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=== विद्यालय किसका ? ===
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== विद्यालय किसका ? ==
 
प्रबन्धसमिति, शासन, प्रधानाचार्य, आचार्य, अन्य कर्मचारी, छात्र, अभिभावक<ref>भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ३), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> :
 
प्रबन्धसमिति, शासन, प्रधानाचार्य, आचार्य, अन्य कर्मचारी, छात्र, अभिभावक<ref>भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ३), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> :
 
# इन सभी के विद्यालय के साथ के स्वस्थ सम्बन्धोंका व्यवहारिक स्वरूप कैसा होना चाहिये ?
 
# इन सभी के विद्यालय के साथ के स्वस्थ सम्बन्धोंका व्यवहारिक स्वरूप कैसा होना चाहिये ?
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# इन सभी में विद्यालय किस दृष्टि से किसका होता है?
 
# इन सभी में विद्यालय किस दृष्टि से किसका होता है?
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==== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ====
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=== प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर ===
 
इस वैचारिक स्वरूप की प्रश्नावली पर गुजरात के आचार्यो ने अपने कुछ मत प्रकट किए ।
 
इस वैचारिक स्वरूप की प्रश्नावली पर गुजरात के आचार्यो ने अपने कुछ मत प्रकट किए ।
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शिक्षक केन्द्रित विद्यालय ही इसका सही और परिणामकारी उपाय है । इस व्यवस्था के लिये शिक्षकों को सिद्ध और समर्थ बनना होगा तथा संचालकों और सरकार को अनुकूल । शिक्षकाधीन शिक्षा इसका सार्थक सूत्र है ।
 
शिक्षक केन्द्रित विद्यालय ही इसका सही और परिणामकारी उपाय है । इस व्यवस्था के लिये शिक्षकों को सिद्ध और समर्थ बनना होगा तथा संचालकों और सरकार को अनुकूल । शिक्षकाधीन शिक्षा इसका सार्थक सूत्र है ।
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=== विद्यालय का शैक्षिक भ्रमण कार्यक्रम ===
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== विद्यालय का शैक्षिक भ्रमण कार्यक्रम ==
 
# शैक्षिक भ्रमण का अर्थ क्या है ?
 
# शैक्षिक भ्रमण का अर्थ क्या है ?
 
# भ्रमण के लिये स्थान का चयन किस प्रकार से करना चाहिये ?
 
# भ्रमण के लिये स्थान का चयन किस प्रकार से करना चाहिये ?
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अत्यंत विचारपूर्ण और गहराई मे विचार करने वाली यह दस प्रश्नों की प्रश्नावली थी। देखना और निरीक्षण करना दोनों भी दृश्येंद्रिय से की जानेवाली क्रियाएँ हैं । देखना आँखोंसे होता है परंतु निरीक्षण मे आँखों के साथ मन और बुद्धी भी जुड़ते हैं । उसी प्रकार भ्रमण और शैक्षिक भ्रमण में भी अंतर है । आज विद्यालयों में भ्रमण कार्यक्रम का अर्थ भ्रमण इतना ही किया जाता है ।
 
अत्यंत विचारपूर्ण और गहराई मे विचार करने वाली यह दस प्रश्नों की प्रश्नावली थी। देखना और निरीक्षण करना दोनों भी दृश्येंद्रिय से की जानेवाली क्रियाएँ हैं । देखना आँखोंसे होता है परंतु निरीक्षण मे आँखों के साथ मन और बुद्धी भी जुड़ते हैं । उसी प्रकार भ्रमण और शैक्षिक भ्रमण में भी अंतर है । आज विद्यालयों में भ्रमण कार्यक्रम का अर्थ भ्रमण इतना ही किया जाता है ।
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'''अभिमत'''
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==== अभिमत ====
 
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भ्रमण अर्थात् घूमना । शैक्षिक भ्रमण अर्थात् कुछ जानने समझने के लिए घूमना ।  
भ्रमण अर्थात् घूमना । शैक्षिक भ्रमण अर्थात् कुछ जानने समझने के लिए घूमना । उस दृष्टि से गाँव का साप्ताहिक बाजार, मेले, प्राचीन मन्दिर, अखाड़े, प्रेक्षणीय स्थान, जंगल, उद्याने, उपवन, बाँध, पर्वतारोहण, नदीकिनारा, समुद्रकिनारा, म्युझियम, कारखाने, गोशाला, फसल से भरी खेती, फल के बगीचे, निसर्गरम्य स्थान, प्रपात, गरमपानी के झरने इत्यादि प्रकार के स्थान शैक्षिक भ्रमण के लिए होने चाहिये ।।
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# उस दृष्टि से गाँव का साप्ताहिक बाजार, मेले, प्राचीन मन्दिर, अखाड़े, प्रेक्षणीय स्थान, जंगल, उद्याने, उपवन, बाँध, पर्वतारोहण, नदीकिनारा, समुद्रकिनारा, म्युझियम, कारखाने, गोशाला, फसल से भरी खेती, फल के बगीचे, निसर्गरम्य स्थान, प्रपात, गरमपानी के झरने इत्यादि प्रकार के स्थान शैक्षिक भ्रमण के लिए होने चाहिये ।।
 
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# जहाँ जाना वहाँ क्या देखना, किससे मिलना, कैसी पूछताछ करना, उसकी विस्तृत चर्चा शिक्षकों ने विद्यार्थियों के साथ करनी चाहिये ।
२. जहाँ जाना वहाँ क्या देखना, किससे मिलना, कैसी पूछताछ करना, उसकी विस्तृत चर्चा शिक्षकों ने विद्यार्थियों के साथ करनी चाहिये ।
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# भ्रमण के समय अध्यापक और छात्र दोनों में समवयस्क जैसा व्यवहार हो परंतु अनुशासन, और आदरभाव भी होना जरूरी है।
 
