Difference between revisions of "राष्ट्रवाद की पश्चिमी संकल्पना"

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=== अध्याय २४ ===
 
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विश्व में आज 'राष्ट्र' (Nation), राष्ट्रीयता (Nationalism), राष्ट्रों का अस्तित्व और अस्मिता बड़ी चर्चा के विषय हैं । विश्वशांति की भी बात बहुत होती है, सब विश्वशांति चाहते भी हैं, परंतु उस दिशा में आशा जनक वातावरण कहीं नहीं दिखता है। राष्ट्रों के बीच में परस्पर स्पर्धा और कभी कभी इर्ष्या भी देखने को मिलती है। कुछ शक्तिसंपन्न राष्ट्र विश्वमें अपना आधिपत्य स्थापित करने में लगे हैं इसलिये सभी राष्ट्रों के नेता शांति की भाषा बोलने
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विश्व में आज 'राष्ट्र' (Nation), राष्ट्रीयता (Nationalism), राष्ट्रों का अस्तित्व और अस्मिता बड़ी चर्चा के विषय हैं । विश्वशांति की भी बात बहुत होती है, सब विश्वशांति चाहते भी हैं, परंतु उस दिशा में आशा जनक वातावरण कहीं नहीं दिखता है। राष्ट्रों के बीच में परस्पर स्पर्धा और कभी कभी इर्ष्या भी देखने को मिलती है। कुछ शक्तिसंपन्न राष्ट्र विश्वमें अपना आधिपत्य स्थापित करने में लगे हैं इसलिये सभी राष्ट्रों के नेता शांति की भाषा बोलने पर भी शांति की स्थापना असंभव सी लगती है।
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इसलिये वास्तव में राष्ट्रवाद का क्या अर्थ है यह समझने के लिये राष्ट्रों के उदय तथा विकास के बारे में मूल रूप से सोचना आवश्यक हो जाता है। भारत के विषय में सोचना है तो विदेशी इतिहासकारों ने भारत प्राचीन राष्ट्र नहीं है ऐसा सिद्ध करने के लिये कई तर्कबद्ध प्रयास भले ही किये हों परंतु भारत में निर्विवाद रूप से प्राचीन काल से ही राष्ट्रभावना अपने श्रेष्ठ स्तर पर रही है।
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वर्तमान भूगोल में ५००० से ७००० वर्ष पूर्व सभी विद्यमान सभ्यताएँ जीवित नहीं हैं । प्राचीन सभ्यताओं में से केवल भारत और चीन ही अपना अस्तित्व बनाये रखे हुए हैं। और उनके बने रहने का कारण उनकी सांस्कृतिक, धार्मिक विचारधारा ही हैं ऐसा हम कह सकते हैं।
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पश्चिम में राष्ट्र (Nation) तथा राष्ट्रीयता (Nationalism) की संकल्पना १७०० से १७९८ के दौरान उदित हुई ऐसा लगता है । फ्रांस की राज्यक्रांति के साथ राष्ट्र भावना का प्रभावी ढंग से विश्व के अन्य देशों में, विशेष रूप से युरोप में प्रारंभ हुआ। बेरनाई लेनिस के अनुसार समान भाषा, समान विश्वास और एक इतिहास के आधार पर मिलकर रहने वाले समुदायों (tribes) को, एक राष्ट्र कहने लगे और तब से राष्ट्र राज्य (Nation state) कल्पना का विकास होने लगा।
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पश्चिमी जगत की मान्यताओं के अनुसार जब कोई सेना किसी क्षेत्र को जीत लेती है और वहां का शासन किसी एक राजा के हाथ में आ जाता है तब एक राष्ट्र (नेशन) बन जाता है । अर्थात किसी भी (नेशन के लिये राजा, सेना, प्रशासन तथा जीता हुआ राज्य और समूह ( ट्राइब्स) आवश्यक तत्त्व थे । कभी एक सेना ही दूसरे नेशन को समाप्त कर देती थी।
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युरोप में अनेक राष्ट्र (नेशंस) और राज्यों में एक विशेष जनसमूह का आधिपत्य, विशेष भाषा का ही महत्त्व रहता है । फ्रांस, ईजिप्त (मिश्र), जर्मनी और जापान ऐसे ही नेशन स्टेट के उदाहरण हैं । शताब्दियों से इंग्लैंड, फ्रांस, स्वीडन, स्पेन इत्यादि देशों में भौगोलिक, राजनैतिक तथा भाषाकीय आधार पर राष्ट्रीय एकात्मता विद्यमान थी। केनेडा और बेल्जियम जैसे राज्यों में दो राष्ट्र (नेशन्स ) विद्यमान थे क्योंकि बेल्जियम में डच और फ्रेंच दोनों भाषा बोलनेवाले लोग रहते थे। यहूदियों का इतिहास तो राज्यविहीन राष्ट्र का था जो roaming nation, चलता फिरता राष्ट्र भी कहलाता था। भूमि के बिना भी एक राष्ट्र जीवित रह सकता है इसका यह जीता जागता उदाहरण था। इसके विपरीत विविध सांस्कृतिक समूहों (multi cultural) का मिलकर युनाईटेड स्टेट्स अर्थात अमेरिकन संस्कृति को विकसित कर के राष्ट्र बनाने का उदाहरण भी अस्तित्व में है।
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==== पश्चिम में राष्ट्रीयता का विकास और विस्तार ====
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फ्रेंच और अमेरिकन क्रांति के बाद राष्ट्रीयता (नेशनालिझम) की भावना को आधुनिक युग में स्थायी स्वरूप प्राप्त हुआ दिखाई देता है। अपनी भूमि और राष्ट्रीयता की भावना के साथ दोनों क्रांति आगे बढ़ती गई और धीरे धीरे सारे युरोप में, अनेक देशों में, अनेक भूभागों  में राष्ट्रीय अस्मिता का जागरण हुआ।
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१८२७ में जब इस्लामिक तुर्क साम्राज्य ने ग्रीस देश पर आक्रमण कर दिया था तब ग्रीस ने भी समान धर्म और सांस्कृतिक भावना के आधार पर ही संघर्ष किया था और तुर्क साम्राज्य का पराजय किया था। यहां तक समान भाषा और समान संस्कृति के आधार पर राष्ट्र भावना का विकास होता रहा।
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समान भाषा और समान संस्कृति के आधार से विपरीत वंश, भाषा, रंग, जाति सभी अलग रहने पर भी सब को समान अधिकार देते हुए देशभक्ति के आधार पर नेशंस और नेशनालिझम (राष्ट्र और राष्ट्रीयता) का विकास
  
