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१, विद्यालय में आरोग्यशास््र को महत्त्व देना चाहिये । शरीरविज्ञान, आरोग्यशास्त्र, आहारशास्त्र, हस्तोद्योग, शारीरिक शिक्षा आदि विषयों का समूह शरीर से सम्बन्धित है । इनका सार्थक नियोजन होने की आवश्यकता है। ये सारे विषय सैद्धान्तिक और प्रायोगिक दोनों प्रकार से होने चाहिये ।
१, विद्यालय में आरोग्यशास््र को महत्त्व देना चाहिये । शरीरविज्ञान, आरोग्यशास्त्र, आहारशास्त्र, हस्तोद्योग, शारीरिक शिक्षा आदि विषयों का समूह शरीर से सम्बन्धित है । इनका सार्थक नियोजन होने की आवश्यकता है। ये सारे विषय सैद्धान्तिक और प्रायोगिक दोनों प्रकार से होने चाहिये ।
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२.जिनका जन्म सिझेरीयन ऑपरेशन से नहीं हुआ है
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२.जिनका जन्म सिझेरीयन ऑपरेशन से नहीं हुआ है उनकी माताओं का सम्मान करना चाहिये । जिनका जन्म अस्पताल में नहीं अपितु घर में हुआ है उनकी माताओं का विशेष सम्मान करना चाहिये । इसका कारण यह है कि स्वाभाविक प्रसूति और घर में प्रसूति बालक की सर्व प्रकार की शक्तियों का रक्षण करनेवाली होती हैं ।
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उनकी माताओं का सम्मान करना चाहिये । जिनका
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३. जिन बालकों को वर्षभर में कभी डॉक्टर के पास नहीं जाना पडा है ऐसे बालकों का सम्मान करना चाहिये ।
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जन्म अस्पताल में नहीं अपितु घर में हुआ है उनकी
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४. हाथ से काम करना सिखाना चाहिये । हाथ से काम करने के अवसर अधिक से अधिक प्राप्त होने चाहिये । कारीगरी के छोटे बडे काम सफाई से करना सिखाना चाहिये ।
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माताओं का विशेष सम्मान करना चाहिये । इसका
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५. विद्यालय में अखाडा होना ही चाहिये जिस में पुलअप्स, सिंगल बार, डबल बार मलखम्भ, रस्सी की गाँठों के सहारे वृक्ष पर चढना, ऊँचाई से छलांग लगाना, कुस्ती करना आदि का समावेश हो । भागना और तैरना सबको आना चाहिये । सूर्यनमस्कार सबको आना चाहिये ।
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कारण यह है कि स्वाभाविक प्रसूति और घर में प्रसूति
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६. बाजार का पदार्थ कभी भी नहीं खाने का, होटल में कभी भी नहीं जाने का, मोबाईल में गेम कभी नहीं खेलने का नियम लेना चाहिये ।
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बालक की सर्व प्रकार की शक्तियों का रक्षण
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७. दा तुन से दाँत साफ करने का, प्रातःकाल पेट साफ होने का, प्रातः जल्दी उठने का, रात्रि में जल्दी सोने का विषय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानकर उसकी ओर ध्यान देना चाहिये ।
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करनेवाली होती हैं ।
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८. शरीरस्वास्थ्य का यह विषय जितना शिक्षा का है उतना ही मानसिकता निर्माण करने का है । इस दृष्टि से प्रेरणा और प्रबोधन के कार्यक्रम होने चाहिये । विद्यार्थियों के प्रबोधन के साथ साथ मातापिता का प्रबोधन भी आवश्यक है ।
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जिन बालकों को वर्षभर में कभी डॉक्टर के पास नहीं
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९. शिक्षकों के और शिक्षाशासख्रियों के संमेलनों और परिषदों में इस विषय की प्रस्तुति और चर्चा सुरू होनी चाहिये । हमारी पूरी जीवनचर्या, यंत्रोद्योगों के प्रति आकर्षण, सुविधाओं को दिया जानेवाला अग्रताक्रम, काम करने के प्रति बढता हुआ हीनता का भाव, श्रम की अआप्रतिष्ठा आदि सब शरीर सम्पत्ति के हास के व्यापक कारण हैं। ये कारण यथावत् रहें तब विद्यार्थियों को दी जानेवाली शारीरिक शिक्षा की कोई सार्थकता नहीं रहेगी । अतः व्यवस्थाओं और दृष्टिकोण में परिवर्तन करने की बहुत आवश्यकता है । उदाहरण के लिये उच्च कोटी के विद्वान को भी कोई न कोई हुनर, कोई न कोई कला अवगत हो यह आवश्यक माना जाना चाहिये । व्यापक स्वीकृति मिलने पर विद्यार्थियों को शिक्षा देना सरल और सहज हो सकता है ।
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जाना पडा है ऐसे बालकों का सम्मान करना चाहिये ।
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१०. अच्छा दूध नहीं मिलने का कारण डेअरी उद्योग का विकास, अच्छा अनाज और साग सब्जी नहीं मिलने का कारण रासायनिक खाद का प्रयोग तथा ट्रेक्टर से खेती होना है, अच्छा पानी नहीं मिलने का कारण, शुद्ध हवा नहीं मिलने का कारण यंत्रों और रसायनों का बढता प्रयोग है । आँख, कान, हाथ दुर्बल होने का कारण टीवी और कम्प्यूटर हैं, स्मरणशक्ति कम होने का कारण मोबाईल है, कुशलता ओं के हास का कारण यंत्र हैं और इन सबका मूल कारण बढ़ता हुआ शहरीकरण और गाँवों की उपेक्षा है । यह समझ में आना चाहिये । जब तक हम विनाशक व्यवस्थाओं को ही बदलेंगे नहीं तब तक स्वास्थ्य और बल कुशलता और निपुणता बढ़ाने के प्रयास निरोर्थक होंगे । साथ ही यह भी सत्य है कि इस का प्रारम्भ विद्यालयों से होना चाहिये ।
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हाथ से काम करना सिखाना चाहिये । हाथ से काम
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तात्पर्य यह है कि विद्यालय से प्रारम्भ होकर यह विषय परिवारों में और समाज में व्याप्त हो जाना चाहिये ।
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करने के अवसर अधिक से अधिक प्राप्त होने चाहिये ।
