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==== अभिमत : ====
 
==== अभिमत : ====
सभी उत्तरों को पढने से ऐसा लगा कि हम स्वयं समस्या निर्माण करने वाले हैं और हम ही उनका समर्थन करने वाले हैं। सबसे अच्छी व्यवस्था तो यही है कि जिस आयु का बालक जितनी दूर पैदल जा सकता है, उतनी दूर पर ही उसका विद्यालय होना चाहिए । पैदल जाते समय मित्रों का साथ उन्हें आनन्ददायी लगता है। शारीरिक स्वस्थता एवं स्वावलम्बन दोनों ही सहज में मिलते हैं। आते जाते मार्ग के दृश्य, घटनाएँ बहुत कुछ अनायास ही सिखा देती है। ऐसी अनुकूलता की अनेक बातें छोड़कर हम प्रतिकूल परिस्थिति में जीवन जीते हैं, ऐसा क्यों ? तो ध्यान में आता है कि अपने बालक को केजी से पीजी तक की शिक्षा एक ही अच्छी संस्था में हो वही भेजना ऐसे दुराग्रह रखने से होता है। इसके स्थान पर जो विद्यालय पास में है, उसे ही अच्छा बनाने में सहयोगी होना । ऐसा विचार यदि अभिभावक रखेंगे तो शिक्षा आनन्द दायक व तनावमुक्त होगी। छोटे छोटे गाँवों में बैलगाडी, ऊँटगाडी, घोडागाडी से विद्यालय जाना कितना सुखकर होता था, यह हम भूल गये हैं। इन वाहनों की गति कम होने से दुर्घटना होने की सम्भावना भी कम और मार्ग में निरीक्षण करते जाने का आनन्द अधिक मिलता है। निर्जीव वाहनों में यात्रा करने के स्थान पर जीवित प्राणियों के साथ प्रवास करने से
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सभी उत्तरों को पढने से ऐसा लगा कि हम स्वयं समस्या निर्माण करने वाले हैं और हम ही उनका समर्थन करने वाले हैं। सबसे अच्छी व्यवस्था तो यही है कि जिस आयु का बालक जितनी दूर पैदल जा सकता है, उतनी दूर पर ही उसका विद्यालय होना चाहिए । पैदल जाते समय मित्रों का साथ उन्हें आनन्ददायी लगता है। शारीरिक स्वस्थता एवं स्वावलम्बन दोनों ही सहज में मिलते हैं। आते जाते मार्ग के दृश्य, घटनाएँ बहुत कुछ अनायास ही सिखा देती है। ऐसी अनुकूलता की अनेक बातें छोड़कर हम प्रतिकूल परिस्थिति में जीवन जीते हैं, ऐसा क्यों ? तो ध्यान में आता है कि अपने बालक को केजी से पीजी तक की शिक्षा एक ही अच्छी संस्था में हो वही भेजना ऐसे दुराग्रह रखने से होता है। इसके स्थान पर जो विद्यालय पास में है, उसे ही अच्छा बनाने में सहयोगी होना । ऐसा विचार यदि अभिभावक रखेंगे तो शिक्षा आनन्द दायक व तनावमुक्त होगी। छोटे छोटे गाँवों में बैलगाडी, ऊँटगाडी, घोडागाडी से विद्यालय जाना कितना सुखकर होता था, यह हम भूल गये हैं। इन वाहनों की गति कम होने से दुर्घटना होने की सम्भावना भी कम और मार्ग में निरीक्षण करते जाने का आनन्द अधिक मिलता है। निर्जीव वाहनों में यात्रा करने के स्थान पर जीवित प्राणियों के साथ प्रवास करने से उन प्राणियों के प्रति संवेदना जाग्रत होती है और उनसे आत्मीयता बढती है।
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बच्चों का आनन्द बड़ों की समझ में नहीं आता । हम उन्हें भी अपने जैसा अव्यवहारिक तथा असंवेदनशील बनाते जाते हैं । इसी प्रकार २ किमी से लेकर ५ किमी तक की दूरी है तो साइकिल का उपयोग हर दृष्टि से लाभदायक रहता है। पर्याप्त शारीरिक व्यायाम हो जाता है, किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं होता और साथ ही साथ पैसा व समय दोनों बचते हैं । इसलिए स्थान स्थान पर अच्छे व छोटे छोटे विद्यालय खड़ें करने चाहिए।
