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== मोक्ष पुरुषार्थ<ref>भारतीय शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला १)-
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== मोक्ष पुरुषार्थ<ref>धार्मिक शिक्षा : संकल्पना एवं स्वरूप (धार्मिक शिक्षा ग्रन्थमाला १)-
    
अध्याय ८, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> ==
 
अध्याय ८, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref> ==
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भारतीय समाज में मोक्ष एक बहुत ही प्रिय संकल्पना है। लोग इसका इतने भिन्न भिन्न अर्थों और संदर्भों में प्रयोग करते हैं कि इसका सही अर्थ समझना प्राय: कठिन हो जाता है। अर्थ भले ही कुछ भी हो, संदर्भ भले ही कुछ भी हो मोक्ष शब्द का अर्थ एक ही होता है, वह है मुक्ति ।
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धार्मिक समाज में मोक्ष एक बहुत ही प्रिय संकल्पना है। लोग इसका इतने भिन्न भिन्न अर्थों और संदर्भों में प्रयोग करते हैं कि इसका सही अर्थ समझना प्राय: कठिन हो जाता है। अर्थ भले ही कुछ भी हो, संदर्भ भले ही कुछ भी हो मोक्ष शब्द का अर्थ एक ही होता है, वह है मुक्ति ।
    
बहुत ही साधारण अर्थ है जन्मजन्मांतर से मुक्ति। यह संसार दुःखमय है और अपने दुर्भाग्य से एक के बाद दूसरे ऐसे अनेक जन्मों में संसार में दुःख भोगने के लिए आना ही पड़ता है। जन्म-पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहा जाता है और सब मोक्ष चाहते हैं। विरोधाभास यह भी है कि साधु सन्त, तत्वज्ञानी, दुःखी और पीड़ित लोग कहते हैं कि यह संसार मिथ्या है और हम इससे छुटकारा चाहते हैं तो भी संसार की आसक्ति से मुक्त होना उनके लिए कठिन होता है। मोक्ष की बात करते-करते भी वे संसार से मुक्ति चाहते ही हैं, ऐसा नहीं होता । वे दुःखों से मुक्ति चाहते हैं, संसार से नहीं ।
 
बहुत ही साधारण अर्थ है जन्मजन्मांतर से मुक्ति। यह संसार दुःखमय है और अपने दुर्भाग्य से एक के बाद दूसरे ऐसे अनेक जन्मों में संसार में दुःख भोगने के लिए आना ही पड़ता है। जन्म-पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति को मोक्ष कहा जाता है और सब मोक्ष चाहते हैं। विरोधाभास यह भी है कि साधु सन्त, तत्वज्ञानी, दुःखी और पीड़ित लोग कहते हैं कि यह संसार मिथ्या है और हम इससे छुटकारा चाहते हैं तो भी संसार की आसक्ति से मुक्त होना उनके लिए कठिन होता है। मोक्ष की बात करते-करते भी वे संसार से मुक्ति चाहते ही हैं, ऐसा नहीं होता । वे दुःखों से मुक्ति चाहते हैं, संसार से नहीं ।

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