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==== आहार विषयक वैज्ञानिकता ====
 
==== आहार विषयक वैज्ञानिकता ====
 
# आहार की आवश्यकता क्यों होती है । मनुष्य भूख लगती है इसलिये खाता है । शरीर को पोषण चाहिये इसलिये खाता है । विविध प्रकार के भोजन पदार्थ जीभ को और मन को अच्छे लगते हैं इसलिये खाता है । भोजन करने में आनन्द आता है इसलिये खाता है। इन विभिन्न कारणों में समायोजन करना वैज्ञानिकता है |
 
# आहार की आवश्यकता क्यों होती है । मनुष्य भूख लगती है इसलिये खाता है । शरीर को पोषण चाहिये इसलिये खाता है । विविध प्रकार के भोजन पदार्थ जीभ को और मन को अच्छे लगते हैं इसलिये खाता है । भोजन करने में आनन्द आता है इसलिये खाता है। इन विभिन्न कारणों में समायोजन करना वैज्ञानिकता है |
# समायोजन कैसे करे ? भोजन के मोटे मोटे तीन स्तर है । भोजन सात्तिक, पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है । सात्त्विक भोजन मन को संस्कारित करता है, पौष्टिक भोजन शरीर को पुष्ट करता है और स्वास्थ्य की रक्षा करता है, स्वादिष्ट भोजन जीभ और मन को खुश करता है । यदि वह स्वादिष्ट है परन्तु पौष्टिक नहीं है तो कया करेंगे ? पौष्टिक है परन्तु सात्त्विक नहीं है तो क्या करेंगे ? यह तो सम्भव है कि स्वादिष्ट भोजन पौष्टिक और सात्चिक नहीं भी होता है, पौष्टिक भोजन सात्तिक नहीं भी होता है । उदाहरण के लिये जंक फूड मैदे के पदार्थ, फ्रिज में रखे पदार्थ स्वादिष्ट तो होते हैं परन्तु पौष्टिक और सात्विक नहीं होते । लहसुन, प्याज, मछली आदि पौष्टिक तो होते हैं परन्तु सात्तिक नहीं होते। बुद्धिमान मनुष्य करता है, पोष्टिकता की दूसरे क्रम में और स्वादिष्टता की तीसरे क्रम में । अतः भोजन स्वादिष्ट तो होना चाहिये परन्तु पौष्टिक और सात्तिक तो होना ही चाहिये । सात्त्विक है परन्तु स्वादिष्ट नहीं है तो चलेगा परन्तु स्वादिष्ट है और सात्विक या पौष्टिक नहीं है ऐसा नहीं चलेगा । भोजन पौष्टिक होने पर भी सात्तिक नहीं है तो नहीं चलेगा । सात्त्विक भोजन पौष्टिक होता ही है । अतः स्वाद को प्राथमिकता देना अवैज्ञानिक है, सात्त्विकता को प्राथमिकता देना वैज्ञानिक है ।
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# समायोजन कैसे करे ? भोजन के मोटे मोटे तीन स्तर है । भोजन सात्तिक, पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है । सात्त्विक भोजन मन को संस्कारित करता है, पौष्टिक भोजन शरीर को पुष्ट करता है और स्वास्थ्य की रक्षा करता है, स्वादिष्ट भोजन जीभ और मन को खुश करता है । यदि वह स्वादिष्ट है परन्तु पौष्टिक नहीं है तो क्या करेंगे ? पौष्टिक है परन्तु सात्त्विक नहीं है तो क्या करेंगे ? यह तो सम्भव है कि स्वादिष्ट भोजन पौष्टिक और सात्चिक नहीं भी होता है, पौष्टिक भोजन सात्तिक नहीं भी होता है । उदाहरण के लिये जंक फूड मैदे के पदार्थ, फ्रिज में रखे पदार्थ स्वादिष्ट तो होते हैं परन्तु पौष्टिक और सात्विक नहीं होते । लहसुन, प्याज, मछली आदि पौष्टिक तो होते हैं परन्तु सात्तिक नहीं होते। बुद्धिमान मनुष्य करता है, पोष्टिकता की दूसरे क्रम में और स्वादिष्टता की तीसरे क्रम में । अतः भोजन स्वादिष्ट तो होना चाहिये परन्तु पौष्टिक और सात्तिक तो होना ही चाहिये । सात्त्विक है परन्तु स्वादिष्ट नहीं है तो चलेगा परन्तु स्वादिष्ट है और सात्विक या पौष्टिक नहीं है ऐसा नहीं चलेगा । भोजन पौष्टिक होने पर भी सात्तिक नहीं है तो नहीं चलेगा । सात्त्विक भोजन पौष्टिक होता ही है । अतः स्वाद को प्राथमिकता देना अवैज्ञानिक है, सात्त्विकता को प्राथमिकता देना वैज्ञानिक है ।
 
