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=== एक सर्वसामान्य प्रश्रोत्तरी ===
 
=== एक सर्वसामान्य प्रश्रोत्तरी ===
'''प्रश्न १ आज के बच्चों पर पीअर प्रेशर बहुत रहता है । इस प्रेशर को दूर करने के लिये क्या करें ?'''
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'''प्रश्न १ आज के बच्चोंं पर पीअर प्रेशर बहुत रहता है । इस प्रेशर को दूर करने के लिये क्या करें ?'''
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'''उत्तर''' समान आयु के साथ पढ़ने वाले बच्चों को पीअर्स अर्थात्‌ समवयस्क बच्चे कहते हैं । बच्चे जब साथ खेलते हैं, साथ
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'''उत्तर''' समान आयु के साथ पढ़ने वाले बच्चोंं को पीअर्स अर्थात्‌ समवयस्क बच्चे कहते हैं । बच्चे जब साथ खेलते हैं, साथ
साथ विद्यालय आते जाते हैं, साथ साथ पढ़ ते हैं तब एक दूसरे की वस्तुरयें देखते हैं । तब उनके मन में सहज आकर्षण निर्माण होता है । जिसके प्रति आकर्षण निर्माण होता है वह वस्तु कोई अधिक सुन्दर या मूल्यवान होती है ऐसा नहीं है परन्तु क्षणिक आकर्षण होना मन का स्वभाव होता है । आकर्षण हुआ कि वह चाहिये ऐसा लगना भी मन का स्वभाव है । इस स्थिति में जिस वस्तु की इच्छा हुई वह सब प्राप्त होना सदा सम्भव नहीं होता । वह इष्ट भी नहीं होता । वह आवश्यक भी नहीं होता । उस समय स्थिति को स्वाभाविक समझना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना चाहिये कि मन में आती है वह हर वस्तु प्राप्त करना सदा ठीक नहीं होता । बच्चा मन की चंचलता के कारण जो माँगता है वह देना उचित नहीं होता । हम दे नहीं सकते ऐसा अपराध बोध भी उचित नहीं । उसे परावृत करना ही उचित है और और बिना दुःखी हुए, बिना झुंझलाये यह करना चाहिये । दूसरों के पास है वह हर वस्तु न तो लेने लायक होती है न लेना उचित है यह बात ठीक से मन में बिठाई जानी चाहिये । यदि ऐसा नहीं किया तो यह बात आगे जाकर भी परेशान करती है । तरुण विद्यार्थी भी मित्र इन्जिनीयरींग में प्रवेश लेते हैं इसलिये इन्जिनीयरिंग पढना चाहते हैं । आगे चलकर लोग कहते हैं इसलिये अपना भी वैसा ही मत बना लेते हैं । वस्तुसे पढाई तक और पढाई से अभिप्रायों तक पिअर प्रेशर ही चलता है, स्वतन्त्र बुद्धि का विकास ही नहीं होता । इसलिये समय रहते अपने बच्चों को उचित पद्धति से समझाना अच्छा है ।
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साथ विद्यालय आते जाते हैं, साथ साथ पढ़ ते हैं तब एक दूसरे की वस्तुरयें देखते हैं । तब उनके मन में सहज आकर्षण निर्माण होता है । जिसके प्रति आकर्षण निर्माण होता है वह वस्तु कोई अधिक सुन्दर या मूल्यवान होती है ऐसा नहीं है परन्तु क्षणिक आकर्षण होना मन का स्वभाव होता है । आकर्षण हुआ कि वह चाहिये ऐसा लगना भी मन का स्वभाव है । इस स्थिति में जिस वस्तु की इच्छा हुई वह सब प्राप्त होना सदा सम्भव नहीं होता । वह इष्ट भी नहीं होता । वह आवश्यक भी नहीं होता । उस समय स्थिति को स्वाभाविक समझना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना उचित है । उचित समय पर बालक को समझाना चाहिये कि मन में आती है वह हर वस्तु प्राप्त करना सदा ठीक नहीं होता । बच्चा मन की चंचलता के कारण जो माँगता है वह देना उचित नहीं होता । हम दे नहीं सकते ऐसा अपराध बोध भी उचित नहीं । उसे परावृत करना ही उचित है और और बिना दुःखी हुए, बिना झुंझलाये यह करना चाहिये । दूसरों के पास है वह हर वस्तु न तो लेने लायक होती है न लेना उचित है यह बात ठीक से मन में बिठाई जानी चाहिये । यदि ऐसा नहीं किया तो यह बात आगे जाकर भी परेशान करती है । तरुण विद्यार्थी भी मित्र इन्जिनीयरींग में प्रवेश लेते हैं इसलिये इन्जिनीयरिंग पढना चाहते हैं । आगे चलकर लोग कहते हैं इसलिये अपना भी वैसा ही मत बना लेते हैं । वस्तुसे पढाई तक और पढाई से अभिप्रायों तक पिअर प्रेशर ही चलता है, स्वतन्त्र बुद्धि का विकास ही नहीं होता । इसलिये समय रहते अपने बच्चोंं को उचित पद्धति से समझाना अच्छा है ।
    
