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सभी लोगों के साथ योग्य व्यवहार करना एवं शास्त्रों में बताये गए पद्धति का उत्तम कर्मों द्वारा आचरण करना सदाचार है। इससे गलत आदतों , गुणों और गलत आचरणों एवं गलत विचारो का नाश होकर बाहर और भीतर की पवित्रता होती है तथा सद्गुणों की उत्पत्ति एवं विकास होता है।  
 
सभी लोगों के साथ योग्य व्यवहार करना एवं शास्त्रों में बताये गए पद्धति का उत्तम कर्मों द्वारा आचरण करना सदाचार है। इससे गलत आदतों , गुणों और गलत आचरणों एवं गलत विचारो का नाश होकर बाहर और भीतर की पवित्रता होती है तथा सद्गुणों की उत्पत्ति एवं विकास होता है।  
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प्रातःकाल सूर्य उगने से पूर्व उठकर प्रातः मंत्र बिस्तर पर बैठे बोलना , धरती माता से छमा याचना कर धरती पर पग रखना ,  शौच आदि प्रातः विधि से निवृत्त होकर । योग साधना , व्यायाम आदि शरीर को बलवान और रोगमुक्त बनाने के लिए प्रतिदिन करना चाहिए।  फिर स्नान - नित्य कर्म पूजा पाठ करके बड़ों के चरणों में प्रणाम करना चाहिये। फिर दूध  पिकर विद्या एवं पठन अभ्यास करें। लेखन पठन इत्यादि के बाद दिन के दूसरे पहर में ठीक समय पर आचमन प्रक्षालन करके सावधानी के साथ पवित्र और सात्त्विक भोजन करें। यह ध्यान रखना चाहिये कि भूख से अधिक भोजन कभी न किया जाए और भूख से अधिक भोजन लेकर भोजन पात्र में ना छोड़े ।  
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प्रातःकाल सूर्य उगने से पूर्व उठकर प्रातः मंत्र बिस्तर पर बैठे बोलना , धरती माता से क्षमा याचना कर धरती पर पग रखना ,  शौच आदि प्रातः विधि से निवृत्त होकर । योग साधना , व्यायाम आदि शरीर को बलवान और रोगमुक्त बनाने के लिए प्रतिदिन करना चाहिए।  फिर स्नान - नित्य कर्म पूजा पाठ करके बड़ों के चरणों में प्रणाम करना चाहिये। फिर दूध  पिकर विद्या एवं पठन अभ्यास करें। लेखन पठन इत्यादि के बाद दिन के दूसरे पहर में ठीक समय पर आचमन प्रक्षालन करके सावधानी के साथ पवित्र और सात्त्विक भोजन करें। यह ध्यान रखना चाहिये कि भूख से अधिक भोजन कभी न किया जाए और भूख से अधिक भोजन लेकर भोजन पात्र में ना छोड़े ।  
    
मनु जी कहते हैं-<blockquote>उपस्पृश्य द्विजो नित्यमन्नमद्यात्समाहितः।</blockquote><blockquote>भुक्त्वा चोपस्पृशेत्सम्यगद्भिः खानि च संस्पृशेत् ॥ ( २ ।५३ )</blockquote>'द्विज को चाहिये कि सदा आचमन करके ही सावधान हो अन्न का भोजन करे और भोजन के अनन्तर भी अच्छी प्रकार
 
मनु जी कहते हैं-<blockquote>उपस्पृश्य द्विजो नित्यमन्नमद्यात्समाहितः।</blockquote><blockquote>भुक्त्वा चोपस्पृशेत्सम्यगद्भिः खानि च संस्पृशेत् ॥ ( २ ।५३ )</blockquote>'द्विज को चाहिये कि सदा आचमन करके ही सावधान हो अन्न का भोजन करे और भोजन के अनन्तर भी अच्छी प्रकार

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