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कारीगरी के छोटे बडे काम सफाई से करना सिखाना
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चाहिये ।
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विद्यालय में अखाडा होना ही चाहिये जिस में पुल
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aa, सिंगल बार, डबल बार मलखम्भ, रस्सी की
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गाँठों के सहारे वृक्ष पर चढना, ऊँचाई से छलांग
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लगाना, कुस्ती करना आदि का समावेश हो । भागना
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और तैरना सबको आना चाहिये । सूर्यनमस्कार सबको
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आना चाहिये ।
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बाजार का पदार्थ कभी भी नहीं खाने का, होटल में
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कभी भी नहीं जाने का, मोबाईल में गेम कभी नहीं
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खेलने का नियम लेना चाहिये ।
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दा तुन से दाँत साफ करने का, प्रातःकाल पेट साफ
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होने का, प्रातः जल्दी उठने का, रात्रि में जल्दी सोने
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का विषय अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानकर उसकी ओर
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ध्यान देना चाहिये ।
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शरीरस्वास्थ्य का यह विषय जितना शिक्षा का है
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उतना ही मानसिकता निर्माण करने का है । इस दृष्टि से
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प्रेरणा और प्रबोधन के कार्यक्रम होने चाहिये ।
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विद्यार्थियों के प्रबोधन के साथ
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साथ मातापिता का प्रबोधन भी आवश्यक है ।
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शिक्षकों के और शिक्षाशासख्रियों के संमेलनों और
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परिषदों में इस विषय की प्रस्तुति और चर्चा सुरू होनी
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चाहिये । हमारी पूरी जीवनचर्या, यंत्रोद्योगों के प्रति
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आकर्षण, सुविधाओं को दिया जानेवाला अग्रताक्रम,
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काम करने के प्रति बढता हुआ हीनता का भाव, श्रम
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की अआप्रतिष्ठा आदि सब शरीर सम्पत्ति के हास के
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व्यापक कारण हैं। ये कारण यथावत्ू रहें तब
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विद्यार्थियों को दी जानेवाली शारीरिक शिक्षा की कोई
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सार्थकता नहीं रहेगी । अतः व्यवस्थाओं और
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दृष्टिकोण में परिवर्तन करने की बहुत आवश्यकता है ।
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उदाहरण के लिये उच्च कोटी के विद्वान को भी कोई न
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कोई हुनर, कोई न कोई कला अवगत हो यह
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आवश्यक माना जाना चाहिये । व्यापक स्वीकृति
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मिलने पर विद्यार्थियों को शिक्षा देना सरल और सहज
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हो सकता है ।
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अच्छा दूध नहीं मिलने का कारण डेअरी उद्योग का
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विकास, अच्छा अनाज और साग सब्जी नहीं मिलने
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का कारण रासायनिक खाद का प्रयोग तथा ट्रेक्टर से
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खेती होना है, अच्छा पानी नहीं मिलने का कारण,
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शुद्ध हवा नहीं मिलने का कारण यंत्रों और रसायनों का
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बढता प्रयोग है । आँख, कान, हाथ दुर्बल होने का
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कारण टीवी और कम्प्यूटर हैं, स्मरणशक्ति कम होने
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का कारण मोबाईल है, कुशलता ओं के हास का कारण
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यंत्र हैं और इन सबका मूल कारण बढ़ता हुआ
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शहरीकरण और गाँवों की उपेक्षा है । यह समझ में
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आना चाहिये । जब तक हम विनाशक व्यवस्थाओं
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कुशलता और निपुणता बढ़ाने के प्रयास निरोर्थक होंगे ।
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साथ ही यह भी सत्य है कि इस का प्रारम्भ विद्यालयों
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तात्पर्य यह है कि विद्यालय से प्रारम्भ होकर यह विषय
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वैज्ञानिकता क्या है
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==== वैज्ञानिकता क्या है ====
आज के युग को विज्ञान का युग कहा जाता है।
आज के युग को विज्ञान का युग कहा जाता है।