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इसी प्रकार मुझे बताता गया कि यंत्रों (साधनों ) पर माप हेतु विभाग बनाये गये हैं, परन्तु उन पर माप अंकित नहीं है। यदि उन पर उपविभाग और अंक होते तो उनके द्वारा हमें प्राचीन अक्षरों या अंक विषयक जानकारी प्राप्त होती । संभव है उनके माप हमें हिन्दुओं के प्राचीन माप विषयक जानकारी देते हैं। वास्तव में किसी भी अवलोकन या माप लेने में अत्यन्त चौकसी रखनी चाहिए। क्यों कि प्रायोगिक अवलोकन लेने में भूमिति जैसी स्थिति है, जहाँ कुछ बिन्दुओं का स्थान अनेक रेखाएँ निश्चित करने हेतु पर्याप्त है। इसी प्रकार कुछ निश्चित अवलोकन और सुनिश्चित तथ्यों की सहायता से बहुत सारे निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। इससे, ऐसे प्रत्येक अवसर का लाभ उठाना चाहिए, जो अन्य किसी दिशा में न होकर भविष्य के अवलोकनों को फलदायी बनाने की दिशा में होगा। हमें इस पर ध्यान देना चाहिए कि ज्ञान प्रयोगों की संख्या के अनुपात में नहीं, परन्तु उसकी अपेक्षा बहुत बड़े अनुपात में बढ़ता है और एक अकेला अवलोकन कदाचित नगण्य अथवा निर्स्थक लगने पर भी अन्य अवलोकनों के साथ मिलकर बहुत बड़ा असर पैदा कर सकता है। यों तो, जिस प्रकार भूमिति में एक बिन्दु द्वारा कुछ भी निश्चित नहीं हो पाता; जब कि दो बिन्दु मिलकर एक रेखा बन जाती है, यदि उनमें अन्य दो बिन्दु जोड़े जाएँ तो छः रेखाएँ प्राप्त होती हैं। इतना ही नहीं परन्तु छः वृत्त और एक परवलय के माप और स्थान भी मिलते हैं। यदि हम अन्य दो बिन्दुओं को जोड़ें (जो अकेले होते तो मात्र एक ही रेखा दे पाते) तो उनके द्वारा पन्‍्द्रह रेखाएँ, बीस वृत्त, पन्द्रह परवलय और छः अतिवलय या उपवलय निश्चित हो सकते हैं। जिसके आधार पर अन्य असंख्य, विविध प्रकार के निष्कर्ष प्राप्त किये जा सकते हैं। प्रथम दृष्टि से केवल पन्द्रह रेखाएँ ही दिखाई देंगी, तथापि इसी प्रकार से अन्य आकृतियाँ क्रमशः रची जा सकती हैं। इसी प्रकार कतिपय विशिष्ट स्थितियों में अन्य निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं । इसी तर्क के आधार पर बनारस की वेधशाला में केवल खगोलीय दृष्टिकोण से लिये गये अवलोकन व्यापार, इतिहास, कालगणना तथा अन्य अनेक क्षेत्रों में उपयोगी हो सकतेहैं ।
 
