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=== विद्यालय अपने विद्यार्थियों को क्या सिखाए ? ===
=== विद्यालय अपने विद्यार्थियों को क्या सिखाए ? ===
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इस दृष्टि से विद्यालय अपने विद्यार्थियों को क्या
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इस दृष्टि से विद्यालय अपने विद्यार्थियों को क्या सिखायें ?
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सिखायें ?
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घर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । घर में रहना सबके लिये अनिवार्य है । घर में रहना सबको अच्छा लगना चाहिये ।
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श्,
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घर में सबको साथ साथ न केवल रहना है, साथ साथ जीना भी है । रहना भी आज तो नहीं होता । व्यवसाय ने बड़ों को और शिक्षा ने छोटों को ग्रस लिया है । सब इतने व्यस्त हो गये हैं कि साथ रहना, समय बिताना, हास्यविनोद करना दूभर हो गया है । विद्यालयों में सिखाना चाहिये कि दोनों अपनी अपनी व्यस्तता कम करें और एकदूसरे के साथ अधिक समय बितायें । इस दृष्टि से टी.वी. और मोबाइल भी एक बडा अवरोध है जिसे कठोरतापूर्वक नियन्त्रण में रखना सिखाना चाहिये ।
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घर अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है । घर में रहना सबके
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साथ साथ रहना तो समझ में आता है परन्तु साथ जीना अब लोगों को समझ में नहीं आता । एक तीसरी कक्षा में पढने वाली बालिका एक दिन घर आकर अपनी दादीमाँ को वर्षा कैसे होती है यह समझाती है क्योंकि आज विद्यालय में यह सिखाया गया है । दादीमाँ यह नहीं कहती कि मुझे सब पता है । वह पोती से सीखती है । विद्यालय की सारी बातों की चर्चा भोजन की टेबल पर होती है । पिताजी के कार्यालय की बातें भी होती है । टीवी की भी होती है । हास्यविनोद, मार्गदर्शन, नियमन, नियन्त्रण सब कुछ होता है । एकदूसरे में रुचि बढती है । ऐसा साथ जीना आज असम्भव सा हो गया है । संवाद ही नहीं होता है । घर में रहनेवालों की हरेक की दुनिया अलग अलग हो गई है । घर के सब लोग साथ जीयें यह देखना मातापिता का काम है परन्तु ऐसे मातापिता बनने हेतु प्रेरित करना विद्यालयों का काम है ।
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लिये अनिवार्य है । घर में रहना सबको अच्छा लगना
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घर में रहनेवाले तीन मास के, तीन वर्ष के तेरह वर्ष के, सत्रह वर्ष के, पचास वर्ष के और पचहत्तर वर्ष की आयु के लोग एक साथ रहते हैं । विद्यालय के तेरह वर्ष की आयु के, महाविद्यलय के अठारह वर्ष की आयु के विद्यार्थियों को इन सबके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिये ? अठारह वर्ष का छात्र स्वयं तीस वर्ष का होगा तब क्या करेगा ? अठारह से तीस वर्ष का होने के बीच में क्या क्या होगा और उस समय उसकी भूमिका क्या रहेगी आदि सब विद्यार्थियों को सीखने को मिलना अति आवश्यक है । वर्तमान समय में घर में यह सीखने को नहीं मिलता है, अब भविष्य के लिये विद्यार्थियों को विद्यालय में सीखने को मिलना चाहिये । हो सकता है कि दो पीढ़ियों के बाद यह सारी शिक्षा घर में स्थानान्तरित हो जाय ।
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चाहिये ।
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एक बहुत बडा अनर्थ आज फैल रहा है । आज के युवक युवतियों की जनन क्षमता का भयानक गति से क्षरण हो रहा है । जन्म लेने वाली भावी पीढी का जीवन ही संकट में पड गया है । अर्थात् जैविक अर्थ में भी युवकयुवतियों की मातापिता बनने की क्षमता कम हो रही है । सांस्कृतिक अर्थ में तो मातापिता बनना वे कब के भूल चुके हैं । इससे तो आज संकट निर्माण हो रहे हैं । इस संकट से आज की पीढ़ी को और उसके साथ ही भावी पीढी को भी बचाने का काम आज विद्यालयों को करना चाहिये । विद्यालयों में नये विषय जोडना, विद्यालयों की कार्यपद्धति बदलना, यान्त्रिकता कम करना, मानवीयता बढाना अत्यन्त आवश्यक बन गया है । महाविद्यालयों को इस सन्दर्भ में अध्ययन और अनुसंधान की योजना भी बनाने की आवश्यकता है ।
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घर में सबको साथ साथ न केवल रहना है, साथ साथ
