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=== <big><u>एकात्मतास्तोत्र-व्याख्या</u></big> ===
 
=== <big><u>एकात्मतास्तोत्र-व्याख्या</u></big> ===
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[[File:Bharat Ekatmata Stotra Sachitra-page-012.jpg|center|thumb]]
 
<blockquote>'''ऊँ सच्चिदानन्दरूपाय नमोऽस्तु परमात्मने। ज्योतिर्मयस्वरूपाय विश्वमाडगिल्यमूर्तये।१ ॥''' </blockquote>'''अर्थ :-'''  ऊँ ज्योतिर्मय स्वरूप वाले, विश्व का कल्याण करने वाले, सच्चिदानन्द-स्वरूप परमात्मा को नमस्कार है ॥ १ ॥  
 
<blockquote>'''ऊँ सच्चिदानन्दरूपाय नमोऽस्तु परमात्मने। ज्योतिर्मयस्वरूपाय विश्वमाडगिल्यमूर्तये।१ ॥''' </blockquote>'''अर्थ :-'''  ऊँ ज्योतिर्मय स्वरूप वाले, विश्व का कल्याण करने वाले, सच्चिदानन्द-स्वरूप परमात्मा को नमस्कार है ॥ १ ॥  
    
'''व्याख्या : -'''    ॐ परब्रह्मवाचक शब्द है जो प्रणव मंत्र भी कहलाता है। इसे सृष्टि का आदि नाद माना जाता है। यही शब्दब्रह्म है जो सम्पूर्ण आकाश में अव्यक्त रूप में व्याप्त है। पुराणों और स्मृतियों के अनुसार यह ब्रह्मा के मुँहसेनिकला हुआ। प्रथम शब्द है जो बड़ा मांगलिक माना जाता है और वेदपाठ या किसी भी शुभ कार्य के आरम्भ में तथा समापन के समय प्रयुक्त होता है। मन्त्र का आरम्भ भी ॐ से किया जाता है। ॐ त्रिदेव – ब्रह्मा,विष्णु और महेश का द्योतक है ,जिसमें अ = ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता),उ = विष्णु (पालनकर्ता), और म् = महेश (संहारकर्ता) का संकेतक माना जाता है। शुभ का द्योतक होने से भारत में स्वीकृति-वाचक "हाँ" या "बहुत अच्छा" अथवा “ठीक है" के अर्थ में भी 'अं%' कहने की प्रथा रही है। सच्चिदानन्द – सत् चित्(ज्ञानस्वरूप) आनन्दस्वरूप ब्रह्य।
 
'''व्याख्या : -'''    ॐ परब्रह्मवाचक शब्द है जो प्रणव मंत्र भी कहलाता है। इसे सृष्टि का आदि नाद माना जाता है। यही शब्दब्रह्म है जो सम्पूर्ण आकाश में अव्यक्त रूप में व्याप्त है। पुराणों और स्मृतियों के अनुसार यह ब्रह्मा के मुँहसेनिकला हुआ। प्रथम शब्द है जो बड़ा मांगलिक माना जाता है और वेदपाठ या किसी भी शुभ कार्य के आरम्भ में तथा समापन के समय प्रयुक्त होता है। मन्त्र का आरम्भ भी ॐ से किया जाता है। ॐ त्रिदेव – ब्रह्मा,विष्णु और महेश का द्योतक है ,जिसमें अ = ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता),उ = विष्णु (पालनकर्ता), और म् = महेश (संहारकर्ता) का संकेतक माना जाता है। शुभ का द्योतक होने से भारत में स्वीकृति-वाचक "हाँ" या "बहुत अच्छा" अथवा “ठीक है" के अर्थ में भी 'अं%' कहने की प्रथा रही है। सच्चिदानन्द – सत् चित्(ज्ञानस्वरूप) आनन्दस्वरूप ब्रह्य।
 
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<blockquote>'''प्रकृतिः पञ्च भूतानि ग्रहा लोका स्वरास्तथा।दिशः कालश्च सर्वेषां सदा कुवन्तु मङ्गलम् ।।२।।'''</blockquote>'''अर्थ : -''' (तीन गुणों से युक्त) प्रकृति,पाँच भूत, (नौ) ग्रह, (तीन) लोक अथवा (सात) ऊध्र्वलोक और (सात) अधोलोक, (सात) स्वर, (दसों) दिशाएं और (तीनों) काल सदा सबका मंगल करें ॥2 ॥  
 
<blockquote>'''प्रकृतिः पञ्च भूतानि ग्रहा लोका स्वरास्तथा।दिशः कालश्च सर्वेषां सदा कुवन्तु मङ्गलम् ।।२।।'''</blockquote>'''अर्थ : -''' (तीन गुणों से युक्त) प्रकृति,पाँच भूत, (नौ) ग्रह, (तीन) लोक अथवा (सात) ऊध्र्वलोक और (सात) अधोलोक, (सात) स्वर, (दसों) दिशाएं और (तीनों) काल सदा सबका मंगल करें ॥2 ॥  
