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२. “शिक्षा-परिवर्तन हेतु गैर शासकीय प्रयास' विषयों पर राष्ट्रीय संविमर्श आयोजित किया जा चुका था,
 
२. “शिक्षा-परिवर्तन हेतु गैर शासकीय प्रयास' विषयों पर राष्ट्रीय संविमर्श आयोजित किया जा चुका था,
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जिसमें उच्च शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन और उसे अधिक व्यापक बनाये जाने हेतु गैर सरकारी प्रयासों, उसकी आवश्यकता और प्रभाव पर विचार किया गया । साथ ही समाज से उस दिशा में और अधिक पहल करने का आह्वान भी किया गया । आगरा में सन्‌ १९७८ की ११, १२ फरवरी को “उच्च शिक्षा में स्वायत्तता' विषय पर एक राष्ट्रीय संविमर्श आयोजित हुआ, जिसमें शिक्षा को अधिक स्वायत्त बनाये जाने की आवश्यकता अनुभव की गयी । ८; ९ सितम्बर, १९७९ को दिल्ली में १) “शिक्षा-परिवर्तन हेतु दिशा, आग्रह एवं प्रक्रिया' और २) “शिक्षा-परिवर्तन हेतु प्रशासनिक ta विषयों पर विस्तार से विचार-विमर्श संपन्न हुआ और उसकी संस्तुतियों से सरकार को अवगत कराया गया । १९८० की २३ व २४ फरवरी को भोपाल में “ग्रामाभिमुख शिक्षा, ८-९ मार्च को बेंगलुरु में “आधुनिक शिक्षा में धार्मिक मूल्य', १९-२० अआप्रैल को राँची में “परीक्षा पद्धति पर; २६ से २८ sa aH वाराणसी में “शिक्षा में अवसरों की समानता विषय पर और २ व ३ अगस्त, १९८० को पुणे में “शिक्षा का व्यावसायीकरण' जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर राष्ट्रीय संविमर्शों के आयोजन किए गए और यह प्रयास हुआ कि शिक्षा को समग्रता से समझकर उसमें आवश्यक परिवर्तन किए जा सकें । १९७९ के मार्च महीने में पटना से दिल्ली तक एक “शैक्षिक ज्योति- यात्रा' निकाली गयी और देश के लोगों को, विशेषकर पूर्वात्तर की शैक्षिक समस्याओं से अवगत कराया गया ।
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जिसमें उच्च शिक्षा के क्षेत्र में परिवर्तन और उसे अधिक व्यापक बनाये जाने हेतु गैर सरकारी प्रयासों, उसकी आवश्यकता और प्रभाव पर विचार किया गया । साथ ही समाज से उस दिशा में और अधिक पहल करने का आह्वान भी किया गया । आगरा में सन्‌ १९७८ की ११, १२ फरवरी को “उच्च शिक्षा में स्वायत्तता' विषय पर एक राष्ट्रीय संविमर्श आयोजित हुआ, जिसमें शिक्षा को अधिक स्वायत्त बनाये जाने की आवश्यकता अनुभव की गयी । ८; ९ सितम्बर, १९७९ को दिल्ली में १) “शिक्षा-परिवर्तन हेतु दिशा, आग्रह एवं प्रक्रिया' और २) “शिक्षा-परिवर्तन हेतु प्रशासनिक ta विषयों पर विस्तार से विचार-विमर्श संपन्न हुआ और उसकी संस्तुतियों से सरकार को अवगत कराया गया । १९८० की २३ व २४ फरवरी को भोपाल में “ग्रामाभिमुख शिक्षा, ८-९ मार्च को बेंगलुरु में “आधुनिक शिक्षा में धार्मिक मूल्य', १९-२० अआप्रैल को राँची में “परीक्षा पद्धति पर; २६ से २८ sa aH वाराणसी में “शिक्षा में अवसरों की समानता विषय पर और २ व ३ अगस्त, १९८० को पुणे में “शिक्षा का व्यावसायीकरण' जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर राष्ट्रीय संविमर्शों के आयोजन किए गए और यह प्रयास हुआ कि शिक्षा को समग्रता से समझकर उसमें आवश्यक परिवर्तन किए जा सकें । १९७९ के मार्च महीने में पटना से दिल्ली तक एक “शैक्षिक ज्योति- यात्रा' निकाली गयी और देश के लोगोंं को, विशेषकर पूर्वात्तर की शैक्षिक समस्याओं से अवगत कराया गया ।
    