'''प्रश्न २ बच्चे अनेक अनावश्यक वस्तुओं के लिये जिद करते हैं । क्या करें ? जिद पूरी करें या न करें ?'''
 
'''प्रश्न २ बच्चे अनेक अनावश्यक वस्तुओं के लिये जिद करते हैं । क्या करें ? जिद पूरी करें या न करें ?'''
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विद्यार्थियों में ज्ञान और संस्कार आयें इस का सम्पूर्ण दायित्व क्रमशः शिक्षकों और अभिभावकों का है । इन्होंने अपना दायित्व नहीं निभाया इसका ही यह परिणाम है । योजना तत्काल और दीर्घकालीन ऐसे दो प्रकार से होनी चाहिये । तत्काल भी केवल संस्कार के लिये हो सकती है ।
 
विद्यार्थियों में ज्ञान और संस्कार आयें इस का सम्पूर्ण दायित्व क्रमशः शिक्षकों और अभिभावकों का है । इन्होंने अपना दायित्व नहीं निभाया इसका ही यह परिणाम है । योजना तत्काल और दीर्घकालीन ऐसे दो प्रकार से होनी चाहिये । तत्काल भी केवल संस्कार के लिये हो सकती है ।
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संस्कार के लिये संस्कारवर्ग तत्काल योजना हो सकती है । परन्तु तत्काल योजना सदा के लिये न बनी रहे इसलिये मातापिता को अपने बच्चों को संस्कार देने हेतु प्रशिक्षित करना यह होनी चाहिये । मातापिता के लिये प्रशिक्षण हेतु विद्यालयों में योजना होनी चाहिये । इसके साथ साथ वर्तमान विद्यार्थियों को अच्छे मातापिता बनने की शिक्षा का मुख्य शिक्षाक्रम में समावेश होना चाहिये । ज्ञान के लिये शिक्षकों को निवेदन करना चाहिये, आग्रह करना चाहिये । पठनपाठन पद्धति में परिवर्तन करना अति आवश्यक है ।
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संस्कार के लिये संस्कारवर्ग तत्काल योजना हो सकती है । परन्तु तत्काल योजना सदा के लिये न बनी रहे इसलिये मातापिता को अपने बच्चोंं को संस्कार देने हेतु प्रशिक्षित करना यह होनी चाहिये । मातापिता के लिये प्रशिक्षण हेतु विद्यालयों में योजना होनी चाहिये । इसके साथ साथ वर्तमान विद्यार्थियों को अच्छे मातापिता बनने की शिक्षा का मुख्य शिक्षाक्रम में समावेश होना चाहिये । ज्ञान के लिये शिक्षकों को निवेदन करना चाहिये, आग्रह करना चाहिये । पठनपाठन पद्धति में परिवर्तन करना अति आवश्यक है ।
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'''प्रश्न ८ सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में आठ वर्ष पढने के बाद भी बच्चों को सादा पढना लिखना भी नहीं आता । बच्चे गन्दे होते हैं, गालियाँ देते हैं । उन्हें मिलने वाला मध्याह्म भोजन सडा हुआ रहता है । ऐसे विद्यालयों में हम अपने बच्चों को कैसे भेज सकते हैं ?'''
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'''प्रश्न ८ सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में आठ वर्ष पढने के बाद भी बच्चोंं को सादा पढना लिखना भी नहीं आता । बच्चे गन्दे होते हैं, गालियाँ देते हैं । उन्हें मिलने वाला मध्याह्म भोजन सडा हुआ रहता है । ऐसे विद्यालयों में हम अपने बच्चोंं को कैसे भेज सकते हैं ?'''
    
