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मनुष्य का स्वभाव भी जन्मजन्मांतर के कर्मों के प्रति उसके मन के सम्बन्ध के अनुसार बनता है । मनुष्य को जीवनयापन के लिए अनेक प्रकार के काम करने ही होते हैं।एक क्षण भी मनुष्य कर्म किए बिना रह नहीं सकता है। ये कर्म शारीरिक भी होते हैं और बौद्धिक भी।
मनुष्य का स्वभाव भी जन्मजन्मांतर के कर्मों के प्रति उसके मन के सम्बन्ध के अनुसार बनता है । मनुष्य को जीवनयापन के लिए अनेक प्रकार के काम करने ही होते हैं।एक क्षण भी मनुष्य कर्म किए बिना रह नहीं सकता है। ये कर्म शारीरिक भी होते हैं और बौद्धिक भी।
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''उदाहरण के लिए खाना, चलना, वस्त्र... का अर्थ है ब्राह्मण वर्ण का पुरुष क्षत्रिय, वैश्य या शूट्र स्त्री''
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''उदाहरण के लिए खाना, चलना, वस्त्र... का अर्थ है ब्राह्मण वर्ण का पुरुष क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र स्त्री''
''पहनना ये शारीरिक कर्म हैं परंतु अध्ययन करना, समस्या... से विवाह कर सकता है, क्षत्रिय वर्ण का पुरुष वैश्य या YG''
''पहनना ये शारीरिक कर्म हैं परंतु अध्ययन करना, समस्या... से विवाह कर सकता है, क्षत्रिय वर्ण का पुरुष वैश्य या YG''
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== वैश्य वर्ण ==
== वैश्य वर्ण ==
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आज यदि किसी वर्ण का बोलबाला है तो वह है वैश्य वर्ण । पूरा समाज अर्थाधिष्टित हो गया है । सभी वर्णों के लोग अपने अपने वर्णधर्म को छोड़कर वैश्यवृत्ति ही
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आज यदि किसी वर्ण का बोलबाला है तो वह है वैश्य वर्ण । पूरा समाज अर्थाधिष्टित हो गया है । सभी वर्णों के लोग अपने अपने वर्णधर्म को छोड़कर वैश्यवृत्ति ही अपनाने लगे हैं। शिक्षक का ज्ञान, चिकित्सक की चिकित्सा, पुरोहित का पौरोहित्य सब वैश्यवृत्ति के अधीन हो गया है ।
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अपनाने लगे हैं। शिक्षक का ज्ञान, चिकित्सक की चिकित्सा, पुरोहित का पौरोहित्य सब वैश्यवृत्ति के अधीन हो गया है ।
वैश्य वास्तव में समाज का पोषण करने वाला होता है। परन्तु उसने यह दायित्व छोड़ दिया है । वह अपनी कमाई की सोचता है, समाज की आवश्यकताओं का विचार नहीं करता है । अथर्जिन के क्षेत्र में, उत्पादन के क्षेत्र में और वितरण के क्षेत्र में आज अनेक प्रकार से विपरीत परिस्थिति पैदा हो गई है । वास्तव में वैश्य वर्ण को इस बात की चिन्ता करनी चाहिये पर वह नहीं करता है।
वैश्य वास्तव में समाज का पोषण करने वाला होता है। परन्तु उसने यह दायित्व छोड़ दिया है । वह अपनी कमाई की सोचता है, समाज की आवश्यकताओं का विचार नहीं करता है । अथर्जिन के क्षेत्र में, उत्पादन के क्षेत्र में और वितरण के क्षेत्र में आज अनेक प्रकार से विपरीत परिस्थिति पैदा हो गई है । वास्तव में वैश्य वर्ण को इस बात की चिन्ता करनी चाहिये पर वह नहीं करता है।
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=== शूद्र वर्ण की शिक्षा ===
=== शूद्र वर्ण की शिक्षा ===
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शूट्र वर्ण की शिक्षा के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं ...
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शूद्र वर्ण की शिक्षा के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं:
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# शूद्र वर्ण के साथ निर्माण और स्वच्छता के सारे कार्य जुड़े हुए हैं । प्रजा का आरोग्य और असंख्य वस्तुओं की सुविधा का आधार शूद्रों पर है । उदाहरण के लिए विभिन्न प्रकार के पात्र बनाना, कृषि के लिए आवश्यक यंत्र निर्माण करना, वस्त्रों, भवनों, वाहनों आदि का निर्माण करना शूद्रों का काम है। स्वाभाविक ही है कि समाज की समृद्धि का मूल आधार प्रथम शूद्रों पर है और दूसरा वैश्यों पर है। शूद्रों द्वारा निर्माण की हुई वस्तुओं के बाजार की व्यवस्था वैश्य करता है ।
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शूट्र वर्ण के साथ निर्माण और स्वच्छता के सारे कार्य
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# सम्पूर्ण समाज को सर्व प्रकार की सुविधा प्राप्त हो, कष्ट दूर हों यह देखने का दायित्व शूद्रों का है। इस दायित्व का बोध कराने वाली शिक्षा सामाजिक दायित्वबोध, देशभक्ति, धर्मनिष्ठा, धर्म
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''शूद्रों के लिए होनी चाहिए । और संस्कृति का ज्ञान आदि बातें सभी वर्णों के लिए''
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जुड़े हुए हैं । प्रजा का आरोग्य और असंख्य वस्तुओं
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की सुविधा का आधार शूद्रों पर है । उदाहरण के
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लिए विभिन्न प्रकार के पात्र बनाना, कृषि के लिए
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आवश्यक यंत्र निर्माण करना, वस्त्रों, भवनों, वाहनों
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आदि का निर्माण करना शूद्रों का काम है।
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स्वाभाविक ही है कि समाज की समृद्धि का मूल
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आधार प्रथम शूट्रों पर है और दूसरा वैश्यों पर है ।
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व्यवस्था वैश्य करता है ।
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सम्पूर्ण समाज को सर्व प्रकार की सुविधा प्राप्त हो,
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कष्ट दूर हों यह देखने का दायित्व शूद्रों का है । इस
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दायित्व का बोध कराने वाली शिक्षा सामाजिक दायित्वबोध, देशभक्ति, धर्मनिष्ठा, धर्म
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शूद्रों के लिए होनी चाहिए । और संस्कृति का ज्ञान आदि बातें सभी वर्णों के लिए
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३. आज की भाषा में कहें तो सर्व प्रकार का आवश्यक हैं ।
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इंजीनियरिंग, सर्व प्रकार के कारखाने, सड़क, पुल, हे. ऐसा लग सकता है कि आज माध्यमिक स्तर तक
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बांध आदि निर्माण करने के प्रकल्प शूट्रों के खाते में की शिक्षा सबके लिए समान ही है । वह इस स्वरूप
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''३. आज की भाषा में कहें तो सर्व प्रकार का आवश्यक हैं ।''
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ही जाएँगे। इन कामों के साथ जुड़ी हुई शिक्षा की हो सकती है । परन्तु हितकारी यह होगा कि
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''इंजीनियरिंग, सर्व प्रकार के कारखाने, सड़क, पुल, हे. ऐसा लग सकता है कि आज माध्यमिक स्तर तक''
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संस्थायें भी शूद्रों के ही अधिकार में रहेंगी । चारों वर्णों की स्वतंत्र शिक्षा कि व्यवस्था हो और ये
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''बांध आदि निर्माण करने के प्रकल्प शूद्रों के खाते में की शिक्षा सबके लिए समान ही है । वह इस स्वरूप''
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४. शूट्रों के साथ विगत दो सौ वर्षों से बहुत अन्याय सारी बातें उसके साथ समरस बनाकर सिखाई जाएँ ।
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''ही जाएँगे। इन कामों के साथ जुड़ी हुई शिक्षा की हो सकती है । परन्तु हितकारी यह होगा कि''
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और अत्याचार हुए हैं । समाज के ब्राह्मण आदि ऐसा होने से अपने वर्ण की शिक्षा छोटी आयु से ही
