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→‎क्षत्रियवर्ण: लेख सम्पादित किया
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भारत को सनातन राष्ट्र कहा गया है और भारत के हिन्दू धर्म को सनातन धर्म । सनातन का अर्थ है जो स्थान और काल में निरन्तर बना रहता है । इस सनातनता का ही प्रताप है कि अभी भी ऐसे ब्राह्मण बचे हैं जो शुद्धि और पवित्रता की रक्षा करते हैं, बिना शुल्क लिये अध्यापन करते हैं, वेदाध्ययन का दायित्व सम्हालते हैं । अभी भी वे ज्ञान की गरिमा को कम नहीं होने देते हैं । भारतीय समाज की आशा अभी उनके कारण ही समाप्त नहीं हुई है।
 
भारत को सनातन राष्ट्र कहा गया है और भारत के हिन्दू धर्म को सनातन धर्म । सनातन का अर्थ है जो स्थान और काल में निरन्तर बना रहता है । इस सनातनता का ही प्रताप है कि अभी भी ऐसे ब्राह्मण बचे हैं जो शुद्धि और पवित्रता की रक्षा करते हैं, बिना शुल्क लिये अध्यापन करते हैं, वेदाध्ययन का दायित्व सम्हालते हैं । अभी भी वे ज्ञान की गरिमा को कम नहीं होने देते हैं । भारतीय समाज की आशा अभी उनके कारण ही समाप्त नहीं हुई है।
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== क्षत्रियवर्ण ==
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== क्षत्रिय वर्ण ==
वर्तमान में क्षत्रिय वर्ण की प्रतिष्ठा वैश्यों से कम हो
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वर्तमान में क्षत्रिय वर्ण की प्रतिष्ठा वैश्यों से कम हो गई है। शस्त्र धारण करना, दुर्बल की, विशेष रूप से गाय, ब्राह्मण और स्त्री की रक्षा करना, दुष्ट को दण्ड देना, युद्ध में पराक्रम करना, शासन करना, देश की रक्षा हेतु युद्ध करना क्षत्रिय के काम हैं । आज शासन क्षत्रिय के हाथ से चला गया। लोकतान्त्रिक शासन पद्धति में अब कोई परम्परागत राजा नहीं रहा है । चुनाव के माध्यम से अब सरकार बनती है। इसलिये क्षत्रिय के एक काम का तो अन्त हो गया।
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गई है । शस्त्र धारण करना, दुर्बल की, विशेष रूप से गाय,
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अब सभी वर्णों की नई खासियत को लेकर वे नौकरी करने लगे हैं। इसका अर्थ है वे भी शद्र में परिवर्तित हो रहे हैं। सेना में भर्ती होने वालों में भी क्षत्रियों का ही बहुमत है, ऐसा कह नहीं सकते। बड़े बड़े राजमहल अब होटलों में परिवर्तित हो गये हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि वे अब व्यापार करने लगे हैं अर्थात्‌ वे वैश्य वर्ण में परिवर्तित हो रहे हैं। गोब्राह्मण प्रतिपालक का दायित्व तो वे कब के छोड़ चुके हैं। शस्त्र धारण करना भी छूट गया है।
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ब्राह्मण और स्त्री की रक्षा करना, दु्शे को दण्ड देना, युद्ध में
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क्षत्रिय वर्ण के पतन और विघटन के कारण अब समाज का पराक्रम नष्ट हो गया है । कानून भी सर्वसामान्य प्रजा को शस्त्र रखने की और चलाने की अनुमति नहीं देता है। विद्यालयों और महाविद्यालयों में शस्त्रविद्या सिखाई नहीं जाती है। ऐसी अवस्था में शासन करने की वृत्ति दादागिरी करने में भी बदल जाती है । विजयी होने का दृढ़ निर्धार, वचनपालन, स्त्री दाक्षिण्य आदि क्षत्रिय के दुर्लभ गुण होते हैं । आज वे वास्तव में दुर्लभ बन गये हैं ।
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पराक्रम करना, शासन करना, देश की रक्षा हेतु युद्ध करना
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समाजव्यवस्था में क्षत्रिय की भूमिका अब सरकार ने ले ली है । सरकार वर्ण के अनुसार बनती नहीं है । इसके परिणामस्वरूप क्षत्रिय वर्ण ही आज आप्रासंगिक हो गया है।
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aha के काम हैं आज शासन क्षत्रिय के हाथ से चला
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== वैश्य वर्ण ==
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आज यदि किसी वर्ण का बोलबाला है तो वह है वैश्य वर्ण । पूरा समाज अर्थाधिष्टित हो गया है सभी वर्णों के लोग अपने अपने वर्णधर्म को छोड़कर वैश्यवृत्ति ही
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गया । लोकतान्त्रिक शासन पद्धति में अब कोई परम्परागत
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अपनाने लगे हैं। शिक्षक का ज्ञान, चिकित्सक की चिकित्सा, पुरोहित का पौरोहित्य सब वैश्यवृत्ति के अधीन हो गया है
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राजा नहीं रहा है । चुनाव के माध्यम से अब सरकार बनती
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वैश्य वास्तव में समाज का पोषण करने वाला होता है। परन्तु उसने यह दायित्व छोड़ दिया है । वह अपनी कमाई की सोचता है, समाज की आवश्यकताओं का विचार नहीं करता है । अथर्जिन के क्षेत्र में, उत्पादन के क्षेत्र में और वितरण के क्षेत्र में आज अनेक प्रकार से विपरीत परिस्थिति पैदा हो गई है । वास्तव में वैश्य वर्ण को इस बात की चिन्ता करनी चाहिये पर वह नहीं करता है।
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है । इसलिये क्षत्रिय के एक काम का तो अन्त हो गया ।
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समाज के पोषण के लिये अन्न को सबसे अधिक महत्त्व देना चाहिये । इसलिये कृषि सबसे प्रमुख उद्योग बनना चाहिये । परन्तु आज सब कृषि से कतराते हैं । कृषकों की संख्या धीरे धीरे कम हो रही है । यान्त्रिकीकरण के चलते कृषि अब कृषकों के लिये कठिन भी हो गई है । रासायनिक खाद, कीटनाशक और यन्त्र तीनों ने मिलकर कृषि को, कृषि के साथ कृषक को और अन्न की आवश्यकता है ऐसे समाज को गहरे संकट में डाल दिया है। रासायनिक खाद से भूमि रसहीन बन रही है, महँगे खाद और यन्त्रों के कारण कृषक बरबाद हो रहा है और प्रजा को दूषित अन्न, सागसब्जी और फल खाने पड रहे हैं, इसलिये उसके स्वास्थ्य का संकट पैदा हो गया है । कृषि ट्रेक्टर जैसे यन्त्रों से होने के कारण गोवंश की हत्या हो रही है । सांस्कृतिक संकट इससे बढ़ता है, प्रजा पाप की भागी बनती है आहार से शरीर, मन, बुद्धि, चित्त सभी प्रभावित होते हैं।
