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# शिक्षा को और शिक्षक को स्वतन्त्र होना चाहिये यह तो ठीक है परन्तु कोई भी शिक्षक आज अपनी नौकरी कैसे छोड सकता है ? उसे भी तो अपने परिवार का पोषण करना है । समाज उसकी कदर तो करनेवाला नहीं है । आज बडी मुश्किल से शिक्षक का वेतन कुछ ठीक हुआ है। अब उसे नौकरी छोडकर स्वतन्त्र होने को कहना तो उसे भूखों मारना है । यह कैसे सम्भव है ? ऐसा ही कहते रहने से तो प्रश्न का कोई हल हो ही नहीं सकता है ।
 
# शिक्षा को और शिक्षक को स्वतन्त्र होना चाहिये यह तो ठीक है परन्तु कोई भी शिक्षक आज अपनी नौकरी कैसे छोड सकता है ? उसे भी तो अपने परिवार का पोषण करना है । समाज उसकी कदर तो करनेवाला नहीं है । आज बडी मुश्किल से शिक्षक का वेतन कुछ ठीक हुआ है। अब उसे नौकरी छोडकर स्वतन्त्र होने को कहना तो उसे भूखों मारना है । यह कैसे सम्भव है ? ऐसा ही कहते रहने से तो प्रश्न का कोई हल हो ही नहीं सकता है ।
 
# शिक्षा के लिये नौकरी छोडने वाले को समाज सम्मान नहीं देगा, उल्टे उसे नासमझ कहेगा, इसलिये उस दिशा में भी कुछ नहीं हो सकता ।
 
# शिक्षा के लिये नौकरी छोडने वाले को समाज सम्मान नहीं देगा, उल्टे उसे नासमझ कहेगा, इसलिये उस दिशा में भी कुछ नहीं हो सकता ।
# फिर भी करना तो यही होगा ।
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# तथापि करना तो यही होगा ।
 
# क्या ऐसा हो सकता है कि दस-पन्द्रह-बीस वर्ष तक अर्थात्‌ ३५ से ५० वर्ष की आयु तक नौकरी करना, सांसारिक जिम्मेदारियों से आधा मुक्त हो जाना और फिर शिक्षा की सेवा करने हेतु सिद्ध हो जाना । यदि देश के एक प्रतिशत शिक्षक ऐसा करते हैं तो बात बन सकती है ।
 
# क्या ऐसा हो सकता है कि दस-पन्द्रह-बीस वर्ष तक अर्थात्‌ ३५ से ५० वर्ष की आयु तक नौकरी करना, सांसारिक जिम्मेदारियों से आधा मुक्त हो जाना और फिर शिक्षा की सेवा करने हेतु सिद्ध हो जाना । यदि देश के एक प्रतिशत शिक्षक ऐसा करते हैं तो बात बन सकती है ।
 
# क्या देश के हजार में एक शिक्षक प्रारम्भ से ही बिना वेतन के अध्यापन के काम में लग जाय और स्वतन्त्र विद्यालय आरम्भ करे जहाँ शिक्षा पूर्ण रूप से स्वतन्त्र हो ? यह तो बहुत बडी बात है ।
 
# क्या देश के हजार में एक शिक्षक प्रारम्भ से ही बिना वेतन के अध्यापन के काम में लग जाय और स्वतन्त्र विद्यालय आरम्भ करे जहाँ शिक्षा पूर्ण रूप से स्वतन्त्र हो ? यह तो बहुत बडी बात है ।
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# सही मार्ग तो यह है कि अपने विद्यालय के छात्र ही विद्यालय में शिक्षक बनें । शिक्षा की परम्परा निर्माण करना धार्मिक शिक्षा का एक खास लक्षण है । हर पिताश्री को जिस प्रकार अपने कुल की परम्परा अपने पुत्र को सौंपनी चाहिये उसी प्रकार हर शिक्षक को अपना दायित्व वहन करे ऐसा योग्य विद्यार्थी निर्माण करना चाहिये । ऐसे एक से अधिक विद्यार्थी निर्माण करना उचित होगा क्योंकि तब शिक्षा का प्रसार होगा । अपने विद्यार्थियों में कौन प्राथमिक में, कौन माध्यमिक में, कौन महाविद्यालय में और कौन सभी स्तरों पर पढा सकेगा यह पहचानना शिक्षक का कर्तव्य है। अच्छे विद्यार्थी ही नहीं तो अच्छे शिक्षक भी देना यह शिक्षक की शिक्षासेवा और समाजसेवा है ।
 
