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== युरो आटलिन्टिक विश्व का पतन और इन्डो पॅसिफिक विश्व का उदय ==
 
== युरो आटलिन्टिक विश्व का पतन और इन्डो पॅसिफिक विश्व का उदय ==
आट्लान्टिक महासागर के इर्दगीर्द मूडीवादी राष्ट्रों ने अपना डेरा जमाया है । एक समय था जब इन राष्ट्रों का बहुत बोलबाला था । ग्रेट ब्रिटन भारत पर राज्य जमाये हुए था, तो बेल्जियम जैसे छोटे राष्ट्र ने आफ्रिका के विस्तृत काँगो पर अधिराज्य स्थापित किया था । दूसरा महायुद्ध समाप्त हुआ और विभिन्न उपनिवेष पारतंत्र्य के बन्धन से मुक्त होने लगे । तब पश्चिम युरोप के भूतकालीन साम्राज्यों के समक्ष अस्तित्व का प्रश्न चिह्न उठ खडा हुआ। फिर उसी अस्तित्व को बनाये रखने के लिये सन १९५७ में, अर्थात ६० वर्ष पूर्व छः राष्ट्रों ने मिल कर 'युरोपिअन इकॉनोमिक कम्युनिटी' को जन्म दिया। सोवियत संघ ध्वस्त होने के बाद, सन १९९२ में उस कम्युनिटी में और छः राष्ट्र शामिल हुए और युरोपिअन युनिअन का उदय हुआ। सन २००४ में पूर्वी युरोप के सोलह राष्ट्रों ने उस युनिअन में प्रवेश लिया। इसका अर्थ हुआ ५१ कोटि जनसंख्या के २८ राष्ट्रों का युरोपिअन युनिअन सन १९५७ से २००४ तक विस्तारित होता रहा । इस विस्तार को ही किसी की बुरी नजर लग गई की क्या, पर उसी दौरान युरोप के दो बड़े राष्ट्र फ्रान्स और जर्मनी ने अमरिका के साथ वाक्युद्ध प्रारम्भ कर दिया । अमरिका युनाईटेड नेशन्स नामक वैश्विक संगठनकी परवा न करते हुए इराक में हस्तक्षेप करने के लिये आगे बढ़ गया था वह इस वाक्युद्ध का कारण था । स्वयं अमरिका के लिये भी पश्चिम युरोप के राष्ट्रों की मैत्री निरर्थक ही थी । मोस्को के विरुद्ध प्रतिक्रिया स्वरूप आटलांटिक के दोनों ओर जम कर बैठे राष्ट्र इकठ्ठे  हुए। मॉस्को का किल्ला ध्वस्त होने के बाद युरोपियन युनिअन अप्रस्तुत सिद्ध हो रहा था । वॉशिंग्टन स्थित मूडीपतियों के ध्यान में आया कि उनके न्यूयोर्क स्थित 'ट्रिन टॉवर' अर्थात विश्व व्यापार संगठन पर जो हमला हुआ वह इस्लामी आतंकवादियों की ओर से हुआ था । सन २००१ का वह ११ सप्टेंबर का दिन था । उसके बाद ओसामा बिन लादेन और उसके साथियोंने सीधे अफघानिस्तान का रास्ता लिया । परिणाम स्वरूप अमरिका को स्वरक्षा के लिये अपना मोहरा युरोपसे हटाकर एशिया की ओर करना पड़ा। एशिया में तब तक चीन एक शक्तिशाली देश के रूप में उभर रहा था । अब जो चुनौति है वह चीन की ओर से है यह निष्कर्ष तक अमरिका पहुँच गया था । युरो आट्लांटिक विश्व का जो ह्रास प्रारंभ हुआ वह इस पृष्ठभूमि पर था । सन २००८ में लेहमन धोखाधड़ी का मामला सामने आया और