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==== वैज्ञानिकता क्या है ====
 
==== वैज्ञानिकता क्या है ====
आज के युग को विज्ञान का युग कहा जाता है।
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आज के युग को विज्ञान का युग कहा जाता है। विज्ञान ने बहुत प्रगति की है, मनुष्य का जीवन सुविधाओं से भर गया है, अनेक प्रकार के यंत्रों का आविष्कार हुआ है आदि सब कहकर विज्ञान की स्तुति की जाती है । विज्ञान अंधश्रद्धा का उन्मूलन करता है कहकर विज्ञान का सम्मान किया जाता है । आज सबकुछ वैज्ञानिक होना चाहिये ऐसा अग्रहपूर्वक कहा जाता है । शिखा रखनी चाहिये कि नहीं, तिलक करना चाहिये कि नहीं इससे लेकर मन्दिर में दर्शन करने हेतु जाना चाहिये कि नहीं, भगवान के समक्ष दीपक जलाना चाहिये कि नहीं इसकी चर्चा की जाती है। अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय करना चाहिये ऐसा कहा जाता है । अकेला अध्यात्म नहीं चलेगा, विज्ञान तो होना ही चाहिये ऐसा कहा जाता है । अतः वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय बन गया है ।
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विज्ञान ने बहुत प्रगति की है, मनुष्य का जीवन सुविधाओं
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परन्तु आज इसे समझने में और उसके अनुसार व्यवहार करने में अनेक प्रकार की गम्भीर स्वरूप की भ्रान्तियाँ फैल गई है । वैज्ञानिकता की दुहाई देकर घोर अवैज्ञानिक व्यवहार किया जाता है। इस स्थिति में वैज्ञानिक दृष्टिकोण और व्यवहार के सम्बन्ध में स्पष्टता होना आवश्यक है ।
 
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से भर गया है, अनेक प्रकार के यंत्रों का आविष्कार हुआ है
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आदि सब कहकर विज्ञान की स्तुति की जाती है । विज्ञान
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अंधश्रद्धा का उन्मूलन करता है कहकर विज्ञान का सम्मान
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किया जाता है । आज सबकुछ वैज्ञानिक होना चाहिये ऐसा
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अग्रहपूर्वक कहा जाता है । शिखा रखनी चाहिये कि नहीं,
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तिलक करना चाहिये कि नहीं इससे लेकर मन्दिर में दर्शन
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करने हेतु जाना चाहिये कि नहीं, भगवान के समक्ष दीपक
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जलाना चाहिये कि नहीं इसकी चर्चा की जाती है।
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अध्यात्म और विज्ञान का समन्वय करना चाहिये ऐसा कहा
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जाता है । अकेला अध्यात्म नहीं चलेगा, विज्ञान तो होना
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ही चाहिये ऐसा कहा जाता है । अतः वैज्ञानिक दृष्टिकोण
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का विकास करना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय बन गया है ।
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परन्तु आज इसे समझने में और उसके अनुसार
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व्यवहार करने में अनेक प्रकार की गम्भीर स्वरूप की
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भ्रान्तियाँ फैल गई है । वैज्ञानिकता की दुहाई देकर घोर
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अवैज्ञानिक व्यवहार किया जाता है। इस स्थिति में
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वैज्ञानिक दृष्टिकोण और व्यवहार के सम्बन्ध में स्पष्टता
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होना आवश्यक है ।
      
हम कुछ इस प्रकार विचार कर सकते हैं
 
हम कुछ इस प्रकार विचार कर सकते हैं
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०... वैज्ञानिक दृष्टिकोण और विज्ञानसम्मत व्यवहार होना
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०... वैज्ञानिक दृष्टिकोण और विज्ञानसम्मत व्यवहार होना ही चाहिय इसमें कोई आपत्ति नहीं है, केवल हमारी समझ ठीक होने की आवश्यकता है ।
 
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ही चाहिय इसमें कोई आपत्ति नहीं है, केवल हमारी
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समझ ठीक होने की आवश्यकता है ।
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०... आज जि्सि विज्ञान कहा जाता है वह केवल भौतिक
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विज्ञान है। भौतिक विज्ञान का सम्बन्ध केवल
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पंचमहाभूतात्मक पदार्थों से होता है । इसलिये उसे
