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# अब इसमें शैक्षिक दृष्टि से विचारणीय बातें कौन सी हैं ?पहली बात तो यह है कि विद्यालय में पानी की व्यवस्था है और वह अच्छी है इस बात पर अभिभावकों का विश्वास बनना चाहिये । इसके आधार पर ही आगे की बातें सम्भव हो सकती हैं।  
 
# अब इसमें शैक्षिक दृष्टि से विचारणीय बातें कौन सी हैं ?पहली बात तो यह है कि विद्यालय में पानी की व्यवस्था है और वह अच्छी है इस बात पर अभिभावकों का विश्वास बनना चाहिये । इसके आधार पर ही आगे की बातें सम्भव हो सकती हैं।  
 
# आजकल जो बात सर्वाधिक प्रचलन में है वह है प्लास्टिक का प्रयोग । टंकी, बोतल, नलिका और नल, प्याले आदि सबकुछ प्लास्टिक का ही बना होता है। भौतिक विज्ञान स्पष्ट कहता है कि प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है । इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का प्रयोग न करे और उसके निषेध के लिए छात्रों की सिद्धता बनाए और अभिभावकों का प्रबोधन करे । विद्यालय के शिक्षाक्रम का यह एक महत्त्वपूर्ण अंग होना चाहिये । विश्वभर के संकट मनुष्य की अनुचित मन:स्थिति और उससे प्रेरित होने वाले अनुचित व्यवहार के कारण ही तो निर्माण होते हैं। मन और व्यवहार ठीक करने का प्रमुख अथवा कहो कि एकमेव केन्द्र ही तो विद्यालय है । वहाँ भी यदि प्लास्टिक का प्रयोग किया जाय तो इससे बढ़कर पाप कौनसा होगा। इस सन्दर्भ में सुभाषित देखें  
 