यह एक दुश्चक्र है । शिक्षक पढ़ाते नहीं इसलिये हम जाते नहीं । हम जाते नहीं इसलिये शिक्षा अच्छी होती नहीं । हम आग्रह रखते नहीं इसलिये भोजन सडा हुआ होता है । शिक्षक ध्यान देते नहीं इसलिये बच्चे गन्दे और गाली देने वाले होते हैं । वे गाली देने वाले मातापिता के ही बच्चे होते हैं इसलिये गाली देना उनका दोष नहीं । इस दोष को दूर नहीं करना शिक्षकों का दोष है । उपाय क्या है ?
 
यह एक दुश्चक्र है । शिक्षक पढ़ाते नहीं इसलिये हम जाते नहीं । हम जाते नहीं इसलिये शिक्षा अच्छी होती नहीं । हम आग्रह रखते नहीं इसलिये भोजन सडा हुआ होता है । शिक्षक ध्यान देते नहीं इसलिये बच्चे गन्दे और गाली देने वाले होते हैं । वे गाली देने वाले मातापिता के ही बच्चे होते हैं इसलिये गाली देना उनका दोष नहीं । इस दोष को दूर नहीं करना शिक्षकों का दोष है । उपाय क्या है ?
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१, इन विद्यालयों को ठीक करना हमारा सामाजिक दायित्व है । हम केवल अपना ही विचार करते हैं इसलिये सामाजिक जिम्मेदारी से पलायन करते हैं । हमें इन विद्यालयों में अपने बच्चों को भेजना चाहिये ।
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१, इन विद्यालयों को ठीक करना हमारा सामाजिक दायित्व है । हम केवल अपना ही विचार करते हैं इसलिये सामाजिक जिम्मेदारी से पलायन करते हैं । हमें इन विद्यालयों में अपने बच्चोंं को भेजना चाहिये ।
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२. शिक्षक पढ़ायें ऐसा आग्रह करना चाहिये । अभिभावकों ने मिलकर यदि आग्रह किया तो शिक्षक पढ़ाने लगेंगे क्योंकि वे योग्यता तो रखते ही हैं । हमारे बच्चों के साथ झॉंपडियों के बच्चे भी पढने लगेंगे ।
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२. शिक्षक पढ़ायें ऐसा आग्रह करना चाहिये । अभिभावकों ने मिलकर यदि आग्रह किया तो शिक्षक पढ़ाने लगेंगे क्योंकि वे योग्यता तो रखते ही हैं । हमारे बच्चोंं के साथ झॉंपडियों के बच्चे भी पढने लगेंगे ।
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३. झॉपडियों के दो दो बच्चों को हममें से एक एक अभिभावक यदि उनकी जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं तो बडी सेवा होगी ।
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३. झॉपडियों के दो दो बच्चोंं को हममें से एक एक अभिभावक यदि उनकी जिम्मेदारी स्वीकार करते हैं तो बडी सेवा होगी ।
    
४. सडा हुआ मध्याह्म भोजन तो हमारी देखरेख से तुरन्त ठीक हो सकता है ।
 
४. सडा हुआ मध्याह्म भोजन तो हमारी देखरेख से तुरन्त ठीक हो सकता है ।
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निजी विद्यालयों में ऊँचा शुल्क, वाहन का खर्चा और साधनसामग्री का खर्च बचाकर सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चों को पढाना शिक्षा की सेवा है, समाज की सेवा है । हम सेवा क्यों नहीं करेंगे ? समय नहीं है कहना ठीक नहीं है । इस काम को सेवा न मानकर दायित्व ही मानेंगे तो यह काम हो सकता है । शिक्षा को बाजारीकरण का शिकार बनने से भी हम बचा सकते हैं ।  
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निजी विद्यालयों में ऊँचा शुल्क, वाहन का खर्चा और साधनसामग्री का खर्च बचाकर सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चोंं को पढाना शिक्षा की सेवा है, समाज की सेवा है । हम सेवा क्यों नहीं करेंगे ? समय नहीं है कहना ठीक नहीं है । इस काम को सेवा न मानकर दायित्व ही मानेंगे तो यह काम हो सकता है । शिक्षा को बाजारीकरण का शिकार बनने से भी हम बचा सकते हैं ।  
    
'''प्रश्न ९ जो विद्यालय पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालयों में एक या डेढ़ लाख का शुल्क वसूलते हैं उन्हें सरकार क्यों दण्डित नहीं करती ?'''  
 
