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→‎घुश्मेश्वर: लेख सम्पादित किया
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घुश्मेश्वर मन्दिर पर श्रावण पूर्णिमा तथा महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है। दूर-दूर से भक्त यहाँआते और धर्मलाभ प्राप्त करते हैं।   
 
घुश्मेश्वर मन्दिर पर श्रावण पूर्णिमा तथा महाशिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता है। दूर-दूर से भक्त यहाँआते और धर्मलाभ प्राप्त करते हैं।   
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= शक्तिपीठ =
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भारतवर्ष भौगोलिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से एक रहा है | समय - समय पर विकसित उपासना पद्धतियों से इसकी एकात्मता अधिक पुष्ट हुई है | विभिन्न पन्थो के पवित्र तीर्थ समस्त राष्ट्र में फैले हुए है | सम्पूर्ण भारत भूमि उनके लिए पवित्र है | शैव मतावलम्बियों के प्रमुख तीर्थ आसेतु - हिमाचल सभी दिशाओं में फैले है | शक्ति के उपासको के पूज्य तीर्थ शक्तिपीठ भी इसी प्रकार सर्व दूर एकात्मता का सन्देश देते है | इनकी संख्या ५१ है | तंत्र - चूड़ामणि में ५३ शक्ति पीठो का वर्णन किया गया है , परन्तु वामगंड (बाएं कपोल ) के गिरने की पुनरुक्ति हुई है , अतः ५२ शक्ति पीठ रह जाते है | प्रसिद्धि ५१ शक्तिपीठो की ही है | शिव - चरित्र , दाक्षायणीतंत्र एवं योगिनीहृदय - तंत्र में इक्यावन ही गिनाये गये है |
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एक  प्रसिद्द पौराणिक कथा के अनुसार आद्या शक्ति ने प्रजापति दक्ष के घर जन्म लिया | प्रजापति दक्ष ने अपनी इस पुत्री का नाम सती रखा | बड़ी होने पर सती ने पति रूप में शिव की प्राप्ति के लिए तप किया | प्रसन्न होकर भगवान शिव ने सती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया और कैलास पर जा विराजे | कुछ समय पश्चात् प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया | इस आयोजन में दक्ष ने भगवान शिव को छोड़कर सभी देवो और देवियों को आमंत्रित किया | पिता के यहाँ यज्ञ होने का समाचार पाकर भगवती सती बिना आमंत्रण के ही पिता के घर जा पहुँची | यज्ञ में शिवजी की उपेक्षा को सती सहन न कर सकी और योगबल से प्रदीप्त अग्नि में प्राण त्याग दिये | समाचार मिलाने पर शिव क्षोभ से भर गये | दक्ष - यज्ञ को नष्ट कर सती के शव को कंधे पर रखकर शिवजी उन्मत हो घुमते रहे |
    
==References==
 
==References==
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