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19. इसके बाद अनुभूति कि शिक्षा होती है जो इन सबसे परे होती है यह लौकिक शिक्षा नहीं है । यह पराविद्या का क्षेत्र है। इसे ब्रह्मविद्या या अध्यात्मविद्या कहते हैं । धर्मशिक्षा, कर्मशिक्षा या शस्त्रशिक्षा से अनुभूति होती भी है और नहीं भी  होती । ये इसके कारण भी नहीं हैं और इसके  विरोधी भी नहीं हैं ।
 
19. इसके बाद अनुभूति कि शिक्षा होती है जो इन सबसे परे होती है यह लौकिक शिक्षा नहीं है । यह पराविद्या का क्षेत्र है। इसे ब्रह्मविद्या या अध्यात्मविद्या कहते हैं । धर्मशिक्षा, कर्मशिक्षा या शस्त्रशिक्षा से अनुभूति होती भी है और नहीं भी  होती । ये इसके कारण भी नहीं हैं और इसके  विरोधी भी नहीं हैं ।
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२०. भारत में ऐसी शिक्षा को व्यक्तित्व का अभिन्न अंग रत में ऐसी शिक्षा को व्यक्तित्व का अभिन्न अंग  माना गया है। समाज में सब शिक्षित हों इसकी  चिन्ता शिक्षक को करनी है और समाज ने शिक्षक  के योगक्षेम की चिन्ता करनी है । ऐसी भारतीय   शिक्षा की आज की अवस्था अत्यंत शोचनीय है ।  हमें उसकी चिन्ता करनी है ।
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२०. भारत में ऐसी शिक्षा को व्यक्तित्व का अभिन्न अंग रत में ऐसी शिक्षा को व्यक्तित्व का अभिन्न अंग  माना गया है। समाज में सब शिक्षित हों इसकी  चिन्ता शिक्षक को करनी है और समाज ने शिक्षक  के योगक्षेम की चिन्ता करनी है । ऐसी धार्मिक   शिक्षा की आज की अवस्था अत्यंत शोचनीय है ।  हमें उसकी चिन्ता करनी है ।

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