तकनीकी शिक्षा पर बल
 
तकनीकी शिक्षा पर बल
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सरकारी नीति के अनुसार विद्यालयों में सबको उत्तीर्ण करना अनिवार्य होने के कारण जनजाति क्षेत्रों में स्नातक तक पढ़कर भी उनका स्तर बहुत कम है । अतः परीक्षा में उत्तीर्ण होने की अनिवार्यता पुनः रखना चाहिए । वनवासी वीर जिन्होंने हमारी संस्कृति एवं धर्म की रक्षा की थी और जो स्वतंत्र वीर थे, उन सबका इतिहास पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए । वनवासियों के जीवन प्रकृति माता से जुड़े हुए होने के कारण उनके गीत, नृत्य, भाषा, रीति-रिवाज, लोक-कला इत्यादि विषयों को पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए |
 
सरकारी नीति के अनुसार विद्यालयों में सबको उत्तीर्ण करना अनिवार्य होने के कारण जनजाति क्षेत्रों में स्नातक तक पढ़कर भी उनका स्तर बहुत कम है । अतः परीक्षा में उत्तीर्ण होने की अनिवार्यता पुनः रखना चाहिए । वनवासी वीर जिन्होंने हमारी संस्कृति एवं धर्म की रक्षा की थी और जो स्वतंत्र वीर थे, उन सबका इतिहास पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए । वनवासियों के जीवन प्रकृति माता से जुड़े हुए होने के कारण उनके गीत, नृत्य, भाषा, रीति-रिवाज, लोक-कला इत्यादि विषयों को पाठ्यक्रम में जोड़ना चाहिए |
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भारत में जनजातियों की संख्या ६७५ से अधिक है । उनकी अलग-अलग बोलियाँ होने के कारण विद्यालय की पढ़ाई में कष्ट अनुभव कर रहें है : अतः उनकी अपनी मातृभाषा में पढ़ाना और लिपि उस राज्य की होनी चाहिए तभी जनजाति बच्चों में ड्रापव-आउट कम होगा ।  
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भारत में जनजातियों की संख्या ६७५ से अधिक है । उनकी अलग-अलग बोलियाँ होने के कारण विद्यालय की पढ़ाई में कष्ट अनुभव कर रहें है : अतः उनकी अपनी मातृभाषा में पढ़ाना और लिपि उस राज्य की होनी चाहिए तभी जनजाति बच्चोंं में ड्रापव-आउट कम होगा ।  
    
वनवासी बन्धु आधुनिक विद्या से वंचित हैं, परंतु लोक ज्ञान में आगे हैं । प्रकृति, भूमि, पशु-पक्षी इत्यादि विषयों में वे ज्ञान संपन्न हैं। इन विषयों को शिक्षा में जोड़ना चाहिए । शिक्षा का उद्देश्य जीवन के लक्ष्य को पूरा करनेवाला होना चाहिए ।
 
वनवासी बन्धु आधुनिक विद्या से वंचित हैं, परंतु लोक ज्ञान में आगे हैं । प्रकृति, भूमि, पशु-पक्षी इत्यादि विषयों में वे ज्ञान संपन्न हैं। इन विषयों को शिक्षा में जोड़ना चाहिए । शिक्षा का उद्देश्य जीवन के लक्ष्य को पूरा करनेवाला होना चाहिए ।
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साक्षरता में जनजाति समुदाय अन्य लोगों से पीछे हैं, यह दरार शीघ्र ही भरना आवश्यक है । जनजाति क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओं की संख्या और धनराशि बड़ी मात्रा में प्रावधान करना चाहिए । जनजाति क्षेत्र में विभिन्न कौशलों की शिक्षा देनेवाले विद्यालयों और उच्च शिक्षा केन्द्रों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है ।
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साक्षरता में जनजाति समुदाय अन्य लोगोंं से पीछे हैं, यह दरार शीघ्र ही भरना आवश्यक है । जनजाति क्षेत्र में शिक्षण संस्थाओं की संख्या और धनराशि बड़ी मात्रा में प्रावधान करना चाहिए । जनजाति क्षेत्र में विभिन्न कौशलों की शिक्षा देनेवाले विद्यालयों और उच्च शिक्षा केन्द्रों पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है ।
    