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गृहजीवन के सन्दर्भ में और एक विषय चिन्ताजनक है । घर के सारे काम अब अत्यन्त हेय माने जाने लगे हैं । पढे लिखे और कमाई करने वाले इन्हें नहीं कर सकते । इन्हें करने के लिये नौकर ही चाहिये ऐसी मानसिकता पक्की बनती जा रही है । यहाँ तक कि भोजन बनाने का और खिलाने का काम भी नीचा ही माना जाने लगा है । वृद्धों की परिचर्या करने का काम नर्स का, भोजन बनाने का काम रसोइये का, बच्चों को सम्हालने का काम आया का, बच्चों को पढ़ाने का काम शिक्षक का, घर के अन्य काम करने का काम नौकर का, बगीचा सम्हालने का काम माली का होता है । इनमें से एक भी काम घर के लोगों को नहीं करना है । खरीदी ओन लाइन करना, आवश्यकता पड़ने पर होटेल से भोजन मँगवाना, महेमानों की खातिरदारी होटेल में ले जाकर करना, जन्मदिन, सगाई आदि मनाने के लिये ठेका देना आदि का प्रचलन बढ गया है । अर्थात् गृहजीवन सक्रिय रूप से जीना नहीं है, घर में भी होटेल की तरह रहना है । इस पद्धति से रहने में घर घर नहीं रहता । इसका उपाय क्या है ? प्रथम तो मानसिकता में परिवर्तन करने की आवश्यकता है । घर के काम अच्छे हैं, अच्छे लोगों को करने लायक हैं, अच्छी तरह से करने लायक हैं यह मन में बिठाना चाहिये । ये सब काम करना सिखाना भी चाहिये । थोडी बडी आयु में ऐसा करने के कितने प्रकार के लाभ हैं यह भी सिखाना चाहिये ।
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जीना भी है । रहना भी आज तो नहीं होता । व्यवसाय
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जीवन की कौन सी आयु में कया क्या होता है और उसके अनुरूप क्या क्या करना होता है यह सिखाना महत्त्वपूर्ण विषय है । उदाहरण के लिये
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* सात वर्ष की आयु तक औपचारिक शिक्षा शुरू करना लाभदायी नहीं है ।
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ने बड़ों को और शिक्षा ने छोटों को ग्रस लिया है । सब
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* पन्द्रह वर्ष की आयु तक घर के सारे काम अच्छी तरह करना लडके-लडकियाँ दोनों को आ जाना चाहिये ।
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* बीस वर्ष की आयु तक लडकियों की और पचीस तक लडकों की शादी हो जाना अच्छा है ।
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इतने व्यस्त हो गये हैं कि साथ रहना, समय बिताना,
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* बत्तीस से पैंतीस वर्ष की आयु तक दो तीन बच्चों के मातापिता बन जाना अच्छा है ।
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* एक ही सन्तान होना कभी भी अच्छ नहीं है, दो या तीन तो होने ही चाहिये ।
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हास्यविनोद करना दूभर हो गया है । विद्यालयों में
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* साठ वर्ष की आयु में सभी सांसारिक दायित्वों से मुक्त होकर वानप्रस्थ हो जाना अत्यन्त लाभकारी है। वानप्रस्थ अवस्था में समाजसेवा करना अनिवार्य मानना चाहिये ।
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* घर की अर्थव्यवस्था में दान और बचत को अनिवार्य मानना चाहिये ।
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सिखाना चाहिये कि दोनों अपनी अपनी व्यस्तता कम
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* घर में स्वाध्याय और सत्संग होने ही चाहिये ।
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गृहस्थाश्रम की इस प्रकार की शिक्षा विद्यालयों में देने से ही घर बचेंगे । घर बचेंगे तो संस्कृति बचेगी ।
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करें और एकदूसरे के साथ अधिक समय बितायें । इस
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दृष्टि से टी.वी. और मोबाइल भी एक बडा अवरोध है
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जिसे कठोरतापूर्वक नियन्त्रण में रखना सिखाना
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चाहिये ।
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साथ साथ रहना तो समझ में आता है परन्तु साथ जीना
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अब लोगों को समझ में नहीं आता ।
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एक तीसरी कक्षा में पढने वाली बालिका एक दिन
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घर आकर अपनी दादीमाँ को वर्षा कैसे होती है यह
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समझाती है क्योंकि आज विद्यालय में यह सिखाया
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गया है । दादीमाँ यह नहीं कहती कि मुझे सब पता
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है । वह पोती से सीखती है । विद्यालय की सारी बातों
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की चर्चा भोजन की टेबल पर होती है । पिताजी के
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कार्यालय की बातें भी होती है । टीवी की भी होती