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घटनाओं के पूर्व और पश्चात् के अनुक्रम का बोध कराने वाला प्रत्यय, जिसका गति या परिवर्तन से अविच्छेद्य सम्बन्ध है। भारतीय तत्व दर्शियों ने काल को चक्रीय (पुनरावर्ती) बताया है, जिसके अनुसार सत्ययुग, त्रेतायुग,द्वापरयुग, और कलियुग का बारम्बार पुनरावर्तन होता रहता है। इस प्रकार भूत,वर्तमान और भविष्य का कालचक्र पुन: पुन: अपने को दुहराता रहता है। भारत में काल-गणना निमेष (पलक-झपकने) के भी अत्यंत सूक्ष्म अंश से लेकर कल्प (सृष्टि की अवधि) पर्यन्त बृहत् स्तर तक की गयी है। उपर्युक्त चार युगोंका एक महायुग (43,20,000 वर्ष) और 1000 महायुगों का एक कल्प होता है जो पुराणों के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक दिन और एक बार की सृष्टि की अवधि है। सृष्टि कल्प के ही बराबर प्रलयकाल होता है और तत्पश्चात् पुन: सृष्टि।
 
घटनाओं के पूर्व और पश्चात् के अनुक्रम का बोध कराने वाला प्रत्यय, जिसका गति या परिवर्तन से अविच्छेद्य सम्बन्ध है। भारतीय तत्व दर्शियों ने काल को चक्रीय (पुनरावर्ती) बताया है, जिसके अनुसार सत्ययुग, त्रेतायुग,द्वापरयुग, और कलियुग का बारम्बार पुनरावर्तन होता रहता है। इस प्रकार भूत,वर्तमान और भविष्य का कालचक्र पुन: पुन: अपने को दुहराता रहता है। भारत में काल-गणना निमेष (पलक-झपकने) के भी अत्यंत सूक्ष्म अंश से लेकर कल्प (सृष्टि की अवधि) पर्यन्त बृहत् स्तर तक की गयी है। उपर्युक्त चार युगोंका एक महायुग (43,20,000 वर्ष) और 1000 महायुगों का एक कल्प होता है जो पुराणों के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा का एक दिन और एक बार की सृष्टि की अवधि है। सृष्टि कल्प के ही बराबर प्रलयकाल होता है और तत्पश्चात् पुन: सृष्टि।
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<blockquote>                                  '''रत्नाकराधौतपदां हिमालयकिरीटिनीम्। ब्रह्मराजर्षिरत्नाढ़यां वन्दे भारतमातरम् ॥3 ॥''' </blockquote>राजर्षियों रूपी रत्नों से समृद्ध ऐसी भारतमाता की मैं वन्दना करता हूँ ॥3 ॥
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<blockquote>'''महेन्द्रो मलय: सह्यो देवतात्मा हिमालय: । ध्येयो रैवतको विन्ध्यो गिरिशचारावलिस्तथा ।4 ।''' </blockquote>'''<big><u>महेन्द्र पर्वत</u> : -</big>'''
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उत्कल प्रदेश (उड़ीसा) के गंजाम जिले में पूर्वी घाट काउत्तुंग शिखर। इस पर्वत पर चार विशाल ऐतिहासिक मन्दिर विद्यमानहैं। चोल राजा राजेन्द्र ने 11 वीं शताब्दी में यहाँएक जयस्तम्भ स्थापित किया था। स्थानीय लोगों की ऐसी श्रद्धा है कि सप्त चिरंजीवियों में से एक, परशुराम, इस पर्वत पर विचरण करते हैं। इस पर्वत से महेन्द्र—तनय नामक दो प्रवाह निकलते हैं।
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'''<u><big>मलय पर्वत</big></u> <big>:-</big>'''
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भारतीय वाड्मय में मलय गिरि का वर्णन अनेक कवियों ने किया है। चंदन वृक्षों के लिए प्रसिद्ध यह पर्वत कर्नाटक प्रान्त में दक्षिण मैसूर में स्थित है। यह नीलगिरि नाम से भी जाना जाता है। इसका एक शिखर भी नीलगिरि के नाम से प्रसिद्ध है।
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'''<u><big>सह्य पर्वत (सह्याद्री): -</big></u>'''