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# भ्रमण शैक्षिक होने के कारण सब विद्यार्थियों की सहभागिता अवश्य हो । क्षेत्रभेट करनेके लिए छात्रों की टोली बने ये टोलियाँ ३-४ स्थानों पर अलग अलग जाये । दूसरे दिन सब छात्र मिलकर चर्चा में सम्मिलित हों इस प्रकार का आयोजन करना चाहिये । भ्रमण खर्च सब कर सके ऐसा ही हो कभी कभी खर्चिले भ्रमण मे ऐच्छिकता से सम्मिलित होने का प्रावधान किया जाता है ऐसा न हो । ऐसा भ्रमण शैक्षिक नहीं होता है, मात्र मनोरंजन को दिया गया व्यावसायिक रूप ही है ।
३. भ्रमण के समय अध्यापक और छात्र दोनों में समवयस्क जैसा व्यवहार हो परंतु अनुशासन, और आदरभाव भी होना जरूरी है।
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शैक्षिक भ्रमण से इतिहास भूगोल समाजविज्ञान आदि विषयों का अध्ययन होता है । भ्रमण से पूर्व योग्य सूचनाएँ सावधानी एवं पूर्वजानकारी (स्थान संदर्भ में) और वापसी के बाद उस विषय में चर्चा लेखन प्रश्नावलियाँ तैयार करना आदि अवश्य करें।
 
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४. भ्रमण शैक्षिक होने के कारण सब विद्यार्थियों की सहभागिता अवश्य हो । क्षेत्रभेट करनेके लिए छात्रों की टोली बने ये टोलियाँ ३-४ स्थानों पर अलग अलग जाये । दूसरे दिन सब छात्र मिलकर चर्चा में सम्मिलित हों इस प्रकार का आयोजन करना चाहिये । भ्रमण खर्च सब कर सके ऐसा ही हो कभी कभी खर्चिले भ्रमण मे ऐच्छिकता से सम्मिलित होने का प्रावधान किया जाता है ऐसा न हो ।
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ऐसा भ्रमण शैक्षिक नहीं होता है, मात्र मनोरंजन को दिया गया व्यावसायिक रूप ही है ।
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शैक्षिक भ्रमण से इतिहास भूगोल समाजविज्ञान आदि _ विषयों का अध्ययन होता है । भ्रमण से पूर्व योग्य सूचनाएँ सावधानी एवं पूर्वजानकारी (स्थान संदर्भ में) और वापसी के बाद उस विषय में चर्चा लेखन प्रश्नावलियाँ तैयार करना आदि अवश्य करें।
      
कुंभ मेला, वेदपाठशाला आदि स्थानों में जाकर संस्कृति परिचय होता है। सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास होता है । पूर्व के जमाने में संतवृन्द, शंकराचार्य पैदल यात्रा करते थे। उन्हें देशकाल परिस्थिति का आकलन होता था। वह शैक्षिक भ्रमण था। आज वह तत्व ध्यान में रखकर परिस्थिति एवं छात्रों की आयु क्षमता ध्यान में लेते हुए योग्य परिवर्तन करके विद्यालयों ने शैक्षिक भ्रमण की योजना बनानी चाहिये ।
 
कुंभ मेला, वेदपाठशाला आदि स्थानों में जाकर संस्कृति परिचय होता है। सामाजिक एवं राष्ट्रीय विकास होता है । पूर्व के जमाने में संतवृन्द, शंकराचार्य पैदल यात्रा करते थे। उन्हें देशकाल परिस्थिति का आकलन होता था। वह शैक्षिक भ्रमण था। आज वह तत्व ध्यान में रखकर परिस्थिति एवं छात्रों की आयु क्षमता ध्यान में लेते हुए योग्य परिवर्तन करके विद्यालयों ने शैक्षिक भ्रमण की योजना बनानी चाहिये ।
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==== विमर्श ====
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==== विमर्श: शैक्षिक भ्रमण सम्बन्धी विचारणीय मुद्दे ====
 
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==== शैक्षिक भ्रमण सम्बन्धी विचारणीय मुद्दे ====
   
आज हमने सभी बातों को उल्टा कर दिया है। उसमें भ्रमण का भी विषय समाविष्ट है । जरा इन मुद्दों पर विचार करें...
 
आज हमने सभी बातों को उल्टा कर दिया है। उसमें भ्रमण का भी विषय समाविष्ट है । जरा इन मुद्दों पर विचार करें...
 