# सही मार्ग तो यह है कि अपने विद्यालय के छात्र ही विद्यालय में शिक्षक बनें । शिक्षा की परम्परा निर्माण करना धार्मिक शिक्षा का एक खास लक्षण है । हर पिताश्री को जिस प्रकार अपने कुल की परम्परा अपने पुत्र को सौंपनी चाहिये उसी प्रकार हर शिक्षक को अपना दायित्व वहन करे ऐसा योग्य विद्यार्थी निर्माण करना चाहिये । ऐसे एक से अधिक विद्यार्थी निर्माण करना उचित होगा क्योंकि तब शिक्षा का प्रसार होगा । अपने विद्यार्थियों में कौन प्राथमिक में, कौन माध्यमिक में, कौन महाविद्यालय में और कौन सभी स्तरों पर पढा सकेगा यह पहचानना शिक्षक का कर्तव्य है। अच्छे विद्यार्थी ही नहीं तो अच्छे शिक्षक भी देना यह शिक्षक की शिक्षासेवा और समाजसेवा है ।
 
# इस दृष्टि से हर शिक्षा संस्थाने पूर्वप्राथमिक से उच्चशिक्षा तक के विभाग एक साथ चलाने चाहिये ताकि विद्यार्थी को अध्ययन में और शिक्षकों को चयन में सुविधा हो । यदि नगर के सारे विद्यालय मिलकर कोई रचना करते हैं तो वह एक विद्यालय की योजना से भी अधिक सुविधापूर्ण हो सकता है ।
 
# इस दृष्टि से हर शिक्षा संस्थाने पूर्वप्राथमिक से उच्चशिक्षा तक के विभाग एक साथ चलाने चाहिये ताकि विद्यार्थी को अध्ययन में और शिक्षकों को चयन में सुविधा हो । यदि नगर के सारे विद्यालय मिलकर कोई रचना करते हैं तो वह एक विद्यालय की योजना से भी अधिक सुविधापूर्ण हो सकता है ।
# उच्च शिक्षा और प्रगत अध्ययन तथा अनुसन्धान का क्षेत्र तुलना में खुला होने में सुविधा रहेगी, प्रश्न केवल अच्छे शिक्षक के मापदण्ड ठीक हों उसका ही रहेगा । फिर भी “अपना विद्यार्थी अपना शिक्षक की प्रथा उत्तम रहेगी ।
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# उच्च शिक्षा और प्रगत अध्ययन तथा अनुसन्धान का क्षेत्र तुलना में खुला होने में सुविधा रहेगी, प्रश्न केवल अच्छे शिक्षक के मापदण्ड ठीक हों उसका ही रहेगा । तथापि “अपना विद्यार्थी अपना शिक्षक की प्रथा उत्तम रहेगी ।
 
# आज एक शिक्षक भी अपने अच्छे विद्यार्थी को शिक्षक बनाना नहीं चाहता । मातापिता भी अपनी तेजस्वी और मेधावी सन्तान को शिक्षक देखना नहीं चाहते । ऐसे में शिक्षाक्षेत्र साधारण स्तर का ही रहेगा इसमें क्या आश्चर्य ? शिक्षा को श्रेष्ठ और तेजस्वी बनाना है तो मेधावी और श्रेष्ठ विद्यार्थियों को शिक्षक बनने हेतु प्रेरित करना होगा । इस दृष्टि से समाज प्रबोधन, अभिभावक प्रबोधन और शिक्षक प्रबोधन की आवश्यकता रहेगी । प्रबोधन का यह कार्य प्रभावी पद्धति से होना चाहिये तभी घर में, समाज में और विद्यालय में शिक्षक को प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त होंगे और विद्यार्थियों को शिक्षक बनने की प्रेरणा मिलेगी ।
 
# आज एक शिक्षक भी अपने अच्छे विद्यार्थी को शिक्षक बनाना नहीं चाहता । मातापिता भी अपनी तेजस्वी और मेधावी सन्तान को शिक्षक देखना नहीं चाहते । ऐसे में शिक्षाक्षेत्र साधारण स्तर का ही रहेगा इसमें क्या आश्चर्य ? शिक्षा को श्रेष्ठ और तेजस्वी बनाना है तो मेधावी और श्रेष्ठ विद्यार्थियों को शिक्षक बनने हेतु प्रेरित करना होगा । इस दृष्टि से समाज प्रबोधन, अभिभावक प्रबोधन और शिक्षक प्रबोधन की आवश्यकता रहेगी । प्रबोधन का यह कार्य प्रभावी पद्धति से होना चाहिये तभी घर में, समाज में और विद्यालय में शिक्षक को प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त होंगे और विद्यार्थियों को शिक्षक बनने की प्रेरणा मिलेगी ।
 
# जो शिक्षक नहीं बन सकता वही अन्य कुछ भी बनेगा, उत्तम विद्यार्थी तो शिक्षक ही बनेगा ऐसे भाव का प्रसार होना चाहिये ।
 
# जो शिक्षक नहीं बन सकता वही अन्य कुछ भी बनेगा, उत्तम विद्यार्थी तो शिक्षक ही बनेगा ऐसे भाव का प्रसार होना चाहिये ।

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