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है । हास्यविनोद, मार्गदर्शन, नियमन, नियन्त्रण सब
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कुछ होता है । एकदूसरे में रुचि बढती है ।
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ऐसा साथ जीना आज असम्भव सा हो गया है ।
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संवाद ही नहीं होता है । घर में रहनेवालों की हरेक की
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दुनिया अलग अलग हो गई है ।
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घर के सब लोग साथ जीयें यह देखना मातापिता का
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काम है परन्तु ऐसे मातापिता बनने हेतु प्रेरित करना
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विद्यालयों का काम है ।
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घर में रहनेवाले तीन मास के, तीन वर्ष के तेरह वर्ष
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के, सत्रह वर्ष के, पचास वर्ष के और पचहत्तर वर्ष की
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आयु के लोग एक साथ रहते हैं । विद्यालय के तेरह
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वर्ष की आयु के, महाविद्यलय के अठारह वर्ष की
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आयु के विद्यार्थियों को इन सबके साथ कैसा व्यवहार
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करना चाहिये ? अठारह वर्ष का छात्र स्वयं तीस वर्ष
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का होगा तब क्या करेगा ? अठारह से तीस वर्ष का
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होने के बीच में क्या क्या होगा और उस समय उसकी
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भूमिका क्या रहेगी आदि सब विद्यार्थियों को सीखने
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को मिलना अति आवश्यक है । वर्तमान समय में घर
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में यह सीखने को नहीं मिलता है, अब भविष्य के
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लिये विद्यार्थियों को विद्यालय में सीखने को मिलना
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चाहिये । हो सकता है कि दो पीढ़ियों के बाद यह सारी
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शिक्षा घर में स्थानान्तरित हो जाय ।
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एक बहुत बडा अनर्थ आज फैल रहा है । आज के
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युवक युवतियों की जनन क्षमता का भयानक गति से
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क्षरण हो रहा है । जन्म लेने वाली भावी पीढी का
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जीवन ही संकट में पड गया है । अर्थात् जैविक अर्थ में
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भी युवकयुवतियों की मातापिता बनने की क्षमता कम
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हो रही है । सांस्कृतिक अर्थ में तो मातापिता बनना वे
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कब के भूल चुके हैं । इससे तो आज संकट निर्माण हो
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रहे हैं । इस संकट से आज की पीढ़ी को और उसके
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साथ ही भावी पीढी को भी बचाने का काम आज
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विद्यालयों को करना चाहिये । विद्यालयों में नये विषय
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जोडना, विद्यालयों की कार्यपद्धति बदलना, यान्त्रिकता
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कम करना, मानवीयता बढाना अत्यन्त आवश्यक बन
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गया है । महाविद्यालयों को इस सन्दर्भ में अध्ययन
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और अनुसंधान की योजना भी बनाने की आवश्यकता
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है ।
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गृहजीवन के सन्दर्भ में और एक विषय चिन्ताजनक
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है । घर के सारे काम अब अत्यन्त हेय माने जाने लगे
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हैं । पढे लिखे और कमाई करने वाले इन्हें नहीं कर
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सकते । इन्हें करने के लिये नौकर ही चाहिये ऐसी
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मानसिकता पक्की बनती जा रही है । यहाँ तक कि