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वर्तमान समय में अनेक भ्रान्त धारणाओं के कारण हमने अपने लिये अनेक समस्याओं को मोल लिया है। उनमें एक वाहन की समस्या है। अपनी सन्तानों को विद्यालय भेजना अथवा बड़े विद्यार्थी हों तो विद्यालय जाना महँगा हो रहा है उसमें एक हिस्सा वाहन का खर्च है।
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==== विमर्श ====
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==== वाहन की व्यवस्था क्यों करनी पडती है ? ====
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विद्यालय घर से इतना दर है कि बालक पैदल चलकर नहीं जा सकते ।
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यदि पैदल चलकर जा भी सकते हैं तो सड़कों पर वाहनों का यातायात इतना अधिक है कि उनकी सुरक्षा के विषय में भय लगता है।
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पैदल चलकर जा भी सकते हैं तो अब छोटे या बडे विद्यार्थियों में इतनी शक्ति नहीं रही कि वे चल सकें। उन्हें थकान होती है।
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पैदर चलने की शक्ति है तो मानसिकता नहीं है। पैदल चलना अच्छा नहीं लगता। पैदल चलने में प्रतिष्ठा नहीं लगती।
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पैदल चलकर यदि सम्भव भी है तो लगता है कि आने जाने में ही इतना समय बरबाद हो जायेगा की पढने का समय कम हो जायेगा । थक जायेंगे तो पढेंगे कैसे ?
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इन कारणों से वाहन की आवश्यकता निर्माण होती है। विद्यालय जाने के लिये जिन वाहनों का प्रयोग होता है वे कुछ इस प्रकार के हैं...
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१. ऑटोरिक्षा : शिशु से लेकर किशोर आयु के विद्यार्थी इस व्यवस्था में आतेजाते हैं ।
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२. साइकिलरिक्षा : क्वचित इनका भी प्रयोग होता है और शिशु और बाल आयु के विद्यार्थी इनमें जाते हैं ।
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३. स्कूटर और मोटर साइकिल : महाविद्यालयीन विद्यार्थियों का यह अतिप्रिय वाहन है। छोटी आयु के छात्रों को उनके अभिभावक लाते ले जाते हैं।
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४. साइकिल : बाल और किशोर साइकिल का भी प्रयोग करते हैं।
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५. कार : धनाढ्य परिवारों के बालकों के लिये मातापिता कार की सुविधा देते हैं। महाविद्यालयीन विद्यार्थी स्वयं भी कार लेकर आते हैं।
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६. स्कूल बस : महाविद्यालयों में जिस प्रकार मोटरसाइकिल बहुत प्रचलित है उस प्रकार शिशु से किशोर आयु के विद्यार्थियों के लिये स्कूल बस अत्यन्त प्रचलित वाहन है। इसकी व्यवस्था विद्यालय द्वारा ही की जाती है । कभी विद्यालयों की ओर से ऑटोरिक्षा का प्रबन्ध भी किया जाता है।
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हमें एक दृष्टि से लगता है कि वाहन के कारण सुविधा होती है। परन्तु वाहन के कारण अनेक प्रकार की समस्यायें भी निर्माण होती हैं।
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कैसे ?