भारत की जनजातियाँ शिक्षा में अन्य सामान्य जन संख्या से बहुत पीछे हैं । देश भर में सामान्य जनता में साक्षरता दर ७३% है तो जनजाति जनता में ५९% है । महिला क्षेत्र में सामान्य जनता में साक्षरता दर ६५% है, जो जनजाति महिलाओं में ५०% है । जनजातियों में मध्य में ही पढ़ाई छोड़ने वाले (ड्राप आउट) की दर बहुत ज्यादा है । कक्षा एक से दसवीं पढ़नेवालों में सामान्य लड़कियों में ड्राप आउट की संख्या और अधिक है । वनवासियों में
 
भारत की जनजातियाँ शिक्षा में अन्य सामान्य जन संख्या से बहुत पीछे हैं । देश भर में सामान्य जनता में साक्षरता दर ७३% है तो जनजाति जनता में ५९% है । महिला क्षेत्र में सामान्य जनता में साक्षरता दर ६५% है, जो जनजाति महिलाओं में ५०% है । जनजातियों में मध्य में ही पढ़ाई छोड़ने वाले (ड्राप आउट) की दर बहुत ज्यादा है । कक्षा एक से दसवीं पढ़नेवालों में सामान्य लड़कियों में ड्राप आउट की संख्या और अधिक है । वनवासियों में
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पढ़नेवालों की संख्या बढ़ाना और ड्राप आउट कम करने के प्रयास तेज गति से होने की आवश्यकता है । इसलिये शिक्षा प्रणाली में जनजाति बच्चों का सामान्य स्तर एवं विषयों में सुधार लाना चाहिए । विशेषकर जनजातियों की संस्कृति, इतिहास, पर्यावरण एवं उनकी आवश्यकताओं के बारे में समेकित शिक्षा पर सोचना चाहिए ।
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पढ़नेवालों की संख्या बढ़ाना और ड्राप आउट कम करने के प्रयास तेज गति से होने की आवश्यकता है । इसलिये शिक्षा प्रणाली में जनजाति बच्चोंं का सामान्य स्तर एवं विषयों में सुधार लाना चाहिए । विशेषकर जनजातियों की संस्कृति, इतिहास, पर्यावरण एवं उनकी आवश्यकताओं के बारे में समेकित शिक्षा पर सोचना चाहिए ।
    
इस निबंध के अन्त में अखिल धार्मिक वनवासी कल्याणआश्रम के कुछ सुझाव भी दिया जा रहा है ।
 
इस निबंध के अन्त में अखिल धार्मिक वनवासी कल्याणआश्रम के कुछ सुझाव भी दिया जा रहा है ।
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१. छत्तीस गढ़ के रायपुर छात्रावास में एम.ए. पढ़ी हुई नागा महिला, नागालैण्ड में हिन्दी अध्यापिका बन गयी । उस महिला ने अधिकारियों से कहा कि नियुक्ति शहर में अपने गाँव न होकर सुदूर वनाँचल में करनी चाहिए। पूछने से उत्तर दिया के वे कल्याणाश्रम के संस्कारों के कारण वह सुदूर वनाँचल ग्रामों में सेवा करना चाहती है ।
 
१. छत्तीस गढ़ के रायपुर छात्रावास में एम.ए. पढ़ी हुई नागा महिला, नागालैण्ड में हिन्दी अध्यापिका बन गयी । उस महिला ने अधिकारियों से कहा कि नियुक्ति शहर में अपने गाँव न होकर सुदूर वनाँचल में करनी चाहिए। पूछने से उत्तर दिया के वे कल्याणाश्रम के संस्कारों के कारण वह सुदूर वनाँचल ग्रामों में सेवा करना चाहती है ।
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२. झारखण्ड चक्रधरपुर जिले के निश्चिन्तपुर गाँव की जनजाति लड़की पहाड़ों की स्पर्धा में ६३ पहाडें कंठस्थ करके बोलकर सर्वप्रथम निकली/बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए वहाँ के कार्यकर्ता ज्यादा पहाड़े कंठस्थ करनेवाले बच्चों को पहाड़ा महाराज, पहाडा चक्रवर्ती, पहाडा सम्राट ऐसी उपाधि से सम्मानित करते थे ।
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२. झारखण्ड चक्रधरपुर जिले के निश्चिन्तपुर गाँव की जनजाति लड़की पहाड़ों की स्पर्धा में ६३ पहाडें कंठस्थ करके बोलकर सर्वप्रथम निकली/बच्चोंं को प्रोत्साहित करने के लिए वहाँ के कार्यकर्ता ज्यादा पहाड़े कंठस्थ करनेवाले बच्चोंं को पहाड़ा महाराज, पहाडा चक्रवर्ती, पहाडा सम्राट ऐसी उपाधि से सम्मानित करते थे ।
    