# अपवित्र मनोभावों से बना, अशुद्ध सामग्री से बना, अनुचित पद्धति से बना भोजन भले ही स्वादिष्ट हो तो भी नहीं खाना चाहिये क्योंकि वह अवैज्ञानिक है ।
 
# अपवित्र मनोभावों से बना, अशुद्ध सामग्री से बना, अनुचित पद्धति से बना भोजन भले ही स्वादिष्ट हो तो भी नहीं खाना चाहिये क्योंकि वह अवैज्ञानिक है ।
 
# भोजन करने का समय, भोजन करने की पद्धति, भोजन की मात्रा, वैज्ञानिक पद्धति से जो निश्चित किये गये हैं उनका अनुसरण करना वैज्ञानिकता है ।
 
# भोजन करने का समय, भोजन करने की पद्धति, भोजन की मात्रा, वैज्ञानिक पद्धति से जो निश्चित किये गये हैं उनका अनुसरण करना वैज्ञानिकता है ।
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* वर्णमाला के, वाक्य के उच्चारण की अशुद्धियों का तो कोई हिसाब ही नहीं।  वर्तनी शुद्ध होने की अपेक्षा ही नहीं की जा सकती। श्रुतलेखन तो क्या अनुलेखन भी नहीं आता है।  
 
* वर्णमाला के, वाक्य के उच्चारण की अशुद्धियों का तो कोई हिसाब ही नहीं।  वर्तनी शुद्ध होने की अपेक्षा ही नहीं की जा सकती। श्रुतलेखन तो क्या अनुलेखन भी नहीं आता है।  
 
* वैज्ञानिक और भौगोलिक तथ्यों की कोई जानकारी नहीं है । इतिहास और समाजशास्त्र से कोई लेनादेना नहीं है।  
 
* वैज्ञानिक और भौगोलिक तथ्यों की कोई जानकारी नहीं है । इतिहास और समाजशास्त्र से कोई लेनादेना नहीं है।  
* हमें क्या खाना चाहिये, कया नहीं खाना चाहिये, क्यों खाना या नहीं खाना चाहिये इसकी कोई सुध नहीं है ।
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* हमें क्या खाना चाहिये, क्या नहीं खाना चाहिये, क्यों खाना या नहीं खाना चाहिये इसकी कोई सुध नहीं है ।
 
* ये सब उत्तीर्ण होने वाले, अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने.वाले विद्यार्थियों के नमूने हैं, अनुस्नातक पदवी प्राप्त.करने वाले, कभी तो पीएचडी प्राप्त करने वाले. विद्यार्थियों के उदाहरण हैं, शिक्षकों के उदाहरण हैं, अच्छे विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों के उदाहरण हैं । सरकारी विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों को तो आठवीं  तक पढ़ने के बाद भी अक्षरज्ञान  या अंकज्ञान नहीं होता है।  
 
* ये सब उत्तीर्ण होने वाले, अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होने.वाले विद्यार्थियों के नमूने हैं, अनुस्नातक पदवी प्राप्त.करने वाले, कभी तो पीएचडी प्राप्त करने वाले. विद्यार्थियों के उदाहरण हैं, शिक्षकों के उदाहरण हैं, अच्छे विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों के उदाहरण हैं । सरकारी विद्यालयों में पढने वाले विद्यार्थियों को तो आठवीं  तक पढ़ने के बाद भी अक्षरज्ञान  या अंकज्ञान नहीं होता है।  
 
* जानकारी तो शिक्षा का प्रथम चरण है । समझना,  उसका मर्म और प्रयोजन जानना, उसे लागू करना आगे के चरण हैं । प्रथम चरण ही ठीक नहीं है तो आगे के और चरणों की तो बात ही नहीं की जा सकती । कोई दो  पाँच प्रतिशत ऐसे होंगे जो तेजस्वी छात्र हैं, अधिकांश तो ऐसे ही है।  
 
* जानकारी तो शिक्षा का प्रथम चरण है । समझना,  उसका मर्म और प्रयोजन जानना, उसे लागू करना आगे के चरण हैं । प्रथम चरण ही ठीक नहीं है तो आगे के और चरणों की तो बात ही नहीं की जा सकती । कोई दो  पाँच प्रतिशत ऐसे होंगे जो तेजस्वी छात्र हैं, अधिकांश तो ऐसे ही है।  
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छोटे से लेकर बडे उपाय इस प्रकार हो सकते हैं.....
 
