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=== विद्यालय का कक्षाकक्ष ===
=== विद्यालय का कक्षाकक्ष ===
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८... विद्यालय के भवन F आचार्य का संबंध नित्य विद्यालय भवन से होता है
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१. विद्यालय का कक्षाकक्ष कैसा होना चाहिये ?
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बास्तुविज्ञान, भूमिचयन, स्थानचयन आदि का. उसमें सुविधा असुविधा कौनसी है इससे वे परिचित होते
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क्या महत्त्व है ? हैं। परंतु पढाना शिक्षक का काम और भवन बनाना
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Q. विद्यालय के भवन की आन्तरिक रचना कैसी. संस्थाचालकों का काम यह निश्चित है अतः दोनों एक दूसरे
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२. कितना बड़ा होना चाहिये ?
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होनी चाहिये ? के काम में दखल नही देते । भवन संबंधी योग्य बातें
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१०, भवन निर्माण में प्रयुक्त सामग्री के विषय में किन... संस्थाचालको से करना मेरा कर्तव्य है, ऐसा शिक्षक मानता
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३. उसका आकार कैसा होना चाहिये ?
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बातों का ध्यान रखना चाहिये ? नहीं और संस्थाचालक भी अधिकारी के रूप में शिक्षकों से
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भवनसंदर्भ में कुछ सुझाव अपेक्षित नहीं करते । अतः भवन
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प्रश्नावली से पाप्त उत्तर तो निर्माण होते हैं परंतु उसके पीछे विचारैक्य नहीं होता ।
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४. कितने प्रकार के कक्षाकक्ष हो सकते हैं ?
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इस प्रश्नावली मे कुल १० प्रश्न थे । राजस्थान एवं... दोनों मिलकर अच्छा भवन निर्माण होना आवश्यक है ।
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५. कक्षाकक्ष में किस प्रकार की सुविधायें होनी चाहिये ?
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गुजरात के आचार्यों ने इनके उत्तर लिखे थे । .
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१, सुविधा की दृष्टि से भवन दो मांजिल से अधिक बड़ा विद्यालय भवन : शिक्षा संकल्पना का मूर्त रूप
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नहीं होना चाहिये । कक्षा में बाजू की कक्षा का कोलाहल न आजकल हम भौतिक दृष्टि से जगत को और जीवन
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६. कक्षाकक्ष का फर्नीचर कैसा होना चाहिये ?
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सुनाई दे इस प्रकार की रचना हो । पेयजल की व्यवस्था भवन. को देखने लगे हैं इसलिए घटनाओं, व्यक्तियों और वस्तुओं
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के अंतर्गत तथा शैचालय आदि भवन के दूर हो । का मूल्यांकन भौतिक दृष्टि से करते हैं । शिक्षा अत्यन्त
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२. विषयानुसार कक्ष रचना से लेकर सूचना फलक अभौतिक प्रक्रिया है तो भी उसका मूल्यांकन भौतिक दृष्टि से
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पर लिखी हुई लिखावट इत्यादि सब बातें विद्यालय की. करने का प्रचलन बढ़ गया है ।
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शैक्षिक दृष्टि प्रकट करती है । हम यहाँ भौतिक और अभौतिक दोनों दृष्टि से विद्यालय
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३. विद्यालय बनाते समय नीम, पीपल, बरगद जैसे भवन की चर्चा करेंगे ।
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वृक्ष भी पर्याप्त मात्रा में उचित स्थानो पर लगाने का
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प्रावधान हो । इससे पर्यावरण की सुरक्षा होगी, छाँव
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मिलेगी, पेड के नीचे अध्ययन, अध्यापन भी हो सकेगा । सबसे प्रथम बात विद्यालय के भवन एवं प्रयुक्त सामग्री
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खुली हवा प्रकाश का शरीर स्वास्थ्य पर असर होगा । .... के विषय में ही करनी चाहिए । आजकल सामान्य रूप से हम
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शरीरस्वास्थ्य अच्छा हो तो मन भी एकाग्र शांत होगा ।... सिमेन्ट और लोहे का प्रयोग करते हैं । सनमाइका,
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विद्यालय में गौशाला रहेगी तो गोसेवा का अनुभव छात्रों. एल््यूमिनियम, फेविकोल, प्लास्टर ऑफ पेरिस आदि का
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विद्यालय भवन का भौतिक पक्ष
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को प्राप्त होगा । प्रयोग धीरे धीरे बहुत बढ़ने लगा है । कभी तो इसमें सुन्दरता
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विद्यालय के भवन मे कवेलू बाँस की जाली, पत्थर... लगती है, कभी वह सस्ता लगता है तो कभी मजबूत लगता
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की दीवारे कम खर्चे मे टिकाऊ बनेगी । है । इन तीनों पक्षों के संबंध में सही पद्धति से विचार करें तो
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तीनों हमें अनुचित ही लगेंगी । सिमेन्ट इँटों को जोड़ने वाला
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अभिमत पदार्थ है परन्तु वह अविघटनीय है । उसका स्वभाव प्लासिक
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विद्यालय का भवन छात्रों के लिए ज्ञानसाधना स्थली. जैसा ही होता है । तीस या पैंतीस वर्षों में उसका जोड़ने
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है । अतः वास्तुविज्ञान का ध्यान अवश्य रहे । भूमि एवं... वाला गुण नष्ट होने लगता है और वह बिखर जाता है ।
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स्थानचयन के बाबत वह निसर्ग के सान्निध्य मे रहे तो... बिखरने पर उसका पूनरूपयोग नहीं हो सकता है। वह
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अच्छा । सिन्थेटिक रंग, प्लास्टिक फायबर आदि चीजों का... पर्यावरण का भी नाश करता है क्योंकि उसके कचरे का
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उपयोग न हो इसका ध्यान रखें । निकाल नहीं हो सकता । उसी प्रकार से सनमाइका,
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पर्व ४ : विद्यालय की भौतिक एवं आर्थिक व्यवस्थाएँ
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फेविकोल आदि सामाग्री भी पर्यावरण का नाश करने वाली
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ही है । पर्यावरण के नाश के साथ साथ वे मनुष्यों के स्वास्थ्य
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के लिए भी हानिकारक हैं । रोज रोज उसमें ही रहते रहते हम
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उस अस्वास्थ्यकर वातावरण के आदि हो जाते हैं परन्तु कुल
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मिलाकर आज जो शरीर और मन की दुर्बलता अनुभव में
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आती है उसका कारण यह भी है ।
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इन पदार्थों के कारण तापमान बढ़ता है। वह
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अप्राकृतिक रूप में बढ़ता है । प्राकृतिक गर्मी शरीर को इस
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प्रकार का नुकसान नहीं करती, यह कृत्रिम गर्मी नुकसान
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करती है । बढ़े हुए तापमान से बचने हेतु हम पंखे चलाते हैं,
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कहीं वातानुकूलन का प्रयोग करते हैं । इससे फिर तापमान
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बढ़ता है । वातानुकूलन में बिजली का उपयोग अधिक होता
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है,जिससे खर्च तो बढ़ता ही जाता है । इस प्रकार आर्थिक
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विषचक्र चलता रहता है और हम उसकी चपेट में आ जाते
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हैं । स्वास्थ्य का नाश तो होता ही है ।
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हम कहते हैं की इसमें बहुत सुविधा है और यह
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दिखाता भी सुंदर है । परन्तु सुविधा और सुन्दरता बहुत
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आभासी है । वास्तविक सुविधा और सुंदरता विनाशक नहीं
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होती । यदि वह विनाशक है तो सुंदर नहीं है, और सुविधा
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तो वह हो ही कैसे सकती है ?
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तो फिर भवनों में कौनसी सामग्री प्रयुक्त होनी चाहिए ?
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पहला नियम यह है की जिंदा लोगों को रहने के लिए, सुख
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से रहने के लिए प्राकृतिक सामग्री का प्रयोग होना चाहिए ।
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मिट्टी, चूना, लकड़ी, पत्थर आदि सामग्री प्राकृतिक है । यह
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सामग्री पर्यावरण और स्वास्थ्य के अविरोधी होती है । आज
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अनेक लोगों की धारणा हो गई है की ऐसा घर कच्चा होता है
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परन्तु यह धारणा सही नहीं है । वैज्ञानिक परीक्षण करें या
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पारम्परिक नमूने देखें तो इस सामग्री से बने भवन अधिक पक्के
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होते हैं । इस सामग्री का उपयोग कर विविध प्रकार के भवन
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बनाने का स्थापत्यशास्त्र भारत में बहुत प्रगत है । स्थपतियोंने
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विस्मयकारक भवन निर्माण किए हैं । आज भी यह कारीगरी
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जीवित है परन्तु वर्तमान शिक्षा के परिणामस्वरूप हमारी
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पद्धतियाँ और नीतियाँ विपरीत ही बनी हैं इसलिए शिक्षित
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लोगों को इसकी जानकारी नहीं है, अज्ञान, विपरीतज्ञान और
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हीनताबोध के कारण हमें उसके प्रति आस्था नहीं है, हमारी
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सौंदर्यदृष्टि भी बदल गई है इसलिए हम
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बहुत अविचारी ढंग से अप्राकृतिक सामग्री से अप्राकृतिक
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TH वाले भवन बनाते हैं और संकटों को अपने ऊपर आने
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देते हैं । संकटों को निमंत्रण देने की यह आधुनिक पद्धति है ।
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यह सामग्री ठंड के दिनों में अधिक ठंड और गर्मी के
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दिनों में अधिक गर्मी का अनुभव करवाती है । दीवारों में हवा
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की आवनजावन नहीं होती है इसलिए भी कक्षों का तापमान
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और वातावरण स्वास्थ्यकर नहीं रहता ।
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भवन के कक्षाकक्षों में हवा की आवनजावन की
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स्थिति अनेक प्रकार से विचित्र रहती है । भौतिक विज्ञान का
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नियम कहता है कि ठंडी हवा नीचे रहती है और गरम हवा
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ऊपर की ओर जाती है । इस दृष्टि से पुराने स्थापत्य में कमरे
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में आमनेसामने खिड़कियाँ होती थीं तथा दीवार में ऊपर की
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ओर गरम हवा जाने की व्यवस्था होती थी । अब ऐसी
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व्यवस्था नहीं होती । छत से लटकने वाले पंखे हवा नीचे
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की ओर फेंकते हैं और गरम हवा ऊपर की ओर जाती है ।
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हवा की स्थिति कैसी होगी ? इन सादी परन्तु अत्यन्त
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महत्त्वपूर्ण बातों की ओर हमारा ध्यान नहीं रहता है ।
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भवन की रचना में वास्तुशाख्र के नियमों का ध्यान
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रखना चाहिए ऐसा अब सब कहने लगे हैं तो भी अधिकांश
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भवन इसकी ओर ध्यान दिये बिना ही बनाए जाते हैं । ऐसा
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a sik गैरजिम्मेदारी के कारण ही होता है ।
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भवन का भावात्मक पक्ष
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विद्यालय का भवन भावात्मक दृष्टि से शिक्षा के
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अनुकूल होना चाहिए । इसका अर्थ है वह प्रथम तो पवित्र
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होना चाहिए । पवित्रता स्वच्छता की तो अपेक्षा रखती ही है
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साथ ही सात्तिकता की भी अपेक्षा रखती है। आज
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सात्त्विकता नामक संज्ञा भी अनेक लोगों को परिचित नहीं है
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यह बात सही है परन्तु वह मायने तो बहुत रखती है । भवन
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बनाने वालों का और बनवाने वालों का भाव अच्छा होना
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महत्त्वपूर्ण है । इसके लिए पैसा खर्च करने वाले, भवन बनते
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समय ध्यान रखने वाले, प्रत्यक्ष भवन बनाने वाले और
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सामग्री जहाँ से आती है वे लोग विद्यालय के प्रति यदि
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अच्छी भावना रखते हैं तो विद्यालय भवन के वातावरण में
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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पवित्रता आती है । पवित्रता हम चाहते भवन की बनावट पक्की होनी चाहिए । व्यवस्थित और
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तो हैं । इसलिए तो हम भूमिपूजन, शिलान्यास, वास्तुशांति, ... सुन्दर होनी चाहिए । पानी, प्रकाश, हवा आदि की अच्छी
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यज्ञ, भवनप्रवेश जैसे विधिविधानों का अनुसरण करते हैं । ये. सुविधा उसमें होनी चाहिए । हम इन बिंदुओं की चर्चा
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केवल कर्मकाण्ड नहीं हैं । इनका भी अर्थ समझकर पूर्ण... स्वतन्त्र रूप से करने वाले हैं इसलिए यहाँ केवल उल्लेख ही
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मनोयोग से किया तो बहुत लाभ होता है । परन्तु समझने का... किया है । कभी कभी भवन की बनावट ऐसी होती है कि
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अर्थ क्रियात्मक भी होता है । उदाहरण के लिए ग्रामदेवता, .. उसकी स्वच्छता रखना कठिन हो जाता है । यह भी बनावट
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वास्तुदेवता आदि की प्रार्थथा और उन्हें सन्तुष्ट करने की बात... का ही दोष होता है ।
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मंत्रों में कही जाती है । तब सन्तुष्ट करने का क्रियात्मक अर्थ विद्यालय का भवन वैभव और विलास के दर्शन कराने
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वह होता है कि हम सामग्री का या वास्तु का दुरुपयोग नहीं... वाला नहीं होना चाहिए। विद्यालय न महालय है न
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करेंगे, उसका उचित सम्मान करेंगे, उसका रक्षण करेंगे... कार्यालय । वह न कारखाना है न चिकित्सालय । इन सभी
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आदि । यह तो हमेशा के व्यवहार की बातें हैं । भारत की... स्थानों की रचना भिन्न भिन्न होती है और वह बाहर और
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पवित्रता की संकल्पना भी क्रियात्मक ही होती है । अंदर भी दिखाई देती है । विद्यालय के भवन में सुंदरता तो
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पवित्रता के साथ साथ भवन में शान्ति होनी चाहिए ।.... होती है परन्तु सादगी अनिवार्य रूप से होती है । सादगीपूर्ण
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उसकी ध्वनिव्यवस्था ठीक होना यह पहली बात है । कभी... और सात्तविक रचना भी कैसे सुन्दर होती है इसका यह नमूना
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कभी कक्ष की रचना ऐसी बनती है कि पचीस लोगों में कही... होना चाहिए । सादा होते हुए भी वह हल्की सामग्री का बना
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हुई बात भी सुनाई नहीं देती, तो अच्छी रचना में सौ लोगों. सस्ता नहीं होना चाहिए । उत्कृष्टता तो सर्वत्र होनी ही
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को सुनने के लिए भी ध्वनिवर्धक यन्त्र की आवश्यकता नहीं... चाहिए ।
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पड़ती । ऐसी उत्तम ध्वनिव्यवस्था होना अपेक्षित है । यह विद्यालय भवन का वातावरण और बनावट सरस्वती
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शान्ति का प्रथम चरण है । साथ ही आसपास के कोलाहल के मन्दिर का ही होना चाहिए । इस भाव को व्यक्त करते हुए
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के प्रभाव से मुक्त रह सकें ऐसी रचना होनी चाहिए। भवन में मन्दिर भी होना चाहिए ।
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कोलाहल के कारण अध्ययन के समय एकाग्रता नहीं हो भारतीय शिक्षा की संकल्पना का मूर्त रूप विद्यालय है
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सकती । कभी कभी पूरे भवन की रचना कुछ ऐसी बनती है... और उसका एक अंग भवन है । विद्यालय में विविध विषयों
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कि लोग एकदूसरे से क्या बात कर रहे हैं यह समझ में नहीं... के माध्यम से जो सिद्धांत, व्यवहार, परंपरा आदि की बातें
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आता या तो धीमी आवाज भी बहुत बड़ी लगती है । यह... होती हैं वे सब विद्यालय के भवन में दिखाई देनी चाहिए ।
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भवन की रचना का ही दोष होता है । भवन स्वयं शिक्षा का माध्यम बनाना चाहिए ।
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विद्यालय का कक्षाकक्ष
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9. विद्यालय का कक्षाकक्ष कैसा होना चाहिये ? ७. कक्षाकक्ष की खिडकियाँ, दरवाजे, श्यामपट्ट,
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2. कितना बड़ा होना चाहिये ? अलमारी आदि के विषय में किस प्रकार से
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3. उसका आकार कैसा होना चाहिये ? 'विचार होना चाहिये ?
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४. कितने प्रकार के कक्षाकक्ष हो सकते हैं ? ८. कक्षाकक्ष की बैठक व्यवस्था कैसी होनी
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५. कक्षाकक्ष में किस प्रकार की सुविधायें होनी चाहिये ?
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चाहिये ? ९. हवा, प्रकाश, ध्वनि, तापमान, दिशायें आदि
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६. कक्षाकक्ष का फर्नीचर कैसा होना चाहिये ? व्यवस्थायें कैसी होनी चाहिये ?
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