अमरिका, ब्रिटन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन जैसे कई मूडीवादी देशों का विकास दर ७ प्रतिशत से नीचे आता हुआ २ प्रतिशत पर आ गया । सारांश यह कि सोवियत संघ समाप्त होने से युरोपिअन युनिअन के साथ की दोस्ती निरर्थक सिद्ध हुई। इस्लामी आतंकवाद समाप्त करने के लिये अपना मोर्चा युरोप से एशिया की ओर मोडना चाहिये यह नीति आकर्षक लगने लगी। चीन के विरुद्ध शक्ति केन्द्र विकसित करने होंगे तो एशिया में ही डेरा डालना पड़ेगा और विकास के मार्ग पर गतिशून्य सिद्ध हुए युरोप के देशों की ओर से विकास की ओर गति कर रहे एशियाई देशों की ओर आगे बढना चाहिये उस नीति का भी बीजारोपण हुआ । गत वर्ष ही ग्रेट ब्रिटन ने युरोपियन युनियन में से स्वयं को बाहर कर लिया है। हर एक युरोपीय देशों में देशीयता (नेटिविझम) अपने पैर जमाने लगी है। इसका तात्पर्य यह है कि स्थानिक भूमिपुत्रों को अधिक लाभ और बाहर के लोगों को कम , ऐसी भूमिका युरो अमरिकी देशों में स्थापित हो रही है। बहुविधता, अनेकविधता, सर्वसमावेशकता जैसे मंत्र युरोअमरिकी विश्व में कालबाह्य सिद्ध हो रहे हैं। स्मॉल इंग्लैंड (भूतपूर्व ग्रेट ब्रिटन), जर्मनी, फ्रांस, हॉलैंड जैसे युरोपियन राष्ट्र अब एशिया के साथ व्यापार बढाने के लिये उतावले हो रहे हैं। परिणामतः अंतर्राष्ट्रीय राजनीति एशिया एवम् इंडो पॅसिफिक विश्व की ओर मूडी है।
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आट्लान्टिक महासागर के इर्दगीर्द मूडीवादी राष्ट्रों ने अपना डेरा जमाया है । एक समय था जब इन राष्ट्रों का बहुत बोलबाला था । ग्रेट ब्रिटन भारत पर राज्य जमाये हुए था, तो बेल्जियम जैसे छोटे राष्ट्र ने आफ्रिका के विस्तृत काँगो पर अधिराज्य स्थापित किया था । दूसरा महायुद्ध समाप्त हुआ और विभिन्न उपनिवेष पारतंत्र्य के बन्धन से मुक्त होने लगे । तब पश्चिम युरोप के भूतकालीन साम्राज्यों के समक्ष अस्तित्व का प्रश्न चिह्न उठ खडा हुआ। फिर उसी अस्तित्व को बनाये रखने के लिये सन १९५७ में, अर्थात ६० वर्ष पूर्व छः राष्ट्रों ने मिल कर 'युरोपिअन इकॉनोमिक कम्युनिटी' को जन्म दिया। सोवियत संघ ध्वस्त होने के बाद, सन १९९२ में उस कम्युनिटी में और छः राष्ट्र शामिल हुए और युरोपिअन युनिअन का उदय हुआ। सन २००४ में पूर्वी युरोप के सोलह राष्ट्रों ने उस युनिअन में प्रवेश लिया। इसका अर्थ हुआ ५१ कोटि जनसंख्या के २८ राष्ट्रों का युरोपिअन युनिअन सन १९५७ से २००४ तक विस्तारित होता रहा । इस विस्तार को ही किसी की बुरी नजर लग गई की क्या, पर उसी दौरान युरोप के दो बड़े राष्ट्र फ्रान्स और जर्मनी ने अमरिका के साथ वाक्युद्ध प्रारम्भ कर दिया । अमरिका युनाईटेड नेशन्स नामक वैश्विक संगठनकी परवा न करते हुए इराक में हस्तक्षेप करने के लिये आगे बढ़ गया था वह इस वाक्युद्ध का कारण था । स्वयं अमरिका के लिये भी पश्चिम युरोप के राष्ट्रों की मैत्री निरर्थक ही थी । मोस्को के विरुद्ध प्रतिक्रिया स्वरूप आटलांटिक के दोनों ओर जम कर बैठे राष्ट्र इकठ्ठे  हुए। मॉस्को का किल्ला ध्वस्त होने के बाद युरोपियन युनिअन अप्रस्तुत सिद्ध हो रहा था । वॉशिंग्टन स्थित मूडीपतियों के ध्यान में आया कि उनके न्यूयोर्क स्थित 'ट्रिन टॉवर' अर्थात विश्व व्यापार संगठन पर जो हमला हुआ वह इस्लामी आतंकवादियों की ओर से हुआ था । सन २००१ का वह ११ सप्टेंबर का दिन था । उसके बाद ओसामा बिन लादेन और उसके साथियोंने सीधे अफघानिस्तान का रास्ता लिया । परिणाम स्वरूप अमरिका को स्वरक्षा के लिये अपना मोहरा युरोपसे हटाकर एशिया की ओर करना पड़ा। एशिया में तब तक चीन एक शक्तिशाली देश के रूप में उभर रहा था । अब जो चुनौति है वह चीन की ओर से है यह निष्कर्ष तक अमरिका पहुँच गया था । युरो आट्लांटिक विश्व का जो ह्रास प्रारंभ हुआ वह इस पृष्ठभूमि पर था । सन २००८ में लेहमन धोखाधड़ी का मामला सामने आया और अमरिका, ब्रिटन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन जैसे कई मूडीवादी देशों का विकास दर ७ प्रतिशत से नीचे आता हुआ २ प्रतिशत पर आ गया । सारांश यह कि सोवियत संघ समाप्त होने से युरोपिअन युनिअन के साथ की दोस्ती निरर्थक सिद्ध हुई। इस्लामी आतंकवाद समाप्त करने के लिये अपना मोर्चा युरोप से एशिया की ओर मोडना चाहिये यह नीति आकर्षक लगने लगी। चीन के विरुद्ध शक्ति केन्द्र विकसित करने होंगे तो एशिया में ही डेरा डालना पड़ेगा और विकास के मार्ग पर गतिशून्य सिद्ध हुए युरोप के देशों की ओर से विकास की ओर गति कर रहे एशियाई देशों की ओर आगे बढना चाहिये उस नीति का भी बीजारोपण हुआ । गत वर्ष ही ग्रेट ब्रिटन ने युरोपियन युनियन में से स्वयं को बाहर कर लिया है। हर एक युरोपीय देशों में देशीयता (नेटिविझम) अपने पैर जमाने लगी है। इसका तात्पर्य यह है कि स्थानिक भूमिपुत्रों को अधिक लाभ और बाहर के लोगोंं को कम , ऐसी भूमिका युरो अमरिकी देशों में स्थापित हो रही है। बहुविधता, अनेकविधता, सर्वसमावेशकता जैसे मंत्र युरोअमरिकी विश्व में कालबाह्य सिद्ध हो रहे हैं। स्मॉल इंग्लैंड (भूतपूर्व ग्रेट ब्रिटन), जर्मनी, फ्रांस, हॉलैंड जैसे युरोपियन राष्ट्र अब एशिया के साथ व्यापार बढाने के लिये उतावले हो रहे हैं। परिणामतः अंतर्राष्ट्रीय राजनीति एशिया एवम् इंडो पॅसिफिक विश्व की ओर मूडी है।
    
== इस्लामी आतंकवाद का प्रसार ==
 
== इस्लामी आतंकवाद का प्रसार ==
 
सन १९७९ में तत्कालीन सोवियत संघ ने अफघानिस्तान पर सैनिकी आक्रमण कर दिया । तब उस आक्रमण का मुकाबला करने के लिये अमरिकाने जिहादी तत्त्वों को निमंत्रित किया और तालिबान, अल कायदा, लष्कर ए तोयबा और बोको हराम जैसे आतंकी संगठनों का जो जन्म हुआ वह था अफघानिस्तान पर हए सोवियत आक्रमण के विरोध में । हमारा दुर्भाग्य रहा कि उसी दौरान पाकिस्तान को अमरिका की ओर से खाद पानी मिलना आरम्भ हुआ । ईक्कीसवीं शताब्दी का प्रारम्भ ही न्यूयोर्क पर हुए अति भयंकर आतंकी आक्रमण के साथ हुआ ।  
 
सन १९७९ में तत्कालीन सोवियत संघ ने अफघानिस्तान पर सैनिकी आक्रमण कर दिया । तब उस आक्रमण का मुकाबला करने के लिये अमरिकाने जिहादी तत्त्वों को निमंत्रित किया और तालिबान, अल कायदा, लष्कर ए तोयबा और बोको हराम जैसे आतंकी संगठनों का जो जन्म हुआ वह था अफघानिस्तान पर हए सोवियत आक्रमण के विरोध में । हमारा दुर्भाग्य रहा कि उसी दौरान पाकिस्तान को अमरिका की ओर से खाद पानी मिलना आरम्भ हुआ । ईक्कीसवीं शताब्दी का प्रारम्भ ही न्यूयोर्क पर हुए अति भयंकर आतंकी आक्रमण के साथ हुआ ।  
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शशी थरूर अत्यंत मार्मिक शब्दों में कहते हैं,<blockquote>'present century is born in blood and baptized in fire!'</blockquote>सन २००३ में अमरिकाने इराक पर हमला चढा कर सद्दाम को समाप्त किया । परिणामतः सुन्नी विरुद्ध शिया इस स्वरूप में भयानक संहार आरम्भ हुआ। इस्लामी आतंकवाद देखते ही देखते विश्व के सर्व देशों में प्रसारित हुआ। आफ्रिका खंड के नाईजीरिया, माली, घाना, जैसे अनेक देशों में बोको हराम ने कहर ढाया, रुस को चेचन्या के विद्रोहियों ने घायल किया और चीन में सीक्यांग प्रांत में इस्लामी आतंकवाद ने जन्म लिया । एक ओर सुन्नी पंथ वाले तो दूसरी ओर सुन्नी के विरुद्ध शिया, अलावी कुर्द इत्यादि पंथों के अनुयायी, ऐसा प्रकोप प्रारम्भ होने से पूरा अरब जगत आपदाग्रस्त हो गया । सुन्नी देश प्रारम्भ में मानते थे कि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया अर्थात आई एस आई एस संगठन केवल गैर सुन्नी को ही परेशान करेगा, परंतु एक बार कोई पंथ स्वयं को ही सत्य मान कर अन्य पंथों पर हमले करने लगता है तब उसी पंथ में उपपंथों का जन्म होता है और उनमें से प्रत्येक पंथ स्वयं को सत्य सिद्ध करने के प्रयास में रहता है । 'जो मेरे साथ नहीं है वह मेरा शत्रु है और उसे खतम ही करना है, उसका शरीर छिन्न विछिन्न करना है' यह सूत्र फिर अनेक भयंकर युद्धों को जन्म देता है। सीरियाने तो ऐसी भीषण लडाईयों की भीषण परिणति का अनुभव लिया है । विगत छः वर्ष में वहां पाँच लाख लोगों का लहू बहाया गया है। इजिप्त, सौदी, अरेबिया, तुर्कस्तान एवं पाकिस्तान जैसे सब देशों में आम तौर पर कत्तलें होती रहती हैं।
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शशी थरूर अत्यंत मार्मिक शब्दों में कहते हैं,<blockquote>'present century is born in blood and baptized in fire!'</blockquote>सन २००३ में अमरिकाने इराक पर हमला चढा कर सद्दाम को समाप्त किया । परिणामतः सुन्नी विरुद्ध शिया इस स्वरूप में भयानक संहार आरम्भ हुआ। इस्लामी आतंकवाद देखते ही देखते विश्व के सर्व देशों में प्रसारित हुआ। आफ्रिका खंड के नाईजीरिया, माली, घाना, जैसे अनेक देशों में बोको हराम ने कहर ढाया, रुस को चेचन्या के विद्रोहियों ने घायल किया और चीन में सीक्यांग प्रांत में इस्लामी आतंकवाद ने जन्म लिया । एक ओर सुन्नी पंथ वाले तो दूसरी ओर सुन्नी के विरुद्ध शिया, अलावी कुर्द इत्यादि पंथों के अनुयायी, ऐसा प्रकोप प्रारम्भ होने से पूरा अरब जगत आपदाग्रस्त हो गया । सुन्नी देश प्रारम्भ में मानते थे कि इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया अर्थात आई एस आई एस संगठन केवल गैर सुन्नी को ही परेशान करेगा, परंतु एक बार कोई पंथ स्वयं को ही सत्य मान कर अन्य पंथों पर हमले करने लगता है तब उसी पंथ में उपपंथों का जन्म होता है और उनमें से प्रत्येक पंथ स्वयं को सत्य सिद्ध करने के प्रयास में रहता है । 'जो मेरे साथ नहीं है वह मेरा शत्रु है और उसे खतम ही करना है, उसका शरीर छिन्न विछिन्न करना है' यह सूत्र फिर अनेक भयंकर युद्धों को जन्म देता है। सीरियाने तो ऐसी भीषण लडाईयों की भीषण परिणति का अनुभव लिया है । विगत छः वर्ष में वहां पाँच लाख लोगोंं का लहू बहाया गया है। इजिप्त, सौदी, अरेबिया, तुर्कस्तान एवं पाकिस्तान जैसे सब देशों में आम तौर पर कत्तलें होती रहती हैं।
    