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# शैक्षिक भ्रमण में से शैक्षिक शब्द छूट गया है, विस्मृत हो गया है। उसका कोई प्रयोजन नहीं रहा । अब केवल भ्रमण ही रह गया है जिसका उद्देश्य शैक्षिक नहीं है, मनोरंजन है, मजा करना है।
१. शैक्षिक भ्रमण में से शैक्षिक शब्द छूट गया है, विस्मृत हो गया है। उसका कोई प्रयोजन नहीं रहा । अब केवल भ्रमण ही रह गया है जिसका उद्देश्य शैक्षिक नहीं है, मनोरंजन है, मजा करना है।
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# औपचारिकता के लिये अभी भी यह शैक्षिक भ्रमण है। भ्रमण यदि शैक्षिक है तो रेलवे की ओर से ५० प्रतिशत किराया कम हो जाता है, दस विद्यार्थियों पर एक शिक्षक की निःशुल्क यात्रा होती है। इसलिये सरकारी एवं विद्यालय के कार्यालयमें और रेलवे या अन्य यातायात के लिये यह शैक्षिक भ्रमण है, विद्यर्थियों और शिक्षकों - भ्रमण हेतु जाने वालों - के लिये यह मनोरंजन यात्रा है।  
 
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# सबसे पहले यह दुविधा दूर करनी चाहिये । यह दुविधा अप्रामाणिकता है, दम्भ है, झूठ बोलकर लाभ लेने की वृत्ति प्रवृत्ति है। विद्यार्थियों पर इससे भ्रष्टाचार के संस्कार होते हैं।  
२. औपचारिकता के लिये अभी भी यह शैक्षिक भ्रमण है। भ्रमण यदि शैक्षिक है तो रेलवे की ओर से ५० प्रतिशत किराया कम हो जाता है, दस विद्यार्थियों पर एक शिक्षक की निःशुल्क यात्रा होती है। इसलिये सरकारी एवं विद्यालय के कार्यालयमें और रेलवे या अन्य यातायात के लिये यह शैक्षिक भ्रमण है, विद्यर्थियों और शिक्षकों - भ्रमण हेतु जाने वालों - के लिये यह मनोरंजन यात्रा है।  
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# विद्यार्थियों, अभिभावकों और शिक्षकों में शैक्षिक भ्रमण' शब्द परिचित, प्रचलित और प्रतिष्ठित करना चाहिये और विद्यार्थियों को शैक्षिक भ्रमण का अर्थ और उद्देश्य समझाना चाहिये ।  
 
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# इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, संस्कृति आदि विषयों के साथ भ्रमण कार्यक्रम को जाड़ना चाहिये । भिन्न भिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रम के साथ उसे जोड़ना चाहिये । कक्षा और विषय के अनुसार विभिन्न गट बनाने चाहिये । गट में एक साथ कम संख्या होनी चाहिये ताकि व्यवस्था ठीक बनी रहे।  
३. सबसे पहले यह दुविधा दूर करनी चाहिये । यह दुविधा अप्रामाणिकता है, दम्भ है, झूठ बोलकर लाभ लेने की वृत्ति प्रवृत्ति है। विद्यार्थियों पर इससे भ्रष्टाचार के संस्कार होते हैं।  
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# जब ठीक से प्रबोधन नहीं किया जाता है तब जहाँ जाते हैं उस दर्शनीय स्थान के दर्शन और अवलोकन तो एक और रह जाते हैं और यात्रा के दौरान का दंगा, खान पान, वेश और फैशन, फोटो सेशन, खरीदी आदि मुख्य बातें बन जाती हैं। विद्यार्थियों और शिक्षकों की इस मानसिकता का उपचार करने की आवश्यकता है। शिक्षकों का उपचार शिक्षाशास्त्रियों ने और विद्यार्थीयों का उपचार शिक्षकों ने करना चाहिये।  
 
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# शैक्षिक भ्रमण देशदर्शन और संस्कृति दर्शन हेतु होता है, इतिहास दर्शन हेतु भी होता है ।  
४. विद्यार्थियों, अभिभावकों और शिक्षकों में शैक्षिक भ्रमण' शब्द परिचित, प्रचलित और प्रतिष्ठित करना चाहिये और विद्यार्थियों को शैक्षिक भ्रमण का अर्थ और उद्देश्य समझाना चाहिये ।  
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# अपने ही नगर का भूगोल और दर्शनीय स्थान देखने से भ्रमण कार्यक्रम की शुरुआत होती है। आगे चलकर अपना जिला, अपना राज्य और अपने देश का भ्रमण करना चाहिये।  
 
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# कुछ उदाहरण देखें:  
५. इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र, संस्कृति आदि विषयों के साथ भ्रमण कार्यक्रम को जाड़ना चाहिये । भिन्न भिन्न कक्षाओं के पाठ्यक्रम के साथ उसे जोड़ना चाहिये । कक्षा और विषय के अनुसार विभिन्न गट बनाने चाहिये । गट में एक साथ कम संख्या होनी चाहिये ताकि व्यवस्था ठीक बनी रहे।  
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## कक्षा में यदि शिवाजी महाराज का इतिहास पढ़ना है तो दो प्रकार से भ्रमण गट बन सकते हैं । एक गट महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के गढ़ और किले देखने के लिये और दसरा गट आगरा और दिल्ली के किले, जहाँ शिवाजी महाराज को औरंगजेबने कैद में रखा था और मिठाई की टोकरियों में बैठकर पुत्र के साथ वे कैद से भागकर वापस अपनी राजधानी रायगढ़ पहुंचे थे।  
 
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## संस्कृति विषय में बारह ज्योतिर्लिंग और चार धाम का वर्णन आता है। वहाँ जाकर उन्हें देखने की योजना बनानी चाहिये ।  
६. जब ठीक से प्रबोधन नहीं किया जाता है तब जहाँ जाते हैं उस दर्शनीय स्थान के दर्शन और अवलोकन तो एक और रह जाते हैं और यात्रा के दौरान का दंगा, खान पान, वेश और फैशन, फोटो सेशन, खरीदी आदि मुख्य बातें बन जाती हैं। विद्यार्थियों और शिक्षकों की इस मानसिकता का उपचार करने की आवश्यकता है। शिक्षकों का उपचार शिक्षाशास्त्रियों ने और विद्यार्थीयों का उपचार शिक्षकों ने करना चाहिये।  
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## दिल्ली का लोहस्तम्भ, अजंता की चित्रावलि, कैलास मन्दिर, वाराणसी की वेधशाला के अवशेष आदि भारत की कारीगरी के नमूने हैं, गौरवबिन्दु हैं। उन्हें देखने की योजना बना सकते हैं ।  
 