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भारत के पश्चिमी सागर-तट पर महाराष्ट्र और कर्नाटक में स्थित यह पर्वत गोदावरी और कृष्णा नदियों का उद्गम-स्थल है। त्र्यम्बकेश्वर, महाबलेश्वर, पंचवटी, मंगेशी, बालुकेश्वर, करवीर आदि अनेक तीर्थ सह्याद्रि के शिखरों पर तथा इससे उद्भूत नदियों के तटों पर विद्यमान हैं। यह पर्वत शिवाजी महाराज के कतृत्व का आधार क्षेत्र रहा है। अनेक इतिहास-प्रसिद्ध दुर्ग सह्याद्रि के शिखरों पर स्थित हैं, जिनमें उल्लेखनीय हैं—शिवनेरी, प्रतापगढ़, पन्हाला, विशालगढ़, पुरन्दर, सिंहगढ़ और रायगढ़।
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'''<u><big>हिमालय</big></u>'''
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<sub><big>भारत के उत्तर में स्थित, सदैव हिममण्डित, विश्व का सबसे ऊँचा पर्वत, जिसे कालिदास</big></sub> ने ‘देवतात्मा' विशेषण से सम्बोधित किया था (“अस्त्युतरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयी नाम नगाधिराज:।") । उत्तर की ओर से परकीय आक्रमणों को रोकने में सुदृढ़ प्राचीर की भाँति खड़े पर्वतराज हिमालय की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह पर्वत भारत की अनेक महान् नदियों का उदगम-स्थल है। गंगा, यमुना,सिन्धु, ब्रह्मपुत्र जैसी महिमामयी विशाल नदियाँ हिमालय से ही नि:सृत हुई हैं। भगवान् शिव का प्रिय निवास कैलाश पर्वत हिमालय में ही स्थित है। नर-नारायण का पवित्र स्थान यहीं है। गंगोत्री, यमुनोत्री, मानसरोवर, बद्रीनाथ, केदारनाथ जैसे सुप्रसिद्ध तीर्थ इसी महती पर्वत-श्रृंखला के क्रोड़ में बसे हैं। हिमालय के प्रांगण में ही राजा भगीरथ ने गंगा के अवतरण के लिए घोर तप किया था। यहीं देवी पार्वती ने जन्म लिया, जिन्होंने अपने महान् तप से भगवान्शिव को पतिरूप में प्राप्त किया। यहीं बद्रीवन में भगवान् व्यास ने अनेक महाग्रन्थों का प्रणयन किया। महाभारत के युद्ध के बाद पाण्डवों ने हिमालय-गमन किया था। भारत की पारम्परिक, सांस्कृतिक जीवनगाथा के असंख्य आख्यान हिमालय से जुड़े हुए हैं। यह युगों-युगों से ऋषि-मुनियों, योगियों, तपस्वियों और दार्शनिकों का वासस्थान रहा है।
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'''<big><u>रैवतक पर्वत</u> : -</big>'''
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गुजरात प्रान्त के काठियावाड़ जिले के प्रभास क्षेत्र का पवित्र पर्वत,जो गिरनार नाम से भी प्रसिद्ध है,द्वारिका से कुछही दूरी पर है। माघरचित 'शिशुपाल वध' नाटक में इसका सुन्दर वर्णन है। पुराणों के अनुसार भगवान् शंकर ने इस पर्वत पर वास किया था और उन्हें कैलाश पर्वत पर लौटा लाने का अनुरोध करने के लिए आये हुएदेवताओं को शंकर जी ने इसी क्षेत्र में रहने को कहा था। अतएव ऐसी मान्यता है कि रैवतक पर्वत पर सभी देवताओं का और शिवजी के अंश का निवास है। इस पर्वत पर अनेक पवित्र जल-कुण्ड औरमन्दिरविद्यमानहैं। जैन सम्प्रदाय के भी अनेक मन्दिर इस पर्वत पर विद्यमान हैं। इसके शिखरों में गोरखनाथ शिखर सबसे उलूंचा है।
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'''<u><big>विन्ध्याचल : -</big></u>'''
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भारत के मध्य भाग में गुजरात से बिहार तक विस्तीर्ण यह पर्वत नर्मदा और शोणभद्र नदियों का उद्गम-स्थल है। विन्ध्याचल सात कुलपर्वतों में से एक है। कहा जाता हैकि उत्तर भारत और दक्षिण भारत को विभाजित करने वाली विन्ध्य पर्वतमाला को लांघकर ऋषि अगस्त्य दक्षिण गये थे और उन्होंने उत्तरतथा दक्षिण कोएकसूत्र में बाँधने का यशस्वी कार्य सम्पन्न किया था। पुराणों के अनुसार, यह पर्वत हिमालय से ईष्र्या करके मेरु से भी ऊँचा उठ रहा था। देवताओं की प्रार्थना पर अगस्त्य ऋषि विन्ध्य पर्वत के पास गये। अपने गुरु को आया देख उसने झुककर उन्हें प्रणाम किया। ऋषिवर ने दक्षिण से अपने वापस लौटने तक उसी नम्र अवस्था में रहने का उसे आदेश दिया। तब से विन्ध्य पर्वत उसी विनतावस्था में उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। अमरकण्टक का रमणीक पवित्र तीर्थ विन्ध्य पर्वत-श्रृंखला पर ही स्थित है। अरावली <sub><big>राजस्थान का प्रमुख पर्वत,जिसके आश्रय से उत्तर-पश्चिम की ओर से होने वाले परकीय</big></sub> आक्रमणों का प्रतिरोध किया गया। महाराणाप्रताप के शौर्य और कर्तृत्व का साक्षी यह पर्वत उनकी कर्मभूमि रहा है। प्रसिद्ध हल्दीघाटी अरावली की उपत्यकाओं में ही स्थित है। अरावली के सर्वोच्च शिखर का नाम आबू(अर्बुदाचल) है, जहाँ जैन सम्प्रदाय के पवित्र तीर्थ हैं। इस पर्वत का प्राचीन संस्कृत नाम ‘पारियात्र' था जिसकी सात कुलपर्वतों में गणना होती थी।
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(महेन्द्रो मलय: सह्यो शुक्तिमान् ऋक्षवानपि। विन्ध्यश्च परियात्रश्च सप्तैते कुलपर्वता: ॥)
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<blockquote>'''गडगा सरस्वती सिन्धुब्रह्मपुत्रश्च गण्डकी। कावेरी यमुना रेवा कृष्णा गोदा महानदी ॥5 ॥''' </blockquote>'''<big><u>गंगा : -</u></big>''' 
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नामों से पुकारा जाताहै,हिमालय में गंगोत्री में गंगोत्री हिमानी के गोमुख विवर से निकलकर गंगा गिरि-शिखरों से क्रीड़ा करती हुई,हरिद्वार में समतल प्रदेश मेंप्रवेश करती है। आगे यहनदी उत्तर प्रदेश,बिहार,बंगाल कोअपने पवित्रप्रवाहसे पावनकरती हुईगंगासागर मेंजामिलती है। ऋग्वेद के नदी सूक्त के अनुसार वह भारत की नदियों में सर्वप्रथम है। गंगा के तट पर हरिद्वार, प्रयाग, काशी जैसे अनेक सुप्रसिद्ध तीर्थ हैं। इसके तटों पर अनादि काल से ऋषि, मुनि और तपस्वीगण साधना करते आये हैं। गंगा—जल पवित्रता और निर्मलता का उपमान है। वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका हैकि इसकी स्वयं शुद्ध हो जाने की क्षमता विश्वभर क जलों में सर्वोपरिहै। हिन्दू इस पावन नदी को माता या मैया कहकर पुकारते हैं। पुराणों के अनुसार गंगा विष्णु के चरण से उत्पन्न हुई, ब्रह्मा के कमंडलु में समायी, शिव जी ने इसे अपनी जटा में धारण किया और सगरवंशीय राजा भगीरथ अपने पूर्व-पुरुषों का उद्धार करने हेतु इसे धरती पर लाये। भागवतपुराण में तत्सम्बन्धी कथा विस्तार से दी गयी है। आदित्यपुराण के अनुसार पृथ्वी पर गंगावतरण वैशाख शुक्ल तृतीया को तथा हिमालय से उसका निर्गम ज्येष्ठ शुक्ल दशमी (गंगा दशहरा ) को हुआ।
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'''<u><big>सरस्वती</big></u>''' '''<big>: -</big>'''
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<sub><big>वेदों में उल्लिखित पवित्र नदी, जो हिमालय से निकलकर वर्तमान हरियाणा, राजस्थान,</big></sub> गुजरात के क्षेत्रों से प्रवाहित होती हुई सिन्धुसागर में मिलती थी। कालांतर में यह नदी विलुप्त हो गयी। इसके तट ऋषियों की तपोभूमि रहे हैं। इसके आसपास का प्रदेश सारस्वत प्रदेश कहलाता था जो अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के लिए प्रसिद्ध था। पुराणों में कहीं-कहीं सरस्वती को ब्रह्मा की पत्नी तथा ब्राह्मण ग्रन्थों में वाणी की देवी कहा गया है। सम्भव है कि इस नदी के तटवर्ती प्रदेश की विद्या—वैभव-सम्पन्नता के कारण इसे सरस्वती नाम मिला हो।
