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३५. इस समाजरचना का और एक परिणाम यह हुआ है कि अब दो पीढ़ियाँ साथ नहीं रहतीं । मातापिता सेवानिवृत्ति के बाद दूसरे स्थान पर रहनेवाले पुत्रों के घर जाना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें निवृत्ति मानधन मिलता है और उसके आधार पर वे स्वतन्त्र रहना चाहते हैं । पुत्र पुत्री भी अपना करिअर बनाने की दृष्टि से महानगर में या उससे भी आगे विदेशों में जाकर रहते हैं जहाँ वे अपने मातापिता को बुलाना नहीं चाहते ।
 
३५. इस समाजरचना का और एक परिणाम यह हुआ है कि अब दो पीढ़ियाँ साथ नहीं रहतीं । मातापिता सेवानिवृत्ति के बाद दूसरे स्थान पर रहनेवाले पुत्रों के घर जाना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें निवृत्ति मानधन मिलता है और उसके आधार पर वे स्वतन्त्र रहना चाहते हैं । पुत्र पुत्री भी अपना करिअर बनाने की दृष्टि से महानगर में या उससे भी आगे विदेशों में जाकर रहते हैं जहाँ वे अपने मातापिता को बुलाना नहीं चाहते ।
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३६. इसी के चलते घरों में सबके स्वतंत्र कमरे होना प्रगति का लक्षण माना जाता है । सबको “प्राइवसी' चाहिये,
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३६. इसी के चलते घरों में सबके स्वतंत्र कमरे होना प्रगति का लक्षण माना जाता है । सबको “प्राइवसी' चाहिये, सबको अपना अपना “स्पेस' चाहिये । सबको अपने लिये कुछ स्वतन्त्र समय चाहिये । यहाँ तक दूसरे को “समय' देना है । पत्नी को पति के लिये, पति को पत्नी के लिये, दोनों को बच्चों के लिये समय देना है, मूल्यबान समय देना है । परिवार में तो सब साथ मिलके जीते हैं उसमें एकदूसरे के लिये समय देने की बात कैसे हो सकती है ? सब तो सबके होते हैं । परन्तु जब परिवार के सभी सदस्य अपना अपना जीवन जीते हैं तब एकदूसरे को कुछ देने का हिसाब होता है ।
 
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सबको अपना अपना “स्पेस' चाहिये । सबको अपने लिये कुछ स्वतन्त्र समय चाहिये । यहाँ तक दूसरे को “समय' देना है । पत्नी को पति के लिये, पति को पत्नी के लिये, दोनों को बच्चों के लिये समय देना है, मूल्यबान समय देना है । परिवार में तो सब साथ मिलके जीते हैं उसमें एकदूसरे के लिये समय देने की बात कैसे हो सकती है ? सब तो सबके होते हैं । परन्तु जब परिवार के सभी सदस्य अपना अपना जीवन जीते हैं तब एकदूसरे को कुछ देने का हिसाब होता है ।
      
३७.. यहाँ सबको अपना अपना निर्णय लेने का अधिकार है, कोई किसी के लिये निर्णय नहीं कर सकता और यदि करता भी है तो उसे मान्य नहीं रखा जाता । सबके अधिकार होते हैं और उस अधिकार की रक्षा के लिये कानून होता है ।
 
३७.. यहाँ सबको अपना अपना निर्णय लेने का अधिकार है, कोई किसी के लिये निर्णय नहीं कर सकता और यदि करता भी है तो उसे मान्य नहीं रखा जाता । सबके अधिकार होते हैं और उस अधिकार की रक्षा के लिये कानून होता है ।
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