छोटे से लेकर बडे उपाय इस प्रकार हो सकते हैं.....
# विद्यार्थियों का बस्ता बहुत कम करना चाहिये कम से कम सामग्री से अच्छी से अच्छी पढाई किस प्रकार हो सकती है इसके प्रयोग करने चाहिये और उचित आयु में विद्यार्थियों को भी प्रयोग करने में सहभागी बनाना चाहिये । उदाहरण के लिये रेत में ऊँगली से 'क' लिखा जाता है, भूमि पर खडिया से 'क' लिखा जाता है, पाटी पर पेन से 'क' लिखा जाता है, कागज पर पेंसिल से 'क' लिखा जाता है और टैब पर भी 'क' लिखा जाता है । इसमें आर्थिक और शैक्षिक दोनों दृष्टि से रेत पर ऊँगली से लिखा जानेवाला 'क' सर्वश्रेष्ठ है यह कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति कहेगा । कया विद्यालय इस पद्धति को अपना सकेंगे ? खर्च बहुत ही कम हो जायेगा । हाँ, कम्प्यूटर बेचने वाली कम्पनियाँ इसके विस्द्ध लोगों को भडकाने का और शासन के शिक्षा विभाग को 'पटाने' का अभियान अवश्य छेडेंगी ।  
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# विद्यार्थियों का बस्ता बहुत कम करना चाहिये कम से कम सामग्री से अच्छी से अच्छी पढाई किस प्रकार हो सकती है इसके प्रयोग करने चाहिये और उचित आयु में विद्यार्थियों को भी प्रयोग करने में सहभागी बनाना चाहिये । उदाहरण के लिये रेत में ऊँगली से 'क' लिखा जाता है, भूमि पर खडिया से 'क' लिखा जाता है, पाटी पर पेन से 'क' लिखा जाता है, कागज पर पेंसिल से 'क' लिखा जाता है और टैब पर भी 'क' लिखा जाता है । इसमें आर्थिक और शैक्षिक दोनों दृष्टि से रेत पर ऊँगली से लिखा जानेवाला 'क' सर्वश्रेष्ठ है यह कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति कहेगा । क्या विद्यालय इस पद्धति को अपना सकेंगे ? खर्च बहुत ही कम हो जायेगा । हाँ, कम्प्यूटर बेचने वाली कम्पनियाँ इसके विस्द्ध लोगों को भडकाने का और शासन के शिक्षा विभाग को 'पटाने' का अभियान अवश्य छेडेंगी ।  
 
# शैक्षिक सामग्री का कम से कम व्यय हो इसका हिसाब प्रत्येक छात्र को करना ही होगा । एक पेंसिल कितने दिन चलती है, एक कंपास कितने दिन अच्छी स्थिति में रहती है, जूते मोजे, गणवेश, बस्ता, पुस्तकें कितने अधिक दिन सुस्थिति में रहते हैं इसका हिसाब रखना सिखाना चाहिये । पुस्तकों का एक संच दो या तीन वर्षों तक चलना चाहये ऐसा मानक भी विद्यालय बना सकते हैं ।  
 
# शैक्षिक सामग्री का कम से कम व्यय हो इसका हिसाब प्रत्येक छात्र को करना ही होगा । एक पेंसिल कितने दिन चलती है, एक कंपास कितने दिन अच्छी स्थिति में रहती है, जूते मोजे, गणवेश, बस्ता, पुस्तकें कितने अधिक दिन सुस्थिति में रहते हैं इसका हिसाब रखना सिखाना चाहिये । पुस्तकों का एक संच दो या तीन वर्षों तक चलना चाहये ऐसा मानक भी विद्यालय बना सकते हैं ।  
 
# कागज का कम से कम उपयोग करना, पीठकोरे कागजों की कापी बनाना, फटे कागजों का पुनरुपयोग करना आदि वस्तुओं के उपयोग, पुनरुपयोग करने की और दुरुपयोग को टालने की व्यावहारिक शिक्षा देनी चाहिये ।
 
# कागज का कम से कम उपयोग करना, पीठकोरे कागजों की कापी बनाना, फटे कागजों का पुनरुपयोग करना आदि वस्तुओं के उपयोग, पुनरुपयोग करने की और दुरुपयोग को टालने की व्यावहारिक शिक्षा देनी चाहिये ।

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