'''प्रश्न ९ जो विद्यालय पूर्व प्राथमिक और प्राथमिक विद्यालयों में एक या डेढ़ लाख का शुल्क वसूलते हैं उन्हें सरकार क्यों दण्डित नहीं करती ?'''  
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ऐसा प्रश्न यदि समाज सेवा करने वाला कार्यकर्ता पूछता है तब तो उसका उत्तर और प्रकार से दिया जा सकता है परन्तु आप अभिभावक होकर पूछ रहे हैं इसलिये प्रथम तो आपको ही दण्डित करना चाहिये । ऐसे विद्यालय आपके सहयोग से चलते हैं । पूर्व प्राथमिक शिक्षा की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है फिर आप क्यों अपने बच्चे को भेजते हैं । प्राथमिक विद्यालय निःशुल्क भी चलते हैं और कम शुल्क में भी चलते हैं । उसमें शिक्षा डेढड लाख वाले विद्यालयों से कम गुणवत्ता की होती है ऐसा तो नहीं है । फिर आप डेढ लाख वालों का चयन क्यों करते हैं ? वे आपको बाध्य तो नहीं करते । आप ही तो अपनी प्रतिष्ठा के लिये वहाँ भेजते हैं ।
 
ऐसा प्रश्न यदि समाज सेवा करने वाला कार्यकर्ता पूछता है तब तो उसका उत्तर और प्रकार से दिया जा सकता है परन्तु आप अभिभावक होकर पूछ रहे हैं इसलिये प्रथम तो आपको ही दण्डित करना चाहिये । ऐसे विद्यालय आपके सहयोग से चलते हैं । पूर्व प्राथमिक शिक्षा की तो कोई आवश्यकता ही नहीं है फिर आप क्यों अपने बच्चे को भेजते हैं । प्राथमिक विद्यालय निःशुल्क भी चलते हैं और कम शुल्क में भी चलते हैं । उसमें शिक्षा डेढड लाख वाले विद्यालयों से कम गुणवत्ता की होती है ऐसा तो नहीं है । फिर आप डेढ लाख वालों का चयन क्यों करते हैं ? वे आपको बाध्य तो नहीं करते । आप ही तो अपनी प्रतिष्ठा के लिये वहाँ भेजते हैं ।
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इनका दोष अवश्य है परन्तु इन्हें सरकार दण्डित नहीं कर सकती । इन्हें अभिभावक ही अपने बच्चों को न भेजकर दण्डित कर सकते हैं ।
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इनका दोष अवश्य है परन्तु इन्हें सरकार दण्डित नहीं कर सकती । इन्हें अभिभावक ही अपने बच्चोंं को न भेजकर दण्डित कर सकते हैं ।
    
आप अपवाद स्वरूप अभिभावक हैं तो ऐसा कहते हैं । बाकी तो प्रसन्नता प्रसन्नता भेजते हैं, गर्व अनुभव करते हैं और स्थिति यह है कि प्रवेश के लिये कठिनाई हो जाती है । संचालक और अभिभावक मिलकर यह बाजार चलता है ।
 
आप अपवाद स्वरूप अभिभावक हैं तो ऐसा कहते हैं । बाकी तो प्रसन्नता प्रसन्नता भेजते हैं, गर्व अनुभव करते हैं और स्थिति यह है कि प्रवेश के लिये कठिनाई हो जाती है । संचालक और अभिभावक मिलकर यह बाजार चलता है ।
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आप यदि सामाजिक कार्यकर्ता, सन्निष्ठ शिक्षक या सज्जन नागरिक हैं तो प्रश्न का विचार अलग प्रकार से किया जा सकता है ।
 
