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=== नाथद्वारा ===
 
=== नाथद्वारा ===
 
उदयपुर से ४८ कि.मी. दूर बनास नदी पर नाथद्वार स्थित है। यहाँ भगवान् श्रीनाथ का सुन्दर मन्दिर है। श्री नाथजी की प्रतिमा मूलत: वज्रभूमि में गोवर्धन पर प्रतिष्ठित थी। औरंगजेब के शासन के दौरान वहाँ से हटाकर नाथद्वारा मेंप्रस्थापित करा दी गयी। स्वयं महाप्रभु वल्लभाचार्य श्री विग्रह को लेकरआये थे। अत: यह स्थान वल्लभाचार्य के शिष्यों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। नाथद्वारा में वनमाली जी का मन्दिर, मीरा मन्दिर, नवनीतलाल जी का मन्दिर तथा अन्य प्रमुख मन्दिरहैं। नाथद्वारा मन्दिर के माध्यम से यहाँ हस्तलिखित व मुद्रित ग्रन्थों का विशाल पुस्तकालय संचालित किया जाता है।  
 
उदयपुर से ४८ कि.मी. दूर बनास नदी पर नाथद्वार स्थित है। यहाँ भगवान् श्रीनाथ का सुन्दर मन्दिर है। श्री नाथजी की प्रतिमा मूलत: वज्रभूमि में गोवर्धन पर प्रतिष्ठित थी। औरंगजेब के शासन के दौरान वहाँ से हटाकर नाथद्वारा मेंप्रस्थापित करा दी गयी। स्वयं महाप्रभु वल्लभाचार्य श्री विग्रह को लेकरआये थे। अत: यह स्थान वल्लभाचार्य के शिष्यों का प्रमुख तीर्थ स्थल है। नाथद्वारा में वनमाली जी का मन्दिर, मीरा मन्दिर, नवनीतलाल जी का मन्दिर तथा अन्य प्रमुख मन्दिरहैं। नाथद्वारा मन्दिर के माध्यम से यहाँ हस्तलिखित व मुद्रित ग्रन्थों का विशाल पुस्तकालय संचालित किया जाता है।  
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=== एकलिंग जी ===
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उदयपुर से नाथद्वारा जाते समय रास्ते में भगवान् एकलिंगजी का पवित्र स्थान पड़ता है। एकलिंग जी मेवाड़भूषण बप्पा रावल से लेकर महाराणा राजसिंह तक प्रतापी नरेशों की प्रेरणा देने वाला आराध्य देव है। महाराणा प्रताप ने इन्हीं एकलिंग जी का पुण्य स्मरण करमुगलों से लोहा लिया औरअपनी मातृभूमि मेवाड़ की स्वतंत्रता अक्षुण्ण रखी। यहाँ भगवान् एकलिंग जी का चतुर्मुखी विग्रह एक विशाल मन्दिर में प्रतिष्ठित है।थोड़ी दूर पर इन्द्र सागर नामक सरोवर है। सरोवर के आसपास गणेश, धारेश्वर, लक्ष्मी के मन्दिर बने हैं। वनवासिनी देवी का पवित्र मन्दिर यहाँ से कुछ दूर है।
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=== आबू (अर्बुदाचल  ) ===
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राजस्थान का यह अति सुन्दर व पवित्र स्थान अरावली पर्वतमाला के दक्षिणी भाग में स्थित है। यह पावन क्षेत्र समुद्रतल से १२२० मीटर ऊँचाई पर है। महाभारत के अनुसार मथुरा से द्वारिका जाते हुए भगवान् श्रीकृष्ण यहाँ रुके थे। यहाँ पर वसिष्ठ मुनि का आश्रम था,अत:अति प्राचीन समय से यह पवित्र तीर्थ स्थान रहा है। उत्तरी पहाड़ी पर विश्व-प्रसिद्ध दिलवाड़ा के जैन मन्दिरहैं जो कला की दृष्टि से विश्व में बेजोड़ कहे जा सकते हैं। दूर-दूर से जैन तीर्थयात्री यहाँआते रहते हैं। एक शिखर पर अचलेश्वर लिंग तु वर्तते यत्र वीरक। (स्कन्दपुराण-माहेश्वर खण्ड-५९२६८)  इस क्षेत्र की अधिष्ठात्री देवी अर्बुदादेवी का मन्दिर है और थोड़ी दूर पर अचलेश्वर महादेव विराजमान हैं। अचलेश्वर महादेव परमार व चौहान नरेशों के कुलदेवता के रूप में पूजित हैं। स्कन्द पुराण में इसकी महिमा का बखान है।'आबू-नरेश धारावर्ष ने कुतुबुद्दीन ऐबक को सन् ११९७ ई. तथा शहाबुद्दीन गौरी को सन् ११७८ ई. में परास्त कर इस प्रेदश में घुसने से रोक दिया।आबू वैष्णव,शैव व जैन सम्प्रदाय के लोगों का तीर्थ स्थान तो है ही, ब्रह्मा कुमारी पंथ का भी पवित्रतम केन्द्र है।
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=== चित्तौड़गढ़ ===
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राणा सांगा, बप्पा रावल के शौर्य से अलंकृत चित्तौड़गढ़ गम्भीर नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। चित्तौड़गढ़ का निर्माण कब हुआ, कहना कठिन है। कुछ विद्वानों का कहना है कि इसका निर्माण पाण्डवों ने किया तथा इसका मूल नाम चित्रा कोट है। यह मेवाड़ राज्य की राजधानी रहा हैं महारानी पदिमनी ने इसी गढ़ में जौहर किया। पन्ना धाय के बलिदान (उदय सिंह की रक्षा के लिए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान) का साक्षी भी है यह दुर्ग। दिल्ली का सुल्तान मोहम्मद तुगलक हमीर के हाथों यहीं पर परास्त हुआ तथा ५० लाख रूपये, एक सौ हाथी तथा विशाल क्षेत्र भेंट करने पर मुक्त हो सका था। यह दुर्ग राजस्थान के उन शूरवीरों का अमर स्मारक है जिन्होंने परतंत्रता के स्थान पर मरना बेहतर समझा और मातृभूमि की मुक्ति के लिए न केवल संघर्षरत रहे वरन् आक्रमणकारियों की आंधी को शान्त कर दिया। हल्दीघाटी, जयस्तंभ, प्रताप स्मारक, चेतक समाधि, शैव, वैष्णव व जैन मन्दिर यहाँ के आसपास ऐतिहासिक आकर्षण हैं।
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=== बाड़मेर, बीकानेर, और जैसलमेर ===
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ये तीनों नगर मरुस्थलीय क्षेत्र के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं। यहाँ मन्दिर व खण्डहरों में हमारे संघर्ष का इतिहास बिखरा पड़ा है। जैसलमेर में कई प्राचीन व भव्य जैन मन्दिरहैं। यहाँ पर एक पुराना किला भी है जो अब स्थान-स्थान पर टूट रहा है। बाड़मेरऔर बीकानेर में भी कई जैन मन्दिर हैं। बीकानेर के पासअशोक के पौत्र का बनवाया हुआ मन्दिरआज भी विद्यमान है। लोककला की दृष्टि से ये नगर समृद्ध हैं। यहाँ पर कई मेले और उत्सव प्रतिवर्ष मनाये जाते हैं।
    
==References==
 
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