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१२. यात्रा के दौरान जिन आचारों का पालन करना है उस सम्बन्ध में उचित पद्धति से विद्यार्थियों का प्रबोधन करना चाहिये । यह बात बहुत कठिन है क्योंकि भ्रमण के साथ विद्यार्थियों की उन्मुक्तता की वृत्ति जुड़ी हुई होती है। दैनन्दिन जीवन में भी उनकी अभिमुखता शिक्षा, संस्कृति, देश आदि की ओर बनाना कठिन हो जाता है । सारा विद्यार्थीजगत भ्रमण की ओर मनोरंजन की दृष्टि से देखता है तब एक विद्यालय के विद्यार्थियों को यात्रा के दौरान शिष्ट व्यवहार करने को कहना कठिन ही होता है तथापि कुछ विद्यालयों के उदाहरण ऐसे भी हैं जो इस बात को सम्भव बनाते हैं। उनके अनुभव से हम कह सकते हैं कि यह कार्य कठिन अवश्य होगा, असम्भव नहीं है।  
 
१२. यात्रा के दौरान जिन आचारों का पालन करना है उस सम्बन्ध में उचित पद्धति से विद्यार्थियों का प्रबोधन करना चाहिये । यह बात बहुत कठिन है क्योंकि भ्रमण के साथ विद्यार्थियों की उन्मुक्तता की वृत्ति जुड़ी हुई होती है। दैनन्दिन जीवन में भी उनकी अभिमुखता शिक्षा, संस्कृति, देश आदि की ओर बनाना कठिन हो जाता है । सारा विद्यार्थीजगत भ्रमण की ओर मनोरंजन की दृष्टि से देखता है तब एक विद्यालय के विद्यार्थियों को यात्रा के दौरान शिष्ट व्यवहार करने को कहना कठिन ही होता है तथापि कुछ विद्यालयों के उदाहरण ऐसे भी हैं जो इस बात को सम्भव बनाते हैं। उनके अनुभव से हम कह सकते हैं कि यह कार्य कठिन अवश्य होगा, असम्भव नहीं है।  
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१३. भ्रमण के दौरान लेखन पुस्तिका में अनुभव लिखकर स्मृति में रखने लायक स्थानों के छायाचित्र लेना, सम्बन्धित लोगों के साथ वार्तालाप करना, वहाँ यदि कोई गाइड है तो उसे प्रश्न पूछना आदि बातों में शिक्षकों ने विद्यार्थीयों का मार्गदर्शन और सहायता
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१३. भ्रमण के दौरान लेखन पुस्तिका में अनुभव लिखकर स्मृति में रखने लायक स्थानों के छायाचित्र लेना, सम्बन्धित लोगों के साथ वार्तालाप करना, वहाँ यदि कोई गाइड है तो उसे प्रश्न पूछना आदि बातों में शिक्षकों ने विद्यार्थीयों का मार्गदर्शन और सहायता करनी चाहिये । एक स्थान पर बार बार जाना होता नहीं है अतः पूर्ण रूप से अनुभव लेना आवश्यक है।
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१४. वापस आने के बाद अनुभव कथन और लेखन, वृत्त-कथन और लेखन, छायाचित्रों की प्रदर्शनी आदि कार्यक्रम करने चाहिये । अपना किस विषय के साथ कैसा सम्बन्ध जुड़ा यह भी समझाना चाहिये ।
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१५. शैक्षिक भ्रमण यह क्रियात्मक शिक्षण ही है। शिक्षण में यदि आनन्द आता है तो यह विशेष लाभ है । यह आनन्द शैक्षिक है तो और भी लाभ है। आनन्द जानकारी की तरह बाहर से हृदय में नहीं डाला जाता, वह अन्दर जन्मता है और बाहर प्रकट होता है। ऐसे आनन्द का अनुभव आता है तो भ्रमण कार्यक्रम सार्थक हुआ यह कह सकते हैं। शिक्षकों को इस दिशा में प्रयास करना चाहिये ।
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१६. आजकल कुछ इण्टरनेशनल विद्यालय विद्यार्थियों को विदेश यात्रा के लिये ले जाते हैं। विदेशयात्रा यह शैक्षिक विषय नहीं है, विद्यालय में प्रवेश हेतु आकर्षण का इनका उदाहरण अनेकों को अनुकरण आकर्षण का इनका उदाहरण अनेकों को अनुकरण की प्रेरणा देता है। फिर विद्यालयों में स्पर्धा होने लगती है। स्पर्धा के अनेक क्षेत्र खुल जाते हैं और शैक्षिक उद्देश्य उपेक्षित हो जाते हैं ।
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१७. शैक्षिक भ्रमण को हम अध्ययन यात्रा का नाम भी दे सकते हैं । देश के अनेक भूषण रूप विद्वान, वैज्ञानिक, कारीगर, कलाकार आदि से भेंट कर उनके साथ वार्तालाप करना अध्ययन यात्रा का उद्देश्य हो सकता है। उदाहरण के लिये परम संगणक के जनक डॉ. विजय भटकर, महान वैज्ञानिक डॉ. रघुनाथ माशेलकर, वाराणसी के शास्त्री लक्ष्मण शास्त्री द्रविड, प्रसिद्ध सन्त मोरारी बापू, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प. पू. सरसंघचालक मोहनजी भागवत, पू. रामदेव महाराज, दक्षिण की अम्मा माता अमृतानन्दमयी आदि अनेक महानुभाव हैं जो विद्यार्थियों के आदर्श बन सकते हैं और जिनसे मिलना विशिष्ट अनुभव हो सकता है । ये तो कुछ संकेत मात्र हैं । भारत तो ऐसे महापुरुषों की खान है।
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इसी प्रकार से अनेक सेवा प्रकल्प, निर्माण प्रकल्प, शिक्षा प्रकल्प चलते हैं जिन की भेंट करना ज्ञान में वृद्धि करना है।
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==== दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता ====
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शैक्षिक दृष्टि से यदि विचार करने लगें तो शैक्षिक । भ्रमण के विषय में हम अनेक नई बातें सोच सकते हैं । केवल दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है। शिक्षा के ठहरे हुए पानी को प्रवाहित करने से सडाँध दूर होगी और शैक्षिक गतिविधियाँ परिष्कृत होंगी।
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देश में कुछ जाने और जानने योग्य स्थान
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१. पुनर्रचित नालन्दा विश्वविद्यालय
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२. पोखरण जहाँ १९९८ में अणुपरीक्षण हुआ था ।
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३. कालडी, केरल जो भगवान शंकराचार्य का जन्मस्थान है।
    
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