डॉ. अबूबक्र अल बगदादी नामक जिहादी सरदार ने इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट के नाम से खिलाफत की स्थापना की और' मैं स्वयं ही खलीफा हूँ 'ऐसी घोषणा कर दी, तभी अल कायदा के सरदार एमान अल जवाहरी से भी अधिक शक्तिशाली मुखिया पैदा हुआ। उसके बाद अल नुस्रा, बोको हराम जैसे संगठनों ने उस मुखिया से संपर्क स्थापित किया। भारत सहित अनेक देशों में से इस्लामिक स्टेट के आदेशानुसार आत्मघाती पंथ के जथ्थे इराक की दिशामें आगे बढ़ने लगे । इराक और तुर्कस्तान में रह रहे कुर्द नागरिक इस्लामिक स्टेट एवं खिलाफत के क्रूर हमलों के शिकार हुए । हाल में ही अफघानिस्तान में भी इस्लामिक स्टेट ने अपना स्थान जमा लिया है। इस वर्ष सौदी अरेबिया की अगुवाई में ३९ सुन्नी मुस्लिम राष्ट्र एक झंडे के नीचे आ गये हैं । इन ३९ राष्ट्रों की युति का नेतृत्व पाकिस्तान के भूतपूर्व सरसेनापति जनरल राहील शरीफ के हाथों में सोंपा गया है। 'हमारी युति शांति की प्रस्थापना के लिये निर्माण की गई हैं' ऐसा दावा सौदी अरेबिया व पाकिस्तान के शासकों ने किया है। परंतु यह युति 'हम शिया राष्ट्रों के विरोध में खडी हुई है' ऐसी टिप्पणी इरान ने की है । तात्पर्य यह की इस्लामी आतंकवाद को समाप्त करने के लिये हमें पंथभेद भूल कर एक होना चाहिये यह समज अभी तक किसी को नहीं हुई है। परिणामतः पंथ बुद्ध, टोलीयुद्ध, वंश विच्छेद, अंधाधूंध हत्याएँ जैसी घटनाएँ विश्व में घटती ही रहेगी ऐसे दुश्चिन्ह् दिखाई दे रहे हैं।
 
डॉ. अबूबक्र अल बगदादी नामक जिहादी सरदार ने इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट के नाम से खिलाफत की स्थापना की और' मैं स्वयं ही खलीफा हूँ 'ऐसी घोषणा कर दी, तभी अल कायदा के सरदार एमान अल जवाहरी से भी अधिक शक्तिशाली मुखिया पैदा हुआ। उसके बाद अल नुस्रा, बोको हराम जैसे संगठनों ने उस मुखिया से संपर्क स्थापित किया। भारत सहित अनेक देशों में से इस्लामिक स्टेट के आदेशानुसार आत्मघाती पंथ के जथ्थे इराक की दिशामें आगे बढ़ने लगे । इराक और तुर्कस्तान में रह रहे कुर्द नागरिक इस्लामिक स्टेट एवं खिलाफत के क्रूर हमलों के शिकार हुए । हाल में ही अफघानिस्तान में भी इस्लामिक स्टेट ने अपना स्थान जमा लिया है। इस वर्ष सौदी अरेबिया की अगुवाई में ३९ सुन्नी मुस्लिम राष्ट्र एक झंडे के नीचे आ गये हैं । इन ३९ राष्ट्रों की युति का नेतृत्व पाकिस्तान के भूतपूर्व सरसेनापति जनरल राहील शरीफ के हाथों में सोंपा गया है। 'हमारी युति शांति की प्रस्थापना के लिये निर्माण की गई हैं' ऐसा दावा सौदी अरेबिया व पाकिस्तान के शासकों ने किया है। परंतु यह युति 'हम शिया राष्ट्रों के विरोध में खडी हुई है' ऐसी टिप्पणी इरान ने की है । तात्पर्य यह की इस्लामी आतंकवाद को समाप्त करने के लिये हमें पंथभेद भूल कर एक होना चाहिये यह समज अभी तक किसी को नहीं हुई है। परिणामतः पंथ बुद्ध, टोलीयुद्ध, वंश विच्छेद, अंधाधूंध हत्याएँ जैसी घटनाएँ विश्व में घटती ही रहेगी ऐसे दुश्चिन्ह् दिखाई दे रहे हैं।
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भारत की पश्चिम दिशा में पर्शियन खाडी है। उस खाडी से ले कर भूमध्य महासागर पर्यंत व्याप्त भूभाग में मुस्लिम राष्ट्र हैं तथा भूमध्य महासागर के उस पार जो अफ्रिका खंड है वहां भी, विशेष रूप से उत्तर दिशा में मुस्लिम राष्ट्र ही बसे हुए हैं। विगत छः वर्षों में उन मुस्लिम राष्ट्रों में इस्लामिक स्टेट नामक  आतंकवादी संगठन ने उत्पात मचाया हुआ है। स्पष्ट रूप से कहना हो तो मुस्लिम राष्ट्रों के लिये इस्लामिक स्टेट के स्वरूप में भस्मासुर ही अवतरित हुआ है।
 