३. राजस्थान के बाँसवाडा जिले का भाटमोडी संपूर्ण साक्षर गाँव और व्यसन मुक्त गाँव बन गया ।
 
३. राजस्थान के बाँसवाडा जिले का भाटमोडी संपूर्ण साक्षर गाँव और व्यसन मुक्त गाँव बन गया ।
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२०११ की जनगणना के अनुसार (सारणी १ देखें) । जनजातियों की साक्षरता दर ५९ प्रतिशत है जो कि कुल जनसंख्या से १४ प्रतिशत एवं अनुसूचित जातियों की जनसंख्या से भी ७ प्रतिशत कम है ।
 
२०११ की जनगणना के अनुसार (सारणी १ देखें) । जनजातियों की साक्षरता दर ५९ प्रतिशत है जो कि कुल जनसंख्या से १४ प्रतिशत एवं अनुसूचित जातियों की जनसंख्या से भी ७ प्रतिशत कम है ।
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साक्षरता दर में सुधार नामांकन के आँकड़ों में भी झलकता है । मानव विकास संसाधन मंत्रालय के योजना, निगरानी एवं सांख्यिकी ब्यूरों के अनुसार २०१०-११ में प्राथमिक स्तर पर जनजातियों का सकल नामांकन अनुपात बालक एवं बालिका दोनों में १३७ प्रतिशत था । अनुसूचित जातियों के बालकों में १३१ एवं बालिकाओं में १३३ प्रतिशत था एवं कुल जनसंख्या के लिये यह आंकड़ा क्रमशः ११५ एवं ११७ प्रतिशत था । माध्यमिक या उच्च प्राथमिक स्तर पर फिर भी आंकड़ों में आशा की एक किरण दिखाई देती है । २००१ एवं २०११ के मध्य जनजातियों की साक्षरता दर में १२ प्रतिशत का सुधार हुआ जो कि कुल जनसंख्या में हुए ८ प्रतिशत के सुधार से भी अधिक है । जनजातियों की महिला साक्षरता में सुधार तो और भी अधिक है; २००१ की तुलना में उनमें १४ प्रतिशत की वृद्धि हुई, इस अवधि में महिलाओं की कुल साक्षरता में ११ प्रतिशत की अच्छी वृद्धि हुई है । पर नामांकन थोड़ा था फिर भी जनजाति लड़कों के लिये ९१ एवं लड़कियों के लिये ८७ प्रतिशत जितना ऊँचा था । सम्बन्धित आँकड़ा अनुसूचित जातियों के लिये क्रमशः ९४ एवं ९१ प्रतिशत था, सम्पूर्ण जनसंख्या के लिये ८८ एवं ८३ प्रतिशत था ।
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साक्षरता दर में सुधार नामांकन के आँकड़ों में भी झलकता है । मानव विकास संसाधन मंत्रालय के योजना, निगरानी एवं सांख्यिकी ब्यूरों के अनुसार २०१०-११ में प्राथमिक स्तर पर जनजातियों का सकल नामांकन अनुपात बालक एवं बालिका दोनों में १३७ प्रतिशत था । अनुसूचित जातियों के बालकों में १३१ एवं बालिकाओं में १३३ प्रतिशत था एवं कुल जनसंख्या के लिये यह आंकड़ा क्रमशः ११५ एवं ११७ प्रतिशत था । माध्यमिक या उच्च प्राथमिक स्तर पर तथापि आंकड़ों में आशा की एक किरण दिखाई देती है । २००१ एवं २०११ के मध्य जनजातियों की साक्षरता दर में १२ प्रतिशत का सुधार हुआ जो कि कुल जनसंख्या में हुए ८ प्रतिशत के सुधार से भी अधिक है । जनजातियों की महिला साक्षरता में सुधार तो और भी अधिक है; २००१ की तुलना में उनमें १४ प्रतिशत की वृद्धि हुई, इस अवधि में महिलाओं की कुल साक्षरता में ११ प्रतिशत की अच्छी वृद्धि हुई है । पर नामांकन थोड़ा था तथापि जनजाति लड़कों के लिये ९१ एवं लड़कियों के लिये ८७ प्रतिशत जितना ऊँचा था । सम्बन्धित आँकड़ा अनुसूचित जातियों के लिये क्रमशः ९४ एवं ९१ प्रतिशत था, सम्पूर्ण जनसंख्या के लिये ८८ एवं ८३ प्रतिशत था ।
    
