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कक्षा 4 से 6, आयु 10 से 12 : बुद्धि का विकास<ref>दिलीप केलकर, भारतीय शिक्षण मंच</ref> :- ग्रहण, धारणा, आकलन, प्रकटन, तर्क, अनुमान, संश्लेषण, विश्लेषण, विवेक, निर्णय। संयम, तितिक्षा,
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कक्षा 4 से 6, आयु 10 से 12 : बुद्धि का विकास<ref>दिलीप केलकर, भारतीय शिक्षण मंच</ref> :- ग्रहण, धारणा, आकलन, प्रकटन, तर्क, अनुमान, संश्लेषण, विश्लेषण, विवेक, निर्णय। संयम, तितिक्षा, संकल्प-सिद्धि की आदतें।
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# अब सबक सीखने का, पराजयों के विश्लेषण, क्या करना चाहिए था, क्या नहीं करना चाहिए था- के साथ इतिहास की शिक्षा।
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# संस्कृति, कुटुम्ब, ग्राम, जनपद, प्रान्त, भाषा, समाज, सामाजिक संगठन, सामाजिक व्यवस्थाएँ, राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय संबंधों की स्पष्टता ।
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# कुटुम्ब में दायित्व, बड़ों का आदर और सेवा। छोटों की सहायता और रक्षा। घर के काम सीखना, हाथ बँटाना।
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# धार्मिक जीवनदृष्टि और व्यवहारसूत्रों की जानकारी, प्रेरणा, अभारतीयों से श्रेष्ठता ।
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# स्वभावज कर्म, स्वभाव की शुद्धि एवं वृद्धि के लिए मार्गदर्शन, कौटुंबिक उद्योगों का महत्व, जातिव्यवस्था, ग्रामकुल, आश्रमव्यवस्था की बुद्धियुक्त पृष्ठभूमि ।
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# अपने स्वभाव के अनुसार शिक्षक, रक्षक, पोषक बनने का संकल्प करना।
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# समग्र विकास की बौद्धिक पृष्ठभूमि, सामाजिक व प्रयावरणीय समस्याओं का निराकरण, मानवजीवन, समाजजीवन और सृष्टिहितकारी जीवन का लक्ष्य।
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# व्यक्तित्वविकास और संघ-समितियों से जुड़ना।
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# धर्म की व्यापक और भिन्‍न भिन्‍न परिभाषाएँ। समाजधर्म, वर्णाश्रमधर्म की श्रेष्ठता समझना।
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संकल्प-सिद्धि की आदतें।
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== कक्षा ४ पाठ्यक्रम ==
 
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1. अब सबक सीखने का, पराजयों के विश्लेषण, क्या करना चाहिए था, कया नहीं करना चाहिए था- के साथ इतिहास की शिक्षा।
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2. संस्कृति, कुटुंब, ग्राम, जनपद, प्रान्त, भाषा, समाज, सामाजिक संगठन, सामाजिक व्यवस्थाएँ, राष्ट्र, आंतरराष्ट्रीय संबंधों की स्पष्टता |,कुटुंब में दायित्व, बडों का
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आदर और सेवा। छोटों की सहायता और रक्षा। घर के काम सीखना, हाथ बँटाना।
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3. हिन्दु जीवनदृष्टि और व्यवहारसूत्रों की जानकारी, प्रेरणा, अभारतीयों से श्रेष्ठता ।
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4. स्वभावज कर्म, स्वभाव की शुद्धि एवं वृद्धि के लिए मार्गदर्शन, कौटुंबिक उद्योगों का महत्व, जातिव्यवस्था, ग्रामकुल, आश्रमव्यवस्था की बुद्धियुक्त पृष्ठभूमि ।
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अपने स्वभाव के अनुसार शिद्वाक, रक्षक, पोषक बनने का संकल्प करना।
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5. समग्र विकास की बौद्धिक पृष्ठभूमि सामाजिक व प्रयावरणीय समस्याओं का निराकरण मानवजीवन, समाजजीवन और सृष्टिहितकारी जीवन का लक्ष्य।
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व्यक्तित्वविकास और संघ-समितियों से जुड़ना।
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6. धर्म की व्यापक और भिन्‍न भिन्‍न परिभाषाएँ। समाजधर्मद्व वर्णाश्रमधर्म की श्रेष्ठता समझना।
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== कक्षा ४ पाठ्यक्रम ==
   
सार्थ कंठस्थीकरण:
 
सार्थ कंठस्थीकरण:
 
* गायत्री मंत्र
 
* गायत्री मंत्र

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