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'''<u><big>सिन्धु : -</big></u>'''
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पवित्र नदी, जिसका वैदिक साहित्य में भी उल्लेख आया है। हिमालय में कैलाश पर्वत से कुछदूर मानसरोवर के निकटसे उद्भूत होकर सिन्धुनदी कश्मीर, पंजाब औरसिन्ध प्रदेश में से प्रवाहित होती हुई पश्चिमी सिन्धु सागरमें जा मिलती है। सिन्धु नदी वेदों मेंउल्लिखित पवित्र नदी हैजिसके तटों पर वैदिक सभ्यता फली-फूली। ऐसी मान्यताहैकि 'हिन्दू' शब्द सिन्धुसे ही बना है। सिन्धु और उसकी सहायक नदियों सहित सात नदियों वाला प्रदेश सप्तसैंधव कहलाता था। वैदिक सभ्यता और संस्कृति यहाँ फली-फूली थी। किन्तु आज वही नदी और प्रदेश दोनों ही दुर्भाग्यवश पाकिस्तान में हैं।
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'''<u><big>ब्रह्मपुत्र</big></u>''' '''<big>: -</big>'''
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<sub><big>इसका उदगम-स्थल हिमालय में पवित्र मानसरोवर के समीप स्थित एक विशाल हिमानी</big></sub> है। यहमहानद पूर्व की ओर बहता हुआ असम और बंगाल में से होतेहुए गंगासागरमें मिलता है। भारतवर्ष की नदियों में ब्रह्मपुत्र की लम्बाई सर्वाधिक है। बड़ी दूर तक तिब्बत में सांपो नाम से बहने के पश्चात् अरुणाचल प्रदेश की उत्तरी सीमा पर यह भारत में प्रवेश करती है। गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के किनारे एक पहाड़ के शिखर पर कामाख्या देवी का पवित्र शक्तिपीठ अवस्थित है। अपुनर्भव, भस्मक्तूट, मणिकर्णश्वर आदि अनेक तीर्थ इसके तटों पर स्थित हैं।
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'''<u><big>गण्डकी</big></u>''' '''<big>:-</big>'''
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<sub><big>नेपाल में मुक्तिनाथ के समीप दामोदर कुण्ड सेउद्भूत गण्डकी बिहार प्रदेश से होतीहुई गंगा</big></sub> में मिल जाती है। यह पवित्र शालिग्राम शिलाओं के लिएप्रसिद्ध है जिनकी पूजा भगवान् विष्णु के प्रतीक के रूप में की जाती है। इसीलिए इसका एक नाम नारायणी भी है।
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'''<u><big>कावेरी</big></u>'''  '''<big>: -</big>'''
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कावेरीमुख्यत: कर्नाटक और तमिलनाडुमें बहने वाली पवित्र नदी,जो कुर्ग में सह्याद्रि केदक्षिणी छोर से निकलकर पूर्वी समुद्र-तट पर गंगासागर में विलीन हो जाती है। इसके प्रवाह के बीच में तीन स्थानों पर क्रमश: आदिरंगम्, शिवसमुद्रम् तथा अन्तरंगम् नाम के तीन पवित्र द्वीप हैं जिन पर विष्णु-मन्दिर बने हैं। जो स्थान उत्तर भारत में गंगा- यमुना नदियों को प्राप्त है, वही स्थान दक्षिण भारत में कावेरी और ताम्रपणी को प्राप्त है। कावेरी से निकली नहरों ने तमिलनाडु प्रदेश को कृषि की समृद्धि प्रदान की है।
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'''<u><big>यमुना</big></u>''' '''<big>: -</big>'''