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पदार्थविज्ञान भी कहा जाता है । परन्तु सृष्टि में केवल
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पंचमहाभूत ही नहीं है । उनके अलावा प्राण, मन,
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बुद्धि, अहंकार, चित्त आदि भी हैं । सृष्टि के व्यवहार
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को ये सारे तत्त्व परिचालित करते हैं। उनमें भी
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विद्यार्थियों के दैनन्दिन व्यवहार में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास
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Ro
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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पंचमहाभूतों से प्राण, प्राण से मन, मन से बुद्धि, बुद्धि
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से चित्त अधिक सूक्ष्म है । सूक्ष्म का सामान्य अर्थ
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हम छोटा समझते हैं, परन्तु सूक्ष्म का शास्त्रीय अर्थ
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अधिक व्यापक और अधिक प्रभावी ऐसा तत्त्व है ।
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अतः पंचमहाभूतों से प्राण, प्राण से मन, मन से बुद्धि,
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बुद्धि से चित्त अधिक व्यापक और अधिक प्रभावी
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हैं । जिस प्रकार पंचमहाभूतों का भौतिक विज्ञान है
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उस प्रकार प्राण का प्राणविज्ञान, मन का मनोविज्ञान,
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बुद्धि का विज्ञान, चित्त का आनन्दविज्ञान है।
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इन सबके परे आत्मविज्ञान है जिसे हम अध्यात्म
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कहते हैं ।
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इन सबका समन्वित विचार करना और उस विचार
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के अनुसार दृष्टिकोण बनना ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण है ।
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०. विज्ञान का सही नाम है शास्त्र । वैज्ञानिक दृष्टिकोण
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का अर्थ है शास्त्रीय दृष्टिकोण । शास्त्र बुद्धि का विषय
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है । इसलिये वास्तव में बुद्धि को ही विज्ञान संज्ञा दी
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गई है। जो बुद्धिगम्य है और बुद्धिसम्मत है वह
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शास्त्रीय है वह वैज्ञानिक है ।
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०. शाख्त्रीयता के सम्बन्ध में भारतीय विचार की दो
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विशेषतायें हैं ।
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g. बुद्धि से भी अनुभूति श्रेष्ठ है । अनुभूति को बुद्धिगम्य
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बनाकर शब्दों में जो प्रस्तुत किया जाता है वह शास्त्र
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है। सृष्टि के समस्त व्यवहार का प्रमाण wee
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परन्तु शास्त्र का प्रमाण अनुभूति है । इसलिये केवल
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बुद्धि ही अन्तिम प्रमाण नहीं है, अनुभूति तक पहुँची
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हुई बुद्धि ही प्रमाण है ।
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2. Met केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही सीमित नहीं है ।
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मनुष्य का व्यवहार कितना भी शास्त्रीय हो, अर्थात्‌
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वैज्ञानिक हो, तो भी सृष्टि के अन्य मनुष्यों , प्राणियों ,
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quand ak uel के हित और सुख के
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विरोधी नहीं होना चाहिये । उदाहरण के लिये मनुष्य
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अपनी बुद्धि का उपयोग कर रासायनिक खाद बनाता
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पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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है और अपनी भूमि में अधिक अनाज ऊगाता है ।