परन्तु जनजातियों में मध्य में ही पढ़ाई छोड़ देने
 
परन्तु जनजातियों में मध्य में ही पढ़ाई छोड़ देने
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१. आने वाले १० वर्षों में जनजाति समुदाय भी शिक्षा के सभी राष्ट्रीय मानकों की बराबरी पर होंगे । सरकार के सभी कार्यक्रम इस दिशा में केन्द्रित हों ।
 
१. आने वाले १० वर्षों में जनजाति समुदाय भी शिक्षा के सभी राष्ट्रीय मानकों की बराबरी पर होंगे । सरकार के सभी कार्यक्रम इस दिशा में केन्द्रित हों ।
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२. १०० प्रतिशत साक्षरता दर पाने के लिये प्राथमिक स्तरों की शिक्षा पर सर्वोच्च प्राथमिकता हो । विद्यार्थियों को प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिये तैयार करने हेतु आँगनबाड़ी कर्मियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जा सकता है । ग्राम या संच स्तर पर छोटे बच्चों की माताओं के मासिक सम्मेलन के रूप में चेतना शिविर आयोजित हों ।
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२. १०० प्रतिशत साक्षरता दर पाने के लिये प्राथमिक स्तरों की शिक्षा पर सर्वोच्च प्राथमिकता हो । विद्यार्थियों को प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिये तैयार करने हेतु आँगनबाड़ी कर्मियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जा सकता है । ग्राम या संच स्तर पर छोटे बच्चोंं की माताओं के मासिक सम्मेलन के रूप में चेतना शिविर आयोजित हों ।
    
३. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्ष २००७-०८ में ८८.५ प्रतिशत जनजाति बस्तियों के १ कि.मी. के दायरे में प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध था (राष्ट्रीय सेंपल सर्वे ६४वीं आवृत्ति) । आशा करनी चाहिए कि शीघ्र ही सभी जनजाति टोलों के लगकर ही प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध होंगे ।
 
३. उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार वर्ष २००७-०८ में ८८.५ प्रतिशत जनजाति बस्तियों के १ कि.मी. के दायरे में प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध था (राष्ट्रीय सेंपल सर्वे ६४वीं आवृत्ति) । आशा करनी चाहिए कि शीघ्र ही सभी जनजाति टोलों के लगकर ही प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध होंगे ।
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४. प्राथमिक विद्यालय भवनों की बनावट स्थानीय पारम्परिक भवन शैली में करने के प्रयास हों जिसमें स्थानीय सामग्री का प्रयोग करते हुए स्थानीय कारीगरों से बनवाए जाने को प्राथमिकता दी जाए । इससे बच्चों एवं समुदाय में आत्मविश्वास एवं अपने परिवेश के प्रति सम्मान का भाव जगेगा ।
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४. प्राथमिक विद्यालय भवनों की बनावट स्थानीय पारम्परिक भवन शैली में करने के प्रयास हों जिसमें स्थानीय सामग्री का प्रयोग करते हुए स्थानीय कारीगरों से बनवाए जाने को प्राथमिकता दी जाए । इससे बच्चोंं एवं समुदाय में आत्मविश्वास एवं अपने परिवेश के प्रति सम्मान का भाव जगेगा ।
    
५. प्राथमिक शिक्षा स्थानीय बोली में दी जाए जिसे मानक क्षेत्रीय भाषा से पूरक किया जा सकता है । विश्व भाषा कोष, शब्द-कोष एवं ऐसी ही बहुभाषी शिक्षण सामग्री सभी प्राथमिक विद्यालय में उपलब्ध कराई जाए । भाषा सम्बन्धी मामलों को संभालने के लिये यह सुनिश्चित किया जाए कि प्राथमिक विद्यालयों में कुछ शिक्षक स्थानीय समुदाय से हों ।
 
५. प्राथमिक शिक्षा स्थानीय बोली में दी जाए जिसे मानक क्षेत्रीय भाषा से पूरक किया जा सकता है । विश्व भाषा कोष, शब्द-कोष एवं ऐसी ही बहुभाषी शिक्षण सामग्री सभी प्राथमिक विद्यालय में उपलब्ध कराई जाए । भाषा सम्बन्धी मामलों को संभालने के लिये यह सुनिश्चित किया जाए कि प्राथमिक विद्यालयों में कुछ शिक्षक स्थानीय समुदाय से हों ।
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८. संभागीय स्तरों पर आदर्श आवासीय खेल विद्यालय खोलने पर विचार हो ।
 