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# इस प्रकार विशिष्ट उद्देश्यों को लेकर भ्रमण की योजना बनानी चाहिये । परन्तु भ्रमण हेतु जाने से पहले और आने के बाद बहुत सारी शैक्षिक गतिविधियों को भ्रमण के साथ जोड़ना आवश्यक है।  
७. शैक्षिक भ्रमण देशदर्शन और संस्कृति दर्शन हेतु होता है, इतिहास दर्शन हेतु भी होता है ।  
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# भ्रमण में जाने से पूर्व स्थानों की पूरी जानकारी, यात्रा का उद्देश्य, वहाँ जाकर करने के काम, वापस आकर देने के वृत्त हेतु करने के कार्य की जानकारी देनी चाहिये।  
 
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# यात्रा के दौरान जिन आचारों का पालन करना है उस सम्बन्ध में उचित पद्धति से विद्यार्थियों का प्रबोधन करना चाहिये । यह बात बहुत कठिन है क्योंकि भ्रमण के साथ विद्यार्थियों की उन्मुक्तता की वृत्ति जुड़ी हुई होती है। दैनन्दिन जीवन में भी उनकी अभिमुखता शिक्षा, संस्कृति, देश आदि की ओर बनाना कठिन हो जाता है । सारा विद्यार्थीजगत भ्रमण की ओर मनोरंजन की दृष्टि से देखता है तब एक विद्यालय के विद्यार्थियों को यात्रा के दौरान शिष्ट व्यवहार करने को कहना कठिन ही होता है तथापि कुछ विद्यालयों के उदाहरण ऐसे भी हैं जो इस बात को सम्भव बनाते हैं। उनके अनुभव से हम कह सकते हैं कि यह कार्य कठिन अवश्य होगा, असम्भव नहीं है।  
८. अपने ही नगर का भूगोल और दर्शनीय स्थान देखने से भ्रमण कार्यक्रम की शुरुआत होती है। आगे चलकर अपना जिला, अपना राज्य और अपने देश का भ्रमण करना चाहिये।  
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# भ्रमण के दौरान लेखन पुस्तिका में अनुभव लिखकर स्मृति में रखने लायक स्थानों के छायाचित्र लेना, सम्बन्धित लोगों के साथ वार्तालाप करना, वहाँ यदि कोई गाइड है तो उसे प्रश्न पूछना आदि बातों में शिक्षकों ने विद्यार्थीयों का मार्गदर्शन और सहायता करनी चाहिये । एक स्थान पर बार बार जाना होता नहीं है अतः पूर्ण रूप से अनुभव लेना आवश्यक है।  
 
