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छोटे से लेकर बडे उपाय इस प्रकार हो सकते हैं.....
 
छोटे से लेकर बडे उपाय इस प्रकार हो सकते हैं.....
 
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# विद्यार्थियों का बस्ता बहुत कम करना चाहिये कम से कम सामग्री से अच्छी से अच्छी पढाई किस प्रकार हो सकती है इसके प्रयोग करने चाहिये और उचित आयु में विद्यार्थियों को भी प्रयोग करने में सहभागी बनाना चाहिये । उदाहरण के लिये रेत में ऊँगली से 'क' लिखा जाता है, भूमि पर खडिया से 'क' लिखा जाता है, पाटी पर पेन से 'क' लिखा जाता है, कागज पर पेंसिल से 'क' लिखा जाता है और टैब पर भी 'क' लिखा जाता है । इसमें आर्थिक और शैक्षिक दोनों दृष्टि से रेत पर ऊँगली से लिखा जानेवाला 'क' सर्वश्रेष्ठ है यह कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति कहेगा । कया विद्यालय इस पद्धति को अपना सकेंगे ? खर्च बहुत ही कम हो जायेगा । हाँ, कम्प्यूटर बेचने वाली कम्पनियाँ इसके विस्द्ध लोगों को भडकाने का और शासन के शिक्षा विभाग को 'पटाने' का अभियान अवश्य छेडेंगी ।  
१. विद्यार्थियों का बस्ता बहुत कम करना चाहिये कम से कम सामग्री से अच्छी से अच्छी पढाई किस प्रकार हो सकती है इसके प्रयोग करने चाहिये और उचित आयु में विद्यार्थियों को भी प्रयोग करने में सहभागी बनाना चाहिये ।  
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# शैक्षिक सामग्री का कम से कम व्यय हो इसका हिसाब प्रत्येक छात्र को करना ही होगा । एक पेंसिल कितने दिन चलती है, एक कंपास कितने दिन अच्छी स्थिति में रहती है, जूते मोजे, गणवेश, बस्ता, पुस्तकें कितने अधिक दिन सुस्थिति में रहते हैं इसका हिसाब रखना सिखाना चाहिये । पुस्तकों का एक संच दो या तीन वर्षों तक चलना चाहये ऐसा मानक भी विद्यालय बना सकते हैं ।  
 
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# कागज का कम से कम उपयोग करना, पीठकोरे कागजों की कापी बनाना, फटे कागजों का पुनरुपयोग करना आदि वस्तुओं के उपयोग, पुनरुपयोग करने की और दुरुपयोग को टालने की व्यावहारिक शिक्षा देनी चाहिये ।
उदाहरण के लिये रेत में ऊँगली से 'क' लिखा जाता है, भूमि पर खडिया से 'क' लिखा जाता है, पाटी पर पेन से 'क' लिखा जाता है, कागज पर पेंसिल से 'क' लिखा जाता है और टैब पर भी 'क' लिखा जाता है । इसमें आर्थिक और शैक्षिक दोनों दृष्टि से रेत पर ऊँगली से लिखा जानेवाला 'क' सर्वश्रेष्ठ है यह कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति कहेगा । कया
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# कम पानी में अच्छा स्नान करना, कम पानी में अच्छे कपड़े धोना, गंदे पानी का भी अच्छा उपयोग करना सिखाना चाहिये ।
 
