थान) स्थित अभियांत्रिकी महाविद्यालय अनेक वर्षों से इस क्षेत्र में जाने वाले छात्रों के लिए Dream destination रहा है । परन्तु पिछले कुछ वर्षों में निजी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, तकनीकी शिक्षा संस्थानों से यह क्रम स्कूली शिक्षा तक पहुंच गया है। तेजी से हुए आर्थिक विकास के कारण भुगतान क्षमता बढ़ी, अभिभावकों में शिक्षा के प्रति जागरूकता के साथ- साथ अगली पीढ़ी को बड़े पैकेज वाली नौकरियों तक पहुंचाकर अपना बुढ़ापा सुरक्षित कर लेने की मानसिकता बढ़ी । इस नव-धनाढ्य वर्ग की इस मानसिकता को भुनाने में ये औद्योगिक घराने सफल भी हुए । Centrally वातानुकूलित परिसर, शानदार कक्ष, आलीशान भवन और शिक्षा से अधिक सुख-सुविधा की व्यवस्था. की चिन्ता, अच्छे शिक्षा संस्थान की पहचान बन गए ।
 
८. पिछली दो-तीन दृशाब्दी से शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ता Privatisation (निजीकरण) धीरे-धीरे Corporatisation की ओर बढ़ा है । लगभग सभी बड़े-छोटे औद्योगिक घराने आज इस दौड़ में शामिल हैं । शुरुआत तकनीकी संस्थाओं से हुई थी, जो कि इस दृष्टि से प्रशंसनीय प्रयास कहा जा सकता था कि वे अपने उद्योग समूहों के लिए ही सही, किन्तु गुणवत्तायुक्त शिक्षा के माध्यम से मेधावी विद्यार्थियों को आगे बढ़ने में सहायता कर रहे हैं । बिड़ला समूह का. पिलानी (राजस्थान) स्थित अभियांत्रिकी महाविद्यालय अनेक वर्षों से इस क्षेत्र में जाने वाले छात्रों के लिए Dream destination रहा है । परन्तु पिछले कुछ वर्षों में निजी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों, तकनीकी शिक्षा संस्थानों से यह क्रम स्कूली शिक्षा तक पहुंच गया है। तेजी से हुए आर्थिक विकास के कारण भुगतान क्षमता बढ़ी, अभिभावकों में शिक्षा के प्रति जागरूकता के साथ- साथ अगली पीढ़ी को बड़े पैकेज वाली नौकरियों तक पहुंचाकर अपना बुढ़ापा सुरक्षित कर लेने की मानसिकता बढ़ी । इस नव-धनाढ्य वर्ग की इस मानसिकता को भुनाने में ये औद्योगिक घराने सफल भी हुए । Centrally वातानुकूलित परिसर, शानदार कक्ष, आलीशान भवन और शिक्षा से अधिक सुख-सुविधा की व्यवस्था. की चिन्ता, अच्छे शिक्षा संस्थान की पहचान बन गए ।

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