इसी प्रकार मुझे बताता गया कि यंत्रों (साधनों ) पर माप हेतु विभाग बनाये गये हैं, परन्तु उन पर माप अंकित नहीं है। यदि उन पर उपविभाग और अंक होते तो उनके द्वारा हमें प्राचीन अक्षरों या अंक विषयक जानकारी प्राप्त होती । संभव है उनके माप हमें हिन्दुओं के प्राचीन माप विषयक जानकारी देते हैं। वास्तव में किसी भी अवलोकन या माप लेने में अत्यन्त चौकसी रखनी चाहिए। क्यों कि प्रायोगिक अवलोकन लेने में भूमिति जैसी स्थिति है, जहाँ कुछ बिन्दुओं का स्थान अनेक रेखाएँ निश्चित करने हेतु पर्याप्त है। इसी प्रकार कुछ निश्चित अवलोकन और सुनिश्चित तथ्यों की सहायता से बहुत सारे निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। इससे, ऐसे प्रत्येक अवसर का लाभ उठाना चाहिए, जो अन्य किसी दिशा में न होकर भविष्य के अवलोकनों को फलदायी बनाने की दिशा में होगा। हमें इस पर ध्यान देना चाहिए कि ज्ञान प्रयोगों की संख्या के अनुपात में नहीं, परन्तु उसकी अपेक्षा बहुत बड़े अनुपात में बढ़ता है और एक अकेला अवलोकन कदाचित नगण्य अथवा निर्स्थक लगने पर भी अन्य अवलोकनों के साथ मिलकर बहुत बड़ा असर पैदा कर सकता है। यों तो, जिस प्रकार भूमिति में एक बिन्दु द्वारा कुछ भी निश्चित नहीं हो पाता; जब कि दो बिन्दु मिलकर एक रेखा बन जाती है, यदि उनमें अन्य दो बिन्दु जोड़े जाएँ तो छः रेखाएँ प्राप्त होती हैं। इतना ही नहीं परन्तु छः वृत्त और एक परवलय के माप और स्थान भी मिलते हैं। यदि हम अन्य दो बिन्दुओं को जोड़ें (जो अकेले होते तो मात्र एक ही रेखा दे पाते) तो उनके द्वारा पन्‍्द्रह रेखाएँ, बीस वृत्त, पन्द्रह परवलय और छः अतिवलय या उपवलय निश्चित हो सकते हैं। जिसके आधार पर अन्य असंख्य, विविध प्रकार के निष्कर्ष प्राप्त किये जा सकते हैं। प्रथम दृष्टि से केवल पन्द्रह रेखाएँ ही दिखाई देंगी, तथापि इसी प्रकार से अन्य आकृतियाँ क्रमशः रची जा सकती हैं। इसी प्रकार कतिपय विशिष्ट स्थितियों में अन्य निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं । इसी तर्क के आधार पर बनारस की वेधशाला में केवल खगोलीय दृष्टिकोण से लिये गये अवलोकन व्यापार, इतिहास, कालगणना तथा अन्य अनेक क्षेत्रों में उपयोगी हो सकतेहैं ।
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प्राचीन लेखकों की वैज्ञानिक खोज विषयक विरोधाभासी अभिप्रायों का भी निराकरण हो जाता है और खाल्डियन धूमकेतुओं के पुनरागमन अथवा ग्रहणों विषयक भविष्यवाणी करने में सक्षम थे या नहीं इस विषय में लेखकों के तत्सम्बन्धी अभिषप्राय परस्पर भिन्न हो जाते है, क्यों कि प्रत्येक शिक्षक या पंथ का गुरु जो कुछ भी ज्ञान धार्मिक स्रोत से प्राप्त करता था, हमेशा स्रोत की प्रसिद्धि नहीं करता था और भारत को श्रेय देना नहीं चाहता था। इस प्रकार विट्रवियस खाल्डियन के बेरोसस को अन्तर्गोल सौर घड़ी का आविष्कारक मानता है, जब कि यह ज्ञान उसे ब्राह्मणों से प्राप्त हुआ है यह स्पष्ट प्रतीत होता है क्योंकि बनारस में ऐसी ही सौर घड़ी विद्यमान है।
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प्राचीन लेखकों की वैज्ञानिक खोज विषयक विरोधाभासी अभिप्रायों का भी निराकरण हो जाता है और खाल्डियन धूमकेतुओं के पुनरागमन अथवा ग्रहणों विषयक भविष्यवाणी करने में सक्षम थे या नहीं इस विषय में लेखकों के तत्सम्बन्धी अभिषप्राय परस्पर भिन्न हो जाते है, क्यों कि प्रत्येक शिक्षक या पंथ का गुरु जो कुछ भी ज्ञान धार्मिक स्रोत से प्राप्त करता था, सदा स्रोत की प्रसिद्धि नहीं करता था और भारत को श्रेय देना नहीं चाहता था। इस प्रकार विट्रवियस खाल्डियन के बेरोसस को अन्तर्गोल सौर घड़ी का आविष्कारक मानता है, जब कि यह ज्ञान उसे ब्राह्मणों से प्राप्त हुआ है यह स्पष्ट प्रतीत होता है क्योंकि बनारस में ऐसी ही सौर घड़ी विद्यमान है।
    
भारत में विज्ञान के विकास का दूसरा कारण यह है कि धार्मिक संस्कृति विश्व के अन्य राष्ट्रीं से अधिक पुरातन है। यह भी हम जानते हैं कि जो लोग सुसंस्कृत होते हैं उनका झुकाव कलाओं की साधना की ओर स्वतः होता है। उनकी आज की स्थिति से ही ज्ञात होता है कि ये लोग अति प्राचीनकाल से सुसंस्कृत हैं ।
 
भारत में विज्ञान के विकास का दूसरा कारण यह है कि धार्मिक संस्कृति विश्व के अन्य राष्ट्रीं से अधिक पुरातन है। यह भी हम जानते हैं कि जो लोग सुसंस्कृत होते हैं उनका झुकाव कलाओं की साधना की ओर स्वतः होता है। उनकी आज की स्थिति से ही ज्ञात होता है कि ये लोग अति प्राचीनकाल से सुसंस्कृत हैं ।

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