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यमुनाउत्तर भारत की पवित्र नदी, जो हिमालय में यमुनोत्री के शिखर से निकलकर प्रयाग क्षेत्र में गंगा मेंमिल जातीहै। गंगा-यमुना का यहसंगम-स्थल आस्तिकों के लिएतीर्थराजहै।इस नदी के तटपर इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली),मथुरा और वृंदावन जैसे ऐतिहासिक, धार्मिक नगर बसे हैं। नीलवर्णा यमुना के साथ श्रीकृष्ण का गहरा संबंध है। कृष्ण-भक्ति-साहित्य में कृष्ण के संबंध के कारण यमुना का महात्म्य भी गाया गया है। पुराणों में यमुना को सूर्यकन्या माना गया है। वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों में भी इसका उल्लेख अनेक बार हुआ है।
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'''<u><big>रेवा</big></u>''' '''<big>: -</big>'''
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पुराणोक्ता रेवा नदी नर्मदा नाम से प्रसिद्ध है। इसका उदगम विन्ध्य पर्वत के अमरकण्टक शिखर में है। यह गुजरात में भड़ौंच के पास सिन्धु सागर में समाहित होती है। पौराणिक मान्यता के अनुसाररेवा नदी शिवके शरीर सेउत्पन्न हुईहै।रेवा के तट परअनेक तीर्थहैं। इनमें भेड़ाघाट, ओकारेश्वर, मांधाता, शुक्लतीर्थ, कपिलधारा आदि दर्शनीय हैं। स्कन्दपुराण के रेवाखण्ड में रेवा-तट के तीर्थों का विस्तृत वर्णन है। रानी अहिल्याबाई होलकरद्वारा बनवाये गये अनेक मन्दिर व घाट नर्मदा के तट पर विद्यमान हैं। कृष्णाआंध्र प्रदेश की प्रसिद्ध पुण्य सलिला नदी,जो सह्मद्रि पर्वत में महाबलेश्वर के उत्तरमें स्थित कराड़ नामक स्थान के समीप सेनिकलकर गंगासागर में जामिलती है। यहदक्षिण भारत की बड़ी नदियों में से है जिसे महाभारत में रोगनाशकारिणी बताया गया है। राजनिघण्टु के अनुसार इसका जल स्वच्छ,रुचिकर,दीपक और पाचक होताहै। भीमा औरतुंगभद्रा कुष्णा की दो प्रमुख सहायक नदियाँ हैं।
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'''<u><big>गोदावरी</big></u>''' '''<big>: -</big>'''
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गोदावरी ब्रह्मपुराण के अनुसार गौतम ऋषि शिव की जटा से गंगा को ब्रह्मगिरि (सह्याद्रि) में अपने आश्रम के समीप ले गये। इसीलिए वहाँप्रकट हुई गोदावरी को गौतमी और दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है। इसका उद्गम सह्याद्रि में त्रयम्बकेश्वर (ब्रह्मगिरि) से है और यह महाराष्ट्र से आन्ध्र प्रदेश में बहती हुई गंगासागर में विलीन हो जाती है। भगवान् राम चन्द्र जी ने गोदावरी के किनारे पंचवटी में निवास किया था। समर्थ रामदास स्वामी ने इसी स्थान पर 13 वर्ष तक घोर तपस्या की थी। गोदावरी के किनारे नान्देड़ क्षेत्र में श्री गुरु गोविन्द सिंह की समाधि विद्यमान है। गोदावरी के तट पर नासिक,पैठण,कोटिपल्ली राजमहेन्द्री, भ्रदाचलम् इत्यादि अनेक पावन क्षेत्र विद्यमानहैं। ब्रह्मपुराण मेंगोदावरी-तट के लगभग एक सौतीर्थों का वर्णनहै। मुस्लिम आक्रामकों ने इनमें प्राचीन मन्दिरों का बहुत विध्वंस किया। मराठा उत्थान के पश्चात्पुन: अनेक मंदिर बने। पंचवटी का कालाराम मंदिर दक्षिण-पश्चिम भारत के सर्वोतम मन्दिरों में गिना जाता है।
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'''<u><big>महानदी</big></u>''' '''<big>: -</big>'''
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महानदी यह मध्य प्रदेश तथा उत्कल प्रदेश की सबसे बड़ी नदी है जो मध्य प्रदेश के रायपुर जिले के दक्षिण-पूर्व में स्थित सिंहवा पर्वत-श्रृंखला से निकलती है। कटक के पास अनेक धाराओं में बहती हुई यह पूर्व में गंगासागर में विलीन होती है। उत्कल प्रदेश का बहुत बड़ा क्षेत्र इसके जल से सिंचित होता है।
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