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=== विद्यालय का भवन ===
 
=== विद्यालय का भवन ===
'''१ . विद्यालय का भवन बनाते समय सुविधा की दृष्टि
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'''१ . विद्यालय का भवन बनाते समय सुविधा की दृष्टि'''
से किन किन बातों का ध्यान रकना चाहिये ?'''
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से किन किन बातों का ध्यान रकना चाहिये ?
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'''२. विद्यालय के भवन में विद्यालय की शैक्षिक दृष्टि
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'''२. विद्यालय के भवन में विद्यालय की शैक्षिक दृष्टि'''
किस प्रकार से प्रतिबिम्बित होती है ?'''
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किस प्रकार से प्रतिबिम्बित होती है ?
    
'''३. विद्यालय का भवन एवं पर्यावरण'''
 
'''३. विद्यालय का भवन एवं पर्यावरण'''
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==== भवन का भावात्मक पक्ष ====
 
==== भवन का भावात्मक पक्ष ====
विद्यालय का भवन भावात्मक दृष्टि से शिक्षा के अनुकूल होना चाहिए । इसका अर्थ है वह प्रथम तो पवित्र होना चाहिए । पवित्रता स्वच्छता की तो अपेक्षा रखती ही है साथ ही सात्त्विकता की भी अपेक्षा रखती है। आज सात्त्विकता नामक संज्ञा भी अनेक लोगों को परिचित नहीं है यह बात सही है परन्तु वह मायने तो बहुत रखती है । भवन बनाने वालों का और बनवाने वालों का भाव अच्छा होना महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए पैसा खर्च करने वाले. भवन बनते समय ध्यान रखने वाले, प्रत्यक्ष भवन बनाने वाले और सामग्री जहाँ से आती है वे लोग विद्यालय के प्रति यदि अच्छी भावना रखते हैं तो विद्यालय भवन के वातावरण में
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विद्यालय का भवन भावात्मक दृष्टि से शिक्षा के अनुकूल होना चाहिए । इसका अर्थ है वह प्रथम तो पवित्र होना चाहिए । पवित्रता स्वच्छता की तो अपेक्षा रखती ही है साथ ही सात्त्विकता की भी अपेक्षा रखती है। आज सात्त्विकता नामक संज्ञा भी अनेक लोगों को परिचित नहीं है यह बात सही है परन्तु वह मायने तो बहुत रखती है । भवन बनाने वालों का और बनवाने वालों का भाव अच्छा होना महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए पैसा खर्च करने वाले. भवन बनते समय ध्यान रखने वाले, प्रत्यक्ष भवन बनाने वाले और सामग्री जहाँ से आती है वे लोग विद्यालय के प्रति यदि अच्छी भावना रखते हैं तो विद्यालय भवन के वातावरण में  
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पवित्रता आती है। पवित्रता हम चाहते तो हैं । इसलिए तो हम भूमिपूजन, शिलान्यास, वास्तुशांति, यज्ञ, भवनप्रवेश जैसे विधिविधानों का अनुसरण करते हैं । ये केवल कर्मकाण्ड नहीं हैं। इनका भी अर्थ समझकर पूर्ण मनोयोग से किया तो बहुत लाभ होता है । परन्तु समझने का अर्थ क्रियात्मक भी होता है। उदाहरण के लिए ग्रामदेवता. वास्तुदेवता आदि की प्रार्थना और उन्हें सन्तुष्ट करने की बात मंत्रों में कही जाती है । तब सन्तुष्ट करने का क्रियात्मक अर्थ वह होता है कि हम सामग्री का या वास्तु का दुरुपयोग नहीं करेंगे, उसका उचित सम्मान करेंगे, उसका रक्षण करेंगे आदि । यह तो हमेशा के व्यवहार की बातें हैं। भारत की पवित्रता की संकल्पना भी क्रियात्मक ही होती है ।
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पवित्रता के साथ साथ भवन में शान्ति होनी चाहिए । उसकी ध्वनिव्यवस्था ठीक होना यह पहली बात है। कभी कभी कक्ष की रचना ऐसी बनती है कि पचीस लोगों में कही हुई बात भी सुनाई नहीं देती, तो अच्छी रचना में सौ लोगों को सनने के लिए भी ध्वनिवर्धक यन्त्र की आवश्यकता नहीं पडती। ऐसी उत्तम ध्वनिव्यवस्था होना अपेक्षित है। यह शान्ति का प्रथम चरण है । साथ ही आसपास के कोलाहल के प्रभाव से मुक्त रह सकें ऐसी रचना होनी चाहिए । कोलाहल के कारण अध्ययन के समय एकाग्रता नहीं हो सकती । कभी कभी पूरे भवन की रचना कुछ ऐसी बनती है कि लोग एकदूसरे से क्या बात कर रहे हैं यह समझ में नहीं आता या तो धीमी आवाज भी बहुत बड़ी लगती है । यह भवन की रचना का ही दोष होता है ।
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भवन की बनावट पक्की होनी चाहिए । व्यवस्थित और सुन्दर होनी चाहिए । पानी, प्रकाश, हवा आदि की अच्छी सुविधा उसमें होनी चाहिए। हम इन बिंदुओं की चर्चा स्वतन्त्र रूप से करने वाले हैं इसलिए यहाँ केवल उल्लेख ही किया है। कभी कभी भवन की बनावट ऐसी होती है कि __ उसकी स्वच्छता रखना कठिन हो जाता है । यह भी बनावट __ का ही दोष होता है।
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विद्यालय का भवन वैभव और विलास के दर्शन कराने वाला नहीं होना चाहिए। विद्यालय न महालय है न कार्यालय । वह न कारख़ाना है न चिकित्सालय । इन सभी स्थानों की रचना भिन्न भिन्न होती है और वह बाहर और अंदर भी दिखाई देती है। विद्यालय के भवन में सुंदरता तो होती है परन्तु सादगी अनिवार्य रूप से होती है । सादगीपूर्ण और सात्त्विक रचना भी कैसे सुन्दर होती है इसका यह नमूना होना चाहिए । सादा होते हुए भी वह हल्की सामग्री का बना सस्ता नहीं होना चाहिए। उत्कृष्टता तो सर्वत्र होनी ही चाहिए।
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विद्यालय भवन का वातावरण और बनावट सरस्वती के मन्दिर का ही होना चाहिए । इस भाव को व्यक्त करते हुए भवन में मन्दिर भी होना चाहिए ।
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भारतीय शिक्षा की संकल्पना का मूर्त रूप विद्यालय है और उसका एक अंग भवन है । विद्यालय में विविध विषयों के माध्यम से जो सिद्धांत, व्यवहार, परंपरा आदि की बातें होती हैं वे सब विद्यालय के भवन में दिखाई देनी चाहिए । भवन स्वयं शिक्षा का माध्यम बनाना चाहिए ।
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=== विद्यालय का कक्षाकक्ष ===
 
८... विद्यालय के भवन F आचार्य का संबंध नित्य विद्यालय भवन से होता है
 
८... विद्यालय के भवन F आचार्य का संबंध नित्य विद्यालय भवन से होता है
 
बास्तुविज्ञान, भूमिचयन, स्थानचयन आदि का. उसमें सुविधा असुविधा कौनसी है इससे वे परिचित होते
 
बास्तुविज्ञान, भूमिचयन, स्थानचयन आदि का. उसमें सुविधा असुविधा कौनसी है इससे वे परिचित होते
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