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उसे लगता है कि यह व्यवहार गलत नहीं है । परन्तु
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भूमि का और अनाज का प्रदूषण इससे ही जन्म लेता
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है । भूमि, प्राणी और अन्य मनुष्यों को भारी नुकसान
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होता है । ऐसा विज्ञान व्यापक अर्थ में विज्ञान नहीं
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है, वह अनीति बन जाता है ।
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कोई भी कार्य बुद्धि से समझकर सही गलत का,
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उचित अनुचित का विवेक करने के बाद जो सही या
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उचित है वह करना और अनुचित या गलत है वह
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नहीं करना ही वैज्ञानिकता का व्यवहार करना है ।
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हम दैन॑न्दिन व्यवहार में वैज्ञानिकता का विचार कैसे
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किया जाता है यह देखें ।
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आहार विषयक वैज्ञानिकता
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श्,
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आहार की आवश्यकता क्यों होती है । मनुष्य भूख
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लगती है इसलिये खाता है । शरीर को पोषण चाहिये
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इसलिये खाता है । विविध प्रकार के भोजन पदार्थ
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जीभ को और मन को अच्छे लगते हैं इसलिये खाता
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है । भोजन करने में आनन्द आता है इसलिये खाता
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है। इन विभिन्न कारणों में समायोजन करना
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वैज्ञानिकता है |
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समायोजन कैसे करे ? भोजन के मोटे मोटे तीन स्तर
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है । भोजन सात्तिक, पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है ।
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सात्त्विक भोजन मन को संस्कारित करता है, पौष्टिक
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भोजन शरीर को पुष्ट करता है और स्वास्थ्य की रक्षा
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करता है, स्वादिष्ट भोजन जीभ और मन को खुश
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करता है । यदि वह स्वादिष्ट है परन्तु पौष्टिक नहीं है
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तो कया करेंगे ? पौष्टिक है परन्तु सात्त्विक नहीं है तो
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क्या करेंगे ? यह तो सम्भव है कि स्वादिष्ट भोजन
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पौष्टिक और सात्चिक नहीं भी होता है, पौष्टिक
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भोजन सात्तिक नहीं भी होता है । उदाहरण के लिये
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जंक फूड मैदे के पदार्थ, फ्रिज में रखे पदार्थ स्वादिष्ट
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तो होते हैं परन्तु पौष्टिक और सात्विक नहीं होते ।
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लहसुन, प्याज, मछली आदि पौष्टिक तो होते हैं
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परन्तु सात्तिक नहीं होते। बुद्धिमान मनुष्य
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सात्त्विकता की चिन्ता प्रथम
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करता है, पोष्टिकता की दूसरे क्रम में और स्वादिष्टता
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की तीसरे क्रम में ।
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अतः भोजन स्वादिष्ट तो होना चाहिये परन्तु
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पौष्टिक और सात्तिक तो होना ही चाहिये । सात्त्विक
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है परन्तु स्वादिष्ट नहीं है तो चलेगा परन्तु स्वादिष्ट है
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और सात्विक या पौष्टिक नहीं है ऐसा नहीं चलेगा ।