 
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Revision as of 09:30, 9 January 2020

अध्याय २४

विश्व में आज 'राष्ट्र' (Nation), राष्ट्रीयता (Nationalism), राष्ट्रों का अस्तित्व और अस्मिता बड़ी चर्चा के विषय हैं । विश्वशांति की भी बात बहुत होती है, सब विश्वशांति चाहते भी हैं, परंतु उस दिशा में आशा जनक वातावरण कहीं नहीं दिखता है। राष्ट्रों के बीच में परस्पर स्पर्धा और कभी कभी इर्ष्या भी देखने को मिलती है। कुछ शक्तिसंपन्न राष्ट्र विश्वमें अपना आधिपत्य स्थापित करने में लगे हैं इसलिये सभी राष्ट्रों के नेता शांति की भाषा बोलने पर भी शांति की स्थापना असंभव सी लगती है।

इसलिये वास्तव में राष्ट्रवाद का क्या अर्थ है यह समझने के लिये राष्ट्रों के उदय तथा विकास के बारे में मूल रूप से सोचना आवश्यक हो जाता है। भारत के विषय में सोचना है तो विदेशी इतिहासकारों ने भारत प्राचीन राष्ट्र नहीं है ऐसा सिद्ध करने के लिये कई तर्कबद्ध प्रयास भले ही किये हों परंतु भारत में निर्विवाद रूप से प्राचीन काल से ही राष्ट्रभावना अपने श्रेष्ठ स्तर पर रही है।

इतिहास और राष्ट्रीयता

वर्तमान भूगोल में ५००० से ७००० वर्ष पूर्व सभी विद्यमान सभ्यताएँ जीवित नहीं हैं । प्राचीन सभ्यताओं में से केवल भारत और चीन ही अपना अस्तित्व बनाये रखे हुए हैं। और उनके बने रहने का कारण उनकी सांस्कृतिक, धार्मिक विचारधारा ही हैं ऐसा हम कह सकते हैं।