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# वापस आने के बाद अनुभव कथन और लेखन, वृत्त-कथन और लेखन, छायाचित्रों की प्रदर्शनी आदि कार्यक्रम करने चाहिये। अपना किस विषय के साथ कैसा सम्बन्ध जुड़ा यह भी समझाना चाहिये ।  
९. कुछ उदाहरण देखें:
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# शैक्षिक भ्रमण यह क्रियात्मक शिक्षण ही है। शिक्षण में यदि आनन्द आता है तो यह विशेष लाभ है । यह आनन्द शैक्षिक है तो और भी लाभ है। आनन्द जानकारी की तरह बाहर से हृदय में नहीं डाला जाता, वह अन्दर जन्मता है और बाहर प्रकट होता है। ऐसे आनन्द का अनुभव आता है तो भ्रमण कार्यक्रम सार्थक हुआ यह कह सकते हैं। शिक्षकों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये ।  
* कक्षा में यदि शिवाजी महाराज का इतिहास पढ़ना है तो दो प्रकार से भ्रमण गट बन सकते हैं । एक गट महाराष्ट्र में शिवाजी महाराज के गढ़ और किले देखने के लिये और दसरा गट आगरा और दिल्ली के किले, जहाँ शिवाजी महाराज को औरंगजेबने कैद में रखा था और मिठाई की टोकरियों में बैठकर पुत्र के साथ वे कैद से भागकर वापस अपनी राजधानी रायगढ़ पहुंचे थे।  
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# आजकल कुछ इण्टरनेशनल विद्यालय विद्यार्थियों को विदेश यात्रा के लिये ले जाते हैं। विदेशयात्रा यह शैक्षिक विषय नहीं है, विद्यालय में प्रवेश हेतु आकर्षण का इनका उदाहरण अनेकों को अनुकरण आकर्षण का इनका उदाहरण अनेकों को अनुकरण की प्रेरणा देता है। फिर विद्यालयों में स्पर्धा होने लगती है। स्पर्धा के अनेक क्षेत्र खुल जाते हैं और शैक्षिक उद्देश्य उपेक्षित हो जाते हैं ।  
* संस्कृति विषय में बारह ज्योतिर्लिंग और चार धाम का वर्णन आता है। वहाँ जाकर उन्हें देखने की योजना बनानी चाहिये ।  
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# शैक्षिक भ्रमण को हम अध्ययन यात्रा का नाम भी दे सकते हैं । देश के अनेक भूषण रूप विद्वान, वैज्ञानिक, कारीगर, कलाकार आदि से भेंट कर उनके साथ वार्तालाप करना अध्ययन यात्रा का उद्देश्य हो सकता है। उदाहरण के लिये परम संगणक के जनक डॉ. विजय भटकर, महान वैज्ञानिक डॉ. रघुनाथ माशेलकर, वाराणसी के शास्त्री लक्ष्मण शास्त्री द्रविड, प्रसिद्ध सन्त मोरारी बापू, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प. पू. सरसंघचालक मोहनजी भागवत, पू. रामदेव महाराज, दक्षिण की अम्मा माता अमृतानन्दमयी आदि अनेक महानुभाव हैं जो विद्यार्थियों के आदर्श बन सकते हैं और जिनसे मिलना विशिष्ट अनुभव हो सकता है । ये तो कुछ संकेत मात्र हैं । भारत तो ऐसे महापुरुषों की खान है।  
* दिल्ली का लोहस्तम्भ, अजंता की चित्रावलि, कैलास मन्दिर, वाराणसी की वेधशाला के अवशेष आदि भारत की कारीगरी के नमूने हैं, गौरवबिन्दु हैं। उन्हें देखने की योजना बना सकते हैं ।  
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१०. इस प्रकार विशिष्ट उद्देश्यों को लेकर भ्रमण की योजना बनानी चाहिये । परन्तु भ्रमण हेतु जाने से पहले और आने के बाद बहुत सारी शैक्षिक गतिविधियों को भ्रमण के साथ जोड़ना आवश्यक है।  
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११. भ्रमण में जाने से पूर्व स्थानों की पूरी जानकारी, यात्रा का उद्देश्य, वहाँ जाकर करने के काम, वापस आकर देने के वृत्त हेतु करने के कार्य की जानकारी देनी चाहिये।  
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१२. यात्रा के दौरान जिन आचारों का पालन करना है उस सम्बन्ध में उचित पद्धति से विद्यार्थियों का प्रबोधन करना चाहिये । यह बात बहुत कठिन है क्योंकि भ्रमण के साथ विद्यार्थियों की उन्मुक्तता की वृत्ति जुड़ी हुई होती है। दैनन्दिन जीवन में भी उनकी अभिमुखता शिक्षा, संस्कृति, देश आदि की ओर बनाना कठिन हो जाता है । सारा विद्यार्थीजगत भ्रमण की ओर मनोरंजन की दृष्टि से देखता है तब एक विद्यालय के विद्यार्थियों को यात्रा के दौरान शिष्ट व्यवहार करने को कहना कठिन ही होता है तथापि कुछ विद्यालयों के उदाहरण ऐसे भी हैं जो इस बात को सम्भव बनाते हैं। उनके अनुभव से हम कह सकते हैं कि यह कार्य कठिन अवश्य होगा, असम्भव नहीं है।  
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१३. भ्रमण के दौरान लेखन पुस्तिका में अनुभव लिखकर स्मृति में रखने लायक स्थानों के छायाचित्र लेना, सम्बन्धित लोगों के साथ वार्तालाप करना, वहाँ यदि कोई गाइड है तो उसे प्रश्न पूछना आदि बातों में शिक्षकों ने विद्यार्थीयों का मार्गदर्शन और सहायता करनी चाहिये । एक स्थान पर बार बार जाना होता नहीं है अतः पूर्ण रूप से अनुभव लेना आवश्यक है।  
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१४. वापस आने के बाद अनुभव कथन और लेखन, वृत्त-कथन और लेखन, छायाचित्रों की प्रदर्शनी आदि कार्यक्रम करने चाहिये । अपना किस विषय के साथ कैसा सम्बन्ध जुड़ा यह भी समझाना चाहिये ।  
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१५. शैक्षिक भ्रमण यह क्रियात्मक शिक्षण ही है। शिक्षण में यदि आनन्द आता है तो यह विशेष लाभ है । यह आनन्द शैक्षिक है तो और भी लाभ है। आनन्द जानकारी की तरह बाहर से हृदय में नहीं डाला जाता, वह अन्दर जन्मता है और बाहर प्रकट होता है। ऐसे आनन्द का अनुभव आता है तो भ्रमण कार्यक्रम सार्थक हुआ यह कह सकते हैं। शिक्षकों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये ।  
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१६. आजकल कुछ इण्टरनेशनल विद्यालय विद्यार्थियों को विदेश यात्रा के लिये ले जाते हैं। विदेशयात्रा यह शैक्षिक विषय नहीं है, विद्यालय में प्रवेश हेतु आकर्षण का इनका उदाहरण अनेकों को अनुकरण आकर्षण का इनका उदाहरण अनेकों को अनुकरण की प्रेरणा देता है। फिर विद्यालयों में स्पर्धा होने लगती है। स्पर्धा के अनेक क्षेत्र खुल जाते हैं और शैक्षिक उद्देश्य उपेक्षित हो जाते हैं ।  
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१७. शैक्षिक भ्रमण को हम अध्ययन यात्रा का नाम भी दे सकते हैं । देश के अनेक भूषण रूप विद्वान, वैज्ञानिक, कारीगर, कलाकार आदि से भेंट कर उनके साथ वार्तालाप करना अध्ययन यात्रा का उद्देश्य हो सकता है। उदाहरण के लिये परम संगणक के जनक डॉ. विजय भटकर, महान वैज्ञानिक डॉ. रघुनाथ माशेलकर, वाराणसी के शास्त्री लक्ष्मण शास्त्री द्रविड, प्रसिद्ध सन्त मोरारी बापू, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प. पू. सरसंघचालक मोहनजी भागवत, पू. रामदेव महाराज, दक्षिण की अम्मा माता अमृतानन्दमयी आदि अनेक महानुभाव हैं जो विद्यार्थियों के आदर्श बन सकते हैं और जिनसे मिलना विशिष्ट अनुभव हो सकता है । ये तो कुछ संकेत मात्र हैं । भारत तो ऐसे महापुरुषों की खान है।
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इसी प्रकार से अनेक सेवा प्रकल्प, निर्माण प्रकल्प, शिक्षा प्रकल्प चलते हैं जिन की भेंट करना ज्ञान में वृद्धि करना है।
 