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अब सभी वर्णों की नई खासियत को लेकर वे नौकरी करने
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इनके ऊपर जो संकट आ पड़ा है इसका अन्तिम दायित्व वैश्य वर्ण का ही माना जाना चाहिये। समाज की समृद्धि का आधार वैश्य वर्ण पर है । जब अर्थतन्त्र उत्पादक उद्योगों पर आधारित होता है तब समाज समृद्ध होता है । आज हमारा अर्थतन्त्र अनुत्यादक बन गया है। यातायात, विज्ञापन, निवेश और बिचौलियों के कारण वस्तुओं की कीमतें और लोगों की व्यस्तता बढ़ती है और पैसे की अनुत्पादक हेराफेरी होती है। कहा यह जाता है कि इससे रोजगार निर्माण होते हैं परन्तु यह आभासी रोजगार है, ठोस नहीं।
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लगे हैं इसका अर्थ है वे भी शद्र में परिवर्तित हो रहे हैं ।
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यंत्रों से उत्पादन, आर्थिक क्षेत्र का अनिष्ट है। इससे उद्योगों का केन्ट्रीकरण होता है। बड़े कारखानों के कारण उत्पादन की प्रभूतता होती है परन्तु केन्द्रीकरण होने के कारण से लोगों के स्वतन्त्र रोजगार छिन जाते हैं। कारीगर मालिक न रहकर नौकर बन जाते हैं। आर्थिक स्वतन्त्रता नष्ट होने के कारण से प्रजामानस भी स्वतन्त्र नहीं रहता। कारीगरों के साथ साथ कारीगरी भी नष्ट होती है जब हाथ से वस्तु का उत्पादन होता है तब वस्तु में वैविध्य और सौन्दर्य, कारीगर में सृूजनशीलता और कल्पनाशीलता और कुल मिलाकर उत्पादन में उत्कृष्टता और प्रभूतता बढ़ती है। काम में जीवन्तता और आनन्द होते हैं। इससे मानसिक सुख मिलता है। मानसिक सुख से संतोष बढ़ता है। उत्पादन का यह सांस्कृतिक पक्ष है।
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सेना में भर्ती होने वालों में भी क्षत्रियों का ही बहुमत है
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अर्थतन्त्र का एक भीषण अनिष्ट है विज्ञापन। यह आसुरी स्वभाव वाला है। यह मनुष्य को झूठ बोलने वाला बनाता है। सबसे पहला दूषण है अपनी ही वस्तु की आप ही प्रशंसा करना। यह तत्त्व स्वयं संस्कार के विस्द्ध है। अपनी वस्तु की और लोग सराहना करें यह स्वाभाविक लगता है, खुद बढ़ाचढ़ा कर कहें यह अशिष्ट और अनृत है। अतः पूरा विज्ञापन उद्योग झूठ और असंस्कार के आधार पर खड़ा हुआ है । विज्ञापन झूठ है इसका पता होने पर भी ग्राहक फँसते हैं । छोटे बच्चे और भोले वयस्क भी इसकी माया के शिकार होते हैं । इसका पाप भी वैश्य वर्ण का ही है । विज्ञापन से वस्तु महँगी होती है यह तो अलग ही विषय है । व्यापारी की कमाई के लिये विज्ञापन होते हैं और उसकी कीमत चुकानी पड़ती है ग्राहकों को ऐसा उलटा तरीका भी आज सर्वमान्य हो गया है । तीसरा है लोगों की सौन्दर्यदृष्टि की हानि । दूरदर्शन के पर्दे पर, रास्तों के किनारे, दीवारों पर, पत्रपत्रिकाओं में जहाँ देखो वहाँ भाँति भाँति के विज्ञापन दिखाई देते हैं । इससे सुरुचिभंग होता है । जहाँ देखो वहाँ जिस किसी बिक्री योग्य वस्तु के साथ स्त्रियों के चित्रविचित्र भंगिमाओं में चित्र दिखाई देते हैं ।
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ऐसा कह नहीं सकते बड़े बड़े राजमहल अब होटलों में
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मनोरंजन उद्योग ने भी कहर मचा रखा है संगीत, नृत्य, नाटक, फिल्में, धारावाहिक, अन्य रियालिटि शो आदि सब मनुष्य को बहकाने की स्पर्धा में उतरे हैं । मनुष्य शरीर की गरिमा, कला की पवित्रता, मन की स्वस्थता आदि सब दाँव पर लग गया है । दिन ब दिन कला का क्षेत्र घटिया से और घटिया हो रहा है । इसमें संस्कारों का क्षरण तेजी से होता है ।
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भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप
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आनन्द, प्रेम, सद्धाव, संस्कार, सेवा, परिचर्या, मार्गदर्शन, सहायता, शिक्षा, चिकित्सा, धर्म सब कुछ बिकाऊ बन गया है, या बिकाऊ बना दिया गया है। कलाकारों , शिक्षकों, धर्मगुरुओं, चिकित्सकों ने इसे बिकाऊ बना दिया है यह एक बात है और वैश्यों ने इसे बिकाऊ बना दिया है यह दूसरी बात है । इससे समाज का अधःपात न हो तो ही आश्चर्य है । मनुष्य स्वयं बिकाऊ बन गया है। अन्न, पानी, औषध, विद्या को बेचा जाना घोर सांस्कृतिक संकट है ।
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परिवर्तित हो गये हैं । इसका अर्थ यह हुआ कि वे अब
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''दान की प्रवृत्ति लाभ आज जिस प्रकार वैश्य वर्ण का बोलबाला है उसी''
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व्यापार करने लगे हैं अर्थात्‌ वे वैश्य वर्ण में परिवर्तित हो
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''की मी, कर के होना भी असंस्कारिता ही है आर्थिक... प्रकार शूद्र वर्ण का अलग प्रकार से बोलबाला है । शूद्र का''
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रहे हैं गोब्राह्मण प्रतिपालक का बिरुद तो वे कब के छोड़
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''व्यवहार में अनीति करना कोई पाप नहीं है, किसीकी . काम है परिचर्या करना परिचर्या का अर्थ है किसीकी''
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चुके हैं । शस्त्र धारण करना भी छूट गया है
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''विवशता का लाभ उठाने में कुछ गलत नहीं है ऐसा कहना''
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क्षत्रिय वर्ण के पतन और विघटन के कारण अब
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''और करना भी अन्यायपूर्ण ही है। परन्तु यह सब''
 
