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# दूसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपने भगवान से क्या मांगते हैं ?' तब उन्होंने बताया कि वे अपनी पूजा में सब के कल्याण की कामना करते हैं।  
 
# दूसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपने भगवान से क्या मांगते हैं ?' तब उन्होंने बताया कि वे अपनी पूजा में सब के कल्याण की कामना करते हैं।  
 
# अपने गाँव, अपने परिवार के साथ धरती पर के सभी जीवों के सुख की कामना करते हैं। तीसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपनी जनजाति से भिन्न अन्य जन जाति की पूजा पद्धति की आलोचना अथवा निन्दा करते हैं क्या ? क्या अन्य पूजा पद्धति वाली जातियाँ आपकी पूजा पद्धति में शामिल हो जाय ऐसी अपेक्षा आप रखते हैं?' तब उत्तर में सभी ने कहा ' नहीं हम ऐसा कभी नहीं करते हैं। हम सब की पूजापद्धतियों को अच्छा मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं। सब लोगों के लिये यह बात आश्चर्यजनक थी।
 
# अपने गाँव, अपने परिवार के साथ धरती पर के सभी जीवों के सुख की कामना करते हैं। तीसरा प्रश्न पूछा गया, 'आप अपनी जनजाति से भिन्न अन्य जन जाति की पूजा पद्धति की आलोचना अथवा निन्दा करते हैं क्या ? क्या अन्य पूजा पद्धति वाली जातियाँ आपकी पूजा पद्धति में शामिल हो जाय ऐसी अपेक्षा आप रखते हैं?' तब उत्तर में सभी ने कहा ' नहीं हम ऐसा कभी नहीं करते हैं। हम सब की पूजापद्धतियों को अच्छा मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं। सब लोगों के लिये यह बात आश्चर्यजनक थी।
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==== विश्व का उदाहरण ====
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विश्व सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र (International _center for cultural studies) द्वारा हर पाँच वर्ष में एक बार विश्व सम्मेलन होता है। हरिद्वार में आयोजित ऐसे एक सम्मेलन में ४० देशों से वहां के मूल निवासी -प्रकृति पूजक लोग आये हुए थे। प्रतिदिन प्रातः काल में सब अपने अपने इष्ट देवों की, अपनी अपनी भाषा में, अपनी अपनी पद्धति से पूजा करते थे। पूजा में वे क्या कामना करते थे ऐसा पूछने पर उन्हों ने बताया कि 'धरती हमारे लिये पवित्र है, जल पवित्र है, अग्नि भी पूजनीय है इसलिये उनकी कृपा के लिये प्रार्थना करते थे और अपने परिवार के, गाँव के, पृथ्वी के लोगों की तथा संपूर्ण जीव सृष्टि के कल्याण की कामना करते थे। यह सुनकर सभी को बहुत आश्चर्य हुआ, आनंद हुआ।
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==== निष्कर्ष ====
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सांस्कृतिक राष्ट्रवाद अपने राष्ट्र, अपने समाज को सुखी एवं वैभव संपन्न बनाते हुए विश्व में सब के सुख एवं कल्याण की कामना करनेवाला है।
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अपने ऋषियों की भद्र इच्छाओं के अनुसार संकल्पित यह समाज विश्व के प्रति अपने जागतिक दायित्व का अनुभव करता है, यही हिंदु राष्ट्र है । इसको बनाना नहीं है, - यह तो शाश्वत है, चिरंतन है, सनातन है, नित्य नूतन है तथा विश्व की प्रत्येक कठिनाई एवं कष्ट को अनुभव करते हुए इस पृथ्वी पर विद्यमान है। इसका गौरव सभी देशवासियों को होना चाहिये । आज अपने समाज में पैदा हुए सभी दोषों को दूर करते हुए आत्मानुभूति से प्रेरित ऋषियों के वंशज स्वाभिमान एवं कर्तव्य बोध के साथ विश्व पटल पर पुनः गुंजारव कर उठे, 'माता भूमि पुत्रोऽहंपृथिव्याः । इस देव भूमि के पुत्रों का कर्तव्य है कि 'सर्वे भवन्तु सुखिनः का उद्घोष जारी रखे। हिंदु राष्ट्र का विश्व को यही सन्देश है, यही इसका कर्तव्य है और यही उसकी नियति है।
    
==References==
 
==References==
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