इसी प्रकार से अनेक सेवा प्रकल्प, निर्माण प्रकल्प, शिक्षा प्रकल्प चलते हैं जिन की भेंट करना ज्ञान में वृद्धि करना है।
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# आदि बद्री, हरियाणा जो भारत की महान नदी सरस्वती का उद्गम स्थान है।
 
# आदि बद्री, हरियाणा जो भारत की महान नदी सरस्वती का उद्गम स्थान है।
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=== विद्यालय में सांस्कृतिक गतिविधियाँ ===
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== विद्यालय में सांस्कृतिक गतिविधियाँ ==
 
# संस्कृति का अर्थ क्या है ?  
 
# संस्कृति का अर्थ क्या है ?  
 
# सांस्कृतिक गतिविधियाँ किसे कहते हैं ?  
 
# सांस्कृतिक गतिविधियाँ किसे कहते हैं ?  
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संस्कृति के दो आयाम हैं । एक तो वह धर्म का कृतिरूप है । वह धर्म की प्रणाली है । तभी वह सबका भला करने वाली, सबका कल्याण करनेवाली बनती है । दूसरी ओर वह सुन्दर है । अतः संस्कृति में कल्याणकारी और सुन्दर ऐसे दोनों रूप प्रकट होते हैं।
 
संस्कृति के दो आयाम हैं । एक तो वह धर्म का कृतिरूप है । वह धर्म की प्रणाली है । तभी वह सबका भला करने वाली, सबका कल्याण करनेवाली बनती है । दूसरी ओर वह सुन्दर है । अतः संस्कृति में कल्याणकारी और सुन्दर ऐसे दोनों रूप प्रकट होते हैं।
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जीवन के हर व्यावहारिक आविष्कार में यह स्वरूप प्रकट होता है । भोजन स्वादिष्ट, हृद्य, सात्त्विक और पौष्टिक होता है. अकेला स्वादिष्ट या अकेला सात्त्विक नहीं, वस्त्र और अलंकार शरीर का रक्षण और पोषण करते हैं साथ ही शोभा भी बढाते हैं और दृष्टि को आनन्द का
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जीवन के हर व्यावहारिक आविष्कार में यह स्वरूप प्रकट होता है । भोजन स्वादिष्ट, हृद्य, सात्त्विक और पौष्टिक होता है. अकेला स्वादिष्ट या अकेला सात्त्विक नहीं, वस्त्र और अलंकार शरीर का रक्षण और पोषण करते हैं साथ ही शोभा भी बढाते हैं और दृष्टि को आनन्द का अनुभव भी करवाते हैं; नृत्य, गीत-संगीत, आनन्द भी देते हैं और मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं । श्रेय और प्रेय को एकदूसरे में ओतप्रोत बनाने की यह भारतीय सांस्कृतिक दृष्टि है जो बर्तन साफ करने के, पानी भरने के, मिट्टी कूटने के, भूमि जोतने के, कपडा बुनने के, लकडी काटने के कामों में सुन्दरता, आनन्द, मुक्ति की साधना और लोककल्याण के सभी आयामों को एकत्र गूंथती है । यह समग्रता का दर्शन है ।
 
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अनुभव भी करवाते हैं; नृत्य, गीत-संगीत, आनन्द भी देते हैं और मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं । श्रेय और प्रेय को एकदूसरे में ओतप्रोत बनाने की यह भारतीय सांस्कृतिक दृष्टि है जो बर्तन साफ करने के, पानी भरने के, मिट्टी कूटने के, भूमि जोतने के, कपडा बुनने के, लकडी काटने के कामों में सुन्दरता, आनन्द, मुक्ति की साधना और लोककल्याण के सभी आयामों को एकत्र गूंथती है । यह समग्रता का दर्शन है ।
      
अतः विद्यालयों में केवल रंगमंच कार्यक्रम अर्थात् नृत्य, गीत, नाटक और रंगोली, चित्र, सुशोभन ही सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है । ये सब भी अपने आपमें सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हैं । उनके साथ जब शुभ और पवित्र भाव, शुद्ध आनन्द और मुक्ति की भावना जुडती हैं तब वे सांस्कृतिक कार्यक्रम कहे जाने योग्य होते हैं, अन्यथा वे केवल मनोरंजन कार्यक्रम होते हैं । संस्कृति के मूल तत्वों के अभाव में तो वे भडकाऊ, उत्तेजक और निकृष्ट मनोवृत्तियों का ही प्रकटीकरण बन जाते हैं । अतः पहली बात तो जिन्हें हम एक रूढि के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम कहते हैं उन्हें परिष्कृत करने की अवश्यकता है । इसके लिये कुल मिलाकर रुचि परिष्कृत करने की आवश्यकता होती है।
 