# आजकल जो बात सर्वाधिक प्रचलन में है वह है प्लास्टिक का प्रयोग । टंकी, बोतल, नलिका और नल, प्याले आदि सबकुछ प्लास्टिक का ही बना होता है। भौतिक विज्ञान स्पष्ट कहता है कि प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक है । इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का इसलिए विद्यालय का यह कर्तव्य है कि प्लास्टिक का प्रयोग न करे और उसके निषेध के लिए छात्रों की सिद्धता बनाए और अभिभावकों का प्रबोधन करे । विद्यालय के शिक्षाक्रम का यह एक महत्त्वपूर्ण अंग होना चाहिये । विश्वभर के संकट मनुष्य की अनुचित मन:स्थिति और उससे प्रेरित होने वाले अनुचित व्यवहार के कारण ही तो निर्माण होते हैं। मन और व्यवहार ठीक करने का प्रमुख अथवा कहो कि एकमेव केन्द्र ही तो विद्यालय है । वहाँ भी यदि प्लास्टिक का प्रयोग किया जाय तो इससे बढ़कर पाप कौनसा होगा। इस सन्दर्भ में सुभाषित देखें  
<blockquote>अन्यक्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति । </blockquote><blockquote>तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ।।</blockquote><blockquote>अर्थात अन्य स्थानों पर किया गया पाप तीर्थक्षेत्र में धुल जाता है परन्तु तीर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप वज्रलेप बन जाता है। विद्यालय ज्ञान के क्षेत्र में तीर्थक्षेत्र ही तो है । अतः विद्यालय ने इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिये ।</blockquote>७. एक ओर प्लास्टीक का आतंक है तो दूसरी ओर शुद्धीकरण का भूत बुद्धि पर सवार हो गया है। हम कहते हैं कि आज का जमाना वैज्ञानिकता का है। परन्तु पानी के शुद्धीकरण के लिए जो यंत्र लगाए जाते हैं और जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वह विज्ञापनों ने रची हुई मायाजाल है। विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं से 'शुद्ध' हुआ पानी शरीर के लिए उपयोगी क्षारों को भी गँवा चुका होता है । अभ्यस्त लोगों को स्वाद से भी इसका पता चल जाता है। हमारे बड़े बड़े कार्यक्रमों में और घरों में शुद्ध पानी के नाम पर मिनरल पानी और प्लास्टिक के पात्र प्रयोग में लाये जाते हैं वह हमारी बुद्धि कितनी विपरीत हो गई है और अतार्किक तर्कों से ग्रस्त हो गई है इसका ही द्योतक है। विद्यालयों ने इस संकट के ज्ञानात्मक और भावनात्मक उपाय करने चाहिए । इस दृष्टि से तो प्रथम इन दोनों बातों का प्रयोग बन्द करना चाहिये ।
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<blockquote>अन्यक्षेत्रे कृतं पापं तीर्थक्षेत्रे विनश्यति । </blockquote><blockquote>तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं वज्रलेपो भविष्यति ।।</blockquote><blockquote>अर्थात अन्य स्थानों पर किया गया पाप तीर्थक्षेत्र में धुल जाता है परन्तु तीर्थक्षेत्र में किया हुआ पाप वज्रलेप बन जाता है। विद्यालय ज्ञान के क्षेत्र में तीर्थक्षेत्र ही तो है । अतः विद्यालय ने इसे अपना कर्तव्य समझना चाहिये ।</blockquote>
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८. भौतिक विज्ञान के प्रयोगों ने यह सिद्ध किया है कि मिट्टी के पात्र पानी के शुद्धिकारण के लिए बहुत लाभकारी हैं। तांबे के पात्र भी उतने ही लाभकारी हैं । पीने के पानी के लिए गर्मी के दिनों में मिट्टी के और ठंड के दिनों में तांबे के पात्र सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। शुद्धीकरण के कृत्रिम उपायों में पैसा खर्च करने के स्थान पर मिट्टी और तांबे के पात्रों का प्रयोग करना दूरगामी और तात्कालिक दोनों दृष्टि से अधिक समुचित है । टंकियों में भरे पानी को शुद्ध करने के लिए भी रसायनों का प्रयोग करने के स्थान पर सहजन और निर्मली के बीज और फिटकरी जैसे पदार्थों का प्रयोग अधिक लाभकारी होते हैं छात्रों को कूलर और शीतागार का पानी भी नहीं पिलाना चाहिये।
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<li> एक ओर प्लास्टीक का आतंक है तो दूसरी ओर शुद्धीकरण का भूत बुद्धि पर सवार हो गया है। हम कहते हैं कि आज का जमाना वैज्ञानिकता का है। परन्तु पानी के शुद्धीकरण के लिए जो यंत्र लगाए जाते हैं और जो प्रक्रिया अपनाई जाती है वह विज्ञापनों ने रची हुई मायाजाल है। विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाओं से 'शुद्ध' हुआ पानी शरीर के लिए उपयोगी क्षारों को भी गँवा चुका होता है । अभ्यस्त लोगों को स्वाद से भी इसका पता चल जाता है। हमारे बड़े बड़े कार्यक्रमों में और घरों में शुद्ध पानी के नाम पर मिनरल पानी और प्लास्टिक के पात्र प्रयोग में लाये जाते हैं वह हमारी बुद्धि कितनी विपरीत हो गई है और अतार्किक तर्कों से ग्रस्त हो गई है इसका ही द्योतक है। विद्यालयों ने इस संकट के ज्ञानात्मक और भावनात्मक उपाय करने चाहिए । इस दृष्टि से तो प्रथम इन दोनों बातों का प्रयोग बन्द करना चाहिये
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९. पानी के सम्यक उपयोग का ज्ञान भी देने की आवश्यकता है। पानी निकासी की व्यवस्था भी गम्भीरतापूर्वक करनी चाहिये । इसकी चर्चा भी स्वतन्त्र रूप से अन्यत्र की गई है।
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<li> भौतिक विज्ञान के प्रयोगों ने यह सिद्ध किया है कि मिट्टी के पात्र पानी के शुद्धिकारण के लिए बहुत लाभकारी हैं। तांबे के पात्र भी उतने ही लाभकारी हैं । पीने के पानी के लिए गर्मी के दिनों में मिट्टी के और ठंड के दिनों में तांबे के पात्र सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। शुद्धीकरण के कृत्रिम उपायों में पैसा खर्च करने के स्थान पर मिट्टी और तांबे के पात्रों का प्रयोग करना दूरगामी और तात्कालिक दोनों दृष्टि से अधिक समुचित है । टंकियों में भरे पानी को शुद्ध करने के लिए भी रसायनों का प्रयोग करने के स्थान पर सहजन और निर्मली के बीज और फिटकरी जैसे पदार्थों का प्रयोग अधिक लाभकारी होते हैं । छात्रों को कूलर और शीतागार का पानी भी नहीं पिलाना चाहिये।
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<li> पानी के सम्यक उपयोग का ज्ञान भी देने की आवश्यकता है। पानी निकासी की व्यवस्था भी गम्भीरतापूर्वक करनी चाहिये । इसकी चर्चा भी स्वतन्त्र रूप से अन्यत्र की गई है।
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== पानी के विषय में शिक्षा ==
 
== पानी के विषय में शिक्षा ==

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