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विषय को ठीक करने हेतु एक बडा समाजव्यापी आन्दोलन करने की आवश्यकता है । परिवार प्रबोधन अर्थात्‌ माता- पिता की शिक्षा इस आन्दोलन का महत्त्वपूर्ण अंग है ।
 
विषय को ठीक करने हेतु एक बडा समाजव्यापी आन्दोलन करने की आवश्यकता है । परिवार प्रबोधन अर्थात्‌ माता- पिता की शिक्षा इस आन्दोलन का महत्त्वपूर्ण अंग है ।
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=== ३. प्राथमिक शिक्षा क्रिया और अनुभव प्रधान हो ===
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===३. प्राथमिक शिक्षा क्रिया और अनुभव प्रधान हो===
 
शिक्षा विषयक एक अतिशय गलत धारणा यह बन गई है कि वह पढने लिखने से होती है। पुस्तकों और बहियों को, पढने और लिखने को इतना अधिक महत्त्व दिया जाता है कि शिक्षा होती है कि नहीं इस बात की ओर ध्यान ही नहीं है । अभिभावकों का आग्रह ऐसा होता है कि वे नियमन करने लगते हैं ।
 
शिक्षा विषयक एक अतिशय गलत धारणा यह बन गई है कि वह पढने लिखने से होती है। पुस्तकों और बहियों को, पढने और लिखने को इतना अधिक महत्त्व दिया जाता है कि शिक्षा होती है कि नहीं इस बात की ओर ध्यान ही नहीं है । अभिभावकों का आग्रह ऐसा होता है कि वे नियमन करने लगते हैं ।
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का बहुत बडा विषय है ।
 
का बहुत बडा विषय है ।
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=== ४. गृहकार्य, ट्यूशन, कोचिंग, गतिविधियाँ ===
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===४. गृहकार्य, ट्यूशन, कोचिंग, गतिविधियाँ===
शिक्षा को लेकर अभिभावकों के मनोमस्तिष्क इतने
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शिक्षा को लेकर अभिभावकों के मनोमस्तिष्क इतने ग्रस्त और त्रस्त हैं कि कितने ही अकरणीय कार्य करने में वे
ग्रस्त और त्रस्त हैं कि कितने ही अकरणीय कार्य करने में वे
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समय, शक्ति और पैसा खर्च करते हैं, साथ ही अपना तनाव और चिन्ता बढ़ा लेते हैं ।
समय, शक्ति और पैसा खर्च करते हैं, साथ ही अपना तनाव
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और चिन्ता बढ़ा लेते हैं ।
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ऐसा एक मुद्दा गृहकार्य का है । बालकों के गृहकार्य
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ऐसा एक मुद्दा गृहकार्य का है । बालकों के गृहकार्य का स्वरूप, गृहकार्य की मात्रा, गृहकार्य की पद्धति आदि सब अशाख्रीय ढंग से चलता है । गृहकार्य के रूप में विद्यालय घर में पहुँच जाता है । इसके चलते घर में सीखने लायक बातों की उपेक्षा होती है । उनके लिये समय ही
का स्वरूप, गृहकार्य की मात्रा, गृहकार्य की पद्धति आदि
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सब अशाख्रीय ढंग से चलता है । गृहकार्य के रूप में
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विद्यालय घर में पहुँच जाता है । इसके चलते घर में सीखने
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लायक बातों की उपेक्षा होती है । उनके लिये समय ही
   