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# व्यावहारिक और मानसिकता की शिक्षा के साथ साथ ज्ञानात्मक पक्ष को भी जोडना चाहिये आलू के वेफर का एक पैकेट लेकर कीमत का हिसाब लगाना चाहिये । एक किलो आलू पाँच रूपये में मिलता है, एक किलो वेफर एक सौ रूपये में मिलता है । पंचानवे रूपयों का क्या हिसाब है ? किस किस मद में यह कींमत विभाजित होती है । उनमें से कौन से मद उचित हैं और कौन से अनुचित इसका विवेक सिखाना चाहिये । तब फिर आलू के बेफर घर में बनाने से क्या होगा इसका विचार भी करना चाहिये | घर में क्यों नहीं बनाते, पैकिंग का पैसा क्यों खर्च करते हैं इसकी चर्चा भी होनी चाहिये ।
विद्यालय इस पद्धति को अपना सकेंगे ? खर्च बहुत ही कम हो जायेगा । हाँ, कम्प्यूटर बेचने वाली कम्पनियाँ इसके विस्द्ध लोगों को भडकाने का और शासन के शिक्षा विभाग को “पटाने का अभियान अवश्य छेडेंगी ।  
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# बडी आयु में अब यह सब पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिये । देश गरीब क्यों है, गरीब है कि गरीब कहा जाता है, देशों को गरीब और अमीर मानने के मापदृण्ड कौन से हैं, ये किसने बनाये हैं, ये किस आधार पर नने हैं, क्या हमें ये मापदण्ड मान्य हैं, आदि विषयों की चर्चा केवल अर्थशास्त्र के विद्यार्थी ही करें यह पर्याप्त नहीं है। यह सबकी चिन्ता का विषय है ।
 
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# देश की समृद्धि के आधार कौन से होते हैं इसका विचार करने पर तीन बातें ध्यान में आती हैं । एक है प्रकृति सम्पदा, दूसरी है मनुष्य की बुद्धि और तीसरी है मनुष्य के हाथों की कुशलता । भारत की प्रकृति सम्पदा विश्व में सबसे अधिक है यह तो अनेक रूपों में सिद्ध हुआ है। भारत के मनुष्य के हाथों ने अदूभुत कारीगरी के नमूने दिये हैं और भारत के मनीषियों की बुद्धि ने उत्पादन, वितरण और उपभोग का अदूभुत सामंजस्य बिठाया है। यहाँ उसकी विस्तार से चर्चा करना सम्भव नहीं है परन्तु भारत का आर्थिक इतिहास सरलता से पढने को मिलता है। इन तीन संसाधनों का धर्म के अविरोधी उपयोग करने पर चिरस्थायी समृद्धि प्राप्त हो सकती है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण स्वयं भारत ही है और भारत जैसा और कोई नहीं है । भारत के विद्यालयों में भारत के शिक्षकों को भारत के विद्यार्थियों को ऐसा अर्थशास्त्र पढाना चाहिये और विद्यालय की तथा घर की व्यवस्था इसके अनुसार करनी चाहिये ।
२. शैक्षिक सामग्री का कम से कम व्यय हो इसका हिसाब प्रत्येक छात्र को करना ही होगा । एक पेंसिल कितने दिन चलती है, एक कंपास कितने दिन अच्छी स्थिति में रहती है, जूते मोजे, गणवेश, बस्ता, पुस्तकें कितने अधिक दिन सुस्थिति में रहते हैं इसका हिसाब रखना सिखाना चाहिये । पुस्तकों का एक संच दो या तीन वर्षों तक चलना चाहये ऐसा मानक भी विद्यालय बना सकते हैं ।  
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# विद्यार्थियों और शिक्षकों के व्यवहार में और मानस में बैठने के बाद इसे शिक्षाक्षेत्र में व्यापक रूप देना चाहिये । अन्य विद्यालयों के साथ, शिक्षकों के सम्मेलनों और परिषदों में, लेखों और प्रदर्शनियों के माध्यम से इसकी व्यापक चर्चा होनी चाहिये । समारोहों में इसके प्रयोग करने के आदर्श दिखाई देने चाहिये । भारत के लोगों की बुद्धि इस दिशा में बहुत चलेगी क्योंकि भारत के स्वभाव का यह अंग है । अभी अज्ञान और विपरीत ज्ञान का जो आवरण चढ़ गया है उसे दूर होने में देर नहीं लगेगी |
 