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१. सबसे बड़ी समस्या है प्रदषण की । झट से कोई कह देता है कि सीएनजी के कारण अब उतना प्रदूषण नहीं होता जितना पहले होता था। यह तो ठीक है परन्तु ईंधन की पैदाइश से लेकर प्रयोग तक सर्वत्र वह प्रदूषण का ही स्रोत बनता है। अनदेखी की जा सके इतनी सामान्य समस्या यह नहीं है।
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२. यातायात की भीड : वाहनों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि सडकों पर उनकी भीड हो जाती है। ट्रैफिक की समस्या महानगरों में तो विकट बन ही गई है, अब वह नगरों की ओर गति कर रही है। इससे कोलाहल अर्थात् ध्वनि प्रदूषण पैदा होता है। हम जानते ही नहीं है कि यह हमारी श्रवणेन्द्रिय पर गम्भीर अत्याचार है और इससे हमारी मानसिक शान्ति का नाश होता है, विचारशक्ति कम होती है।
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वाहनों की भीड के कारण सडकें चौडी से अधिक चौडी बनानी पडती हैं। सडक के बहाने फिर प्राकृतिक संसाधनों के नाश का चक्र शुरू होता है। सडकें चौडी बनाने के लिये खेतों को नष्ट किया जाता है, पुराने रास्तों के किनारे लगे वृक्षों को उखाडा जाता है । यह संकट कोई सामान्य संकट नहीं है।
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४. ट्रेफिक जेम होने के कारण समय की और बरबादी होती है। समय की बरबादी का तो और भी एक कारण है। एक बस में यदि २० से ५० विद्यार्थी आते जाते हैं तो उन्हें आने जाने में एक से ढाई घण्टे खर्च करने पडते हैं । समय एक ऐसी सम्पत्ति है जो अमीर-गरीब के पास समान मात्रा में ही होती है, और एक बार गई तो किसी भी उपाय से न पुनः प्राप्त हो सकती है न उसका खामियाजा भरपाई किया जा सकता है।
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५. वाहन से यात्रा का प्रभाव शरीरस्वास्थ्य पर भी विपरीत ही होता है। वाहन के चलने से उसकी गति से, उसकी आवाज से, उसकी ब्रेक से शरीर पर आघात होते हैं और दर्द तथा थकान उत्पन्न होते हैं । हमारी विपरीत सोच के कारण से हमें समझ में नहीं आता कि चलने से व्यायाम होता है और शरीर स्वस्थ बनता है जबकि वाहन से अस्वास्थ्य बढ़ता है और खर्च भी होता है। वाहन से समय बचता है ऐसा हमें लगता है परन्तु उसकी कीमत पैसा नहीं, स्वास्थ्य है।
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६. वाहन के कारण खर्च बढता है । पढाई के शुल्क से भी वाहन का खर्च अधिक होता है। परिस्थिति और मानसिकता के कारण यह खर्च हमें अनिवार्य लगता है।
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७. वाहनों की अधिकता के कारण केवल व्यक्तिगत सम्पदाओं का नाश नहीं होता है, राष्ट्रीय सम्पत्ति का भी नाश होता है। सुखद जलवायु, समशीतोष्ण तापमान, खेती, स्वस्थ शरीर और मन वाले मनुष्य राष्ट्रीय सम्पत्ति ही तो है। वाहनों के अतिरेक से इस सम्पत्ति का ह्रास होता है। यह समस्या लगती है उससे कहीं अधिक है।
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इन समस्याओं का समाधान क्या है इसका विचार हमें शान्त चित्त से, बुद्धिपूर्वक, मानवीय दृष्टिकोण से और व्यावहारिक धरातल पर करना होगा।
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कुछ इस प्रकार से उपाय करने होंगे...