भारत की पश्चिम दिशा में पर्शियन खाडी है। उस खाडी से ले कर भूमध्य महासागर पर्यंत व्याप्त भूभाग में मुस्लिम राष्ट्र हैं तथा भूमध्य महासागर के उस पार जो अफ्रिका खंड है वहां भी, विशेष रूप से उत्तर दिशा में मुस्लिम राष्ट्र ही बसे हुए हैं। विगत छः वर्षों में उन मुस्लिम राष्ट्रों में इस्लामिक स्टेट नामक  आतंकवादी संगठन ने उत्पात मचाया हुआ है। स्पष्ट रूप से कहना हो तो मुस्लिम राष्ट्रों के लिये इस्लामिक स्टेट के स्वरूप में भस्मासुर ही अवतरित हुआ है।
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एक ओर से चीन तो दूसरी ओर से इस्लामिक स्टेट, ये अहिरावण महिरावण वैश्विक शांति को सुरंग लगाने के लिये सिद्ध है। युरोप और अमरिका इस वैश्विक वातावरण में अत्यंत प्रक्षुब्ध हुए हैं। अभी पीछले कुछ दिनों तक ये श्वेतवर्णीय , अँग्लो सेक्संस कितनी गर्जनाएँ कर रहे थे। आज इन लोगों का मिजाज ठिकाने पे आ गया है।
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एक ओर से चीन तो दूसरी ओर से इस्लामिक स्टेट, ये अहिरावण महिरावण वैश्विक शांति को सुरंग लगाने के लिये सिद्ध है। युरोप और अमरिका इस वैश्विक वातावरण में अत्यंत प्रक्षुब्ध हुए हैं। अभी पीछले कुछ दिनों तक ये श्वेतवर्णीय , अँग्लो सेक्संस कितनी गर्जनाएँ कर रहे थे। आज इन लोगोंं का मिजाज ठिकाने पे आ गया है।
    
सन १९०२ में, केवल बीस वर्ष की आयु में सावरकरजी ने एक कविता में इन साम्राज्यों को प्रश्न पूछा था, ' विश्व में आज तक शाश्वत क्या रहा है?' आज वही प्रश्न इन साम्राज्याधीशों के सामने आ कर खडा हो गया है । प्रातःकाल में उदित होने वाला सूर्य शाम होते होते अस्तंगत होता है वैसे ही, अरे ब्रिटिशों ! आप भी कल अस्त हो जाओगे , इस आशय का भविष्य कथन सावरकरजी ने तब किया था जो आज सत्य सिद्ध होने जा रहा है।
 
सन १९०२ में, केवल बीस वर्ष की आयु में सावरकरजी ने एक कविता में इन साम्राज्यों को प्रश्न पूछा था, ' विश्व में आज तक शाश्वत क्या रहा है?' आज वही प्रश्न इन साम्राज्याधीशों के सामने आ कर खडा हो गया है । प्रातःकाल में उदित होने वाला सूर्य शाम होते होते अस्तंगत होता है वैसे ही, अरे ब्रिटिशों ! आप भी कल अस्त हो जाओगे , इस आशय का भविष्य कथन सावरकरजी ने तब किया था जो आज सत्य सिद्ध होने जा रहा है।

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