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समाज का पराक्रम नष्ट हो गया है । कानून भी सर्वसामान्य
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प्रजा को शख््र रखने की और चलाने की अनुमति नहीं देता
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है । विद्यालयों और महाविद्यालयों में शख्त्रविद्या सिखाई नहीं
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जाती है । ऐसी अवस्था में शासन करने की वृत्ति दादागिरी
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करने में भी बदल जाती है ।
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विजयी होने का दृढ़ निर्धार, वचनपालन, स्त्रीदाक्षिण्य
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आदि क्षत्रिय के दुर्लभ गुण होते हैं । आज वे वास्तव में
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दुर्लभ बन गये हैं ।
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समाजव्यवस्था में क्षत्रिय की भूमिका अब सरकार ने
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ले ली है । सरकार वर्ण के अनुसार बनती नहीं है । इसके
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परिणामस्वरूप क्षत्रिय वर्ण ही आज आप्रासंगिक हो गया है ।
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== वैश्यवर्ण ==
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आज यदि किसी वर्ण का बोलबाला है तो वह है
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वैश्य वर्ण । पूरा समाज अर्थाधिष्टित हो गया है । सभी वर्णों
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के लोग अपने अपने वर्णधर्म को छोड़कर वैश्यवृत्ति ही
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अपनाने लगे हैं। शिक्षक का ज्ञान, चिकित्सक की
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चिकित्सा, पुरोहित का पौरोहित्य सब वैश्यवृत्ति के अधीन
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हो गया है ।
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वैश्य वास्तव में समाज का पोषण करने वाला होता
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है। परन्तु उसने यह दायित्व छोड़ दिया है । वह अपनी
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कमाई की सोचता है, समाज की आवश्यकताओं का
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विचार नहीं करता है । अथर्जिन के क्षेत्र में, उत्पादन के
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क्षेत्र में और वितरण के क्षेत्र में आज अनेक प्रकार से
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विपरीत परिस्थिति पैदा हो गई है । वास्तव में वैश्य वर्ण को
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इस बात की चिन्ता करनी चाहिये पर वह नहीं करता है ।
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समाज के पोषण के लिये अन्न को सबसे अधिक
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महत्त्व देना चाहिये । इसलिये कृषि सबसे प्रमुख उद्योग
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बनना चाहिये । परन्तु आज सब कृषि से कतराते हैं ।
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कृषकों की संख्या धीरे धीरे कम हो रही है । यान्त्रिकीकरण
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के चलते कृषि अब कृषकों के लिये कठिन भी हो गई है ।
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रासायनिक खाद, कीटनाशक और यन्त्र तीनों ने मिलकर
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कृषि को, कृषि के साथ कृषक को और अन्न की
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आवश्यकता है ऐसे समाज को गहरे संकट में डाल दिया
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है । रासायनिक खाद से भूमि रसकसहीन बन रही है, महँगे
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खाद और यन्त्रों के कारण कृषक बरबाद हो रहा है और
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प्रजा को दूषित अन्न, सागसब्जी और फल खाने पड रहे हैं
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इसलिये उसके स्वास्थ्य का संकट पैदा हो गया है । कृषि
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erat जैसे यन्त्रों से होने के कारण गोवंश की हत्या हो रही
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है । सांस्कृतिक संकट इससे बढ़ता है, प्रजा पाप की भागी
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बनती है । आहार से शरीर, मन, बुद्धि, चित्त सभी प्रभावित
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होते हैं । इनके ऊपर जो संकट आ पड़ा है इसका अन्तिम
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दायित्व वैश्य वर्ण का ही माना जाना चाहिये ।
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समाज की समृद्धि का आधार वैश्य वर्ण पर है । जब
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अर्थतन्त्र उत्पादक उद्योगों पर आधारित होता है तब समाज
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समृद्ध होता है । आज हमारा अर्थतन्त्र अनुत्यादक बन गया
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है । यातायात, विज्ञापन, निवेश और बिचौलियों के कारण
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वस्तुओं की कीमतें और लोगों की व्यस्तता बढ़ती है और
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पैसे की अनुत्पादक हेराफेरी होती है । कहा यह जाता है कि
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इससे रोजगार निर्माण होते हैं परन्तु यह आभासी रोजगार है,
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ठोस नहीं ।
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wal से उत्पादन यह आर्थिक क्षेत्र का अनिष्ट है।
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इससे उद्योगों का केन्ट्रीकरण होता है । बड़े कारखानों के
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कारण उत्पादन की प्रभूतता होती है परन्तु केन्द्रीकरण होने के
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कारण से लोगों के स्वतन्त्र रोजगार छिन जाते हैं । कारीगर
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मालिक न रहकर नौकर बन जाते हैं । आर्थिक स्वतन्त्रता नष्ट
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होने के कारण से प्रजामानस भी स्वतन्त्र नहीं रहता ।
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कारीगरों के साथ साथ कारीगरी भी नष्ट होती है । जब
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हाथ से वस्तु का उत्पादन होता है तब वस्तु में वैविध्य और
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सौन्दर्य, कारीगर में सृूजनशीलता और कल्पनाशीलता और
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कुल मिलाकर उत्पादन में उत्कृष्टता और प्रभूतता बढ़ती है ।
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काम में जीवन्तता और आनन्द होते हैं । इससे मानसिक
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सुख मिलता है। मानसिक qa a any seq है ।
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घर
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उत्पादन का यह सांस्कृतिक पक्ष है ।
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अर्थतन्त्र का एक भीषण अनिष्ट है विज्ञापन । यह
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आसुरी स्वभाव वाला है । यह मनुष्य को झूठ बोलने वाला
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बनाता है । सबसे पहला दृषण है अपनी ही वस्तु की आप
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ही प्रशंसा करना । यह तत्त्व स्वयं संस्कार के विस्द्ध है ।
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अपनी वस्तु की और लोग सराहना करें यह स्वाभाविक
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लगता है, खुद बढ़ाचढ़ा कर कहें यह अशिष्ट और अनृत
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है। अतः पूरा विज्ञापन उद्योग झूठ और असंस्कार के
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आधार पर खड़ा हुआ है । विज्ञापन झूठ है इसका पता होने
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पर भी ग्राहक फँसते हैं । छोटे बच्चे और भोले वयस्क भी
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इसकी माया के शिकार होते हैं । इसका पाप भी वैश्य वर्ण
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का ही है । विज्ञापन से वस्तु महँगी होती है यह तो अलग
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ही विषय है । व्यापारी की कमाई के लिये विज्ञापन होते हैं
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और उसकी कीमत चुकानी पड़ती है ग्राहकों को ऐसा उलटा
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तरीका भी आज सर्वमान्य हो गया है । तीसरा है लोगों की
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सौन्दर्यदृष्टि की हानि । दूरदर्शन के पर्दे पर, रास्तों के
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किनारे, दीवारों पर, पत्रपत्रिकाओं में जहाँ देखो वहाँ भाँति
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भाँति के विज्ञापन दिखाई देते हैं । इससे सुरुचिभंग होता
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है । जहाँ देखो वहाँ जिस किसी बिक्री योग्य वस्तु के साथ
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खियों के चित्रविचित्र भंगिमाओं में चित्र दिखाई देते हैं ।
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मनोरंजन उद्योग ने भी कहर मचा रखा है । संगीत,
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नृत्य, नाटक, फिल्में, धारावाहिक, अन्य रियालिटि शो
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आदि सब मनुष्य को बहकाने की स्पर्धा में उतरे हैं । मनुष्य
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शरीर की गरिमा, कला की पवित्रता, मन की स्वस्थता
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आदि सब दाँव पर लग गया है । दिन ब दिन कला का क्षेत्र
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घटिया से और घटिया हो रहा है । इसमें संस्कारों का क्षरण
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तेजी से होता है ।
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आनन्द, प्रेम, सद्धाव, संस्कार, सेवा, परिचर्या,
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मार्गदर्शन, सहायता, शिक्षा, चिकित्सा, धर्म सब कुछ
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बिकाऊ बन गया है, या बिकाऊ बना दिया गया है ।
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कलाकारों , शिक्षकों, धर्मगुरुओं, चिकित्सकों ने इसे बिकाऊ
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बना दिया है यह एक बात है और वैश्यों ने इसे बिकाऊ बना
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दिया है यह दूसरी बात है । इससे समाज का अधःपात न हो
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तो ही आश्चर्य है । मनुष्य स्वयं बिकाऊ बन गया है ।
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अन्न, पानी, औषध, विद्या को
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बेचा जाना घोर सांस्कृतिक संकट है । दान की प्रवृत्ति लाभ आज जिस प्रकार वैश्य वर्ण का बोलबाला है उसी
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की मी, कर के होना भी असंस्कारिता ही है । आर्थिक... प्रकार शूद्र वर्ण का अलग प्रकार से बोलबाला है । शूद्र का
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व्यवहार में अनीति करना कोई पाप नहीं है, किसीकी . काम है परिचर्या करना । परिचर्या का अर्थ है किसीकी
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विवशता का लाभ उठाने में कुछ गलत नहीं है ऐसा कहना
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और करना भी अन्यायपूर्ण ही है। परन्तु यह सब
      