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''संस्थायें भी शूद्रों के ही अधिकार में रहेंगी । चारों वर्णों की स्वतंत्र शिक्षा कि व्यवस्था हो और ये''
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तीनों वर्णों का यह अपराध है । परिणामस्वरूप शूट्रं प्राप्त हो सकेगी । व्यक्ति के समुचित विकास के लिए
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''४. शूद्रों के साथ विगत दो सौ वर्षों से बहुत अन्याय सारी बातें उसके साथ समरस बनाकर सिखाई जाएँ ।''
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में एक ओर हीनताबोध और उसके ही एक स्वरूप में यह आवश्यक है |
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''और अत्याचार हुए हैं । समाज के ब्राह्मण आदि ऐसा होने से अपने वर्ण की शिक्षा छोटी आयु से ही''
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विद्रोह तथा अन्य वर्णों के प्रति ट्रेष और तिरस्कार x. वर्ण के साथ आचार और व्यवसाय जुड़े हुए हैं ।
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''तीनों वर्णों का यह अपराध है । परिणामस्वरूप शूद्रं प्राप्त हो सकेगी । व्यक्ति के समुचित विकास के लिए''
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की भावना पनप उठी है । इसमें उनका दोष नहीं है । किसी भी व्यवसाय के साथ उस व्यवसाय की शिक्षा
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''में एक ओर हीनताबोध और उसके ही एक स्वरूप में यह आवश्यक है |''
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विद्रोह की भावना जागना स्वाभाविक ही है । परन्तु भी जुड़ी हुई होनी चाहिए । उस शिक्षा का शिशु
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''विद्रोह तथा अन्य वर्णों के प्रति ट्रेष और तिरस्कार x. वर्ण के साथ आचार और व्यवसाय जुड़े हुए हैं ।''
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इससे समाज का स्वास्थ्य खराब होता ही है । समाज अवस्था से लेकर उच्च शिक्षा तक की व्यवस्था उस
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''की भावना पनप उठी है । इसमें उनका दोष नहीं है । किसी भी व्यवसाय के साथ उस व्यवसाय की शिक्षा''
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का स्वास्थ्य ठीक हो इस दृष्टि से सभी वर्णों के लिए व्यवसाय का ही अंग बननी चाहिए । अनुसन्धान भी
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''विद्रोह की भावना जागना स्वाभाविक ही है । परन्तु भी जुड़ी हुई होनी चाहिए । उस शिक्षा का शिशु''
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उचित शिक्षा की व्यवस्था होना आवश्यक है । उसका अंग होगा । इसका अर्थ यह हुआ कि हर
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''इससे समाज का स्वास्थ्य खराब होता ही है । समाज अवस्था से लेकर उच्च शिक्षा तक की व्यवस्था उस''
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५... निर्माण का क्षेत्र कारीगरी का क्षेत्र है । कारीगरी की व्यवसाय के गुरुकुल, या प्राथमिक से लेकर उच्च
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''का स्वास्थ्य ठीक हो इस दृष्टि से सभी वर्णों के लिए व्यवसाय का ही अंग बननी चाहिए । अनुसन्धान भी''
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हर वस्तु में उत्कृष्टता शूद्रों के काम का लक्ष्य है । शिक्षा तक के केंद्र एक स्थान पर ही होंगे । इस अर्थ
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''उचित शिक्षा की व्यवस्था होना आवश्यक है । उसका अंग होगा । इसका अर्थ यह हुआ कि हर''
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अतीत में अनेक वस्तुओं में उत्कृष्टता के श्रेष्ठतम में चारों वर्णों के लोग समान रूप से उच्च शिक्षित हो
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''५... निर्माण का क्षेत्र कारीगरी का क्षेत्र है । कारीगरी की व्यवसाय के गुरुकुल, या प्राथमिक से लेकर उच्च''
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नमूने हमने विश्व को दिये हैं इस बात का स्मरण हमने सकते हैं, अपने विषय का अध्यापन कर सकते हैं
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''हर वस्तु में उत्कृष्टता शूद्रों के काम का लक्ष्य है । शिक्षा तक के केंद्र एक स्थान पर ही होंगे । इस अर्थ''
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शूट्रों को कराना चाहिए । ऐसी कारीगरी की प्रेरणा और अपने विषय में अनुसन्धान भी कर सकते हैं ।
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''अतीत में अनेक वस्तुओं में उत्कृष्टता के श्रेष्ठतम में चारों वर्णों के लोग समान रूप से उच्च शिक्षित हो''
