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== परिचय ==
 
== परिचय ==
 
सूर्यके बारह नामों के द्वारा बारह नमस्कार किये जाते हैं। प्रणामों में साष्टाङ्ग प्रणामका अधिक महत्त्व माना गया है। यह अधिक उपयोगी है। इससे शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है। शास्त्रमें इसका बहुत महत्त्व बतलाया गया है।<blockquote>प्रातः संध्यावसाने तु नित्यं सूर्यं समर्चयेत् ॥(पारिजात) </blockquote>दूध देनेवाली एक लाख गायोंके दानका जो फल होता है, उससे भी बढ़कर फल एक दिनकी सूर्य पूजासे होता है।<blockquote>प्रदद्याद वै गवां लक्षं दोग्ध्रीणां वेदपारगे । एकाहमर्चयेद् भानुं तस्य पुण्यं ततोऽधिकम् ॥(भविष्यपुराण) </blockquote>पूजाकी तरह ही सूर्यके नमस्कारोंका भी महत्त्व है। <blockquote>यः सूर्य पूजयेन्नित्यं प्रणमेद् वापि भक्तितः । तस्य योगं च मोक्षं च ब्रध्नस्तुष्टः प्रयच्छति॥ (भविष्यपुराण)</blockquote>
 
सूर्यके बारह नामों के द्वारा बारह नमस्कार किये जाते हैं। प्रणामों में साष्टाङ्ग प्रणामका अधिक महत्त्व माना गया है। यह अधिक उपयोगी है। इससे शारीरिक व्यायाम भी हो जाता है। शास्त्रमें इसका बहुत महत्त्व बतलाया गया है।<blockquote>प्रातः संध्यावसाने तु नित्यं सूर्यं समर्चयेत् ॥(पारिजात) </blockquote>दूध देनेवाली एक लाख गायोंके दानका जो फल होता है, उससे भी बढ़कर फल एक दिनकी सूर्य पूजासे होता है।<blockquote>प्रदद्याद वै गवां लक्षं दोग्ध्रीणां वेदपारगे । एकाहमर्चयेद् भानुं तस्य पुण्यं ततोऽधिकम् ॥(भविष्यपुराण) </blockquote>पूजाकी तरह ही सूर्यके नमस्कारोंका भी महत्त्व है। <blockquote>यः सूर्य पूजयेन्नित्यं प्रणमेद् वापि भक्तितः । तस्य योगं च मोक्षं च ब्रध्नस्तुष्टः प्रयच्छति॥ (भविष्यपुराण)</blockquote>
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=== सूर्यनमस्कार की शक्ति ===
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महाराष्ट्र की भूमि पर ऐसे एक महापुरुष हो गयेसमर्थ रामदास’ जिन्होंने ईश्वर-आराधना के द्वारा मानव-समाज को दैवी गुणों से सम्पन्न बनने का उपदेश तो दिया साथ ही अनीति व बुराइयों से लोहा लेने हेतु साहसी व बलवान बनने को भी प्रेरित किया ।
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एक बार समर्थ रामदासजी अपनी शिष्य-मंडली के साथ तीर्थाटन करते हुए किसी गाँव में ठहरे थे । उस गाँव की देखरेख एक मुगल ठेकेदार करता था । हिन्दू धर्म तथा साधु-संतों के प्रति उसके मन में घृणा का भाव था। एक दिन  प्रभातकाल में समर्थजी का शिष्य उद्धव स्वामी स्नानादि से निवृत हो नदी तट पर भगवन्नाम-जप कर रहा था ।
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ठेकेदार के कुछ आदमियों ने यह खबर उस तक पहुँचायी । तुरंत ही उसने अकारण जेल में डलवा दिया।
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यह खबर जब समर्थ रामदासजी को मिली तो उनके मुख से उदगार निकल पड़े- ठेकेदार की यह हिम्मत….! मेरे शिष्य को अकारण कैद किया !
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उन्होंने अपना मोटा दंड उठाया और ठेकेदार के घर जा पहुँचे । सूर्यनमस्कार से सधा हुआ उनका सुगठित-बलवान शरीर, चेहरे पर झलकता दिव्य ब्रह्मतेज और अंगारों-सी चमकती उनकी रक्तवर्णी आँखें देखकर ठेकेदार भय से थर-थर काँपने लगा ।
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समर्थ रामदासजी अपना ब्रह्मदण्ड उठाकर गर्जना करते हुए बोले : “मेरे शिष्य को तुरंत छोड़ दे, नहीं तो यह एक दंड ही तुझे यमलोक पहुँचाने के लिए पर्याप्त है ।
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भय से घबराये ठेकेदार ने तत्काल ही उद्धव स्वामी को ससम्मान मुक्त कर दिया और समर्थजी से क्षमा माँगते हुए भविष्य में कभी किसी हिन्दू संत-महापुरुष या उनके शिष्य को तो क्या किसी भी हिन्दू को तंग न करने का वचन दिया। उद्धव को साथ लेकर स्वामी समर्थ वहाँ से चल पड़े ।
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रास्ते में प्रेम भरी थपकी देते उद्धव से बोले- अपनी गुलामी का कारण अपना दुर्बल शरीर और शत्रु का प्रतिकार करने की क्षमता का अभाव है । दुर्बल शरीरवाला कदापि शत्रुओं का सामना नहीं कर सकता । प्रभुसेवा अथवा देशसेवा भी करनी हो तो मन के साथ तन को भी मजबूत बनाना पड़ेगा । अतः अब से मठ में तुम्हें तथा अन्य साधकों को नियमित रूप से सूर्यनमस्कार करना है।
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गुरु की बात आदरपूर्वक स्वीकार कर उद्धव स्वामी ने सूर्यनमस्कार द्वारा शरीर को सुदृढ़ बनाने का संकल्प लिया ।
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सूर्य नमस्कार ऐसी यौगिक प्रक्रिया है, जिसमें आसन एवं व्यायाम दोनों का ही समावेश हो जाता है, साथ ही सूर्यदेव की उपासना भी हो जाती है । अतः इससे शरीर तो सुदृढ़ होता ही है, बुद्धिशक्ति भी प्रखर बनती है क्योंकि भगवान सूर्य बुद्धि के देवता हैं । सूर्यनमस्कार  मंत्र सहित किया जाये तो विशेष लाभ होता है। चिंता करतो विश्वाची, सुनील चिंचोडकर, गन्धर्व वेद प्रकाशन,
    
== उद्धरण ==
 
== उद्धरण ==
 
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