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भोजन बनाने का और खिलाने का काम
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भी नीचा ही माना जाने लगा है । वृद्धों की परिचर्या
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करने का काम नर्स का, भोजन बनाने का काम रसोइये
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का, बच्चों को सम्हालने का काम आया का, बच्चों
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को पढ़ाने का काम शिक्षक का, घर के अन्य काम
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करने का काम नौकर का, बगीचा सम्हालने का काम
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माली का होता है । इनमें से एक भी काम घर के लोगों
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को नहीं करना है । खरीदी ओन लाइन करना,
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आवश्यकता पड़ने पर होटेल से भोजन मँगवाना,
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महेमानों की खातिरदारी होटेल में ले जाकर करना,
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जन्मदिन, सगाई आदि मनाने के लिये ठेका देना आदि
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का प्रचलन बढ गया है । अर्थात् गृहजीवन सक्रिय रूप
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से जीना नहीं है, घर में भी होटेल की तरह रहना है ।
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इस पद्धति से रहने में घर घर नहीं रहता । इसका उपाय
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क्या है ? प्रथम तो मानसिकता में परिवर्तन करने की
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आवश्यकता है । घर के काम अच्छे हैं, अच्छे लोगों
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को करने लायक हैं, अच्छी तरह से करने लायक हैं
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यह मन में बिठाना चाहिये । ये सब काम करना
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सिखाना भी चाहिये । थोडी बडी आयु में ऐसा करने के
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कितने प्रकार के लाभ हैं यह भी सिखाना चाहिये ।
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जीवन की कौन सी आयु में कया क्या होता है और
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उसके अनुरूप क्या क्या करना होता है यह सिखाना
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महत्त्वपूर्ण विषय है । उदाहरण के लिये
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सात वर्ष की आयु तक औपचारिक शिक्षा शुरू करना
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लाभदायी नहीं है ।
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पन्द्रह वर्ष की आयु तक घर के सारे काम अच्छी तरह
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करना लडके-लडकियाँ दोनों को आ जाना चाहिये ।
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बीस वर्ष की आयु तक लडकियों की और पचीस तक
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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लडकों की शादी हो जाना अच्छा है ।
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बत्तीस से पैंतीस वर्ष की आयु तक दो तीन बच्चों के
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मातापिता बन जाना अच्छा है ।
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एक ही सन्तान होना कभी भी अच्छ नहीं है, दो या
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तीन तो होने ही चाहिये ।
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साठ वर्ष की आयु में सभी सांसारिक दायित्वों से मुक्त
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होकर वानप्रस्थ हो जाना अत्यन्त लाभकारी है।
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वानप्रस्थ अवस्था में समाजसेवा करना अनिवार्य
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मानना चाहिये ।
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घर की अर्थव्यवस्था में दान और बचत को अनिवार्य
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मानना चाहिये ।
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घर में स्वाध्याय और सत्संग होने ही चाहिये ।
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गृहस्थाश्रम की इस प्रकार की शिक्षा विद्यालयों में देने
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से ही घर बचेंगे । घर बचेंगे तो संस्कृति बचेगी ।
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