== शूद्रवर्ण ==
 
== शूद्रवर्ण ==
अंगसेवा करना । किसीका सिर दृबाना, पैर दबाना, मालिश
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''अंगसेवा करना । किसीका सिर दृबाना, पैर दबाना, मालिश''
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कोच करना, नहलाना आदि कार्य परिचर्या कहे जाते हैं । उसीके
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''कोच करना, नहलाना आदि कार्य परिचर्या कहे जाते हैं । उसीके''
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निः होता है । आधार पर कपड़े धोना, बाल काटना आदि भी परिचर्या के
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''निः होता है । आधार पर कपड़े धोना, बाल काटना आदि भी परिचर्या के''
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समाज की उपयोगिता को देखकर उत्पादन होना. काम हैं। आगे चलकर सारा कारीगर वर्ग ag at i
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''समाज की उपयोगिता को देखकर उत्पादन होना. काम हैं। आगे चलकर सारा कारीगर वर्ग ag at i''
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चाहिये यह रीत है, परन्तु अब केवल कम मेहनत से, कम. समाविष्ट है। एक परिभाषा ऐसी भी दी जाती है कि जो
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''चाहिये यह रीत है, परन्तु अब केवल कम मेहनत से, कम. समाविष्ट है। एक परिभाषा ऐसी भी दी जाती है कि जो''
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लागत से, कम समय में अधिक से अधिक अधथर्जिन हो इस. सजीव से दूसरा सजीव निर्माण करता है वह तो वैश्य है
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''लागत से, कम समय में अधिक से अधिक अधथर्जिन हो इस. सजीव से दूसरा सजीव निर्माण करता है वह तो वैश्य है''
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प्रकार से उत्पादन किया जाता है और विज्ञापन के माध्यम परन्तु निर्जीव से निर्जीव वस्तु का उत्पादन करता है वह शद्र
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''प्रकार से उत्पादन किया जाता है और विज्ञापन के माध्यम परन्तु निर्जीव से निर्जीव वस्तु का उत्पादन करता है वह शद्र''
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से कृत्रिम रूप से माँग बढ़ाई जाती है । यह समाज के साथ. है| इस अर्थ में कृषक वैश्य है परन्तु बढ़इ या लोहार श्र
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''से कृत्रिम रूप से माँग बढ़ाई जाती है । यह समाज के साथ. है| इस अर्थ में कृषक वैश्य है परन्तु बढ़इ या लोहार श्र''
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किया हुआ अन्याय है । AR है । इस प्रकार बहुत बड़ा समाज आज शद्र वर्ण का ही है ।
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''किया हुआ अन्याय है । AR है । इस प्रकार बहुत बड़ा समाज आज शद्र वर्ण का ही है ।''
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सारी geal को और जीवन की सारी गतिविधियों को We वस्तुओं का सृजन करता है। वैश्य उसकी
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''सारी geal को और जीवन की सारी गतिविधियों को We वस्तुओं का सृजन करता है। वैश्य उसकी''
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बाजार के रूप में देखो यह आज के वैश्यों का एकमेव सूत्र. व्यवस्था करता हैं । दोनों मिलकर समाज को समृद्ध बनाते
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''बाजार के रूप में देखो यह आज के वैश्यों का एकमेव सूत्र. व्यवस्था करता हैं । दोनों मिलकर समाज को समृद्ध बनाते''
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बन गया है । सभी बातों का बाजारीकरण कर दिया जाता हैं। इस दृष्टि से शद्र वर्ण का महत्त्त अत्यधिक है । कोई
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''बन गया है । सभी बातों का बाजारीकरण कर दिया जाता हैं। इस दृष्टि से शद्र वर्ण का महत्त्त अत्यधिक है । कोई''
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है। भारत में सभी बातों का आधार परिवार्भावना है, भी समाज शद्र वर्ण के बिना जी ही नहीं सकता । फिर भी
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''है। भारत में सभी बातों का आधार परिवार्भावना है, भी समाज शद्र वर्ण के बिना जी ही नहीं सकता । फिर भी''
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परन्तु अब परिवार भी बाजार की तरह चलते हैं । ag asf को नीचा मानना यह अत्यन्त बेतुकी बात है । पर
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''परन्तु अब परिवार भी बाजार की तरह चलते हैं । ag asf को नीचा मानना यह अत्यन्त बेतुकी बात है । पर''
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उधार लेना, कमाई से अधिक खर्चा करने के लिये. हमारे समाज ने ऐसा किया और शूद्र वर्ण को बहुत
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''उधार लेना, कमाई से अधिक खर्चा करने के लिये. हमारे समाज ने ऐसा किया और शूद्र वर्ण को बहुत''
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प्रेरित करना, अनावश्यक वस्तुओं से भरे हुए घर को प्रतिष्ठा अपमानित किया । इसके परिणाम बहुत घातक हुए हैं ।
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''प्रेरित करना, अनावश्यक वस्तुओं से भरे हुए घर को प्रतिष्ठा अपमानित किया । इसके परिणाम बहुत घातक हुए हैं ।''
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का विषय बनाना आदि सब आर्थिक क्षेत्र के अनिष्ट ही हैं ans फिर उसमें अस्पृश्यता का प्रश्न जोड़ दिया । इससे तो
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''का विषय बनाना आदि सब आर्थिक क्षेत्र के अनिष्ट ही हैं ans फिर उसमें अस्पृश्यता का प्रश्न जोड़ दिया । इससे तो''
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व्यापार के क्षेत्र में विदेशी निवेश, SQ  झ्रामला बहुत उलझ गया । इसकी चर्चा पूर्व में हुई है
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''व्यापार के क्षेत्र में विदेशी निवेश, SQ  झ्रामला बहुत उलझ गया । इसकी चर्चा पूर्व में हुई है''
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कम्पनियों को परवाने, विदेशी कर्जा, विदेश व्यापार ये सब इसलिये अभी पुनरावर्तन करने की आवश्यकता नहीं है ।
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''कम्पनियों को परवाने, विदेशी कर्जा, विदेश व्यापार ये सब इसलिये अभी पुनरावर्तन करने की आवश्यकता नहीं है ।''
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देश की समृद्धि का विचार करने पर बहुत भीषण संकट के भले ही अपने आपको ब्राह्मण कहें और शद्र न कहें
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''देश की समृद्धि का विचार करने पर बहुत भीषण संकट के भले ही अपने आपको ब्राह्मण कहें और शद्र न कहें''
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रूप में ही दिखाई पड़ते हैं । फिर इसमें भी अनेक प्रकार की. तो भी ब्राह्मणों ने अपने आपको शद्र ही बना दिया है ।
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''रूप में ही दिखाई पड़ते हैं । फिर इसमें भी अनेक प्रकार की. तो भी ब्राह्मणों ने अपने आपको शद्र ही बना दिया है ।''
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रिश्वतों का दौर चलता है । -
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''रिश्वतों का दौर चलता है । -''
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आर्थिक क्षेत्र के भ्रष्टाचारों से दुनिया बुरी तरह से
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''आर्थिक क्षेत्र के भ्रष्टाचारों से दुनिया बुरी तरह से''
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त्रस्त हो गई है । परन्तु लोग उसे स्वीकार करके चलते हैं
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''त्रस्त हो गई है । परन्तु लोग उसे स्वीकार करके चलते हैं''
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आर्थिक सुरक्षा यह शूद्रों का अधिकार है । आज ब्राह्मण भी
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''आर्थिक सुरक्षा यह शूद्रों का अधिकार है । आज ब्राह्मण भी''
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आर्थिक सुरक्षा ही खोजते हैं । इसलिये भी उनका व्यवहार
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''आर्थिक सुरक्षा ही खोजते हैं । इसलिये भी उनका व्यवहार''
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शूद्र जैसा है ।
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''शूद्र जैसा है ।''
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और भ्रष्टाचार को ही शिशटचार कहते हैं | आरक्षण के मामले ने भी समाज का सन्तुलन बिगाड़
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''और भ्रष्टाचार को ही शिशटचार कहते हैं | आरक्षण के मामले ने भी समाज का सन्तुलन बिगाड़''
   −
समाज में अब ब्राह्मण श्रेष्ठ नहीं है, वैश्य श्रेष्ठ है यह दिया है।
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''समाज में अब ब्राह्मण श्रेष्ठ नहीं है, वैश्य श्रेष्ठ है यह दिया है।''
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प्रस्थापित हो गया है और वैश्यों ने इसे स्वीकार कर लिया मान्यता ऐसी है कि शद्र गरीब, दलित और शोषित
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''प्रस्थापित हो गया है और वैश्यों ने इसे स्वीकार कर लिया मान्यता ऐसी है कि शद्र गरीब, दलित और शोषित''
   −
है । इसे दूसरे शब्दों में कहें तो समाज अब धर्माधिष्टित नहीं ही होते हैं । वास्तविकता इससे भिन्न है । शद्र कारीगर होते
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''है । इसे दूसरे शब्दों में कहें तो समाज अब धर्माधिष्टित नहीं ही होते हैं । वास्तविकता इससे भिन्न है । शद्र कारीगर होते''
   −
है परन्तु अर्थाधिष्ठित बन गया है | हैं। वे वस्तुओं का सृजन करते हैं । कारीगर हमेशा समृद्ध