नहीं बचता है । गृहकार्य करने की पद्धति भी यान्त्रिक बन
 
नहीं बचता है । गृहकार्य करने की पद्धति भी यान्त्रिक बन
गई है। विद्यार्थी स्वयंप्रेरणासे गृहकार्य नहीं करते हैं।
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गई है। विद्यार्थी स्वयंप्रेरणासे गृहकार्य नहीं करते हैं। अभिभावकों को ध्यान देना पडता है । शिक्षकों को भय जगाना पड़ता है ।
अभिभावकों को ध्यान देना पडता है । शिक्षकों को भय
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जगाना पड़ता है ।
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अपने बालकों ने बहुत पढ़ना चाहिये ऐसी
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अपने बालकों ने बहुत पढ़ना चाहिये ऐसी महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित होकर मातापिता अपने बालकों को बहुत छोटी आयु में ही ट्यूशन के लिये भेजते हैं या अपने घर में शिक्षक को बुलाते हैं । कहीं कहीं तो तीन वर्ष के बालक के लिये भी स्यूशन होता है । कहीं कहीं बालक से
महत्त्वाकांक्षा से प्रेरित होकर मातापिता अपने बालकों को
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पिण्ड छुड़ाने के लिये भी उसे ट्यूशन में भेजा जाता है | कहीं कहीं गृहकार्य पूरा करवाने के लिये ट्यूशन में भेजा
बहुत छोटी आयु में ही ट्यूशन के लिये भेजते हैं या अपने
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जाता है। यह तो बालक के साथ अन्याय है, उस पर अत्याचार है ।
घर में शिक्षक को बुलाते हैं । कहीं कहीं तो तीन वर्ष के
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बालक के लिये भी स्यूशन होता है । कहीं कहीं बालक से
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पिण्ड छुड़ाने के लिये भी उसे ट्यूशन में भेजा जाता है |
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कहीं कहीं गृहकार्य पूरा करवाने के लिये ट्यूशन में भेजा
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जाता है। यह तो बालक के साथ अन्याय है, उस पर
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अत्याचार है ।
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बालक थोडे बडे होते ही कोचिंग क्लास नामक
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बालक थोडे बडे होते ही कोचिंग क्लास नामक प्रकरण शुरू हो जाता है । विभिन्न विषयों का कोचिंग होता है । दसवीं, बारहवीं, महाविद्यालयीन आदि सर्व स्तरों पर कोचिंग की महिमा बढ गई है । विद्यालयों से भी इनकी प्रतिष्ठा बढ गई है । इसके रूप में हम शिक्षाक्षेत्र को दूषित कर रहे हैं इसका भान शिक्षकों, अभिभावकों और कोचिंग देने वालों को नहीं है। इनके रूप में विषयों की परीक्षालक्षी शिक्षा होती है, विद्यार्थियों की शिक्षा नहीं होती यह मुद्दा विस्मृत हो गया है । शिक्षा का अग्रताक्रम ही बदल गया है । इस विषय पर अभिभावक प्रबोधन करने की आवश्यकता है ।
प्रकरण शुरू हो जाता है । विभिन्न विषयों का कोचिंग होता
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है । दसवीं, बारहवीं, महाविद्यालयीन आदि सर्व स्तरों पर
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कोचिंग की महिमा बढ गई है । विद्यालयों से भी इनकी
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प्रतिष्ठा बढ गई है । इसके रूप में हम शिक्षाक्षेत्र को दूषित
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कर रहे हैं इसका भान शिक्षकों, अभिभावकों और कोचिंग
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देने वालों को नहीं है। इनके रूप में विषयों की
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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अपने बालक का सर्वांगीण विकास हो इसका भूत अभिभावकों के मस्तिष्क पर सवार हो गया है । इस के चलते वे अपने बालकों को संगीत भी सिखाना चाहते हैं और नृत्य भी, चित्र भी सिखाना चाहते हैं और कारीगरी भी, वैदिक गणित भी सिखाना चाहते हैं और संस्कृत भी । गर्मी की छुट्टियों में भी योग, तैराकी, फैशन डिजाइनिंग, पर्वतारोहण आदि इतनी अधिक गतिविधियाँ होती हैं कि बालक को एक भी ठीक से नहीं आती । यह तो मानसिक ही नहीं बौद्धिक अस्थिरता भी पैदा करती है । विद्यार्थी की रुचि ही नहीं बन पाती है । एक भी विषय में गहरी पैठ नहीं होती । और सबसे बडा नुकसान यह है कि विद्यार्थी घर के साथ जुड़ता नहीं है । घर की दुनिया में उसका प्रवेश ही नहीं होता, सहभागिता की बात तो दूर की है । जो सीखना चाहिये वह नहीं सीखा जाता और व्यर्थ की भागदौड चलती रहती है ।
 
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परीक्षालक्षी शिक्षा होती है, विद्यार्थियों की शिक्षा नहीं होती
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यह मुद्दा विस्मृत हो गया है । शिक्षा का अग्रताक्रम ही
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बदल गया है । इस विषय पर अभिभावक प्रबोधन करने की
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अपने बालक का सर्वांगीण विकास हो इसका भूत
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अभिभावकों के मस्तिष्क पर सवार हो गया है । इस के
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चलते वे अपने बालकों को संगीत भी सिखाना चाहते हैं
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और नृत्य भी, चित्र भी सिखाना चाहते हैं और कारीगरी
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भी, वैदिक गणित भी सिखाना चाहते हैं और संस्कृत भी ।
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गर्मी की छुट्टियों में भी योग, तैराकी, फैशन डिजाइनिंग,
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पर्वतारोहण आदि इतनी अधिक गतिविधियाँ होती हैं कि
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बालक को एक भी ठीक से नहीं आती । यह तो मानसिक
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ही नहीं बौद्धिक अस्थिरता भी पैदा करती है । विद्यार्थी की
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रुचि ही नहीं बन पाती है । एक भी विषय में गहरी पैठ
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नहीं होती । और सबसे बडा नुकसान यह है कि विद्यार्थी
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घर के साथ जुड़ता नहीं है । घर की दुनिया में उसका प्रवेश
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ही नहीं होता, सहभागिता की बात तो दूर की है । जो
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सीखना चाहिये वह नहीं सीखा जाता और व्यर्थ की
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भागदौड चलती रहती है ।
      
सर्वांगीण विकास की संकल्पना को स्पष्ट करना और
 
सर्वांगीण विकास की संकल्पना को स्पष्ट करना और
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