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# लोगों के व्यवहार में और मानस में बैठने के साथ साथ यह लोगों की अथर्जिन की और स्वरूप क्‍या है, इसके निहितार्थ क्या हैं और इसके अर्थविनियोग की पद्धति में आना चाहिये, बेरोजगारी, परिणाम क्या होंगे यह समझना आवश्यक है । इस गरीबी, बाजार, आर्थिक शोषण आदि मुद्दों को स्पर्श विनाश से बचने का और दुनिया को बचाने का मार्ग करना चाहिये । देश की आर्थिक समस्याओं के भारत के पास है यह बात भी समझ में आने लगेगी | ज्ञानात्मक और भावात्मक हल खोजने का काम इस प्रकार आर्थिक दृष्टि और व्यवहार का यह विषय विद्यार्थियों और शिक्षकों को मिलकर करना चाहिये ।.... केवल विद्यार्थियों तक सीमित नहीं रह सकता । यह संकट इसके साथ ही देश की अर्थव्यवस्था, अर्थनीति आदि... पूर्ण रूप से मूलगामी है । इसका विचार भी इसी पद्धति से समझने की आवश्यकता है । धर्मनिष्ठता के स्थान पर... होना आवश्यक है । विद्यालय को यह करना चाहिये । यह अर्थनिष्ठता कैसे आ गई इसकी प्रक्रिया जाननी... शिक्षाक्षेत्र से जुडे सभी घटकों का राष्ट्रीय कर्तव्य है । चाहिये । आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका के वर्चस्व का स्वरूप क्या है, इसके निहितार्थ क्या है और इसके परिणाम क्या होंगे यह समज़ना आवश्यक है। इस विनाश से बचने का और दुनिया को बचाने का मार्ग भारत के पास है यह बात भी समज में आने लगेगी।  
३. कागज का कम से कम उपयोग करना, पीठकोरे कागजों की कापी बनाना, फटे कागजों का पुनरुपयोग करना आदि वस्तुओं के उपयोग, पुनरुपयोग करने की और दुरुपयोग को टालने की व्यावहारिक शिक्षा देनी चाहिये ।
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४. कम पानी में अच्छा स्नान करना, कम पानी में अच्छे कपड़े धोना, गंदे पानी का भी अच्छा उपयोग करना सिखाना चाहिये ।
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५. व्यावहारिक और मानसिकता की शिक्षा के साथ साथ ज्ञानात्मक पक्ष को भी जोडना चाहिये आलू के वेफर का एक पैकेट लेकर कीमत का हिसाब लगाना चाहिये । एक किलो आलू पाँच रूपये में मिलता है, एक किलो वेफर एक सौ रूपये में मिलता है । पंचानवे रूपयों का क्या हिसाब है ? किस किस मद में यह कींमत विभाजित होती है । उनमें से कौन से मद उचित हैं और कौन से अनुचित इसका विवेक सिखाना चाहिये । तब फिर आलू के बेफर घर में बनाने से क्या होगा इसका विचार भी करना चाहिये | घर में क्यों नहीं बनाते, पैकिंग का पैसा क्यों खर्च करते हैं इसकी चर्चा भी होनी चाहिये ।
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६. बडी आयु में अब यह सब पाठ्यक्रम का हिस्सा बनना चाहिये । देश गरीब क्यों है, गरीब है कि गरीब कहा जाता है, देशों को गरीब और अमीर मानने के मापदृण्ड कौन से हैं, ये किसने बनाये हैं, ये किस आधार पर नने हैं, क्या हमें ये मापदण्ड मान्य हैं, आदि विषयों की चर्चा केवल अर्थशास्त्र के विद्यार्थी ही करें यह पर्याप्त नहीं है। यह सबकी चिन्ता का विषय है ।