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''है परन्तु अर्थाधिष्ठित बन गया है | हैं। वे वस्तुओं का सृजन करते हैं । कारीगर हमेशा समृद्ध''
   −
आज वैश्य वर्ण की यह स्थिति है । ही होता है । कारीगरों से ही समाज समृद्ध बनता है ।
+
''आज वैश्य वर्ण की यह स्थिति है । ही होता है । कारीगरों से ही समाज समृद्ध बनता है ।''
   −
इतिहास में प्रमाण मिलते हैं कि भारत कारीगरी के कि चेष्टा करता है । इस अनुचित
+
''इतिहास में प्रमाण मिलते हैं कि भारत कारीगरी के कि चेष्टा करता है । इस अनुचित''
   −
क्षेत्र में विश्व में अन्य साधारण स्थान रखता था । लोहे का व्यवहार को ठीक करने के लिए ब्राह्मण की शिक्षा
+
''क्षेत्र में विश्व में अन्य साधारण स्थान रखता था । लोहे का व्यवहार को ठीक करने के लिए ब्राह्मण की शिक्षा''
   −
निर्माण हो या सिमेण्ट का, वस्त्र का निर्माण हो या आभूषणों का प्रथम आयाम आचार का होना चाहिए । आचार
+
''निर्माण हो या सिमेण्ट का, वस्त्र का निर्माण हो या आभूषणों का प्रथम आयाम आचार का होना चाहिए । आचार''
   −
का, वस्तु का निर्माण हो या औजारों का, भारत के कारीगरों की शुद्धता और पवित्रता पहली बात है । आहार
+
''का, वस्तु का निर्माण हो या औजारों का, भारत के कारीगरों की शुद्धता और पवित्रता पहली बात है । आहार''
   −
ने विश्व में अद्वितीय स्थान प्राप्त किया था । यह प्रतिष्ठा शूद्रों विहार की शुद्धता और पवित्रता अपेक्षित है । शुद्धता
+
''ने विश्व में अद्वितीय स्थान प्राप्त किया था । यह प्रतिष्ठा शूद्रों विहार की शुद्धता और पवित्रता अपेक्षित है । शुद्धता''
   −
के कारण ही थी । परन्तु अस्पृश्यता के प्रश्न के चलते sk wert Ft व्याख्या करने की. बहुत
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''के कारण ही थी । परन्तु अस्पृश्यता के प्रश्न के चलते sk wert Ft व्याख्या करने की. बहुत''
   −
कारीगरों ने अपने आपको शूद्र कहलाना बन्द कर दिया । आवश्यकता नहीं है क्योंकि साधारण रूप से वह
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''कारीगरों ने अपने आपको शूद्र कहलाना बन्द कर दिया । आवश्यकता नहीं है क्योंकि साधारण रूप से वह''
   −
आज अब आरक्षण की नीति में इन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग कहा सबकी जानकारी में होती है ।
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''आज अब आरक्षण की नीति में इन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग कहा सबकी जानकारी में होती है ।''
   −
जाता है । इन्होंने भी आर्थिक सुरक्षा की लालच में इसको... २... आहार विहार की शुद्धता और पवित्रता हेतु संयम
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''जाता है । इन्होंने भी आर्थिक सुरक्षा की लालच में इसको... २... आहार विहार की शुद्धता और पवित्रता हेतु संयम''
   −
स्वीकार कर लिया है । परन्तु यह शब्दावली ही बड़ी गड़बड़ और तपश्चर्या की आवश्यकता होती है । वह ब्राह्मण
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''स्वीकार कर लिया है । परन्तु यह शब्दावली ही बड़ी गड़बड़ और तपश्चर्या की आवश्यकता होती है । वह ब्राह्मण''
   −
है । भारत में वर्णों को लेकर कभी अगड़ा या पिछड़ा जैसा ही नहीं जो इन दोनों को नहीं अपनाता है । अत: ये
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''है । भारत में वर्णों को लेकर कभी अगड़ा या पिछड़ा जैसा ही नहीं जो इन दोनों को नहीं अपनाता है । अत: ये''
   −
वर्गीकरण नहीं हुआ है, न अवर्ण और सवर्ण का | दोनों उसकी शिक्षा के प्रमुख अंग हैं ।
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''वर्गीकरण नहीं हुआ है, न अवर्ण और सवर्ण का | दोनों उसकी शिक्षा के प्रमुख अंग हैं ।''
   −
नीतिनिर्धारकों की उलटी समझ ने ये शब्द प्रयुक्त किये और ३. शास्त्रों का अध्ययन करना ब्राह्मण का सामाजिक
+
''नीतिनिर्धारकों की उलटी समझ ने ये शब्द प्रयुक्त किये और ३. शास्त्रों का अध्ययन करना ब्राह्मण का सामाजिक''
   −
निर््थक और अनर्थक विखवाद और विवाद खड़े कर दिये । दायित्व है । शास्त्रों की रक्षा करना उसका ज्ञानात्मक
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''निर््थक और अनर्थक विखवाद और विवाद खड़े कर दिये । दायित्व है । शास्त्रों की रक्षा करना उसका ज्ञानात्मक''
   −
सभी वर्णों का अपना अपना दायित्व होता है और उसके दायित्व है । अध्ययन का शास्त्र कहता है कि बुद्धि
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''सभी वर्णों का अपना अपना दायित्व होता है और उसके दायित्व है । अध्ययन का शास्त्र कहता है कि बुद्धि''
   −
अनुसार इसका महत्त्व भी होता है । जिस प्रकार ब्राह्मण वर्ण कि शुद्धता, पवित्रता, तेजस्विता के लिए आहार-
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''अनुसार इसका महत्त्व भी होता है । जिस प्रकार ब्राह्मण वर्ण कि शुद्धता, पवित्रता, तेजस्विता के लिए आहार-''
   −
ज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत है उसी प्रकार शद्र वर्ण भौतिक विहार की शुद्धता आवश्यक होती है । शास्त्रों का
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''ज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत है उसी प्रकार शद्र वर्ण भौतिक विहार की शुद्धता आवश्यक होती है । शास्त्रों का''
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उत्पादन के क्षेत्र में कार्यरत है । जिस प्रकार ज्ञान के बिना अध्ययन करने हेतु शिशु अवस्था, बाल अवस्था
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''उत्पादन के क्षेत्र में कार्यरत है । जिस प्रकार ज्ञान के बिना अध्ययन करने हेतु शिशु अवस्था, बाल अवस्था''
   −
नहीं चलता उसी प्रकार भौतिक वस्तुओं के बिना भी नहीं और किशोर अवस्था की जो अध्ययन पद्धति है उसे
+
''नहीं चलता उसी प्रकार भौतिक वस्तुओं के बिना भी नहीं और किशोर अवस्था की जो अध्ययन पद्धति है उसे''
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चलता है । दोनों अनिवार्य हैं । दोनों का समान महत्त्व है । अपनाते हुए शाख्रग्रंथों का अध्ययन करना है।
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''चलता है । दोनों अनिवार्य हैं । दोनों का समान महत्त्व है । अपनाते हुए शाख्रग्रंथों का अध्ययन करना है।''
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एक समृद्धि का क्षेत्र है, दूसरा संस्कृति का । समृद्धि और तात्पर्य यह है कि व्यवहार की शिक्षा तो उसे प्राप्त
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''एक समृद्धि का क्षेत्र है, दूसरा संस्कृति का । समृद्धि और तात्पर्य यह है कि व्यवहार की शिक्षा तो उसे प्राप्त''
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संस्कृति साथ ही साथ रहने चाहिये । तभी अच्छा करनी ही है ।
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''संस्कृति साथ ही साथ रहने चाहिये । तभी अच्छा करनी ही है ।''
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समाजजीवन सम्भव है । इस तथ्य को भूलने और भुलाने के... ४... शास्त्रीय अध्ययन हेतु आवश्यक आचारों की शिक्षा
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''समाजजीवन सम्भव है । इस तथ्य को भूलने और भुलाने के... ४... शास्त्रीय अध्ययन हेतु आवश्यक आचारों की शिक्षा''
   −
कारण बहुत अनर्थ हुआ है । हमें अब इस अनर्थ को समाप्त उसे घर में ही प्राप्त होनी चाहिए क्योंकि वह घर में
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''कारण बहुत अनर्थ हुआ है । हमें अब इस अनर्थ को समाप्त उसे घर में ही प्राप्त होनी चाहिए क्योंकि वह घर में''
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कर पुन: सुस्थिति लाने का प्रयास करना चाहिये । ही प्राप्त हो सकती है । शास्त्रों की शिक्षा उसे गुरुकुल
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''कर पुन: सुस्थिति लाने का प्रयास करना चाहिये । ही प्राप्त हो सकती है । शास्त्रों की शिक्षा उसे गुरुकुल''
   −
बर्णानुसारी शिक्षा व्यवस्था में प्राप्त हो सकती है । गुरुकुल यदि आवासीय है तो
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''बर्णानुसारी शिक्षा व्यवस्था में प्राप्त हो सकती है । गुरुकुल यदि आवासीय है तो''
   −
वह गुरुगृहवास है इसलिए आचार की शिक्षा उसे
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''वह गुरुगृहवास है इसलिए आचार की शिक्षा उसे''
   −
ब्राह्मण वर्ण की शिक्षा वहाँ भी प्राप्त हो सकती है ।
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''ब्राह्मण वर्ण की शिक्षा वहाँ भी प्राप्त हो सकती है ।''
   −
ब्राह्मण की शिक्षा के आयाम इस प्रकार हैं ... ५... ब्राह्मण को पौरोहित्य करना होता है । इसलिए मंत्रों
+
''ब्राह्मण की शिक्षा के आयाम इस प्रकार हैं ... ५... ब्राह्मण को पौरोहित्य करना होता है । इसलिए मंत्रों''
   −
१... ब्राह्मण को सर्वप्रथम निश्चित कर लेना चाहिए कि उसे का उच्चारण और गान, यज्ञ की विधि, संस्कारों की
+
''१... ब्राह्मण को सर्वप्रथम निश्चित कर लेना चाहिए कि उसे का उच्चारण और गान, यज्ञ की विधि, संस्कारों की''
   −
ब्राह्मण रहना है कि नहीं क्योंकि ब्राह्मण के आचारों विधि, विभिन्न पूजाओं की विधि उसे सीखनी है |
+
''ब्राह्मण रहना है कि नहीं क्योंकि ब्राह्मण के आचारों विधि, विभिन्न पूजाओं की विधि उसे सीखनी है |''
   −
का पालन सरल नहीं है। इस बात का उल्लेख संस्कारों के सारे कर्मकांड आज की तरह समाज में
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''का पालन सरल नहीं है। इस बात का उल्लेख संस्कारों के सारे कर्मकांड आज की तरह समाज में''
   −
इसलिए करना उचित है क्योंकि आज ब्राह्मण बिना बिना समझे किए जाते हैं ऐसी स्थिति न रहे इस दृष्टि
+
''इसलिए करना उचित है क्योंकि आज ब्राह्मण बिना बिना समझे किए जाते हैं ऐसी स्थिति न रहे इस दृष्टि''
   −
आचार का पालन किए ही अपने आपको श्रेष्ठ बताने से उसे अध्ययन करना है और पौरोहित्य करना है ।
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''आचार का पालन किए ही अपने आपको श्रेष्ठ बताने से उसे अध्ययन करना है और पौरोहित्य करना है ।''
    
