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विभिन्न प्रकार की शिक्षायोजना से व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमताओं का विकास करना चाहिए यह हमने पूर्व के अध्याय में देखा। अब प्रश्न यह है कि अपनी विकसित क्षमताओं का व्यक्ति क्या करेगा? इस विषय में यदि कोई निश्चित विचार नहीं रहा तो वह भटक जायेगा। वैसे भी अपनी प्राकृतिक अवस्था में जिस प्रकार पानी नीचे की ओर ही बहता है, उसे ऊपर की ओर उठाने के लिए विशेष प्रयास करने होते हैं उसी प्रकार बिना किसी प्रयास के बलवान और जिद्दी मन विकृति की ओर ही खींच कर ले जाता है । अत: क्षमताओं के विकास के साथ साथ उन क्षमताओं के सम्यक् उपयोग के मार्ग भी विचार में लेने चाहिए। यह शिक्षा का दूसरा पहलू है। अथवा यह भी कह सकते हैं कि मनुष्य के व्यक्तित्व विकास का यह दूसरा आयाम है।
 
विभिन्न प्रकार की शिक्षायोजना से व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमताओं का विकास करना चाहिए यह हमने पूर्व के अध्याय में देखा। अब प्रश्न यह है कि अपनी विकसित क्षमताओं का व्यक्ति क्या करेगा? इस विषय में यदि कोई निश्चित विचार नहीं रहा तो वह भटक जायेगा। वैसे भी अपनी प्राकृतिक अवस्था में जिस प्रकार पानी नीचे की ओर ही बहता है, उसे ऊपर की ओर उठाने के लिए विशेष प्रयास करने होते हैं उसी प्रकार बिना किसी प्रयास के बलवान और जिद्दी मन विकृति की ओर ही खींच कर ले जाता है । अत: क्षमताओं के विकास के साथ साथ उन क्षमताओं के सम्यक् उपयोग के मार्ग भी विचार में लेने चाहिए। यह शिक्षा का दूसरा पहलू है। अथवा यह भी कह सकते हैं कि मनुष्य के व्यक्तित्व विकास का यह दूसरा आयाम है।
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इस दूसरे आयाम को हम व्यक्ति का सृष्टि के साथ समायोजन कह सकते हैं। सृष्टि में जैसे पूर्व के अध्याय में बताया है, मनुष्य के साथ साथ प्राणी, वनस्पति और पंचमहाभूत हैं। हमने यह भी देखा कि इन चार सत्ताओं के दो वर्ग होते हैं , एक वर्ग में मनुष्य है और दूसरे में शेष तीनों। हम सुविधा के लिए इन्हें क्रमश: समष्टि और सृष्टि कहेंगे । इस सृष्टि को निसर्ग भी कह सकते हैं । अत: मनुष्य को दो स्तरों पर समायोजन करना है, एक समष्टि के स्तर पर अर्थात अपने जैसे अन्य मनुष्यों के साथ और दूसरा निसर्ग के साथ । इस समायोजन के लिए शिक्षा का विचार किस प्रकार किया जा सकता है यह अब देखेंगे।
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इस दूसरे आयाम को हम व्यक्ति का सृष्टि के साथ समायोजन कह सकते हैं। सृष्टि में जैसे पूर्व के अध्याय में बताया है, मनुष्य के साथ साथ प्राणी, वनस्पति और पंचमहाभूत हैं। हमने यह भी देखा कि इन चार सत्ताओं के दो वर्ग होते हैं , एक वर्ग में मनुष्य है और दूसरे में शेष तीनों। हम सुविधा के लिए इन्हें क्रमश: समष्टि और सृष्टि कहेंगे । इस सृष्टि को निसर्ग भी कह सकते हैं । अत: मनुष्य को दो स्तरों पर समायोजन करना है, एक समष्टि के स्तर पर अर्थात अपने जैसे अन्य मनुष्यों के साथ और दूसरा निसर्ग के साथ । इस समायोजन के लिए शिक्षा का विचार किस प्रकार किया जा सकता है यह अब देखेंगे।<ref>भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला १) - अध्याय १२, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>
    
== '''समष्टि के साथ समायोजन''' ==
 
== '''समष्टि के साथ समायोजन''' ==

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