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७. देश की समृद्धि के आधार कौन से होते हैं इसका विचार करने पर तीन बातें ध्यान में आती हैं । एक है प्रकृति सम्पदा, दूसरी है मनुष्य की बुद्धि और तीसरी है मनुष्य के हाथों की कुशलता । भारत की प्रकृति सम्पदा विश्व में सबसे अधिक है यह तो अनेक रूपों में सिद्ध हुआ है। भारत के मनुष्य के हाथों ने अदूभुत कारीगरी के नमूने दिये हैं और भारत के मनीषियों की बुद्धि ने उत्पादन, वितरण और उपभोग का अदूभुत सामंजस्य बिठाया है। यहाँ उसकी विस्तार से चर्चा करना सम्भव नहीं है परन्तु भारत का आर्थिक इतिहास सरलता से पढने को मिलता है। इन तीन संसाधनों का धर्म के अविरोधी उपयोग करने पर चिरस्थायी समृद्धि प्राप्त हो सकती है इसका प्रत्यक्ष उदाहरण स्वयं भारत ही है और भारत जैसा और कोई नहीं है । भारत के विद्यालयों में भारत के शिक्षकों को भारत के विद्यार्थियों को ऐसा अर्थशास्त्र पढाना चाहिये और विद्यालय की तथा घर की व्यवस्था इसके अनुसार करनी चाहिये ।
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८. विद्यार्थियों और शिक्षकों के व्यवहार में और मानस में बैठने के बाद इसे शिक्षाक्षेत्र में व्यापक रूप देना चाहिये । अन्य विद्यालयों के साथ, शिक्षकों के सम्मेलनों और परिषदों में, लेखों और प्रदर्शनियों के माध्यम से इसकी व्यापक चर्चा होनी चाहिये । समारोहों में इसके प्रयोग करने के आदर्श दिखाई देने चाहिये । भारत के लोगों की बुद्धि इस दिशा में बहुत चलेगी क्योंकि भारत के स्वभाव का यह अंग है । अभी अज्ञान और विपरीत ज्ञान का जो आवरण चढ़ गया है उसे दूर होने में देर नहीं लगेगी |
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९. लोगों के व्यवहार में और मानस में बैठने के साथ साथ यह लोगों की अथर्जिन की और स्वरूप क्‍या है, इसके निहितार्थ क्या हैं और इसके अर्थविनियोग की पद्धति में आना चाहिये, बेरोजगारी, परिणाम क्या होंगे यह समझना आवश्यक है । इस गरीबी, बाजार, आर्थिक शोषण आदि मुद्दों को स्पर्श विनाश से बचने का और दुनिया को बचाने का मार्ग करना चाहिये । देश की आर्थिक समस्याओं के भारत के पास है यह बात भी समझ में आने लगेगी | ज्ञानात्मक और भावात्मक हल खोजने का काम इस प्रकार आर्थिक दृष्टि और व्यवहार का यह विषय विद्यार्थियों और शिक्षकों को मिलकर करना चाहिये ।.... केवल विद्यार्थियों तक सीमित नहीं रह सकता । यह संकट इसके साथ ही देश की अर्थव्यवस्था, अर्थनीति आदि... पूर्ण रूप से मूलगामी है । इसका विचार भी इसी पद्धति से समझने की आवश्यकता है । धर्मनिष्ठता के स्थान पर... होना आवश्यक है । विद्यालय को यह करना चाहिये । यह अर्थनिष्ठता कैसे आ गई इसकी प्रक्रिया जाननी... शिक्षाक्षेत्र से जुडे सभी घटकों का राष्ट्रीय कर्तव्य है । चाहिये । आर्थिक क्षेत्र में अमेरिका के वर्चस्व का स्वरूप क्या है, इसके निहितार्थ क्या है और इसके परिणाम क्या होंगे यह समज़ना आवश्यक है। इस विनाश से बचने का और दुनिया को बचाने का मार्ग भारत के पास है यह बात भी समज में आने लगेगी।  
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इस प्रकार आर्थिक दृष्टी और व्यव्हार का यह विषय केवल विद्यार्थियों तक सीमित नहीं रह सकता। यह संकट पूर्ण रूप से मूलगामी है। इसका विचार भी इसी पद्धति से होना आवश्यक है। विद्यालय को यह करना चाहिए। यह शिक्षाक्षेत्र से जुड़े सभी घटकों का राष्ट्रीय कर्त्तव्य है।  
 
इस प्रकार आर्थिक दृष्टी और व्यव्हार का यह विषय केवल विद्यार्थियों तक सीमित नहीं रह सकता। यह संकट पूर्ण रूप से मूलगामी है। इसका विचार भी इसी पद्धति से होना आवश्यक है। विद्यालय को यह करना चाहिए। यह शिक्षाक्षेत्र से जुड़े सभी घटकों का राष्ट्रीय कर्त्तव्य है।  
  
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