दे
 
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   −
& शास्त्रों के अध्ययन के साथ
+
शास्त्रों के अध्ययन के साथ साथ उसे अध्यापन भी करना है इसलिए अध्यापन शास्त्र की शिक्षा भी उसे प्राप्त करनी चाहिए । पारम्परिक रूप में उसे अध्यापन या पौरोहित्य को अथर्जिन का विषय नहीं बनाना है । यह केवल प्राचीन काल में ही सम्भव था ऐसा नहीं है । आज के समय में भी उसे सम्भव बनाना है । सादगी, संयम
   −
साथ उसे अध्यापन भी करना है इसलिए अध्यापन
+
और तपश्चर्या विवशता नहीं है, चरित्र का उन्नयन है, यह विश्वास समाज में जागृत करना और प्रतिष्ठित करना उसका काम है । इसके लिए समाज पर भरोसा
   −
शास्त्र की शिक्षा भी उसे प्राप्त करनी चाहिए ।
+
रखने की आवश्यकता होती है।
   −
पारम्परिक रूप में उसे अध्यापन या पौरोहित्य को
+
शास्त्रों को युगानुकूल बनाने हेतु व्यावहारिक अनुसन्धान करना उसका काम है । यह भी उसकी शिक्षा का प्रमुख हिस्सा है । वर्तमान सन्दर्भ में इसे उच्च शिक्षा कहते हैं । उच्च शिक्षा के दो प्रमुख आयाम तत्त्वचिन्तन और अनुसन्धान हैं । आज ये दोनों बातें कोई भी करता है। केवल ब्राह्मण ही करे इस बात का सार्वत्रिक विरोध होगा । हम कह सकते हैं कि जो भी आचार विचार में, आहार विहार में शुद्धता और पवित्रता रख सकता है, संयम और सादगी अपना सकता है, तपश्चर्या कर सकता है, विद्याप्रीति, ज्ञाननिष्ठा और ज्ञान कि श्रेष्ठता और पवित्रता हेतु कष्ट सह सकता है और अपने निर्वाह के लिए समाज पर भरोसा कर सकता है वही उच्च शिक्षा का अधिकारी है । वह किसी भी वर्ण में जन्मा हो तो भी ब्राह्मण ही है। आज शिक्षाक्षेत्र में ऐसे लोग ही नहीं हैं यही समाज कि दुर्गति का कारण है । स्वाभाविक है कि ऐसे लोग संख्या में कम ही होंगे परन्तु कम संख्या में भी उनका होना अनिवार्य है । अपने आपको ब्राह्मण कहलाने वाले लोगों को सही अर्थ में ब्राह्मण बनना चाहिए |
   −
अथर्जिन का विषय नहीं बनाना है । यह केवल
+
ब्राह्मण को युद्ध नहीं करना है, युद्ध का शास्त्र जानना है, व्यापार नहीं करना है, व्यापार का शास्त्र जानना है, राज्य नहीं करना है, राज्य का शास्त्र जानना है और योद्धा, व्यापारी तथा राजा का मार्गदर्शन करना है। इसी प्रकार आवश्यकता के अनुसार नए व्यवहारशास्त्रों की रचना भी करना है। युग के अनुसार शास्त्रों का नया नया अर्थघटन भी करना है । ऐसा करने हेतु जो निःस्वार्थ बुद्धि चाहिए उसकी शिक्षा ब्राह्मण के लिए आवश्यक है ।
 