८. संभागीय स्तरों पर आदर्श आवासीय खेल विद्यालय खोलने पर विचार हो ।
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९. जनजाति बहुल जनसंख्या वाले जिलों के सैनिक विद्यालयों में जनजाति बच्चों के प्रवेश को प्राथमिकता देकर प्रवेश दिया जाए ।
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९. जनजाति बहुल जनसंख्या वाले जिलों के सैनिक विद्यालयों में जनजाति बच्चोंं के प्रवेश को प्राथमिकता देकर प्रवेश दिया जाए ।
    
१०. विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए । जनजाति विद्यार्थियों को विज्ञान विषय लेने हेतु प्रोत्साहित किया जाए । एतदूर्थ आवश्यक हो तो जनजाति विद्यार्थियों हेतु पूरक, अतिरिक्त एवं उपायात्मक कक्षाओं की व्यवस्था की जाए । जब तक ऐसी स्थायी व्यवस्था नहीं बने तब तक एतदर्थ
 
१०. विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दिया जाए । जनजाति विद्यार्थियों को विज्ञान विषय लेने हेतु प्रोत्साहित किया जाए । एतदूर्थ आवश्यक हो तो जनजाति विद्यार्थियों हेतु पूरक, अतिरिक्त एवं उपायात्मक कक्षाओं की व्यवस्था की जाए । जब तक ऐसी स्थायी व्यवस्था नहीं बने तब तक एतदर्थ
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उपरोक्त चारों कार्यों को करने के लिये संगठन का गठन किया जाता है ।
 
उपरोक्त चारों कार्यों को करने के लिये संगठन का गठन किया जाता है ।
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१. मंडल रचना : १. विश्वविद्यालय, बड़े महाविद्यालय जैसे शैक्षिक परिसरों तथा विभिन्न शहरों, कस्बों में शिक्षा में शोध तथा अध्ययन में रुचि रखनेवाले लोगों को एकत्रित कर अध्ययन समूह के रूप में संगठित किया जाता है। २. विषयों के अनुसार अनुसंधान तथा अध्ययन करने के लिये समूह बनाये जाते हैं । ३. शिक्षा पर नियमित चिंतन हेतु मण्डल रचना होती है ।
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१. मंडल रचना : १. विश्वविद्यालय, बड़े महाविद्यालय जैसे शैक्षिक परिसरों तथा विभिन्न शहरों, कस्बों में शिक्षा में शोध तथा अध्ययन में रुचि रखनेवाले लोगोंं को एकत्रित कर अध्ययन समूह के रूप में संगठित किया जाता है। २. विषयों के अनुसार अनुसंधान तथा अध्ययन करने के लिये समूह बनाये जाते हैं । ३. शिक्षा पर नियमित चिंतन हेतु मण्डल रचना होती है ।
    
२. सुत्रबंधन (Networking) : शिक्षा के क्षेत्र में काम करनेवाले समविचारी संस्थाओं तथा संगठनों को एक सूत्र में बाँधना । नियमित संपर्क, एकत्र बैठकर विचार
 
२. सुत्रबंधन (Networking) : शिक्षा के क्षेत्र में काम करनेवाले समविचारी संस्थाओं तथा संगठनों को एक सूत्र में बाँधना । नियमित संपर्क, एकत्र बैठकर विचार
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शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन की दृष्टि से धार्मिक शिक्षण मंडल ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप बनाने का एक बृहत प्रकल्प हाथ में लिया । प्रकल्प का सून्रपात वर्ष १९७७ में नागपूर में आयोजित कार्यकर्ताओं की त्रिदिवसीय अखिल धार्मिक बैठक में हुआ । बैठक को मा. श्री बालासाहेब देवरस तथा मा. रज्जू भैया का मार्गदर्शन प्राप्त
 
शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन की दृष्टि से धार्मिक शिक्षण मंडल ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप बनाने का एक बृहत प्रकल्प हाथ में लिया । प्रकल्प का सून्रपात वर्ष १९७७ में नागपूर में आयोजित कार्यकर्ताओं की त्रिदिवसीय अखिल धार्मिक बैठक में हुआ । बैठक को मा. श्री बालासाहेब देवरस तथा मा. रज्जू भैया का मार्गदर्शन प्राप्त
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हुआ । एक मसौदा और उसके आधार पर प्रश्नावली तैयार की गई । इसे देश की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कर शिक्षाविदों तथा शिक्षकों को भेजी गई | ३००० लोगों तक यह प्रश्नावली पहुँचायी गई । वर्ष १९७९ में दिल्ली में इसी विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें तत्कालिन उपराष्ट्रपति श्री बी. डी. जत्ती, केंद्रीय शिक्षा मंत्री मा. पी. सी. सुंदर तथा मा, बापुरावजी मोघे, केदारनाथ साहनी आदि महानुभावों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ | इस संगोष्ठी में प्रारंभिक प्रारूप की प्रकाशित पुस्तिका तथा प्राप्त प्रश्नावली के उत्तरों के आधार पर विस्तार से चर्चा की गयी और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अंतिम स्वरूप प्रदान किया गया ।
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हुआ । एक मसौदा और उसके आधार पर प्रश्नावली तैयार की गई । इसे देश की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद कर शिक्षाविदों तथा शिक्षकों को भेजी गई | ३००० लोगोंं तक यह प्रश्नावली पहुँचायी गई । वर्ष १९७९ में दिल्ली में इसी विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें तत्कालिन उपराष्ट्रपति श्री बी. डी. जत्ती, केंद्रीय शिक्षा मंत्री मा. पी. सी. सुंदर तथा मा, बापुरावजी मोघे, केदारनाथ साहनी आदि महानुभावों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ | इस संगोष्ठी में प्रारंभिक प्रारूप की प्रकाशित पुस्तिका तथा प्राप्त प्रश्नावली के उत्तरों के आधार पर विस्तार से चर्चा की गयी और राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अंतिम स्वरूप प्रदान किया गया ।
    
'शिक्षा में धार्मिकत्व' प्रकल्प का प्रारंभ वर्ष १९८० में पुणे अभ्यास वर्ग में हुआ था । एक प्रश्नावली देश के सभी प्रांतों के शिक्षाविदों तथा शिक्षकों को वितरित की गई । लगभग १०० जिलों में दो सौ सभा-संगोष्टियाँ आयोजित हुईं । इसी विषय पर वर्ष १९८३ में ग्वालियर में उत्तरी प्रांतों तथा हैदरबाद में दक्षिणी प्रांतों की संगोष्ठियाँ आयोजित की गईं । संगोष्टियों में पद्मश्री डॉ. वाकणकर, केंद्रीय मंत्री श्री पी. शिवशंकर, स्वामी रंगनाथानंद, मा. रज्जू भय्या तथा श्री दत्तोपंत ठेंगडी जैसे महानुभावों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ ।
 
'शिक्षा में धार्मिकत्व' प्रकल्प का प्रारंभ वर्ष १९८० में पुणे अभ्यास वर्ग में हुआ था । एक प्रश्नावली देश के सभी प्रांतों के शिक्षाविदों तथा शिक्षकों को वितरित की गई । लगभग १०० जिलों में दो सौ सभा-संगोष्टियाँ आयोजित हुईं । इसी विषय पर वर्ष १९८३ में ग्वालियर में उत्तरी प्रांतों तथा हैदरबाद में दक्षिणी प्रांतों की संगोष्ठियाँ आयोजित की गईं । संगोष्टियों में पद्मश्री डॉ. वाकणकर, केंद्रीय मंत्री श्री पी. शिवशंकर, स्वामी रंगनाथानंद, मा. रज्जू भय्या तथा श्री दत्तोपंत ठेंगडी जैसे महानुभावों का मार्गदर्शन प्राप्त हुआ ।
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संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)
 
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)
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अपनी माँग के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा आई.ए.एस., आई.पी.एस. आदि की परीक्षाओं के पाठ्यक्रम की समीक्षा हेतु ७ विद्वानों की एक समिति का गठन किया गया है। न्यास के द्वारा, आई.पी.एस., आई.पी.एस. वर्तमान एवं पूर्व तथा इस परीक्षा व्यवस्था से जुड़े, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगों की बैठकें, गोष्ठियाँ करके सुझाव प्राप्त करके एक ज्ञापन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा गठित समिति को दिया गया है ।
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अपनी माँग के अनुसार संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा आई.ए.एस., आई.पी.एस. आदि की परीक्षाओं के पाठ्यक्रम की समीक्षा हेतु ७ विद्वानों की एक समिति का गठन किया गया है। न्यास के द्वारा, आई.पी.एस., आई.पी.एस. वर्तमान एवं पूर्व तथा इस परीक्षा व्यवस्था से जुड़े, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोगोंं की बैठकें, गोष्ठियाँ करके सुझाव प्राप्त करके एक ज्ञापन संघ लोक सेवा आयोग द्वारा गठित समिति को दिया गया है ।
    
