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# वास्तव में साइकिल संस्कृति का विकास करने की आवश्यकता है । सडकों पर साइकिल के लिये अलग से व्यवस्था बन सकती है। पैदल चलनेवालों और साइकिल का प्रयोग करने वालों की प्रतिष्ठा बढनी चाहिये। विद्यालयों ने इसे अपना मिशन बनाना चाहिये । सरकार ने आवाहन करना चाहिये । समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने नेतृत्व करना चाहिये ।
 
# वास्तव में साइकिल संस्कृति का विकास करने की आवश्यकता है । सडकों पर साइकिल के लिये अलग से व्यवस्था बन सकती है। पैदल चलनेवालों और साइकिल का प्रयोग करने वालों की प्रतिष्ठा बढनी चाहिये। विद्यालयों ने इसे अपना मिशन बनाना चाहिये । सरकार ने आवाहन करना चाहिये । समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने नेतृत्व करना चाहिये ।
 
जिस दिन वाहनव्यवस्था और वाहनमानसिकता में परिवर्तन होगा उस दिन से हम स्वास्थ्य, शान्ति और समृद्धि की दिशा में चलना शुरू करेंगे।
 
जिस दिन वाहनव्यवस्था और वाहनमानसिकता में परिवर्तन होगा उस दिन से हम स्वास्थ्य, शान्ति और समृद्धि की दिशा में चलना शुरू करेंगे।
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=== विद्यालय में धनव्यवस्था ===
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# ध्वनि प्रदूषण का क्या अर्थ है ?
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# विद्यालय में ध्वनि प्रदूषण किन किन स्रोतों से होता है ?
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# अच्छी ध्वनिव्यवस्था का क्या अर्थ है ?
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# ध्वनि का शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होता है ?
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# ध्वनि व्यवस्था की दृष्टि से निम्नलिखित बातों में क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिये ? १. ध्वनिवर्धक यंत्र २. ध्वनिमुद्रण यंत्र एवं ध्वनमुद्रिकायें ३. ध्वनिक्षेपक यंत्र ४. विद्यालय की विभिन्न प्रकार की घण्टियां ५. कक्षाकक्ष की रचना ६. संगीत के साधन ७. लोगों का बोलने का ढंग
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# ध्वनिप्रदूषण का निवारण करने के क्या उपाय है ?
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# अच्छी ध्वनिव्यवस्था के शैक्षिक लाभ क्या हैं ?
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# ध्वनिप्रदूषण निवारण के एवं अच्छी ध्वनिव्यवस्था बनाये रखने के आर्थिक एवं मानवीय प्रयास क्या हो सकते हैं ?
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==== '''प्रश्नावली से पाप्त उत्तर''' ====
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जल प्रदूषण, वायु प्रदुषण जैसे शब्दों से हम सुपरिचित हैं। वैसा ही खतरनाक शब्द ध्वनि प्रदूषण भी है। विद्यालयों में इस ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिए व्यवस्थयें कैसी हों, यह जानने के लिए प्रश्नावली बनी है। विद्यालयों में होने वाले कोलाहल का नित्य अनुभव करने वाले आचार्यों ने इन आठ प्रश्नों के उत्तर भेजे हैं।
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१. छात्रों के सतत कोलाहल से होने वाले शोर से ही ध्वनि प्रदूषण होता है। ऐसा उनका मत है। २. ध्वनि प्रदूषण के स्रोत में छात्रों का जोर जोर से चिल्लाना, दर के मित्र को चिल्लाकर बुलाना, आस पास की कक्षाओं से ऊँचे स्वर में पढ़ाने की आवाजें आना, सूचनाएँ देने के लिए ध्वनिवर्धक यन्त्र का उपयोग करना आदि । इन सबके साथ साथ जब विद्यालय शहर के मध्य में अथवा मुख्य सड़क पर स्थित है तो आने जाने वाले वाहनों की कर्णकर्कश आवाजों के कारण विद्यार्थी ठीक से सुन नहीं पाते, परिणाम स्वरूप शिक्षकों का उच्चस्वर में बोलना, शिक्षकों द्वारा डस्टर को जोर से टेबल पर मारना आदि बातों से अत्यधिक शोर मचता है। इस ध्वनि प्रदूषण को रोकने हेतु विद्यालय का मुख्य सडक से दूर होना, छात्रों व आचार्यों का चिल्ला कर न बोलना, ध्वनि वर्धक यन्त्र का अनावश्यक उपयोग न करना आदि उपाय सूचित किये हैं।
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==== अभिमत : ====
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विद्यार्थियों को शान्त स्वर में बोलने का अभ्यास करवाना चाहिए। शिक्षकों का शान्त स्वर में बोलना भी इसमें सहायक होता है। अति उत्तेजना से अशान्ति बढती है, अतः बार-बार उत्तेजित न हो, इसलिए ब्रह्मनाद व ध्यान करवाना चाहिए । अत्यधिक कोलाहल होने से शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत परिणाम होता है। सीखते समय एकाग्रता नहीं बन पाती। आकलन शक्ति व स्मरणशक्ति क्षीण होती है। विद्यालय में अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया में ध्वनि तो होगी ही, परन्तु तेज, कर्कश व आवेशपूर्ण ध्वनि के स्थान पर शांत, मधुर व आत्मीयता पूर्ण ध्वनि बोलने से शोर भी नहीं होता और छात्रों की एकाग्रता भी बढती है, शान्तवातावरण का मन पर अनुकूल प्रभाव पडता हैं। छात्रों की ग्रहणशीलता व धारणाशक्ति बढती है, आकलन जल्दी होता है, बुद्धि कुशाग्र होती है और इन सभी बातों से ज्ञानार्जन भी अधिक होता है।
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ध्वनि प्रदूषण रोकने हेतु आर्थिक उपायों से अधिक कारगर मानवीय प्रयास ही उपयोगी होंगे। नीरव शांतता और भयप्रद शांतता के अन्तर को समझना होगा। एक समाचार पत्र में पढ़ा था कि दिल्ली के एक विद्यालय में मौनी अमावस्या के दिन मौनाभ्यास होता है। विद्यालय के सारे कार्य यथावत होते हैं, परन्तु प्रधानाचार्य, शिक्षक, विद्यार्थी व कर्मचारी मौन पालन करते हैं। यह प्रयोग जीवन का संस्कार बनता है, मौन का महत्त्व समझ में आता है। वर्ष में एक दिन सबकी ऊर्जा बड़ी मात्रा में बचती है, श्रवणशक्ति भी बढ़ती है।
    
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