अतः विद्यालयों में केवल रंगमंच कार्यक्रम अर्थात् नृत्य, गीत, नाटक और रंगोली, चित्र, सुशोभन ही सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं है । ये सब भी अपने आपमें सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं हैं । उनके साथ जब शुभ और पवित्र भाव, शुद्ध आनन्द और मुक्ति की भावना जुडती हैं तब वे सांस्कृतिक कार्यक्रम कहे जाने योग्य होते हैं, अन्यथा वे केवल मनोरंजन कार्यक्रम होते हैं । संस्कृति के मूल तत्वों के अभाव में तो वे भडकाऊ, उत्तेजक और निकृष्ट मनोवृत्तियों का ही प्रकटीकरण बन जाते हैं । अतः पहली बात तो जिन्हें हम एक रूढि के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रम कहते हैं उन्हें परिष्कृत करने की अवश्यकता है । इसके लिये कुल मिलाकर रुचि परिष्कृत करने की आवश्यकता होती है।
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विद्यालय के सांस्कृतिक स्वरूप की संकल्पना को ही प्रथम सुसंस्कृत बनाने की आवश्यकता है । मनोयोग से इन बातों का चिन्तन करने से यह किया जा सकता है, सतही बातचीत या विचार से यह नहीं होता है ।
 
विद्यालय के सांस्कृतिक स्वरूप की संकल्पना को ही प्रथम सुसंस्कृत बनाने की आवश्यकता है । मनोयोग से इन बातों का चिन्तन करने से यह किया जा सकता है, सतही बातचीत या विचार से यह नहीं होता है ।
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=== विद्यालय की प्रतिष्ठा ===
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== विद्यालय की प्रतिष्ठा ==
१. विद्यालय की प्रतिष्ठा का क्या अर्थ है ?
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# विद्यालय की प्रतिष्ठा का क्या अर्थ है ?
 
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# विद्यालय की प्रतिष्ठा का निम्नलिखित बातों के साथ क्या सम्बन्ध है ?
२. विद्यालय की प्रतिष्ठा का निम्नलिखित बातों के साथ क्या सम्बन्ध है ?
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## परीक्षा परिणाम
# परीक्षा परिणाम
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## सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास
# सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास
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## अन्यान्य कार्यक्रम एवं कार्य
# अन्यान्य कार्यक्रम एवं कार्य
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## प्रतियोगिताओं में अग्रक्रम
# प्रतियोगिताओं में अग्रक्रम
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## सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यों में सहभाग
# सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यों में सहभाग
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## समाज को मार्गदर्शन
# समाज को मार्गदर्शन
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## हिन्दुत्व का दृष्टिकोण
# हिन्दुत्व का दृष्टिकोण
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## हिन्दुत्वनिष्ठ व्यवहार का आग्रह
# हिन्दुत्वनिष्ठ व्यवहार का आग्रह
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## संख्या, भवन, शुल्क, सुविधायें
# संख्या, भवन, शुल्क, सुविधायें
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## अंग्रेजी माध्यम
# अंग्रेजी माध्यम
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# उपर्युक्त सूची में किन बातों का आग्रह उपयुक्त है और किन बातों का अनुपयुक्त ?
३. उपर्युक्त सूची में किन बातों का आग्रह उपयुक्त है और किन बातों का अनुपयुक्त ?
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# विद्यालय की प्रतिष्ठा एवं विद्यालय के लक्ष्य में कितना सम्बन्ध होना चाहिये ? सम्बन्ध न होने से क्या क्या उपाय करने चाहिये?
 
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# समसम्बन्ध न होने पर कितने समझौते करने चाहिये ?
४. विद्यालय की प्रतिष्ठा एवं विद्यालय के लक्ष्य में कितना सम्बन्ध होना चाहिये ? सम्बन्ध न होने से क्या क्या उपाय करने चाहिये ?
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# प्रतिष्ठा के मापदण्ड किस आधार पर बनते हैं ?
 
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५. समसम्बन्ध न होने पर कितने समझौते करने चाहिये ?
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६. प्रतिष्ठा के मापदण्ड किस आधार पर बनते हैं ?
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चार पाँच विद्यालयों को यह प्रश्नावली भेजी थी । परंतु किसी से भी उत्तर प्राप्त नहीं हुए । प्रश्न तो सरल थे । उसका शब्दार्थ और ध्वन्यार्थ भी हम समझते तो है परंतु आज शिक्षा की गाडी जो अत्यंत विपरीत पटरी पर जा रही है इसके कारण सत्य तो जानते है व्यवहार उलटा हो रहा है यह जानकर सरल प्रश्न भी उत्तर लिखने में कठीन लगते होंगे ऐसा अनुमान है ।
 
चार पाँच विद्यालयों को यह प्रश्नावली भेजी थी । परंतु किसी से भी उत्तर प्राप्त नहीं हुए । प्रश्न तो सरल थे । उसका शब्दार्थ और ध्वन्यार्थ भी हम समझते तो है परंतु आज शिक्षा की गाडी जो अत्यंत विपरीत पटरी पर जा रही है इसके कारण सत्य तो जानते है व्यवहार उलटा हो रहा है यह जानकर सरल प्रश्न भी उत्तर लिखने में कठीन लगते होंगे ऐसा अनुमान है ।
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==== अभिमत : ====
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=== अभिमत : ===
 
विद्या + आलय संधि से विद्यालय शब्द बनता है । आलय का अर्थ घर । ज्ञान का विद्या का घर अर्थात्‌ स्थान विद्यालय कहलाता है ।
 
विद्या + आलय संधि से विद्यालय शब्द बनता है । आलय का अर्थ घर । ज्ञान का विद्या का घर अर्थात्‌ स्थान विद्यालय कहलाता है ।
    