पश्चिम में राष्ट्र (Nation) तथा राष्ट्रीयता (Nationalism) की संकल्पना १७०० से १७९८ के दौरान उदित हुई ऐसा लगता है । फ्रांस की राज्यक्रांति के साथ राष्ट्र भावना का प्रभावी ढंग से विश्व के अन्य देशों में, विशेष रूप से युरोप में प्रारंभ हुआ। बेरनाई लेनिस के अनुसार समान भाषा, समान विश्वास और एक इतिहास के आधार पर मिलकर रहने वाले समुदायों (tribes) को, एक राष्ट्र कहने लगे और तब से राष्ट्र राज्य (Nation state) कल्पना का विकास होने लगा।

पश्चिमी जगत में नेशन' का स्वरूप

पश्चिमी जगत की मान्यताओं के अनुसार जब कोई सेना किसी क्षेत्र को जीत लेती है और वहां का शासन किसी एक राजा के हाथ में आ जाता है तब एक राष्ट्र (नेशन) बन जाता है । अर्थात किसी भी (नेशन के लिये राजा, सेना, प्रशासन तथा जीता हुआ राज्य और समूह ( ट्राइब्स) आवश्यक तत्त्व थे । कभी एक सेना ही दूसरे नेशन को समाप्त कर देती थी।

युरोप में अनेक राष्ट्र (नेशंस) और राज्यों में एक विशेष जनसमूह का आधिपत्य, विशेष भाषा का ही महत्त्व रहता है । फ्रांस, ईजिप्त (मिश्र), जर्मनी और जापान ऐसे ही नेशन स्टेट के उदाहरण हैं । शताब्दियों से इंग्लैंड, फ्रांस, स्वीडन, स्पेन इत्यादि देशों में भौगोलिक, राजनैतिक तथा भाषाकीय आधार पर राष्ट्रीय एकात्मता विद्यमान थी। केनेडा और बेल्जियम जैसे राज्यों में दो राष्ट्र (नेशन्स ) विद्यमान थे क्योंकि बेल्जियम में डच और फ्रेंच दोनों भाषा बोलनेवाले लोग रहते थे। यहूदियों का इतिहास तो राज्यविहीन राष्ट्र का था जो roaming nation, चलता फिरता राष्ट्र भी कहलाता था। भूमि के बिना भी एक राष्ट्र जीवित रह सकता है इसका यह जीता जागता उदाहरण था। इसके विपरीत विविध सांस्कृतिक समूहों (multi cultural) का मिलकर युनाईटेड स्टेट्स अर्थात अमेरिकन संस्कृति को विकसित कर के राष्ट्र बनाने का उदाहरण भी अस्तित्व में है।

पश्चिम में राष्ट्रीयता का विकास और विस्तार

फ्रेंच और अमेरिकन क्रांति के बाद राष्ट्रीयता (नेशनालिझम) की भावना को आधुनिक युग में स्थायी स्वरूप प्राप्त हुआ दिखाई देता है। अपनी भूमि और राष्ट्रीयता की भावना के साथ दोनों क्रांति आगे बढ़ती गई और धीरे धीरे सारे युरोप में, अनेक देशों में, अनेक भूभागों में राष्ट्रीय अस्मिता का जागरण हुआ।

१८२७ में जब इस्लामिक तुर्क साम्राज्य ने ग्रीस देश पर आक्रमण कर दिया था तब ग्रीस ने भी समान धर्म और सांस्कृतिक भावना के आधार पर ही संघर्ष किया था और तुर्क साम्राज्य का पराजय किया था। यहां तक समान भाषा और समान संस्कृति के आधार पर राष्ट्र भावना का विकास होता रहा।

नागरिक राष्ट्रवाद

समान भाषा और समान संस्कृति के आधार से विपरीत वंश, भाषा, रंग, जाति सभी अलग रहने पर भी सब को समान अधिकार देते हुए देशभक्ति के आधार पर नेशंस और नेशनालिझम (राष्ट्र और राष्ट्रीयता) का विकास

References

भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे