Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "बच्चो" to "बच्चों"
Line 12: Line 12:  
# युवा होते होते नौकरी और छोकरी की चिन्ता लगती है और तनाव बढता जाता है । अनेक प्रकार के व्यसनों के भोग भी बन जाते हैं ।
 
# युवा होते होते नौकरी और छोकरी की चिन्ता लगती है और तनाव बढता जाता है । अनेक प्रकार के व्यसनों के भोग भी बन जाते हैं ।
 
# असंख्य युवा गाँव छोड़कर नगरों में कारखानों में, उद्योगगृहों में, घरों में मजदूर, चपरासी, घरनौकर बनने के लिये आते हैं, परिवारों से दूर अकेले रहते हैं, शरीरस्वास्थ्य और मनोस्वास्थ्य खराब कर लेते हैं, अनाचार में लिप्त हो जाते हैं ।
 
# असंख्य युवा गाँव छोड़कर नगरों में कारखानों में, उद्योगगृहों में, घरों में मजदूर, चपरासी, घरनौकर बनने के लिये आते हैं, परिवारों से दूर अकेले रहते हैं, शरीरस्वास्थ्य और मनोस्वास्थ्य खराब कर लेते हैं, अनाचार में लिप्त हो जाते हैं ।
# खातेपीते घरों के बच्चों को व्यवहारज्ञान नहीं होता । मातापिता की छत्रछाया में तो ये जी लेते हैं परन्तु अपने पैरों पर खडे होने का समय आता है तब बेहाल हो जाते हैं । अधिकांश लडकियों को घर सम्हालना नहीं आता और अधिकांश लडकों को गृहस्थी निभानी नहीं आती । ये जीवन जीते नहीं है, इनका जीवन बीत जाता है । ये कर्तृत्वहीन होते हैं।
+
# खातेपीते घरों के बच्चोंं को व्यवहारज्ञान नहीं होता । मातापिता की छत्रछाया में तो ये जी लेते हैं परन्तु अपने पैरों पर खडे होने का समय आता है तब बेहाल हो जाते हैं । अधिकांश लडकियों को घर सम्हालना नहीं आता और अधिकांश लडकों को गृहस्थी निभानी नहीं आती । ये जीवन जीते नहीं है, इनका जीवन बीत जाता है । ये कर्तृत्वहीन होते हैं।
 
# विश्व में भारत की ख्याति है कि भारत युवाओं का देश है क्योंकि युवाओं की संख्या सबसे अधिक है । परन्तु भारत के युवाओं की स्थिति ही तो चिन्ताजनक है ।
 
# विश्व में भारत की ख्याति है कि भारत युवाओं का देश है क्योंकि युवाओं की संख्या सबसे अधिक है । परन्तु भारत के युवाओं की स्थिति ही तो चिन्ताजनक है ।
   Line 146: Line 146:     
==== ऐसे शिक्षक कहाँ से मिलेंगे ? ====
 
==== ऐसे शिक्षक कहाँ से मिलेंगे ? ====
# समाज में ऐसे अनेक लोग हैं जो शिक्षा को चिन्तित हैं । इन के दो प्रकार हैं । एक ऐसे हैं जो अपनी सन्तानों की शिक्षा को लेकर चिन्तित हैं और अन्यत्र कहीं अच्छी शिक्षा नहीं है इसलिये स्वयं पढ़ना  चाहते है।  दूसरे ऐसे लोग हैं जो समाज के सभी बच्चों की शिक्षा के लिये चिन्तित हैं और अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं । देश में सर्वत्र ऐसे लोग हैं । ये सब शिक्षक बनने का प्रशिक्षण प्राप्त किये हुए हैं अथवा सरकारमान्य शिक्षक हैं ऐसा नहीं होगा, परन्तु ये धार्मिक शिक्षा की सेवा करनेवाले अच्छे शिक्षक हैं । इनकी सूची दस हजार से ऊपर की बन सकती है । इन स्वेच्छा से बने शिक्षकों को शिक्षाशास्त्रियों ट्वारा समर्थन, सहयोग, मार्गदर्शन मिलना चाहिये । उनके प्रयोग को. निखारने और बढाने में शिक्षाशास्त्रियों का योगदान होना चाहिये क्योंकि ये धार्मिक शिक्षा हेतु आदर्श प्रयोग हैं । देशके शैक्षिक संगठनों ट्वारा इन प्रयोगों को समर्थन और सुरक्षा की सिद्धता होनी चाहिए।
+
# समाज में ऐसे अनेक लोग हैं जो शिक्षा को चिन्तित हैं । इन के दो प्रकार हैं । एक ऐसे हैं जो अपनी सन्तानों की शिक्षा को लेकर चिन्तित हैं और अन्यत्र कहीं अच्छी शिक्षा नहीं है इसलिये स्वयं पढ़ना  चाहते है।  दूसरे ऐसे लोग हैं जो समाज के सभी बच्चोंं की शिक्षा के लिये चिन्तित हैं और अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं । देश में सर्वत्र ऐसे लोग हैं । ये सब शिक्षक बनने का प्रशिक्षण प्राप्त किये हुए हैं अथवा सरकारमान्य शिक्षक हैं ऐसा नहीं होगा, परन्तु ये धार्मिक शिक्षा की सेवा करनेवाले अच्छे शिक्षक हैं । इनकी सूची दस हजार से ऊपर की बन सकती है । इन स्वेच्छा से बने शिक्षकों को शिक्षाशास्त्रियों ट्वारा समर्थन, सहयोग, मार्गदर्शन मिलना चाहिये । उनके प्रयोग को. निखारने और बढाने में शिक्षाशास्त्रियों का योगदान होना चाहिये क्योंकि ये धार्मिक शिक्षा हेतु आदर्श प्रयोग हैं । देशके शैक्षिक संगठनों ट्वारा इन प्रयोगों को समर्थन और सुरक्षा की सिद्धता होनी चाहिए।
 
# विद्यालयों में आज तो ऐसी व्यवस्था या पद्धति नहीं है कि वे स्वयं अपने विद्यालयों या महाविद्यालयों के लिये स्वयं शिक्षक तैयार कर सर्के । इसका एक कारण यह भी है कि पूर्ण शिक्षा कहीं एक स्थान पर होती हो ऐसी व्यवस्था नहीं है । किसी एक संस्थामें पूर्व प्राथमिक से महाविद्यालय स्तर तक की शिक्षा होती हो तब भी वे सारे विभाग भिन्न भिन्न सरकारी स्चनाओं के नियमन में चलते हैं । इसलिये कोई एक विद्यालय स्वयं चाहे उस विद्यार्थी को या उस शिक्षक को अपने विद्यालय में नियुक्त नहीं कर सकता । अपने विद्यार्थी के साथ साथ उसे अन्य लोगोंं को भी चयनप्रक्रिया में समाविष्ट करना होता है । एक अच्छा विद्यार्थी जब तक शिक्षक प्रशिक्षण का प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं करता तब तक वह शिक्षक नहीं बन सकता । उसी प्रकार से सभी प्रमाणपत्र प्राप्त विद्यार्थी अच्छे शिक्षक होते ही हैं ऐसा नियम नहीं है । शिक्षकों के चयन में विद्यालय के मापदण्ड नहीं चलते, सरकार के चलते हैं । इसलिये उस व्यवस्था से ही शिक्षक लेने होते हैं । इस स्थिति में इतना तो किया जा सकता है कि जो शिक्षक बनने योग्य हैं ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षक ही बनने की प्रेरणा दी जाय और उन्हें इस हेतु से मार्गदर्शन, अवसर और शिक्षण भी दिया जाय । विभिन्न विषयों के महाविद्यालयीन अध्यापकों ने भी अध्यापक बनने योग्य विद्यार्थियों को प्रगत अध्ययन और अनुसन्धान के क्षेत्र में जाकर अध्यापक बनने के लिये प्रेरित करना चाहिये । ये विद्यार्थी अपने ही विद्यालय या महाविद्यालय में शिक्षक न भी बनें तो भी जहाँ जायें वहाँ अच्छे शिक्षक के रूप में कार्य कर सकेंगे । इसके साथ ही जो शिक्षक बनने योग्य नहीं है ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षक बनने से परावृत्त करने की भी योजना बनानी चाहिये । जो शिक्षक बनने योग्य नहीं है वे जब शिक्षक बन जाते हैं तब वे शिक्षा की और समाज की कुसेवा करते हैं ।
 
