Changes

Jump to navigation Jump to search
m
Text replacement - "बीच" to "मध्य"
Line 2: Line 2:  
समाज की परिस्थितियों एवं बालको के जीवन चर्या को देखकर चिंतित मन ने आगे आने वाली पीढ़ियों के संस्कार को भारतीय मुख्यधारा में परिवर्तित करने की इच्छा से और सभी गुरुजनों एवं सहपाठियों के मार्गदर्शन से बालको के आवश्यक संस्कारो को परिभाषित करने का प्रयास ।
 
समाज की परिस्थितियों एवं बालको के जीवन चर्या को देखकर चिंतित मन ने आगे आने वाली पीढ़ियों के संस्कार को भारतीय मुख्यधारा में परिवर्तित करने की इच्छा से और सभी गुरुजनों एवं सहपाठियों के मार्गदर्शन से बालको के आवश्यक संस्कारो को परिभाषित करने का प्रयास ।
   −
समाज में विद्या एवं ज्ञान के उचित एवं आवश्यक विषयों को कब, कितना और कैसे बालको में देना चाहिए, इस विषय के प्रति समाज के लोगों को जागरूक करना  आवश्यक हैं ।आज के समाज की स्थिति को देखकर ऐसा लग रहा हैं कि कुछ ही दिनों में समाज में संबंधो का महत्व , प्रेम , व्यवहार , आदर ,मान सम्मान , सेवा ,दया ,धर्म कार्य ............. यह सब केवल किताबो में ही पढ़ने के लिए रह जायेगा ।समय रहते भारतीय  आधारित शिक्षा को अग्रसर नहीं किया गया तो इसका बहुत ही भयंकर परिणाम आगे दिखाई देगा । माता - पिता और बच्चो के बीच के सम्बन्धों में दूरियां , अपने से बड़ो को सम्मान ना देना ,उनका अनादर करना , अपने संस्कारो के प्रति अविश्वास प्रकट करना , अपने आदर्शो को न मानना इत्यादि दु:संस्कारो का पोषण अपने अन्दर इसलिए हो रहा है क्योंकि हमने अपने धार्मिक विद्या एवं संस्कारों का परित्याग कर दिया गया है   
+
समाज में विद्या एवं ज्ञान के उचित एवं आवश्यक विषयों को कब, कितना और कैसे बालको में देना चाहिए, इस विषय के प्रति समाज के लोगों को जागरूक करना  आवश्यक हैं ।आज के समाज की स्थिति को देखकर ऐसा लग रहा हैं कि कुछ ही दिनों में समाज में संबंधो का महत्व , प्रेम , व्यवहार , आदर ,मान सम्मान , सेवा ,दया ,धर्म कार्य ............. यह सब केवल किताबो में ही पढ़ने के लिए रह जायेगा ।समय रहते भारतीय  आधारित शिक्षा को अग्रसर नहीं किया गया तो इसका बहुत ही भयंकर परिणाम आगे दिखाई देगा । माता - पिता और बच्चो के मध्य के सम्बन्धों में दूरियां , अपने से बड़ो को सम्मान ना देना ,उनका अनादर करना , अपने संस्कारो के प्रति अविश्वास प्रकट करना , अपने आदर्शो को न मानना इत्यादि दु:संस्कारो का पोषण अपने अन्दर इसलिए हो रहा है क्योंकि हमने अपने धार्मिक विद्या एवं संस्कारों का परित्याग कर दिया गया है   
    
सभी को इतना ज्ञात होना चाहिए कि जितना लौकिक ज्ञान आवश्यक है उससे कहीं अधिक अपने धर्म का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है । क्योंकि भारतीय पद्धति की शिक्षा में जीवन जीने का कौशल्य , आदर ,सम्मान ,भाव , प्रेम , सेवा , त्याग......... आदर्श जीवन जीने की पूर्ण कला इसमें निहित है । विद्या एवं ज्ञान अर्जित करने का सर्वोत्तम आयु बाल्यावस्था होती है । बाल्यावस्था में बालको को जितना ज्ञान अर्जित करने में आसानी और उसका पालन हो सकता है उतना एक आयु गट पूर्ण होने के बाद कई समस्यायें होती है ।  
 
सभी को इतना ज्ञात होना चाहिए कि जितना लौकिक ज्ञान आवश्यक है उससे कहीं अधिक अपने धर्म का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है । क्योंकि भारतीय पद्धति की शिक्षा में जीवन जीने का कौशल्य , आदर ,सम्मान ,भाव , प्रेम , सेवा , त्याग......... आदर्श जीवन जीने की पूर्ण कला इसमें निहित है । विद्या एवं ज्ञान अर्जित करने का सर्वोत्तम आयु बाल्यावस्था होती है । बाल्यावस्था में बालको को जितना ज्ञान अर्जित करने में आसानी और उसका पालन हो सकता है उतना एक आयु गट पूर्ण होने के बाद कई समस्यायें होती है ।  

Navigation menu