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भोजन पौष्टिक होने पर भी सात्तिक नहीं है तो नहीं
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चलेगा । सात्त्विक भोजन पौष्टिक होता ही है । अतः
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स्वाद को प्राथमिकता देना अवैज्ञानिक है, सात्त्विकता
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को प्राथमिकता देना वैज्ञानिक है ।
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अपवित्र मनोभावों से बना, अशुद्ध सामग्री से बना,
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अनुचित पद्धति से बना भोजन भले ही स्वादिष्ट हो
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तो भी नहीं खाना चाहिये क्योंकि वह अवैज्ञानिक
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है ।
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०... आज जि्सि विज्ञान कहा जाता है वह केवल भौतिक विज्ञान है। भौतिक विज्ञान का सम्बन्ध केवल पंचमहाभूतात्मक पदार्थों से होता है । इसलिये उसे पदार्थविज्ञान भी कहा जाता है । परन्तु सृष्टि में केवल पंचमहाभूत ही नहीं है । उनके अलावा प्राण, मन, बुद्धि, अहंकार, चित्त आदि भी हैं । सृष्टि के व्यवहार को ये सारे तत्त्व परिचालित करते हैं। उनमें भी विद्यार्थियों के दैनन्दिन व्यवहार में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास पंचमहाभूतों से प्राण, प्राण से मन, मन से बुद्धि, बुद्धि से चित्त अधिक सूक्ष्म है । सूक्ष्म का सामान्य अर्थ हम छोटा समझते हैं, परन्तु सूक्ष्म का शास्त्रीय अर्थ अधिक व्यापक और अधिक प्रभावी ऐसा तत्त्व है । अतः पंचमहाभूतों से प्राण, प्राण से मन, मन से बुद्धि, बुद्धि से चित्त अधिक व्यापक और अधिक प्रभावी हैं । जिस प्रकार पंचमहाभूतों का भौतिक विज्ञान है उस प्रकार प्राण का प्राणविज्ञान, मन का मनोविज्ञान, बुद्धि का विज्ञान, चित्त का आनन्दविज्ञान है। इन सबके परे आत्मविज्ञान है जिसे हम अध्यात्म कहते हैं
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भोजन करने का समय, भोजन करने की पद्धति,
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इन सबका समन्वित विचार करना और उस विचार के अनुसार दृष्टिकोण बनना ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण है ।
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भोजन की मात्रा, वैज्ञानिक पद्धति से जो निश्चित किये
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०. विज्ञान का सही नाम है शास्त्र । वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अर्थ है शास्त्रीय दृष्टिकोण । शास्त्र बुद्धि का विषय है । इसलिये वास्तव में बुद्धि को ही विज्ञान संज्ञा दी गई है। जो बुद्धिगम्य है और बुद्धिसम्मत है वह शास्त्रीय है वह वैज्ञानिक है ।
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गये हैं उनका अनुसरण करना वैज्ञानिकता है
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०. शाख्त्रीयता के सम्बन्ध में भारतीय विचार की दो विशेषतायें हैं ।
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किसी को दिये बिना, किसी का छीनकर, अपने पास
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१ . बुद्धि से भी अनुभूति श्रेष्ठ है । अनुभूति को बुद्धिगम्य बनाकर शब्दों में जो प्रस्तुत किया जाता है वह शास्त्र है। सृष्टि के समस्त व्यवहार का प्रमाण शास्त्र है  परन्तु शास्त्र का प्रमाण अनुभूति है । इसलिये केवल बुद्धि ही अन्तिम प्रमाण नहीं है, अनुभूति तक पहुँची हुई बुद्धि ही प्रमाण है ।
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धन हो तो भी मुफ्त में मिला हुआ, भिक्षा माँगकर
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2. शास्त्र केवल व्यक्तिगत स्तर पर ही सीमित नहीं है । मनुष्य का व्यवहार कितना भी शास्त्रीय हो, अर्थात्‌ वैज्ञानिक हो, तो भी सृष्टि के अन्य मनुष्यों , प्राणियों , वृक्षवनस्पति के हित और सुख के विरोधी नहीं होना चाहिये । उदाहरण के लिये मनुष्य अपनी बुद्धि का उपयोग कर रासायनिक खाद बनाता है और अपनी भूमि में अधिक अनाज ऊगाता है । उसे लगता है कि यह व्यवहार गलत नहीं है । परन्तु भूमि का और अनाज का प्रदूषण इससे ही जन्म लेता है । भूमि, प्राणी और अन्य मनुष्यों को भारी नुकसान होता है । ऐसा विज्ञान व्यापक अर्थ में विज्ञान नहीं है, वह अनीति बन जाता है ।
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खाना अवैज्ञानिक है ।
+
३.कोई भी कार्य बुद्धि से समझकर सही गलत का, उचित अनुचित का विवेक करने के बाद जो सही या उचित है वह करना और अनुचित या गलत है वह नहीं करना ही वैज्ञानिकता का व्यवहार करना है । हम दैन॑न्दिन व्यवहार में वैज्ञानिकता का विचार कैसे किया जाता है यह देखें
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एल्युमिनियम के या प्लास्टीक के पात्रों में खाना पीना
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==== आहार विषयक वैज्ञानिकता ====
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अवैज्ञानिक है ।
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१. आहार की आवश्यकता क्यों होती है । मनुष्य भूख लगती है इसलिये खाता है । शरीर को पोषण चाहिये इसलिये खाता है । विविध प्रकार के भोजन पदार्थ जीभ को और मन को अच्छे लगते हैं इसलिये खाता है । भोजन करने में आनन्द आता है इसलिये खाता है। इन विभिन्न कारणों में समायोजन करना वैज्ञानिकता है |
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झूठा, बासी, यंत्रों की सहायता से बना भोजन करना
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२. समायोजन कैसे करे ? भोजन के मोटे मोटे तीन स्तर है । भोजन सात्तिक, पौष्टिक और स्वादिष्ट होता है । सात्त्विक भोजन मन को संस्कारित करता है, पौष्टिक भोजन शरीर को पुष्ट करता है और स्वास्थ्य की रक्षा करता है, स्वादिष्ट भोजन जीभ और मन को खुश करता है । यदि वह स्वादिष्ट है परन्तु पौष्टिक नहीं है तो कया करेंगे ? पौष्टिक है परन्तु सात्त्विक नहीं है तो क्या करेंगे ? यह तो सम्भव है कि स्वादिष्ट भोजन पौष्टिक और सात्चिक नहीं भी होता है, पौष्टिक भोजन सात्तिक नहीं भी होता है । उदाहरण के लिये जंक फूड मैदे के पदार्थ, फ्रिज में रखे पदार्थ स्वादिष्ट तो होते हैं परन्तु पौष्टिक और सात्विक नहीं होते । लहसुन, प्याज, मछली आदि पौष्टिक तो होते हैं परन्तु सात्तिक नहीं होते। बुद्धिमान मनुष्य करता है, पोष्टिकता की दूसरे क्रम में और स्वादिष्टता की तीसरे क्रम में ।
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अवैज्ञानिक है ।
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अतः भोजन स्वादिष्ट तो होना चाहिये परन्तु पौष्टिक और सात्तिक तो होना ही चाहिये । सात्त्विक है परन्तु स्वादिष्ट नहीं है तो चलेगा परन्तु स्वादिष्ट है और सात्विक या पौष्टिक नहीं है ऐसा नहीं चलेगा । भोजन पौष्टिक होने पर भी सात्तिक नहीं है तो नहीं चलेगा । सात्त्विक भोजन पौष्टिक होता ही है । अतः स्वाद को प्राथमिकता देना अवैज्ञानिक है, सात्त्विकता को प्राथमिकता देना वैज्ञानिक है ।
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हमारी रसोई में मिक्सर, ग्राइण्डर, चर्नर, माइक्रोवेव,
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३.अपवित्र मनोभावों से बना, अशुद्ध सामग्री से बना, अनुचित पद्धति से बना भोजन भले ही स्वादिष्ट हो तो भी नहीं खाना चाहिये क्योंकि वह अवैज्ञानिक है ।
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फ्रीज, कूलर आदि होते हैं । इनसे बनाया गया और
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४. भोजन करने का समय, भोजन करने की पद्धति, भोजन की मात्रा, वैज्ञानिक पद्धति से जो निश्चित किये गये हैं उनका अनुसरण करना वैज्ञानिकता है
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इनमें रखा हुआ भोजन करना अवैज्ञानिक है ।
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५. किसी को दिये बिना, किसी का छीनकर, अपने पास धन हो तो भी मुफ्त में मिला हुआ, भिक्षा माँगकर खाना अवैज्ञानिक है ।
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संक्षेप में भोजन करने का एक विस्तृत शाख्र है । इस
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६ . एल्युमिनियम के या प्लास्टीक के पात्रों में खाना पीना अवैज्ञानिक है ।
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wea का अनुसरण किये बिना भोजन करना
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७. झूठा, बासी, यंत्रों की सहायता से बना भोजन करना अवैज्ञानिक है ।
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अवैज्ञानिक है ।
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८. हमारी रसोई में मिक्सर, ग्राइण्डर, चर्नर, माइक्रोवेव, फ्रीज, कूलर आदि होते हैं । इनसे बनाया गया और इनमें रखा हुआ भोजन करना अवैज्ञानिक है ।
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वसख्त्रपरिधान में वैज्ञानिकता
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९. संक्षेप में भोजन करने का एक विस्तृत शाख्र है । इस शास्त्र का अनुसरण किये बिना भोजन करना अवैज्ञानिक है ।
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==== वसख्त्रपरिधान में वैज्ञानिकता ====
 
अन्न की तरह वस्त्र भी हमारे दैनन्दिन जीवन का
 
अन्न की तरह वस्त्र भी हमारे दैनन्दिन जीवन का
  
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