आप यदि सामाजिक कार्यकर्ता, सन्निष्ठ शिक्षक या सज्जन नागरिक हैं तो प्रश्न का विचार अलग प्रकार से किया जा सकता है ।
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ऐसे विद्यालय शिक्षाक्षेत्र को प्रदूषित तो करते हैं परन्तु इसे रोकने की क्षमता सरकार में नहीं है, समाज में है । समाज के समझदार और सेवाभावी लोगोंं ने, शिक्षकों ने, शिक्षासंस्थाओं ने मिलकर समाज प्रबोधन हेतु आन्दोलन चलाना चाहिये । यह आन्दोलन ऐसे विद्यालयों के अथवा उनमें अपने बच्चों को भेजने वालों के विरुद्ध नहीं होना चाहिये । अपितु ऐसे विद्यालय होना ठीक नहीं है ऐसी समझ बनाने हेतु होना चाहिये । जब व्यापक समझ बननी है और निःशुल्क तथा कमशुल्क वाले विद्यालय अच्छे हैं और इनके होते हुए भी देढ लाख वाले विद्यालयों में जो लोग अपने बच्चों को भेजते हैं वे नासमझ हैं ऐसा वातावरण बनता है तब स्थिति ठीक होने लगती है । इन विद्यालयों में अपने बच्चों को भेज नहीं सकते इसलिये भेजनेवालों की ईर्ष्या करते हैं वे सही नहीं हैं । उनके कारण स्थिति ठीक नहीं होती । यह समाज का एक मनोवैज्ञानिक प्रश्न है और वह मनोवैज्ञानिक पद्धति से ही सुलझाया जा सकता है ।
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ऐसे विद्यालय शिक्षाक्षेत्र को प्रदूषित तो करते हैं परन्तु इसे रोकने की क्षमता सरकार में नहीं है, समाज में है । समाज के समझदार और सेवाभावी लोगोंं ने, शिक्षकों ने, शिक्षासंस्थाओं ने मिलकर समाज प्रबोधन हेतु आन्दोलन चलाना चाहिये । यह आन्दोलन ऐसे विद्यालयों के अथवा उनमें अपने बच्चोंं को भेजने वालों के विरुद्ध नहीं होना चाहिये । अपितु ऐसे विद्यालय होना ठीक नहीं है ऐसी समझ बनाने हेतु होना चाहिये । जब व्यापक समझ बननी है और निःशुल्क तथा कमशुल्क वाले विद्यालय अच्छे हैं और इनके होते हुए भी देढ लाख वाले विद्यालयों में जो लोग अपने बच्चोंं को भेजते हैं वे नासमझ हैं ऐसा वातावरण बनता है तब स्थिति ठीक होने लगती है । इन विद्यालयों में अपने बच्चोंं को भेज नहीं सकते इसलिये भेजनेवालों की ईर्ष्या करते हैं वे सही नहीं हैं । उनके कारण स्थिति ठीक नहीं होती । यह समाज का एक मनोवैज्ञानिक प्रश्न है और वह मनोवैज्ञानिक पद्धति से ही सुलझाया जा सकता है ।
    
'''प्रश्न १० पढाई पूरी होने के बाद विद्यार्थियों को नौकरी देने की जिम्मेदारी सरकार की है । वह यदि अपनी जिम्मेदारी पूर्ण न करें तो कहाँ शिकायत कर सकते हैं ?'''
 
'''प्रश्न १० पढाई पूरी होने के बाद विद्यार्थियों को नौकरी देने की जिम्मेदारी सरकार की है । वह यदि अपनी जिम्मेदारी पूर्ण न करें तो कहाँ शिकायत कर सकते हैं ?'''
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'''उत्तर''' समझदारी पूर्वक किसी भी प्रश्न का विचार करना हरेक की जिम्मेदारी है । हरेक को नौकरी देने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है । सरकार यदि ऐसा करती है तो वह केवल चुनावी घोषणा है जो मिथ्या है । सरकार भी यह जानती है । थोडा विचार करेंगे तो ध्यान में आयेगा कि हम यन्त्रों का अधिकाधिक मात्रा में प्रयोग करते जायेंगे तो मनुष्य के लिये काम ही नहीं रहेगा । फिर नौकरियाँ ही नहीं होंगी । इस स्थिति में सरकार तो क्या कोई भी नौकरी नहीं दे सकता । हाँ, सरकार बेरोजगारी भत्ता दे सकती है परन्तु वह नौकरी नहीं, भीख होगी । इससे तो दुर्गति होगी ।
 