धार्मिक भाषा मंच
 
धार्मिक भाषा मंच
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इसी प्रकार पूर्व में सरकारी शैक्षिक संस्थानों में भी शिक्षा की गुणवत्ता अच्छी थी इस लिये सभी प्रकार के छात्र उन संस्थानों में पढ़ाई करते थे । पिछले कुछ वर्षों से क्रमशः उनका स्तर इतना गिर गया की आज गरीब से गरीब व्यक्ति भी सरकारी विद्यालयों में अपने बालक को पढ़ाना नहीं चाहते ।
 
इसी प्रकार पूर्व में सरकारी शैक्षिक संस्थानों में भी शिक्षा की गुणवत्ता अच्छी थी इस लिये सभी प्रकार के छात्र उन संस्थानों में पढ़ाई करते थे । पिछले कुछ वर्षों से क्रमशः उनका स्तर इतना गिर गया की आज गरीब से गरीब व्यक्ति भी सरकारी विद्यालयों में अपने बालक को पढ़ाना नहीं चाहते ।
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इन कारणों से अच्छी शिक्षा एवं चिकित्सा आम, गरीब एवं मध्यम वर्ग की पहुँच से बहार हो गई है । इन परिस्थितियों में समाज अपना कुछ योगदान देकर आवश्यकता वाले छात्रों / लोगों का सहयोग कर सके इस हेतु से यह न्यास का समाज के ही कुछ सेवाभावी लोगों ने गठन किया है ।
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इन कारणों से अच्छी शिक्षा एवं चिकित्सा आम, गरीब एवं मध्यम वर्ग की पहुँच से बहार हो गई है । इन परिस्थितियों में समाज अपना कुछ योगदान देकर आवश्यकता वाले छात्रों / लोगोंं का सहयोग कर सके इस हेतु से यह न्यास का समाज के ही कुछ सेवाभावी लोगोंं ने गठन किया है ।
    
न्यास का कार्य
 
न्यास का कार्य
Line 646: Line 646:  
. उच्च शिक्षा हेतु अधिक राशि की आवश्यकता वाले छात्रों को ऋण (लोन) के रूप में बिना ब्याज सहायता देना ।
 
. उच्च शिक्षा हेतु अधिक राशि की आवश्यकता वाले छात्रों को ऋण (लोन) के रूप में बिना ब्याज सहायता देना ।
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. आर्थिक दृष्टि से अक्षम लोगों को चिकित्सा हेतु विभिन्न स्वरूप में सहायता करना ।
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. आर्थिक दृष्टि से अक्षम लोगोंं को चिकित्सा हेतु विभिन्न स्वरूप में सहायता करना ।
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. इस हेतु कुछ निजी अस्पताल, चिकित्सालयों से सम्पर्क स्थापित करके वहाँ अस्वस्थ लोगों की व्यवस्था करना । एक प्रकार से अस्पताल एवं आर्थिक दृष्टि से अक्षम अस्वस्थ लोगों की कड़ी बनना ।
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. इस हेतु कुछ निजी अस्पताल, चिकित्सालयों से सम्पर्क स्थापित करके वहाँ अस्वस्थ लोगोंं की व्यवस्था करना । एक प्रकार से अस्पताल एवं आर्थिक दृष्टि से अक्षम अस्वस्थ लोगोंं की कड़ी बनना ।
    
आप किस प्रकार सहयोग कर सकते है ?
 
आप किस प्रकार सहयोग कर सकते है ?
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. उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु जिन छात्रों को लोन चाहिये, उनको बिना ब्याज लोन हेतु सहयोग करना |
 
. उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु जिन छात्रों को लोन चाहिये, उनको बिना ब्याज लोन हेतु सहयोग करना |
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. अगर आप डाक्टर है तो अपने चिकित्सालय में हर माह कुछ निश्चित संख्या में गरीब, अस्वस्थ लोगों को बिना शुल्क चिकित्सा उपलब्ध कराना । अपने सम्पर्क में इस प्रकार के डॉक्टर या अस्पताल हैं तो उनको इस कार्य में सहयोग करने हेतु प्रेरित करना ।
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. अगर आप डाक्टर है तो अपने चिकित्सालय में हर माह कुछ निश्चित संख्या में गरीब, अस्वस्थ लोगोंं को बिना शुल्क चिकित्सा उपलब्ध कराना । अपने सम्पर्क में इस प्रकार के डॉक्टर या अस्पताल हैं तो उनको इस कार्य में सहयोग करने हेतु प्रेरित करना ।

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