# विद्यालयों में आज तो ऐसी व्यवस्था या पद्धति नहीं है कि वे स्वयं अपने विद्यालयों या महाविद्यालयों के लिये स्वयं शिक्षक तैयार कर सर्के । इसका एक कारण यह भी है कि पूर्ण शिक्षा कहीं एक स्थान पर होती हो ऐसी व्यवस्था नहीं है । किसी एक संस्थामें पूर्व प्राथमिक से महाविद्यालय स्तर तक की शिक्षा होती हो तब भी वे सारे विभाग भिन्न भिन्न सरकारी स्चनाओं के नियमन में चलते हैं । इसलिये कोई एक विद्यालय स्वयं चाहे उस विद्यार्थी को या उस शिक्षक को अपने विद्यालय में नियुक्त नहीं कर सकता । अपने विद्यार्थी के साथ साथ उसे अन्य लोगोंं को भी चयनप्रक्रिया में समाविष्ट करना होता है । एक अच्छा विद्यार्थी जब तक शिक्षक प्रशिक्षण का प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं करता तब तक वह शिक्षक नहीं बन सकता । उसी प्रकार से सभी प्रमाणपत्र प्राप्त विद्यार्थी अच्छे शिक्षक होते ही हैं ऐसा नियम नहीं है । शिक्षकों के चयन में विद्यालय के मापदण्ड नहीं चलते, सरकार के चलते हैं । इसलिये उस व्यवस्था से ही शिक्षक लेने होते हैं । इस स्थिति में इतना तो किया जा सकता है कि जो शिक्षक बनने योग्य हैं ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षक ही बनने की प्रेरणा दी जाय और उन्हें इस हेतु से मार्गदर्शन, अवसर और शिक्षण भी दिया जाय । विभिन्न विषयों के महाविद्यालयीन अध्यापकों ने भी अध्यापक बनने योग्य विद्यार्थियों को प्रगत अध्ययन और अनुसन्धान के क्षेत्र में जाकर अध्यापक बनने के लिये प्रेरित करना चाहिये । ये विद्यार्थी अपने ही विद्यालय या महाविद्यालय में शिक्षक न भी बनें तो भी जहाँ जायें वहाँ अच्छे शिक्षक के रूप में कार्य कर सकेंगे । इसके साथ ही जो शिक्षक बनने योग्य नहीं है ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षक बनने से परावृत्त करने की भी योजना बनानी चाहिये । जो शिक्षक बनने योग्य नहीं है वे जब शिक्षक बन जाते हैं तब वे शिक्षा की और समाज की कुसेवा करते हैं ।
 
# सही मार्ग तो यह है कि अपने विद्यालय के छात्र ही विद्यालय में शिक्षक बनें । शिक्षा की परम्परा निर्माण करना धार्मिक शिक्षा का एक खास लक्षण है । हर पिताश्री को जिस प्रकार अपने कुल की परम्परा अपने पुत्र को सौंपनी चाहिये उसी प्रकार हर शिक्षक को अपना दायित्व वहन करे ऐसा योग्य विद्यार्थी निर्माण करना चाहिये । ऐसे एक से अधिक विद्यार्थी निर्माण करना उचित होगा क्योंकि तब शिक्षा का प्रसार होगा । अपने विद्यार्थियों में कौन प्राथमिक में, कौन माध्यमिक में, कौन महाविद्यालय में और कौन सभी स्तरों पर पढा सकेगा यह पहचानना शिक्षक का कर्तव्य है। अच्छे विद्यार्थी ही नहीं तो अच्छे शिक्षक भी देना यह शिक्षक की शिक्षासेवा और समाजसेवा है ।
 
# सही मार्ग तो यह है कि अपने विद्यालय के छात्र ही विद्यालय में शिक्षक बनें । शिक्षा की परम्परा निर्माण करना धार्मिक शिक्षा का एक खास लक्षण है । हर पिताश्री को जिस प्रकार अपने कुल की परम्परा अपने पुत्र को सौंपनी चाहिये उसी प्रकार हर शिक्षक को अपना दायित्व वहन करे ऐसा योग्य विद्यार्थी निर्माण करना चाहिये । ऐसे एक से अधिक विद्यार्थी निर्माण करना उचित होगा क्योंकि तब शिक्षा का प्रसार होगा । अपने विद्यार्थियों में कौन प्राथमिक में, कौन माध्यमिक में, कौन महाविद्यालय में और कौन सभी स्तरों पर पढा सकेगा यह पहचानना शिक्षक का कर्तव्य है। अच्छे विद्यार्थी ही नहीं तो अच्छे शिक्षक भी देना यह शिक्षक की शिक्षासेवा और समाजसेवा है ।

Navigation menu