'''उत्तर''' समझदारी पूर्वक किसी भी प्रश्न का विचार करना हरेक की जिम्मेदारी है । हरेक को नौकरी देने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं है । सरकार यदि ऐसा करती है तो वह केवल चुनावी घोषणा है जो मिथ्या है । सरकार भी यह जानती है । थोडा विचार करेंगे तो ध्यान में आयेगा कि हम यन्त्रों का अधिकाधिक मात्रा में प्रयोग करते जायेंगे तो मनुष्य के लिये काम ही नहीं रहेगा । फिर नौकरियाँ ही नहीं होंगी । इस स्थिति में सरकार तो क्या कोई भी नौकरी नहीं दे सकता । हाँ, सरकार बेरोजगारी भत्ता दे सकती है परन्तु वह नौकरी नहीं, भीख होगी । इससे तो दुर्गति होगी ।
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हाँ, सरकार की यह जिम्मेदारी अवश्य है कि सबको अर्थार्जन हेतु काम मिले । काम और नोकरी में अन्तर है । प्रथम तो यह समझना चाहिये कि लोग काम नहीं माँग रहे हैं, नौकरी माँग रहे हैं । जिन्हें काम करना है उन्हें काम तो मिल ही जाता है । यदि हम विद्यालयों में और घरों में काम और काम करना सिखाने लगें, स्वमान जाग्रत करें तो सरकार निरपेक्ष अर्थार्जन की अच्छी व्यवस्था देखते ही देखते बन सकती है क्योंकि भारत के रक्त में इस व्यवस्था के संस्कार हैं । नोकरी नहीं मिलना यह संकट नहीं है, बच्चों को निरुद्यमी बनाना और काम करने लायक ही नहीं बनाना संकट है । सही समृद्धि तो उद्यमशीलता के साथ रहती है, और रहती ही है ।
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हाँ, सरकार की यह जिम्मेदारी अवश्य है कि सबको अर्थार्जन हेतु काम मिले । काम और नोकरी में अन्तर है । प्रथम तो यह समझना चाहिये कि लोग काम नहीं माँग रहे हैं, नौकरी माँग रहे हैं । जिन्हें काम करना है उन्हें काम तो मिल ही जाता है । यदि हम विद्यालयों में और घरों में काम और काम करना सिखाने लगें, स्वमान जाग्रत करें तो सरकार निरपेक्ष अर्थार्जन की अच्छी व्यवस्था देखते ही देखते बन सकती है क्योंकि भारत के रक्त में इस व्यवस्था के संस्कार हैं । नोकरी नहीं मिलना यह संकट नहीं है, बच्चोंं को निरुद्यमी बनाना और काम करने लायक ही नहीं बनाना संकट है । सही समृद्धि तो उद्यमशीलता के साथ रहती है, और रहती ही है ।
    
शिक्षा लोगोंं को इस दिशा में अग्रसर होने को प्रेरित करे और उद्यम सिखायें यही इस प्रश्न का उत्तर है ।
 
शिक्षा लोगोंं को इस दिशा में अग्रसर होने को प्रेरित करे और उद्यम सिखायें यही इस प्रश्न का उत्तर है ।
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आप अपने ब्चचों को अंग्रेजी माध्यम में इसलिये पढाना चाहते हैं क्योंकि वे पढाते हैं । कल वे बन्द करेंगे तो आप भी बन्द करेंगे ।
 
आप अपने ब्चचों को अंग्रेजी माध्यम में इसलिये पढाना चाहते हैं क्योंकि वे पढाते हैं । कल वे बन्द करेंगे तो आप भी बन्द करेंगे ।
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इसलिये प्रश्न आपका नहीं, उनका है । उनसे ही परामर्श है कि अंग्रेजी माध्यम में अपने बच्चों को न पढायें।  
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इसलिये प्रश्न आपका नहीं, उनका है । उनसे ही परामर्श है कि अंग्रेजी माध्यम में अपने बच्चोंं को न पढायें।  
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अंग्रेजी से हानि अधिक है, लाभ कुछ भी नहीं । इसलिये समझदार लोग कभी भी अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से नहीं पढायेंगे । उल्टा कहें तो जो पढ़ाते हैं वे समझदार नहीं हैं । आप भी उनके जैसे नासमझ हैं क्योंकि
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अंग्रेजी से हानि अधिक है, लाभ कुछ भी नहीं । इसलिये समझदार लोग कभी भी अपने बच्चोंं को अंग्रेजी माध्यम से नहीं पढायेंगे । उल्टा कहें तो जो पढ़ाते हैं वे समझदार नहीं हैं । आप भी उनके जैसे नासमझ हैं क्योंकि
 
आप उनका अनुकरण करते हैं ।
 
आप उनका अनुकरण करते हैं ।
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'''एक अभिभावक का प्रश्न'''
 