  −
प्राचीन काल में ही सम्भव था ऐसा नहीं है । आज
  −
 
  −
के समय में भी उसे सम्भव बनाना है । सादगी, संयम
  −
 
  −
और तपश्चर्या विवशता नहीं है, चरित्र का उन्नयन है,
  −
 
  −
यह विश्वास समाज में जागृत करना और प्रतिष्ठित
  −
 
  −
करना उसका काम है । इसके लिए समाज पर भरोसा
  −
 
  −
रखने की आवश्यकता होती है ।
  −
 
  −
शास्त्रों को. युगानुकूल बनाने हेतु व्यावहारिक
  −
 
  −
अनुसन्धान करना उसका काम है । यह भी उसकी
  −
 
  −
शिक्षा का प्रमुख हिस्सा है ।
  −
 
  −
वर्तमान सन्दर्भ में इसे उच्च शिक्षा कहते हैं । उच्च
  −
 
  −
शिक्षा के दो प्रमुख आयाम तत्त्वचिन्तन और
  −
 
  −
अनुसन्धान हैं । आज ये दोनों बातें कोई भी करता
  −
 
  −
है। केवल ब्राह्मण ही करे इस बात का सार्वत्रिक
  −
 
  −
विरोध होगा । हम कह सकते हैं कि जो भी आचार
  −
 
  −
विचार में, आहार विहार में शुद्धता और पवित्रता रख
  −
 
  −
सकता है, संयम और सादगी अपना सकता है,
  −
 
  −
तपश्चर्या कर सकता है, विद्याप्रीति, ज्ञाननिष्ठा और
  −
 
  −
ज्ञान कि श्रेष्ठता और पवित्रता हेतु कष्ट सह सकता है
  −
 
  −
और अपने निर्वाह के लिए समाज पर भरोसा कर
  −
 
  −
सकता है वही उच्च शिक्षा का अधिकारी है । वह
  −
 
  −
किसी भी वर्ण में जमा हो तो भी ब्राह्मण ही है ।
  −
 
  −
आज शिक्षाक्षेत्र में ऐसे लोग ही नहीं हैं यही समाज
  −
 
  −
कि दुर्गति का कारण है । स्वाभाविक है कि ऐसे लोग
  −
 
  −
संख्या में कम ही होंगे परन्तु कम संख्या में भी
  −
 
  −
उनका होना अनिवार्य है । अपने आपको ब्राह्मण
  −
 
  −
कहलाने वाले लोगों को सही अर्थ में ब्राह्मण बनना
  −
 
  −
चाहिए |
  −
 
  −
ब्राह्मण को युद्ध नहीं करना है, युद्ध का शास्त्र जानना
  −
 
  −
है, व्यापार नहीं करना है, व्यापार का शास्त्र जानना
  −
 
  −
है, राज्य नहीं करना है, राज्य का शास्त्र जानना है
  −
 
  −
और योद्धा, व्यापारी तथा राजा का मार्गदर्शन करना
  −
 
  −
है। इसी प्रकार आवश्यकता के अनुसार नए
  −
 
  −
व्यवहारशास्त्रों की रचना भी करना है। युग के
  −
 
  −
अनुसार शास्त्रों का नया नया अर्थघटन भी करना है ।
  −
 
  −
ऐसा करने हेतु जो निःस्वार्थ बुद्धि चाहिए उसकी
  −
 
  −
शिक्षा ब्राह्मण के लिए आवश्यक है ।
      
=== क्षत्रिय वर्ण की शिक्षा ===
 
=== क्षत्रिय वर्ण की शिक्षा ===
क्षत्रिय वर्ण की शिक्षा के प्रमुख आयाम इस प्रकार हैं
+
क्षत्रिय वर्ण की शिक्षा के प्रमुख आयाम इस प्रकार हैं:
 
+
# क्षत्रिय को समाज की रक्षा करनी है यह बात अपने आपको क्षत्रिय कहलाने वाले के हृदय में बैठनी चाहिए। इसकी शिक्षा सर्व प्रथम देने की आवश्यकता है । क्षत्रियों को गोब्राह्मण प्रतिपाल का बिरुद्‌ दिया जाता है । ब्राह्मण से तात्पर्य है ज्ञान और संस्कृति की उपासना करने वाला वर्ग । गाय से तात्पर्य है सर्व प्रकार की भौतिक समृद्धि का स्रोत । इन दोनों की रक्षा करना क्षत्रिय का परम कर्तव्य है ।
१, क्षत्रिय को समाज की रक्षा करनी है यह बात अपने
+
# मानसिकता निर्माण करने के साथ साथ युद्धकला की शिक्षा भी अत्यन्त आवश्यक है । वैसे सारी प्रजा को युद्धकला, पराक्रम, विजिगिषु मनोवृत्ति, सज्जनों की रक्षा, देशभक्ति आदि की शिक्षा मिलनी ही चाहिए परन्तु क्षत्रियों को युद्धकला की विशेष रूप से शिक्षा देनी चाहिए ।  
 
+
# धर्म, संस्कृति, इतिहास, सामान्य व्यवहार आदि अनेक विषयों की शिक्षा तो उन्हें मिलनी ही चाहिए ।
आपको क्षत्रिय कहलाने वाले के हृदय में बैठनी
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# राज्य कैसे किया जाता है इसका शास्त्र भी क्षत्रियों को सिखाया जाना चाहिए ।
 
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# क्षत्रिय वर्ण की शिक्षा प्राप्त करने हेतु व्यक्ति में क्षत्रिय वर्ण से अपेक्षित बल, बुद्धि,दुर्जनों को दण्ड देने की वृत्ति आदि के आधार पर परीक्षा देनी चाहिए । भीरु, कायर, दुर्बल, स्वार्थी, अपने आपको बचाने की वृत्ति वाला व्यक्ति क्षत्रिय नहीं हो सकता और उसे क्षत्रियोचित शिक्षा प्राप्त नहीं हो सकती | वचन का पालन करना, रणक्षेत्र से मुँह नहीं मोड़ना, किसीका रक्षण करते समय अपनी कठिनाइयों या घावों की चिन्ता नहीं करना, भिक्षा के लिए कभी भी हाथ नहीं पसारना, किसीके द्वारा भिक्षा माँगी जाने पर कभी नकार नहीं देना क्षत्रियोचित स्वभाव है । इस स्वभाव का जागरण और जतन हो ऐसी शिक्षाव्यवस्था होनी चाहिए ।
चाहिए। इसकी शिक्षा सर्व प्रथम देने की
+
# समाज में ऐसे लोगों की अतीव आवश्यकता है, इस बात से सब सहमत होंगे । इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए केवल सैन्य में भर्ती होना ही पर्याप्त नहीं है । सार्वजनिक जीवन में ये गुण दिखाई देने चाहिए । सैनिक हो या न हो दुर्बलों का रक्षण करने की, न्याय का पक्ष लेने की और अन्याय का विरोध करने की प्रवृत्ति समाज में दिखाई देनी चाहिए ।
 
  −
आवश्यकता है । क्षत्रियों को गोब्राह्मणप्रतिपाल का
  −
 
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बिरुद्‌ दिया जाता है । ब्राह्मण से तात्पर्य है ज्ञान और
  −
 
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संस्कृति की उपासना करने वाला वर्ग । गाय से
  −
 