जहाँ ज्ञान की प्रतिष्ठा हो, ज्ञान की पतरित्रता को जानते हुए सभी व्यवहार हो, तेजस्वी, मेधावि, जिज्ञासु एवं विनयशील छात्र हो वास्तव मे वहीं गौरवशाली एवं प्रतिष्ठित विद्यालय होता है ।
 
जहाँ ज्ञान की प्रतिष्ठा हो, ज्ञान की पतरित्रता को जानते हुए सभी व्यवहार हो, तेजस्वी, मेधावि, जिज्ञासु एवं विनयशील छात्र हो वास्तव मे वहीं गौरवशाली एवं प्रतिष्ठित विद्यालय होता है ।
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==== विमर्श ====
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=== विमर्श ===
    
==== विद्यालय साधनास्थली है ====
 
==== विद्यालय साधनास्थली है ====
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ज्ञान को केन्द्र में प्रतिष्ठित करने हेतु कुछ कठोर नियम भी बनाने होंगे । प्रारम्भ में वे अव्यावहारिक और असम्भव लगेंगे परन्तु अन्ततोगत्वा वे ही इष्ट परिणाम देने वाले सिद्ध होंगे।
 
ज्ञान को केन्द्र में प्रतिष्ठित करने हेतु कुछ कठोर नियम भी बनाने होंगे । प्रारम्भ में वे अव्यावहारिक और असम्भव लगेंगे परन्तु अन्ततोगत्वा वे ही इष्ट परिणाम देने वाले सिद्ध होंगे।
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ये नियम कुछ इस प्रकार होंगे...
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ये नियम कुछ इस प्रकार होंगे:
 
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# अध्ययन शुल्क क्रमशः कम करते करते निःशेष करना । शुल्क नहीं होगा तो ज्ञान पर धनिकों का प्रभाव कम होगा।  
१. अध्ययन शुल्क क्रमशः कम करते करते निःशेष करना । शुल्क नहीं होगा तो ज्ञान पर धनिकों का प्रभाव कम होगा।  
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# शिक्षकों को आर्थिक स्वावलम्बन प्राप्त करना होगा । नौकरी करना छोडकर अपनी जिम्मेदारी पर विद्यालय चलनें होंगे।  
 
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# शिक्षा का नौकरी से सम्बन्ध विच्छेद करना होगा। स्वतन्त्र रहकर, समाज की सेवा करने की वृत्ति से, समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उद्योग कर अर्थार्जन करना सिखाना होगा। इस प्रकार समाज की आर्थिक स्वतन्त्रता निर्माण करनी होगी। स्वतन्त्र समाज अपने स्वमान की रक्षा करता है और शिक्षा का सम्मान करता है।  
२. शिक्षकों को आर्थिक स्वावलम्बन प्राप्त करना होगा । नौकरी करना छोडकर अपनी जिम्मेदारी पर विद्यालय चलनें होंगे।  
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# चरित्र का सम्मान करना होगा । शिक्षकों को स्वयं चरित्रवान बनकर विद्यार्थियों को चरित्रवान बनाना होगा।  
 
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# परीक्षा केन्द्रों को विद्यालय में लाना होगा। शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र दे सकें ऐसा विश्वसनीय बनना होगा।  
३. शिक्षा का नौकरी से सम्बन्ध विच्छेद करना होगा। स्वतन्त्र रहकर, समाज की सेवा करने की वृत्ति से, समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उद्योग कर अर्थार्जन करना सिखाना होगा। इस प्रकार समाज की आर्थिक स्वतन्त्रता निर्माण करनी होगी। स्वतन्त्र समाज अपने स्वमान की रक्षा करता है और शिक्षा का सम्मान करता है।  
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# विद्यालय भवन और सुविधाओं से नहीं अपितु ज्ञान और चरित्र से जाना जाय इसे बार बार लोगों के समक्ष बताना होगा।  
 
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# भारतीय ज्ञानधारा को युगानुकूल प्रवाहित करने हेतु अध्ययन और अनुसन्धान के कार्य को भारतीय जीवनदृष्टि में केन्द्रित करना होगा।  
४. चरित्र का सम्मान करना होगा । शिक्षकों को स्वयं चरित्रवान बनकर विद्यार्थियों को चरित्रवान बनाना होगा।  
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५. परीक्षा केन्द्रों को विद्यालय में लाना होगा। शिक्षक ही अपने विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र दे सकें ऐसा विश्वसनीय बनना होगा।  
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६. विद्यालय भवन और सुविधाओं से नहीं अपितु ज्ञान और चरित्र से जाना जाय इसे बार बार लोगों के समक्ष बताना होगा।  
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७. भारतीय ज्ञानधारा को युगानुकूल प्रवाहित करने हेतु अध्ययन और अनुसन्धान के कार्य को भारतीय जीवनदृष्टि में केन्द्रित करना होगा।
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यह एक आन्तरिक परिवर्तन है और धैर्यपूर्वक निरन्तर प्रयास की अपेक्षा करता है । चाणक्य और तक्षशिला यदि आदर्श हैं तो इन आदर्शों को मूर्त करना कोई सरल काम नहीं है।
 
यह एक आन्तरिक परिवर्तन है और धैर्यपूर्वक निरन्तर प्रयास की अपेक्षा करता है । चाणक्य और तक्षशिला यदि आदर्श हैं तो इन आदर्शों को मूर्त करना कोई सरल काम नहीं है।
  

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