'''एक अभिभावक का प्रश्न'''
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'''उत्तर''' मोबाइल, टीवी, संगणक चलाने को, किसी के सामने नहीं शरमाने को, चबर-चबर बोलने को, विज्ञापन की अभिनय सहित हूबहू नकल करने को हम स्मार्टनेस कहते हैं । यह स्मार्टनेस नहीं है, छिछलापन है जो बच्चों में
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'''उत्तर''' मोबाइल, टीवी, संगणक चलाने को, किसी के सामने नहीं शरमाने को, चबर-चबर बोलने को, विज्ञापन की अभिनय सहित हूबहू नकल करने को हम स्मार्टनेस कहते हैं । यह स्मार्टनेस नहीं है, छिछलापन है जो बच्चोंं में
 
होता है इसलिये हमें अखरता नहीं है परन्तु बडे बच्चे यदि ऐसे हैं तो हमें परेशानी होती है ।
 
होता है इसलिये हमें अखरता नहीं है परन्तु बडे बच्चे यदि ऐसे हैं तो हमें परेशानी होती है ।
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'''एक अभिभावक का प्रश्न'''  
 
'''एक अभिभावक का प्रश्न'''  
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पुस्तक पढने का महत्त्व बहुत है । बच्चों को तीन वर्ष की आयु से पुस्तकों के मध्य में रखना चाहिये । भले ही पुस्तक पढ़ें नहीं, पुस्तकों के साथ सम्बन्ध जुडना चाहिये । धीरे धीरे अपने आप पढ़ना आ जायेगा ।
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पुस्तक पढने का महत्त्व बहुत है । बच्चोंं को तीन वर्ष की आयु से पुस्तकों के मध्य में रखना चाहिये । भले ही पुस्तक पढ़ें नहीं, पुस्तकों के साथ सम्बन्ध जुडना चाहिये । धीरे धीरे अपने आप पढ़ना आ जायेगा ।
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घर में यदि बडों को पढ़ते हुए देखते हैं तो बच्चे भी पढ़ने में रुचि लेते हैं । बच्चों ने पढ़ी हुई पुस्तक पर उनके साथ बातें करना भाषा सीखने में बहुत सहायता करता है ।
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घर में यदि बडों को पढ़ते हुए देखते हैं तो बच्चे भी पढ़ने में रुचि लेते हैं । बच्चोंं ने पढ़ी हुई पुस्तक पर उनके साथ बातें करना भाषा सीखने में बहुत सहायता करता है ।
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अच्छी सारगर्भित भाषा से युक्त पुस्तकें पढने का अभ्यास बच्चों को होना चाहिये ।
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अच्छी सारगर्भित भाषा से युक्त पुस्तकें पढने का अभ्यास बच्चोंं को होना चाहिये ।
    
साथ ही यदि भाषा जानने वाले लोगोंं की बाचतीत सुनने का और उनके साथ बातें करने का भी अवसर उन्हें मिलता है तो जैसे सोने में सुहागा मिला ।
 
साथ ही यदि भाषा जानने वाले लोगोंं की बाचतीत सुनने का और उनके साथ बातें करने का भी अवसर उन्हें मिलता है तो जैसे सोने में सुहागा मिला ।
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और कुछ बच्चों को भाषा अवगत होने का जन्मजात वरदान होता है । उन्हें ये सारे अवसर मिलते हैं तो
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और कुछ बच्चोंं को भाषा अवगत होने का जन्मजात वरदान होता है । उन्हें ये सारे अवसर मिलते हैं तो
 
उनका भाषाप्रभुत्व सहज ही होता है । जिन्हें भाषा अच्छी आती है उन्हें कठिन विषय समझना भी सरल होता है ।
 
उनका भाषाप्रभुत्व सहज ही होता है । जिन्हें भाषा अच्छी आती है उन्हें कठिन विषय समझना भी सरल होता है ।
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उत्तर यह कानून से होनेवाला काम नहीं है । कानून बनाने से सम्बन्धित लोग दूसरे मार्ग खोज निकालते हैं । कुछ वर्ष पूर्व सरकार ने ऐसा कानून बनाया था तब रातोंरात संचालकों ने “पूर्व प्राथमिक विद्यालय लिखे हुए फलक उतार कर “नर्सरी' “झूला घर' “प्ले हाउस' लिखे हुए फलक चढा दिये । संचालक, शिक्षक और अभिभावक कल तक करते थे वही करते रहे । सबने मिलकर सिद्ध कर दिया कि वे विद्यालय नहीं हैं । तात्पर्य यह है कि यह कानून का विषय नहीं है ।
 