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भी देनी चाहिए । ५... यदि हम जन्म से वर्ण चाहते हैं तो बहुत समस्या नहीं
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''नमूने हमने विश्व को दिये हैं इस बात का स्मरण हमने सकते हैं, अपने विषय का अध्यापन कर सकते हैं''
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है। परन्तु यदि हम जन्म से वर्ण नहीं चाहते हैं और
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''शूद्रों को कराना चाहिए । ऐसी कारीगरी की प्रेरणा और अपने विषय में अनुसन्धान भी कर सकते हैं ।''
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== कुछ सामान्य बातें ==
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''भी देनी चाहिए । ५... यदि हम जन्म से वर्ण चाहते हैं तो बहुत समस्या नहीं''
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अपना वर्ण स्वयं निश्चित करना चाहते हैं तो यह कार्य
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8. अबतक हमने चारों वर्णों की विशिष्ट शिक्षा की चर्चा औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ होने से पूर्व करना चाहिए
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''है। परन्तु यदि हम जन्म से वर्ण नहीं चाहते हैं और''
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की । फिर भी कुछ बातें ऐसी हैं जो चारों वर्णों के ताकि प्रारम्भ से ही अपने वर्ण के अनुरूप शिक्षा
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== ''कुछ सामान्य बातें'' ==
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''अपना वर्ण स्वयं निश्चित करना चाहते हैं तो यह कार्य''
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लिए समान हैं । उदाहरण के लिए वाचन और मिले । ध्यान यह रखना चाहिए कि हम दो वर्ण में
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''8. अबतक हमने चारों वर्णों की विशिष्ट शिक्षा की चर्चा औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ होने से पूर्व करना चाहिए''
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लेखन, सामान्य हिसाब, सामान्य शिष्टाचार, देश एक साथ न रहें। जन्म से हम ब्राह्मण हैं और
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''की । फिर भी कुछ बातें ऐसी हैं जो चारों वर्णों के ताकि प्रारम्भ से ही अपने वर्ण के अनुरूप शिक्षा''
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दुनिया की जानकारी सभी वर्णों की शिक्षा का अंग व्यवसाय हम वैश्य या शूट्र का कर रहे हैं तो दोनों
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''लिए समान हैं । उदाहरण के लिए वाचन और मिले । ध्यान यह रखना चाहिए कि हम दो वर्ण में''
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होना चाहिए। वर्णों के लाभ लेना चाहेंगे और दोनों के बंधनों से
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''लेखन, सामान्य हिसाब, सामान्य शिष्टाचार, देश एक साथ न रहें। जन्म से हम ब्राह्मण हैं और''
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२... सदुण और सदाचार की शिक्षा सभी वर्णों के लिए मुक्त रहेंगे ऐसा नहीं हो सकता । आज ऐसा ही हो
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''दुनिया की जानकारी सभी वर्णों की शिक्षा का अंग व्यवसाय हम वैश्य या शूद्र का कर रहे हैं तो दोनों''
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आवश्यक है । व्यक्तिगत जीवन की शुद्धता और रहा है इसलिए इस बात का विशेष उल्लेख करने की
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''होना चाहिए। वर्णों के लाभ लेना चाहेंगे और दोनों के बंधनों से''
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पवित्रता, _ सार्वजनिक जीवन की. नीतिमतता, आवश्यकता लगती है ।
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''२... सदुण और सदाचार की शिक्षा सभी वर्णों के लिए मुक्त रहेंगे ऐसा नहीं हो सकता । आज ऐसा ही हो''
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''आवश्यक है । व्यक्तिगत जीवन की शुद्धता और रहा है इसलिए इस बात का विशेष उल्लेख करने की''
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''पवित्रता, _ सार्वजनिक जीवन की. नीतिमतता, आवश्यकता लगती है ।''
==References==
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<references />
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