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वर्तमान में हमने दीर्घदृष्टि और व्यापकदूष्टि के अभाव में काम करने वाले और काम करवाने वाले के दो वर्ग निर्माण किये हैं और काम करनेवालों को नीचा और करवाने वालों को ऊँचा मानना शुरू किया है । साथ ही काम करने वालों के स्थान पर यन्त्रों को अपनाना शुरू किया है। परिणाम स्वरूप लोगों के पास काम करने के अवसर भी कम हो रहे हैं, काम करवाने वाले संख्या में कम ही होते हैं और अभाव और वर्गभेद बढ़ते ही जाते हैं । किस बात के लिये किसका सम्मान करें, किस बात के लिये किसकी उपयोगिता है यही प्रश्न है । सबको टिकने के लिये स्पर्धा ही करनी पड़ती है, संघर्ष ही करना पडता है । इसमें समरसता कैसे होगी ? बिना समरसता के सुख कहाँ ? सुख की आश्वस्ति के बिना संस्कृति पनप नहीं सकती ।
 
वर्तमान में हमने दीर्घदृष्टि और व्यापकदूष्टि के अभाव में काम करने वाले और काम करवाने वाले के दो वर्ग निर्माण किये हैं और काम करनेवालों को नीचा और करवाने वालों को ऊँचा मानना शुरू किया है । साथ ही काम करने वालों के स्थान पर यन्त्रों को अपनाना शुरू किया है। परिणाम स्वरूप लोगों के पास काम करने के अवसर भी कम हो रहे हैं, काम करवाने वाले संख्या में कम ही होते हैं और अभाव और वर्गभेद बढ़ते ही जाते हैं । किस बात के लिये किसका सम्मान करें, किस बात के लिये किसकी उपयोगिता है यही प्रश्न है । सबको टिकने के लिये स्पर्धा ही करनी पड़ती है, संघर्ष ही करना पडता है । इसमें समरसता कैसे होगी ? बिना समरसता के सुख कहाँ ? सुख की आश्वस्ति के बिना संस्कृति पनप नहीं सकती ।
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इस व्यवस्था को बदलने का प्रावधान शिक्षा में होना चाहिये । यह एक निरन्तर चलनेवाली प्रक्रिया है । अतः परीक्षा का नहीं अपितु वातावरण, व्यवस्था और व्यवहार का विषय है । सारी बातें परीक्षाकेन्द्री कर देने से समरसता
 
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पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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इस व्यवस्था को बदलने का प्रावधान शिक्षा में होना
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चाहिये । यह एक निरन्तर चलनेवाली प्रक्रिया है । अतः
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परीक्षा का नहीं अपितु वातावरण, व्यवस्था और व्यवहार
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का विषय है । सारी बातें परीक्षाकेन्द्री कर देने से समरसता
   
की हानि होती है ।
 
की हानि होती है ।
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हम शिक्षा, व्यवसाय, दैनन्दिन व्यवहार को आज है
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हम शिक्षा, व्यवसाय, दैनन्दिन व्यवहार को आज है वैसा ही रखकर समरसता निर्माण नहीं कर सकते । यह तो ऐसा ही है जैसे गरम गुण का पदार्थ खाकर शीतलता की अपेक्षा करना ।
वैसा ही रखकर समरसता निर्माण नहीं कर सकते । यह तो
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ऐसा ही है जैसे गरम गुण का पदार्थ खाकर शीतलता की
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अपेक्षा करना ।
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६. सामाजिक उत्सवों का सांस्कृतिक स्वरूप
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बनायें रखना
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==== ६. सामाजिक उत्सवों का सांस्कृतिक स्वरूप बनायें रखना ====
 
समरसता और सामूहिकता के लिये ही अनेक उत्सवों
 
समरसता और सामूहिकता के लिये ही अनेक उत्सवों
 
की परस्परा बनी है । उदाहरण के लिये गुजरात में जो
 
की परस्परा बनी है । उदाहरण के लिये गुजरात में जो
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