  −
तात्पर्य है सर्व प्रकार की भौतिक समृद्धि का स्रोत ।
  −
 
  −
इन दोनों की रक्षा करना क्षत्रिय का परम कर्तव्य है ।
  −
 
  −
२... मानसिकता निर्माण करने के साथ साथ युद्धकला की
  −
 
  −
शिक्षा भी अत्यन्त आवश्यक है । वैसे सारी प्रजा को
  −
 
  −
युद्धकला, पराक्रम, विजिगिषु मनोवृत्ति, सज्जनों की
  −
 
  −
रक्षा, देशभक्ति आदि की शिक्षा मिलनी ही चाहिए
  −
 
  −
परन्तु क्षत्रियों को युद्धकला की विशेष रूप से शिक्षा
  −
 
  −
देनी चाहिए ।
  −
 
  −
3. धर्म, संस्कृति, इतिहास, सामान्य व्यवहार आदि
  −
 
  −
अनेक विषयों की शिक्षा तो उन्हें मिलनी ही चाहिए ।
  −
 
  −
४... राज्य कैसे किया जाता है इसका शास्त्र भी क्षत्रियों
  −
 
  −
को सिखाया जाना चाहिए ।
  −
 
  −
q. क्षत्रिय वर्ण की शिक्षा प्राप्त करने हेतु व्यक्ति में क्षत्रिय
  −
 
  −
वर्ण से अपेक्षित बल, बुद्धि,दुर्जनों को दण्ड देने की
  −
 
  −
वृत्ति आदि के आधार पर परीक्षा देनी चाहिए । भीरु,
  −
 
  −
कायर, दुर्बल, स्वार्थी, अपने आपको बचाने की
  −
 
  −
वृत्ति वाला व्यक्ति क्षत्रिय नहीं हो सकता और उसे
  −
 
  −
क्षत्रियोचित शिक्षा प्राप्त नहीं हो सकती |
  −
 
  −
वचन का पालन करना, रणक्षेत्र से मुँह नहीं मोड़ना,
  −
 
  −
किसीका रक्षण करते समय अपनी कठिनाइयों या
  −
 
  −
घावों की चिन्ता नहीं करना, भिक्षा के लिए कभी भी
  −
 
  −
हाथ नहीं पसारना, किसीके द्वारा भिक्षा माँगी जाने पर
  −
 
  −
कभी नकार नहीं देना क्षत्रियोचित स्वभाव है । इस
  −
 
  −
स्वभाव का. जागरण और wa a ऐसी
  −
 
  −
शिक्षाव्यवस्था होनी चाहिए ।
  −
 
  −
समाज में ऐसे लोगों की अतीव आवश्यकता है, इस
  −
 
  −
बात से सब सहमत होंगे । इस आवश्यकता की पूर्ति
  −
 
  −
के लिए केवल सैन्य में भर्ती होना ही पर्याप्त नहीं है ।
  −
 
  −
सार्वजनिक जीवन में ये गुण दिखाई देने चाहिए ।
  −
 
  −
सैनिक हो या न हो दुर्बलों का रक्षण करने की, न्याय
  −
 
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का पक्ष लेने की और अन्याय का विरोध करने की
  −
 
  −
प्रवृत्ति समाज में दिखाई देनी चाहिए ।
      
=== वैश्य वर्ण की शिक्षा ===
 
=== वैश्य वर्ण की शिक्षा ===
¥,
+
वैश्य वर्ण की शिक्षा के आयाम इस प्रकार हैं:
 
+
# वैश्य समाज का भरण पोषण करने वाला है। भगवान विष्णु जो जगत के पालक हैं उनके आदर्श हैं। इसलिए समाज को किसी भी प्रकार के अभावों में जीना न पड़े यह देखने की ज़िम्मेदारी वैश्य वर्ण की है। वैश्य वर्ण के कामों का कौशल सिखाने से पूर्व यह मानसिकता निर्माण करना शिक्षा का प्रमुख अंग होना चाहिए ।
वैश्य वर्ण की शिक्षा के आयाम इस प्रकार हैं
+
# कृषि और गोपालन वैश्य का प्रमुख व्यवसाय है। इसलिए भूमि और गाय के साथ नाता बहुत छोटी आयु से ही जोड़ना चाहिए । ये दोनों परिश्रमपूर्वक करने के काम हैं इसलिए छोटी आयु से ही मिट्टी और गाय के साथ जुड़कर परिश्रम करने में आनन्द आए ऐसी व्यवस्था शिक्षा में करनी चाहिए।
 
+
# कृषि के साथ साथ वाणिज्य भी वैश्य वर्ण का ही काम है। इसलिए वाणिज्य के साथ संबन्धित शिक्षा की व्यवस्था भी छोटी आयु से होनी चाहिए।
वैश्य समाज का भरण पोषण करने वाला है।
+
# दान देना, सम्पत्ति का स्वामी होना, वैभव में रहना वैश्य वर्ण का स्वभाव है।
 
+
# वैश्य का हाथ लेने के लिए आगे नहीं बढ़ता है और देने की बात आती है तो कभी पीछे नहीं हटता है। देश की आर्थिक समस्या क्या है, प्राकृतिक संसाधनों का जतन किस प्रकार किया जाना चाहिए, यंत्रों का उपयोग करने में किस प्रकार विवेक बरतना चाहिए, लोग बेरोजगार न हों, काम करने के लायक बनें इस दृष्टि से क्या व्यवस्था करनी चाहिए, इसका विचार और योजना करना भी वैश्यों का ही काम है।
भगवान विष्णु जो जगत के पालक हैं उनके आदर्श
+
# व्यापार के लिए देश विदेश में जाना, विदेश व्यापार इस प्रकार करना कि हमें विश्वभर से श्रेष्ठ और मूल्यवान वस्तुयें तो प्राप्त हों परंतु हमारा धन विदेश में चला जाय और हम गरीब बन जाय ऐसी स्थिति न बने।
 
+
# समृद्धि और अर्थव्यवस्था का क्षेत्र धर्मविहीन न बने और प्राकृतिक संसाधनों का शोषण तथा मनुष्यों के स्वास्थ्य और संस्कारों की हानि न हो । इस प्रकार से वाणिज्य का क्षेत्र नियोजित करना भी वैश्यों को सिखाना चाहिए।
हैं । इसलिए समाज को किसी भी प्रकार के अभावों
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में जीना न पड़े यह देखने की ज़िम्मेदारी वैश्य वर्ण
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की है । वैश्यवर्ण के कामों का कौशल सिखाने से
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पूर्व यह मानसिकता निर्माण करना शिक्षा का प्रमुख
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अंग होना चाहिए ।
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कृषि और गोपालन वैश्य का प्रमुख व्यवसाय है ।
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इसलिए भूमि और गाय के साथ नाता बहुत छोटी
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आयु से ही जोड़ना चाहिए । ये दोनों परिश्रमपूर्वक
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करने के काम हैं इसलिए छोटी आयु से ही मिट्टी
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और गाय के साथ जुड़कर परिश्रम करने में आनन्द
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आए ऐसी व्यवस्था शिक्षा में करनी चाहिए ।
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कृषि के साथ साथ वाणिज्य भी वैश्य वर्ण का ही
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काम है । इसलिए वाणिज्य के साथ संबन्धित शिक्षा
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की व्यवस्था भी छोटी आयु से होनी चाहिए ।
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दान देना, सम्पत्ति का स्वामी होना, वैभव में रहना
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  −
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वैश्य वर्ण का स्वभाव है । वैश्य
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का हाथ लेने के लिए आगे नहीं बढ़ता है और देने
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की बात आती है तो कभी पीछे नहीं हटता है ।
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देश की आर्थिक समस्या कया है, प्राकृतिक संसाधनों
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का जतन किस प्रकार किया जाना चाहिए, यंत्रों का
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उपयोग करने में किस प्रकार विवेक बरतना चाहिए,
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लोग बेरोजगार न हों, काम करने के लायक बनें इस
  −
 
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दृष्टि से क्या व्यवस्था करनी चाहिए, इसका विचार
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और योजना करना भी वैश्यों का ही काम है ।
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व्यापार के लिए देश विदेश में जाना, विदेश व्यापार
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इस प्रकार करना कि हमें विश्वभर से श्रेष्ठ और
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मूल्यवान वस्तुरययें तो प्राप्त हों परंतु हमारा धन विदेश
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में चला जाय और हम गरीब बन जाय ऐसी स्थिति न
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बने ।
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समृद्धि और अर्थव्यवस्था का क्षेत्र धर्मविहीन न बने
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और प्राकृतिक संसाधनों का शोषण तथा मनुष्यों के
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स्वास्थ्य और संस्कारों की हानि न हो । इस प्रकार
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से वाणिज्य का क्षेत्र नियोजित करना भी वैश्यों को
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सिखाना चाहिए ।
      
=== शूद्र वर्ण की शिक्षा ===
 
=== शूद्र वर्ण की शिक्षा ===

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