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# हमें मानसिकता बनानी पडेगी कि पैदल चलना अच्छा है। उसमें स्वास्थ्य है, खर्च की बचत है, अच्छाई है और इन्हीं कारणों से प्रतिष्ठा भी है।
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# यह केवल मानसिकता का ही नहीं तो व्यवस्था का भी विषय है। हमें बहुत व्यावहारिक होकर विचार करना होगा।
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# विद्यालय घर से इतना दूर नहीं होना चाहिये कि विद्यार्थी पैदल चलकर न जा सकें । शिशुओं के लिये और प्राथमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिये तो वह व्यवस्था अनिवार्य है। यहाँ फिर मानसिकता का प्रश्न अवरोध निर्माण करता है । अच्छे विद्यालय की हमारी कल्पनायें इतनी विचित्र हैं कि हम इन समस्याओं का विचार ही नहीं करते । वास्तव में घर के नजदीक का सरकारी प्राथमिक विद्यालय या कोई भी निजी विद्यालय हमारे लिये अच्छा विद्यालय ही माना जाना चाहिये । अच्छे विद्यालय के सर्वसामान्य नियमों पर जो विद्यालय खरा नहीं उतरता वह अभिभावकों के दबाव से बन्द हो जाना चाहिये । वास्तविक दृश्य यह दिखाई देता है कि अच्छा नहीं है कहकर जिस विद्यालय में आसपास के लोग अपने बच्चों को नहीं भेजते उनमें दूर दूर से बच्चे पढने के लिये आते ही हैं। निःशुल्क सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को अभिभावक ही अच्छा विद्यालय बना सकते हैं। इस सम्भावना को त्याग कर दूर दूर के विद्यालयों में जाना बुद्धिमानी नहीं है ।
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# साइकिल पर आनाजाना सबसे अच्छा उपाय है । वास्तव में विद्यालय ने ऐसा नियम बनानाचाहिये किघरसे विद्यालय की दूरी एक किलोमीटर है तो पैदल चलकर ही आना है, साइकिल भी नहीं लाना है और पाँच से सात किलोमीटर है तो साइकिल लेकर ही आना है । विद्यालय में पेट्रोल-डीजल चलित वाहन की अनुमति ही नहीं है । अभिभावक अपने वाहन पर भी छोडने के लिये न आयें।
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# देखा जाता है कि जहाँ ऐसा नियम बनाया जाता है वहाँ विद्यार्थी या अभिभावक पेट्रोल-डिजल चलित वाहन तो लाते हैं, परन्तु उसे कुछ दूरी पर रखते हैं और बाद में पैदल चलकर विद्यालय आते हैं । यह तो इस बात का निदर्शक है कि विद्यार्थी और उनके मातापिता अप्रामाणिक हैं, नियम का पालन करते नहीं हैं इसलिये अनुशासनहीन हैं और विद्यालय के लोग यह जानते हैं तो भी कुछ नहीं कर सकते इतने प्रभावहीन हैं। वास्तव में इस व्यवस्था को सबके मन में स्वीकृत करवाना विद्यालय का प्रथम दायित्व है।
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# महाविद्यालयों में मोटर साइकिल एक आर्थिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक अनिष्ट बन गया है। मार्गों पर दुर्घटनायें युवाओं के बेतहाशा वाहन चलाने के कारण होती हैं । महाविद्यालय के परिसर में और आसपास पार्किंग की समस्या इन्हीं के कारण से होती है। पिरीयड बंक करने का प्रचलन इसी के आकर्षण से होता है। मित्रों के साथ मजे करने का एक माध्यम मोटरसाइकिल की सवारी । वह दस प्रतिशत उपयोगी और नब्बे प्रतिशत अनिष्टकारी वाहन बन गया है। महाविद्यालयों का किसी भी प्रकार का नैतिक प्रभाव विद्यार्थियों पर नहीं है इसलिये वे उन्हें मोटरसाइकिल के उपयोग से रोक नहीं सकते । परन्तु इसका एकमात्र उपाय नैतिक प्रभाव निर्माण करने का, विद्यार्थियों का प्रबोधन करने का और महाविद्यालय में साइकिल लेकर आने की प्रेरणा देने का है। इसके बाद मोटरसाइकिल लेकर नहीं आने का नियम बनाया जा सकता है।
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# वास्तव में साइकिल संस्कृति का विकास करने की आवश्यकता है । सडकों पर साइकिल के लिये अलग से व्यवस्था बन सकती है। पैदल चलनेवालों और साइकिल का प्रयोग करने वालों की प्रतिष्ठा बढनी चाहिये। विद्यालयों ने इसे अपना मिशन बनाना चाहिये । सरकार ने आवाहन करना चाहिये । समाज के प्रतिष्ठित लोगों ने नेतृत्व करना चाहिये ।
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जिस दिन वाहनव्यवस्था और वाहनमानसिकता में परिवर्तन होगा उस दिन से हम स्वास्थ्य, शान्ति और समृद्धि की दिशा में चलना शुरू करेंगे।
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प्रश्न १ : स्वच्छता का अर्थ लिखते समय तन की स्वच्छता, मन की स्वच्छता, पर्यावरण की स्वच्छता का
 
प्रश्न १ : स्वच्छता का अर्थ लिखते समय तन की स्वच्छता, मन की स्वच्छता, पर्यावरण की स्वच्छता का
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