उत्तर यह कानून से होनेवाला काम नहीं है । कानून बनाने से सम्बन्धित लोग दूसरे मार्ग खोज निकालते हैं । कुछ वर्ष पूर्व सरकार ने ऐसा कानून बनाया था तब रातोंरात संचालकों ने “पूर्व प्राथमिक विद्यालय लिखे हुए फलक उतार कर “नर्सरी' “झूला घर' “प्ले हाउस' लिखे हुए फलक चढा दिये । संचालक, शिक्षक और अभिभावक कल तक करते थे वही करते रहे । सबने मिलकर सिद्ध कर दिया कि वे विद्यालय नहीं हैं । तात्पर्य यह है कि यह कानून का विषय नहीं है ।
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अकेले अभिभावक भी कुछ नहीं कर सकते । यदि पूर्व प्राथमिक विभाग में प्रवेश न लें तो सीधे प्राथमिक में प्रवेश देने से संचालक इनकार कर देते हैं । इसलिये पूर्व प्राथमिक से ही बच्चों को विद्यालय भेजने की बाध्यता हो जाती है । कानून है परन्तु कानून को नहीं माना तो कुछ नहीं हो सकता । अकेले संचालक भी कुछ नहीं कर सकते क्योंकि अभिभावकों के आग्रह के आगे सबको झुकना पडता है ।
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अकेले अभिभावक भी कुछ नहीं कर सकते । यदि पूर्व प्राथमिक विभाग में प्रवेश न लें तो सीधे प्राथमिक में प्रवेश देने से संचालक इनकार कर देते हैं । इसलिये पूर्व प्राथमिक से ही बच्चोंं को विद्यालय भेजने की बाध्यता हो जाती है । कानून है परन्तु कानून को नहीं माना तो कुछ नहीं हो सकता । अकेले संचालक भी कुछ नहीं कर सकते क्योंकि अभिभावकों के आग्रह के आगे सबको झुकना पडता है ।
    
अधिकांश अभिभावक, संचालक, शिक्षक शैक्षिक सिद्धान्तों की बहुत दरकार भी नहीं करते । सब किसी अज्ञात तत्त्व से अभिमन्त्रित होकर नहीं करने योग्य सब करते रहते हैं और अमाप खर्चा करते हैं ।
 
अधिकांश अभिभावक, संचालक, शिक्षक शैक्षिक सिद्धान्तों की बहुत दरकार भी नहीं करते । सब किसी अज्ञात तत्त्व से अभिमन्त्रित होकर नहीं करने योग्य सब करते रहते हैं और अमाप खर्चा करते हैं ।
Line 525: Line 525:  
उत्तर १, आज समाज में व्यायामशालायें नहीं हैं जहाँ जाकर तरुण और युवा व्यायाम करें ।
 
उत्तर १, आज समाज में व्यायामशालायें नहीं हैं जहाँ जाकर तरुण और युवा व्यायाम करें ।
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२. आज घरों को आँगन नहीं हैं जहाँ बालअवस्था के बच्चे खेलें । विद्यालयों में मैदान हैं परन्तु खेलने के लिये बच्चों के पास समय नहीं है ।  
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२. आज घरों को आँगन नहीं हैं जहाँ बालअवस्था के बच्चे खेलें । विद्यालयों में मैदान हैं परन्तु खेलने के लिये बच्चोंं के पास समय नहीं है ।  
    
३. 'पढाई' पागल कुत्ते की तरह उनके पीछे पडी है ।
 
३. 'पढाई' पागल कुत्ते की तरह उनके पीछे पडी है ।
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विद्यार्थियों को बौद्धिक स्वावलम्बन सिखाना चाहिये । बौद्धिक परावलम्बन बड़ों बडों का रोग है । विद्यार्थियों को यह न लग जाय इसका ध्यान रखना चाहिये ।  
 
विद्यार्थियों को बौद्धिक स्वावलम्बन सिखाना चाहिये । बौद्धिक परावलम्बन बड़ों बडों का रोग है । विद्यार्थियों को यह न लग जाय इसका ध्यान रखना चाहिये ।  
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प्रश्न ५४ ऐसी पाँच बातें बताइये जो हमें कठोरतापूर्वक हमारे दस से पन्द्रह वर्षों के बच्चों के लिये लागू करनी चाहिये ।
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प्रश्न ५४ ऐसी पाँच बातें बताइये जो हमें कठोरतापूर्वक हमारे दस से पन्द्रह वर्षों के बच्चोंं के लिये लागू करनी चाहिये ।
    
१, होटेलिंग शत प्रतिशत बन्द |
 
१, होटेलिंग शत प्रतिशत बन्द |

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